लेखनी प्रतियोगिता -25-May-2022 ज़िन्दगी से एक मुलाकात
मै आज ऐसे इंसान की कहानी बताने जा रहा हूं, जिसने कभी किसी के साथ बुरा नहीं किया पर पता नहीं हमेशा उसके साथ बुरा तो नहीं हुआ पर इतना अच्छा भी नहीं हुआ जो सोच के वो आपने आपको संतुष्ट समझे l
रमेश एक छोटे परिवार का बेटा था वो दो भाई थे वह छोटा था तो जवाबदारी कम थी पर जिम्मेदारी ज़्यादा रही हमेशा उसके ऊपर। जवाबदारी और जिम्मेदारी में अंतर तो पता होगा आपको ?
नहीं पता !!!
आप छोटे होंगे तो पता चल जायेगा l जवाबदारी ये होती है जैसे तुम बड़े हो तुम्हें छोटे भाई को पढ़ने में मदद करनी चाहिए, ज़िम्मेदारी छोटे पर थी की उसे ही घर के छोटे बड़े काम करने होते जबकि पापा शहर से बाहर जॉब करते हो या बाहर ही रहते हो।
सब्जी लाना, किराना, गैस, बिजली बिल, दूध वगैरह। समर्पण करते करते खुद के बारे में भूल जाना आम बात हैं पर इस समर्पण का सिला ये मिलता है की आपको बेवकूफ माना जाने लगता है।
जो सच बात है बेवकूफ ही सब की खुशी के लिए बार बार बेइज़्ज़ती सहन कर लेता है l प्रेम के वशीभूत वो कुछ नहीं कर पाता और जब वो करने का भी सोचे, तब तक वो अपाहिज बन जाता है।
मतलब ये सब करते करते वो कुछ सीख नहीं पाता ना ऐसा कुछ बन पता की वो कुछ नया या बड़ा कर सके और वो अधीनता उसके जीवन में आ जाती है। ऐसे तो रमेश पहले माँ और पापा के लिए परिवार के लिए चलता रहा और जब भी मौका मिला तब वो कदम आगे बढ़ाने की सोचता तो पैसों के बारे में सोचता और खुद को उस लायक नहीं समझता।
वह हमेशा पैसे बचाने की सोचता, सस्ते स्कूल, कॉलेज, कोचिंग की तलाश में रहता और वहीं पढता। उसे डर रहता की अगर वो कुछ कर ना सका तो पैसे बर्बाद न हो जाये घर वालों के इसलिए कभी बड़ा कदम नहीं बढ़ाया।
आज वो आपने भाई के साथ और उसकी ही कंपनी में काम भी करता है। माँ बाप, भाभी भतीजे सब साथ में हैं बस कमी हैं सम्मान की जो ना घर वालो ने दी ना ससुराल वालो ने। भले ही घर में वह इकलौता ना हो पर जंवाई इकलौता था। परन्तु कोई उसकी ना कोई सुनता और ् ना ही सम्मान दिया जाता।
उसको उल्टी बातें सुनाई जाती, जिनका जवाब वह देता ज़रूर, पर बहुत सी बाते सुनकर अनसुनी भी करता। उसे यह बात हमेशा सताती कहीं बीवी बच्चे ना इनके बहकावे में खुद का घर बर्बाद कर दे इसलिए अच्छा सबके सामने थोड़ा झुककर सब संभाल लेता।
उसके जीवन में कब सम्मान आएगा ये तो पता नहीं पर हां उसके पास पैसों की कमी ना होती और अपने ही भाई के भरोसे ना रहता तो शायद उसकी खुद की माँ उसका सम्मान भले ना करती पर दो राये ना रखती आपने दोनों बेटो में। जब कभी कुछ कहने जाता तो "क्यों नहीं कुछ कर लिया" ये बातें सुनने को मिली l
" बाप बड़ा ना भईया सब बड़ा रुपइया "
रमेश वो था की जो सब कुछ होके भी कुछ ना था वह अकेला थक गया था l बचपन से अब तक रमेश को धोखा ही मिला। किसी को भी अपना माना वो ही मक्कार मिला। उस ्की््मनोदशा बिल्कुल जंगल के हिरन जैसी हो गईं थी। हिरन खुद के लिए नहीं अपने परिवार के लिए जीता है। पर जीवन है करना पड़ता है क्या करे ना करे सोचते नहीं.....
आगे कहानी अगले चेप्टर में.....
shweta soni
25-Jul-2022 08:41 PM
Bahut khub 👌
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Shnaya
28-May-2022 02:53 PM
बेहतरीन
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Seema Priyadarshini sahay
26-May-2022 04:57 PM
बेहतरीन रचना
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