Sarfaraz

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स्वैच्छिक

🌹🌹🌹*गीत*🌹🌹🌹

घिरकर जब अँधियारा आया।
पास न आया अपना साया।
वक़्त ने हमको सब समझाया।
कौन है अपना कौन पराया।

ख़ुशहाली थी जब तक घर में।
सब अपने थे तब तक घर में।
बदहाली का दौर जो आया।
दूर सभी को उस दम पाया।
यह देखा तो जाना हमने।
कौन है अपना कौन पराया।

कष्ट में कोई काम न आए।
याद किसी का धाम न आए।
बढ़ती जिस दम दुख की छाया।
घटती उस दम सुख की माया।
पीर बढ़ी तो जाना हमने।
कौन है अपना कौन पराया।

जो है धनी वो उजला लगता।
निर्धन है जो पगला लगता।
धूप में तपती उसकी काया।
निर्धनता में डसती छाया।
बनके निर्धन जाना हमने।
कौन है अपना कौन पराया।

धन दौलत के यार हैं सारे।
निर्धन जन को कौन पुकारे।
देख के ग़म का ऐसा साया।
दिल ही दिल में रोना आया।
दुख जो सहे तो जाना हमने।
कौन है अपना कौन पराया।

घिरकर जब अँधियारा आया।
पास न आया अपना साया।
वक़्त ने हमको सब समझाया।
कौन है अपना कौन पराया।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद।

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6 Comments

Chirag chirag

27-May-2022 06:06 PM

Behtarin

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Pallavi

26-May-2022 09:45 PM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

26-May-2022 05:06 PM

वाह वाह..👌👌

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