सौरभ बंद करो इश्क़ के बारे में लिखना
जरा देखकर तो आओ तुम सियासत की गलियां
लिखतें लिखतें थक जाएगी तेरी उंगलिया
मग़र मज़हबी फ़ूल खिलाती रहेगी हमेशा ये नफ़रत की कलियां
बंदगी सस्ती हुई और महँगी हो गयी ख़ुदा की मूर्तिया
और बस ख़ुद का ही मज़हब अच्छा है औरो के मज़हब में दिखती है लाख बुराईया
किसी की मौत पर भी सियासत कर दी
तुमने समझी ही नही उस मुर्दे की लाचारिया
जुठ के पर्दो से सजी है ये सच की खिड़कियां
कहा से तुम देख पाओगे वो अमन और चैन की दुनियां
मगर मै अपनी क़लम से दिखाता रहूँगा ज़माने को हरदम आयना
अगर मैं चल बसूँ किसी दिन यूंही लिखते-लिखते इस दुनिया से
तो ए क़लम तू जिंदा रखना हमेशा मेरा नज़रिया।
Punam verma
27-May-2022 11:19 AM
Nice
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Saurabh Patel
27-May-2022 01:26 PM
Thank you
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Shrishti pandey
27-May-2022 10:44 AM
Nice
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Saurabh Patel
27-May-2022 10:52 AM
Thank you
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Abhinav ji
27-May-2022 06:55 AM
Nice👍
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Saurabh Patel
27-May-2022 10:52 AM
Thank you
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