किस्सा एक रात का!
रात! जो लाती है अंधेरा और अंधेरे की चादर में छिपे केई भयावह साये। साये, जो ठंडा कर देते हैं रूह को, जिस्म को जमा देते हैं। अक्सर सारे बुरे काम रात में ही किये जाते हैं जिस कारण लोग रात को खतरनाक हादसों का समय भी कहते हैं।
मगर उक्त सभी बातें बस कहने के लिए ही हैं। राते जानी जाती हैं अमीरजादों की पार्टियों, मस्तीखोर मनचलों के अपने मन मुताबिक घूमने फिरने और मस्ती करने। ये राते इतनी हसीं होती हैं कि कुछ लोग इसका अपनी महबूबा से भी ज्यादा बेसब्री से इंतजार करते हैं।
और कुछ को तो दिन रात से फर्क नहीं पड़ता, फकीर हैं भई! झोला उठाकर निकल पड़ते है पर कुछ रात में बाहर निकलने से भी घबराते हैं, मगर उनके चाहने न चाहने से क्या होता है, जब ऊपरवाला चाहेगा तो निकलना ही पड़ेगा।
खूब लंबी खाली पड़ी कच्ची सड़क, हालांकि यह सड़क पक्की तो बनाई गई थी मगर सरकारी काम बिना घोटाले के हो नहीं सकता, इसलिए दर्शनमात्र के बाद ही पक्की सड़क अंतर्ध्यान हो गयी और अब भी वही पुरानी गड्ढों की दुकान खाली रही। वैसे भी यह सड़क शहर की ओर जाती थी, गाँववाले अपने जरूरत की सारी चीजें गांव में ही उगा लेते थे, रही बात कपड़े वगैरह की तो वो कौन सा रोज खरीदने जाना पड़ेगा इसीलिए गाँववालों ने भी 'विकास और कल्याण' के दर्शन के बाद उन्हें सकुशल वापिस जाने दिया। मैन रोड और गांव के बीच करीब पांच किलोमीटर लंबा रास्ता पड़ता था, जिसमें कहीं बीच बीच में ठहरने के स्थान भी बनाये गए थे जो देखने से हड़प्पा सभ्यता की खुदाई में मिले हुए नजर आते थे, मगर अंधों में काना राजा, सो जे कुछ न पाई ते एक तिहाई में भी संतुष्ट….! गांव वाले जितना मिलता उतने में ही खुश!
ठक-ठक की आवाज जाहिर कर रही थी कि कोई तो आ रहा था, घनी रात थी, हासिये सा चाँद बादलों की ओट में लुकाछिपी खेल रहा था। एकदम गहरा सन्नाटा था, यहां अगर सुई भी गिरती तो ऐसे सुनाई देता जैसे धमाका हुआ हो। दो जोड़ी कदमों की आहट साफ जाहिर हो रही थी, दोनों युवक आपस में बात करते हुए चले आ रहे थे।
"हमें इतना देर नहीं करना चाहिए था।" एक ने जरा चिंतित स्वर में कहा।
"अबे यार! अभी कौन सा देर हुआ है अभी भी बारह बजने में टाइम है।" दूसरा उसे हड़काते हुए बहादुर बनने के अंदाज में कह रहा था।
"गांव में कोई इतना देर तक नहीं जागता!" पहले लड़के ने कहा।
"अरे हाँ भाई अमन! अब बस ही लेट कर दी तो हम क्या करें?" दूसरे लड़के ने पैर पटकते हुए कहा।
"हुंह! बस ने….? या तुम उस शीला को निहारने में देर कर दिए। जब तक तुम आये हमारी पहली बस छूट गयी थी और दूसरी….!" अमन ने उसपर खीझते हुए कहा।
"यार वो है ही ऐसी चीज! कसम से दिल ले गयी मेरा!" उस लड़के ने अपने सीने पर बायीं ओर हाथ रखते हुए शायराना अंदाज़ में कहा।
"हाँ! हाँ! तेरे साथ कॉलेज के आधे से ज्यादा लड़को का दिल ले गयी है। यार मुझे समझ नहीं आता दिल का क्या करेगी वो? अब तो पेसमेकर भी आ गया है। किडनी ले जाती तो कितनी अमीर हो गई होती अब तक…!" अमन ने तंज कसते हुए कहा।
"इतना तरस आ रहा तो तू ही अपनी किडनी क्यों नहीं दे देता?" उस लड़ने ने अमन के आगे खड़ा होकर रास्ता रोकते हुए कहा।
"मुझे उसपर क्यों तरस आने लगा? मुझे तो तुम जैसे आशिको पर तरस आता है!" अमन ने व्यंग्यपूर्ण मुस्कान के संग कहा।
"यार अब ऐसी बात मत कर! क्या मस्त फिगर है .. कसम से!" वह खुद को ही बाहों में समेटते हुए बोला।
"चल तेरी मर्ज़ी मुझे क्या? अब जल्दी जल्दी घर पहुंच वरना बारह बज जाएंगे!" अमन तेज कदमों से चलने लगा।
"वो तो तेरे चेहरे पर आलरेडी बज चुका है। फ़िकर मत कर भिड़ू! तेरी लाइफ में भी कोई ऐसी आएगी जो तुझे रातों में न सोने देगी, फिर तू कहेगा यार वो मेरा अमन चैन लूट के ले गयी। हाहाहा….!" वह जोर जोर से हँसने लगा, जिससे अमन झेंप गया।
"देख भाई जयंत! अपनी लाइफ में तो ये होने से रहा।" अमन ने मुँह बनाकर कहा।
"हाँ हाँ तू किताबी कीड़ा जो ठहरा। वैसे भी तेरी वाली को तो वो कैप्टनवा लेके निकल लिया। समझ नहीं आता आखिर उस पतरकी में ऐसा क्या दिखा उसको….!" जयंत ने अमन को जलाने के अंदाज से बोला।
"वही जो तुम जैसे ठरकियों को नजर नहीं आता। वैसे भी वो मेरी दोस्त थी बस…!" अमन आँखे तरेरते हुए बोला।
"वो मेरी दोस्त थी बस!" चिढ़ाने के अंदाज़ में जयंत बोला। "अबे साले किताबी कीड़े कभी किताबों से बाहर आएगा तब तो पता चलेगा न कि दुनिया कितनी रँगीन है।" आसमान में टिमटिमाते तारों को आँख भर के निहारते हुए जयंत बोला।
"अब कोई बात नही जल्दी घर पहुँचना है समझा!" अमन ने बिना उसकी ओर देखे ही कहा।
"हाहाहा फट रही है साले की! वैसे तो बड़ा बहादुर बनता है बे, लड़कियों के सामने भी फटती है और अभी भी फट रही है। फिर बहादुर काहे का?" जयंत तल्ख अंदाज़ में तंज कसते हुए कहा।
"हाँ! तो तू ही बना रह न बहादुर! मेरी फट रही है अब खुश।" अमन गुस्से से बोला।
"अरे यार तू तो बुरा मान गया! मुझे तो बस शीला की याद आ रही है। हाये!" जयंत अपने दोनों हाथों से सिर पकड़ते हुए बोला।
"सुधर जा साले ठरकी! कहीं ऐसा न हो कि जंगल में शीला की फुफेरी बहन तेरी तलाश कर रही हो।" अमन ने उसे कोहनी मारते हुए कहा।
"क्या सचमुच?" जयंत की तो जैसे बाँछे ही खिल गयीं।
"अबे नौटंकी! घर पहुंच फिर बताता हूँ तुझे।" अमन ने उसका हाथ खींचते हुए कहा। चाँद अब ढलता जा रहा था, ये दोनों भी अभी जंगल में ही थे। मगर अब तक सारे जानवर सो चुके थे, कहीं से कोई आहट न थी।
"थक गया यार मैं! कोई अच्छी सी जगह देखकर ठहर लेते हैं।" जयंत ने अमन का कंधा थामते हुए कहा।
"महाराज! ये जंगल है तुम्हारा शहर नहीं! बोले थे कि अगली बार चलेंगे लेकिन नहीं, इनको तो अभी ही जाना था लेकिन फिर शीला की जवानी ताड़ने में मशरूफ हो गए!" अमन ने उसका हाथ अपने कंधे से झिटकते हुए कहा।
"भाई मेरे! मान जा न रे। सच में उसे देखते देखते टाइम कब बीत गया कुछ पता ही न चला।" जयंत स्वयं को निर्दोष साबित करने हेतु मासूम सा चेहरा बनाकर बोला।
"पर इस जंगल में हम कहाँ ठहरेंगे? जमीन पर बैठना सुरक्षित नहीं लगता।" अमन ने माथे पर जोर देते हुए कहा। "अरे हाँ! यहीं पर रुकने के स्टॉपेज भी बने हुए है न, थोड़ी दूर में आएगा, वहीं आराम कर लेंगे थोड़ी देर!"
"अहह… अगर पहले बताया होता कि इतना चरणदुख मिलेगा तो मैं वहीं शीला को निहारने का नयनसुख प्राप्त करना छोड़कर कभी न आता!" जयंत अपने दोनों घुटनों पर हथेली रखकर झुकते हुए बोला।
"बताया था बे, ठरकपंती के अलावा और कुछ सूझता ही कहाँ है तुझे! अब स्टॉपेज आने तक चुप ही रहना समझे।" अमन बैग से बोतल निकालकर पानी पीते हुए बोला।
"अबे ठरकी नहीं हूँ मैं, ये मेरा प्यार है उसके लिए!" जयंत ऐसे चिल्लाया जैसा कोर्ट में वकील केस हारने लगने पर अपना पल्ला झाड़ते हुए चिल्लाता है।
"हाँ! सब मालूम है।" अमन ने धीरे से कहा। अगले ही मोड़ के बाद वह स्थान नजर आने लगा जहाँ प्रतीक्षालय बना हुआ था, वहां जमीन से थोड़े ऊपर लकड़ी का बेंच और पक्के की टूटी हुई छत दिखाई दे रही थी, चाँद अब भी लुकाछिपी में मशगूल था इसीलिए रोशनी बहुत ही कम नजर आ रही थी। दोनों तेज कदमों से उसकी ओर बड़े।
दोनों ने बेंच के पास एक मानवाकृति खड़ी देखी, इस समय दोनों कुछ ज्यादा नहीं सोचना चाहते थे इसलिए घबराहट के भाव चेहरे पर लाये बिना प्रतीक्षालय के करीब पहुंच गए। जयंत एक ओर अपना बैग रखते हुए एक ओर की बेंच पर पसर गया, अमन दूसरी ओर आराम से बैठा। उसकी निगाहे किसी को ढूंढ सी रहीं थीं।
"अहह! बहुत आराम मिला रे भाई! तुम्हारे घर जाने से अच्छा तो मैं अग्नि परीक्षा दे लेता।" जयंत ने लेटे-लेटे ही कहा।
"और काँच परीक्षा भी! उसमें तो तू उस्ताद है।" अमन ने हँसते हुए व्यंग्य किया।
"यार अब वो याद मत दिला। मुझे तो बस यही समझ न आ रहा वो कैप्टनवा साला उस पतरकी पे कैसे फिसल गया?" जयंत अपने बैग पर सिर टिकाते हुए कहा।
"तुझे अब भी यही बात करनी है?" अचानक अमन का रवैया उग्र हो गया।
"अरे नहीं यार!" जयंत ने दोनों हाथों से उसे रोकते हुए बोला। "बहुत आराम मिल रहा है, चल रातभर यहीं सो लेते हैं फिर सुबह आराम से चलेंगे।"
"यहाँ रुका तो सुबह तक घर जाने लायक बचेगा भी या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है, चल घर चल!" अमन ने चेहरे पर अजीब सा भाव लाते हुए कहा। "अबे यार अभी थोड़ी देर पहले जो यहां था वो कहाँ गया?"
"अबे जाने दे ना? कौन सा तेरा रिश्तेदार लग रहा था वो, चला गया होगा।" जयंत ने मजाक उड़ाते हुए कहा।
"तो दिखाई क्यों नहीं दे रहा?" अमन सड़क के दोनों ओर दूर दूर तक देखने की कोशिश करते हुए बोला।
"महबूबा न थी वो तेरी! जो गया तो जाने दे न! अब काहे झूठ - मुठ में हॉरर सस्पेंस क्रिएट कर रहा है।" जयंत ने अमन के चेहरे पर आए भाव देखकर हँसते हुए कहा।
"अं….!"
"हे गाइस! तुम लोग शायद मेरे बारे में बात कर रहे हो।" उन्हें एक बेहद प्यारा और सुरीला जनाना स्वर सुनाई दिया। अमन की नजरें उसकी ओर फिरी, उसके चेहरे पर तो बारह बज गए।
"कौन?" जयंत ने बिना उसकी ओर देखे निडरता से पूछा।
"क्या मजाक करते हो यार! तुम्हें इतनी खूबसूरत जवां हसीन लड़की दिखाई नहीं दे रही है क्या?" उस लड़की ने ताना कसते हुए कहा।
"खू..खूबसूरत…!" अमन के मुंह से बोल न फूटे, उसने अपने गले में आया थूक गटका और चुपचाप आंखे फाड़कर देखने लगा।
"वाओ! यू लुकिंग गॉर्जियस!" जयंत तो बस उसे देखता ही रह गया। वह रेड कलर के लांग ड्रेस में कमाल की लग रही थी, चाँद की झीनी सी रोशनी उसे और खूबसूरती से नवाज रही थी। जयंत की नजर उसके चेहरे तक गयी ही नहीं।
"ओ थैंक यू माय प्रिंस चार्मिंग!" लड़की उसके करीब आते हुए बोली, वहीं अमन की सिट्टी-पिट्टी गुल हो चुकी थी।
"वाओ यार! तुम्हें तो अंग्रेजी भी आती है। गांव की तो नहीं लगती।" जयंत ने उसके लिबास को देखते हुए कहा।
"मुझें नहीं पहचाना क्या जय बेबी?" अचानक ही लड़की का स्वर बदल गया, अब वो और मीठा बोलने लगी थी, मानो अभी अभी एक क्विंटल मिश्री चट करके आयी हो।
"स….शीला तुम? त..तुम यहाँ कैसे?" जयंत ने हकलाते हुए कहा। अमन अब भी दोनों को आँखे फाड़कर देख रहा था, मगर उसकी पलके न झपक रहीं थी।
"अरे मेरी जान! जहाँ तुम वहां मैं .!" शीला ने मुस्कुराते हुए कहा।
"इसका मतलब तुम भी मुझे पसंद करती हो?" जयंत खुशी से उछलते हुए बोला।
"पसन्द…! कर दी न छोटी बात, मैं तो तुमपर जाँ निसार कर दूं।" शीला ने खिलखिलाते हुए कहा।
"सच…!" जयंत तो खुशी से पागल हो गया।
"मुच…!" शीला ने खिलखिलाते हुए कहा।
"भाई अमन ये तो कमाल हो गया, देख न!" जयंत ने उछलते हुए, अमन को खींचकर बोला। "अबे खुली आँखों से सपना देख रहा है क्या?" जयंत ने उसे जोर जोर से झिंझोड़ा।
"अंह…!" अमन अपनी आँखें मलते हुए इधर उधर देखने लगा।
"ये देख शीला! ये भी प्यार करती है मेरे से, मेरे लिए आई है यहां तक!" जयंत ने शीला का हाथ पकड़ते हुए कहा।
"अबे कहाँ है शीला?" अमन ने अपनी आंखें और अधिक मलते हुए पानी से धोकर कहा।
"य...ये देख!" जयंत ने जब शीला की ओर देखा तो झट से उसका हाथ छोड़ दिया।
"अबे वो शीला नहीं वो तो लकड़ी है।" अमन ने हंसते हुए कहा।
"नहीं यार अभी यहां शीला थी। तूने भी आवाज सुनी थी किसी की! है न?" जयंत ने अमन से पूछा।
"हाँ सुना होगा, चल अब घर चल!" अमन ने डरते हुए कहा।
"अबे वो शीला ही थी। कह रही थी प्यार करती है मेरे से, ये देख ये रही शीला।" सामने से अपनी ओर आ रही लड़की की ओर इंगित करता हुआ जयंत बोला।
"अबे ये तुझे स...शीला किधर से नजर आ रही है?" अमन उस भयावह आकृति को देखकर डर के मारे कांपने लगा था। वह पूर्ण रूप से कंकाल की बनी नजर आ रही थी, उसके बदन की सारी नसें और अंतड़िया स्पष्टया नजर आ रहे थे। वातावरण में बदबू फैलने लगा था, उसकी आँखों के स्थान पर खाली गड्ढे थे, अमन जैसे लड़के के लिए यह बहुत अधिक था, वह डर के मारे बोल तक भी न पा रहा था, अब उसे याद आ रहा था कि थोड़ी देर पहले उसने ऐसे ही किसी को देखा था।
"किधर चली गयी थी जानेमन!" जयंत ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला। उसे वह अब भी वही कमाल की खूबसूरत, रति का दूसरा रूप शीला ही नजर आ रही थी।
"बस हल्का होने..! तुम हाथ नहीं छोड़ रहे थे इसलिए लकड़ी थमा दी। हीहीही..!" शीला ने खिलखिलाते हुए कहा।
"ओह्ह मेरी जान!" कहते हुए जयंत उससे चिपक गया।
'अबे हवसी! देख तो ले कि किससे गले लगा जा रहा है! कहाँ वो शीला, कहाँ ये चुड़ैलों की रानी!' अमन घिघियाते हुए उसपर चिल्लाना चाहा मगर उसके मुंह से एक भी बोल न फूटे।
"चलो जानेमन!" शीला ने प्यार से कहा।
"कहाँ?" जयंत ने पूछा।
"दावत पर!" शीला ने हंसते हुए कहा।
"मैं तो इस अमन के घर जा रहा हूँ!" जयंत ने अमन की ओर देखते हुए कहा। अमन अपनें स्थान पर जड़ नजर आ रहा था। "अबे तुझे क्या हुआ? मुझे मेरा प्यार पाते देख सदमा लग गया क्या?" जयंत ने उसे झिंझोड़ते हुए व्यंग्यात्मक स्वर में कहा।
'अबे अब तुझे कौन समझाए कि जो तेरी हवसी नजर को शीला नजर आ रही है वो तेरा ही दावत उड़ाएगी।' अमन ने कहना चाहा पर मुँह से बोल ही न फूटे, वह बड़ी बड़ी आँखों से जयंत को घूरता रहा।
"अबे ऐसे क्या देख रहा है? मारेगा क्या बोल न, मारेगा क्या?" गुस्से से कहते हुए जयंत ने उसे धक्का दिया।
"ह..हवस का पुजारी वो तेरी स..शीला…!" अमन ने डरते हुए बोलना चाहा।
"देखा बेटा जल गई न? साला दोस्त ही अपने दोस्त को खुश नहीं देख सकता। मुझे मेरा प्यार मिला तो हवस का पुजारी बोल रहा…!" जयंत गुस्से से बिफर पड़ा, उसका ध्यान उस 'शीला' की ओर नहीं गया।
"अबे अपने पीछे तो देख!" अमन अपनी पूरी ताकत से जयंत को थप्पड़ जड़ते हुए कहा, उसे लगने लगा था कि वह अपने डर से नहीं जीता तो उसका दोस्त मारा जाएगा।
"साला अब तक तो बस बोल ही रहा था अब मार भी रहा है, इतना जलता है क्या बे? मुझे मालूम नहीं था!" जयंत अपने गाल सहलाते हुए बोला।
"अबे हवसी, अपनी आँखों से हवस का चश्मा हटाकर तो देख!" अमन ने खींचकर एक और थप्पड़ लगाया। जयंत ने अपने पीछे देखा तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई।
"अ...अबे ये कौन है?" उस चुड़ैल को अपने पीछे खड़ा देख जयंत तेजी से अमन की ओर पीछे हटने लगा। उसका पैर एक पत्थर से टकराया और धड़ाम से गिरा, अब उसकी हालत अमन से भी बदतर हो चुकी थी।
"तेरी शीला, इसी के गले तो लग रहा था तू और मुझे इतना लेक्चर सुनाया।" अमन तल्ख लहजे में तंज कसते हुए कहा।
"अबे ये शीला कैसे हो सकती है!" जयंत ने आँखे फाड़कर उसकी ओर ताकते हुए कहा। वह बहुत ही भयानक नजर आ रही थी और जयंत की ओर बढ़ी चली आ रही थी।
"अब तो तुमने मेरे प्यार को एक्सेप्ट किया है राजा! अब तो तुम्हें मेरे साथ ही चलना होगा।" उस चुड़ैल ने भयंकर तरीके से हंसते हुए कहा।
"जा, अब वो तुझे ही लेने आई है!" अमन ने जब यह देखा कि चुड़ैल का ध्यान उसकी ओर नहीं आ रहा तो वह थोड़ा आश्वस्त होकर बोला, मगर डर अब भी कायम था वरन उसका वर्चस्वबढ़ता जा रहा था, वातावरण और अधिक बदबू से भरा जा रहा था।
"अरे यार..! माफ कर दे मेरे भाई! बचा इससे!" जयंत ने अमन के पीछे छिपने की कोशिश करते हुए कहा।
"अब मैं किसी चुड़ैल से कैसे लड़ूंगा बे!" अमन ने खीझकर कहा। "चल भाग!" अमन ने अपना बैग वहीं छोड़कर जयंत को खिंचते हुए कहा।
"तुम मुझसे मेरे प्रेमी को नहीं छीन सकते!" चुड़ैल गुस्से से चिल्लाई। "अब तुम्हें भी मेरे क्रोध का शिकार होने से कोई नहीं बचा सकता।"
"अबे यार, देख अब तो ये तुझे अपना फ्यूचर पति भी मान चुकी होगी, तेरे साथ अपने चुड़ैल परिवार के नन्हें-मुन्नों के बारे में भी तय कर चुकी होगी, देख! अब तो तुझे इसके साथ ही जाना होगा, मैं किसी से उसका भविष्य नहीं छीन सकता और मुझे मरने का भी कोई शौक नहीं है।" अमन ने जयंत का हाथ छोड़ते हुए कहा।
"ऐसा मत कर मेरे भाई! थोड़ा तो लिहाज कर हमारी दोस्ती का!" जयंत गिड़गिड़ाने लगा।
"अच्छा अभी जो लेक्चर दे रहा था उसका क्या?" अमन ने घूरते हुए पूछा।
"यार अब से कभी कैप्टनवा और परतकी के बारे में बात नहीं करूंगा। बस इस बार तो बचा ले!" जयंत अपने कान पकड़े दौड़ते हुए बोला।
"बचने का एक ही तरीका है, भागो!" अमन और तेज दौड़ते हुए बोला।
"वो तो ऑलरेडी भाग ही रहा हूँ। कोई दूसरा तरीका बता।" जयंत के पांव डर के मारे लड़खड़ा रहे थे, फिर भी वह अपनी पूरी जान लगाकर दौड़ रहा था।
"कोई और तरीका नहीं मेरे भाई! आज दोनों के दोनों नरक पहुँचने वाले हैं। वहीं मुलाकात होगी, फिर यमराज की बेटी पे लाइन मारते रहियो।" अब अमन की हालत भी बुरी तरह खराब हो चुकी थी। वह थककर पस्त हो चुका था।
"य..यार अब बस कर न प्लीज! अब नजर नहीं आ रही वो!" जयंत ने रुककर पूछे मुड़ते हुए कहा। उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो घुटनो से नीचे जान ही नही हो, वह सड़क पर ही फैल गया। अमन भी पीछे उसे आता न देखकर जमीन पर लोट गया।
"अब कभी जंगलों में नहीं जाऊंगा मैं!" जयंत ने हांफते हुए कहा।
"मुझे छोड़कर कहा भाग चले मेरे राजा?" तभी उन दोनों को एक कर्कश स्वर सुनाई दिया। जो दोनों के कानों को चीरते हुए से गुजर गई।
"ह..हमें छोड़ दो प्लीज!" जयंत बुरी तरह गिड़गिड़ाया। उसकी आँखों से झर-झर कर आंसू बह रहे थे।
"छोड़ना होता तो पकड़ने क्यों आती प्रिंस चार्मिंग!"
जयंत ने महसूस किया वह साया ठीक उसके ऊपर घने जाल की भांति फैल चुका था।
"अमन बचा!" जयंत अपनी पूरी ताकत से चीखा मगर उसकी आवाज गले में ही सिमट गई।
"अहह…!" बाहर अमन की चीख गूंज रही थी, वह जमीन से काफी ऊपर हवा में लटका हुआ था।
"जय हनुमान ज्ञान गुण सागर…!" अचानक जयंत के कमजोर पड़ रहे शरीर ने दिमाग से काम लिया। वह हनुमान चालीसा पाठ करने लगा।
"ये सब मुझपर असर नहीं करेगा जानेमन! मैं तो तुम्हारे ही दिल की तमन्ना हूं।" चुड़ैल का कर्कश स्वर उभरा, अमन धड़ाम से नीचे गिरा, उसकी कमर पर गहरा चोट लगा था, वह चीख पड़ा।
"उ..उसे छोड़ दो!" अमन चिल्लाया।
"छोड़ना होता तो पकड़ती क्यों मेरे राजा! पर अब इसके साथ तुम्हें भी पकड़ूंगी हाहाहा…!" भयंकर अठ्ठाहस करते हुए चुड़ैल ने खतरनाक स्वर में कहा। "तुम मेरी राह में बहुत रुकावट पैदा कर रहे हो, अब इसके साथ तुम्हें भी मेरे साथ चलना ही होगा। हाहाहा....!"
"अब इससे कैसे बचेंगे अमन! हमारा बचना नामुमकिन है।" जयंत ने अब अपनी सारी उम्मीदें छोड़ दी थी। "मैं तुम्हारें साथ चल रहा हूँ मगर तुम्हें मेरे दोस्त को छोड़ना पड़ेगा।"
"मैं कोई व्यापार नहीं करती राजा! अब तो दोनों को ही चलना होगा।" चुड़ैल ने खूंखार तरीके से मुस्कुराते हुए कहा।
"फिर ठीक है!" अमन ने अजीब तरीके से मुस्कुराकर कहा।
"तुझे क्या हो गया है अमन?" जयंत, अमन की इस हरकत से हैरान था।
"तू डरना छोड़ और बस मुझे फॉलो कर!" कहते हुए अमन ने आंख मारी।
"हम तुम्हारे साथ चल रहे हैं।" जयंत ने डरते हुए कहा।
"तुम हमें रास्ता दिखाते हुए आगे आगे चलो, हम पीछे। पीछे आ रहे हैं।" अमन ने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा।
"ओके मेरे राजा!" कहते हुए चुड़ैल आगे आगे चलने लगी, अमन ने जयंत को इशारा किया। "तुम भाग नहीं सकते मेरे राजा।"
"अब तो मरना तय है मेरे भाई! मुझे माफ़ करना।" जयंत का चेहरा डर के मारे सफेद पड़ गया था।
"और बड़ा बहादुर बनता है?" अमन की भी वही हालत
थी मगर वह किसी तरह खुद को सम्भाले हुए था। "सुन ये तेरी ही ठरक से पैदा हुई है, इसलिए तुझे इसे खत्म करने के लिए अपने ठरक को खत्म करना होगा। अमन किसी तरह खुद को चुड़ैल की चंगुल से निकालते हुए बोला।
"अबे यार तू अभी भी उसी ठरक वाली बात पर रुका हुआ है।" जयंत ने खीझते हुए कहा, आलरेडी डर के मारे उसकी पेंट गीली हो चुकी थी, अमन की ये बात उसे गुस्सा दिला रही थी।
"यही सच्चाई है ठरकी कहीं के, देखा नहीं वो तेरे ही पीछे तेरे ठरकमिजाजी की कई-कई रूप बनाकर पड़ी हुई है।" अमन ने नाक सिकोड़ते हुए कहा। "अगर तुझे इससे लड़ना है तो पहले खुद को ठरक की गंध से बाहर निकालना होगा। समझा?"
"माँ की...जय! बस यही बाकी था। ठरक वाली चुड़ैल…?" जयंत ने अजीब सा मुँह बनाया, मगर उसे अमन की बातों पर थोड़ा-थोड़ा यकीन आ रहा था।
"कुछ बोले क्या मेरे राजा?" उस चुड़ैल ने जयंत से पूछा।
"नहीं दीदी!" जयंत ने उसे घूरते हुए कहा।
"क्या? दीदी?" चुड़ैल उसे छोड़कर उसके आगे खड़ी हो गयी।
"हाँ! आज से सारी लड़कियां मेरी बहन, एक को छोड़कर!" जयंत ने धमकाने के स्वर में कहा। अचानक दूर जाती चुड़ैल फिर से उससे लिपटने लगी। अमन जोर से चीखा।
"अच्छा अच्छा ठीक है! आज से सारी लड़किया, चुड़ैलें, भूतनिया सब मेरी बहन! मैं किसी को भी, कभी भी बहन के अलावा किसी भी दूसरी नजर से नहीं देखूंगा।" जयंत गिड़गिड़ाते हुए बोला।
"न..नहीं!" वह चुड़ैल उससे दूर जाने लगी। उसका शरीर धीरे-धीरे नष्ट होने लगा, थोड़ी ही देर में वह जंगल में पूर्ण रूप से गायब हो गयी, चाँद अब पूरी तरह ओझल हो चुका था।
"फिर कभी मत आना दीदी!" जयंत जोर से चिल्लाया।
"जान बची सो लाखों पाए!" अमन घर की ओर रुख करते हुए बोला। "वो तो मुझे वक़्त पर आईडिया आ गया नहीं तो हमारी चिकन तंदूरी पक रही होती। साला! मुझे तो पता ही नहीं था ये जंगल तेरी ठरक को जिंदा रूप दे देगा। देख ले साले, कितनी गंदी होती है ये ठरकियों वाली हरकते..!"
"यार शीला…!" जयंत ने कहना चाहा पर अमन को देखकर चुप रह गया। "मेरा मतलब शीला से जाकर राखी बंधवा लूंगा।" अपनी गीली पेंट सम्भालते हुए जयंत बोला, जिसे देखकर अमन ने हँस दिया। थोड़ी ही देर बाद दोनों को गांव नजर आने लगा, दोनों बुरी तरह थक चुके थे, इसलिए घर जाते ही नहाधोकर, कपड़े बदलकर आराम से सो गए।
समाप्त!
#MJ
©मनोज कुमार "MJ"
Sahil writer
21-Jul-2021 09:05 PM
Nice
Reply
मनोज कुमार "MJ"
22-Jul-2021 03:06 PM
Thanks
Reply
🤫
17-Jul-2021 09:59 PM
वाह.... सुंदर शैली
Reply
मनोज कुमार "MJ"
19-Jul-2021 05:49 PM
Bahut shukriya
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Zakirhusain Abbas Chougule
16-Jul-2021 11:04 PM
बहुत खूब मनोज कुमार भाई इतना टाईप कैसे कर लेते ?
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मनोज कुमार "MJ"
17-Jul-2021 06:46 PM
Hath se bhai.. aap bhi kriye
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