कौन है वो–६

कौन है वो


बस थोड़ा समय निकाल कर सिर्फ कुछ पढ़ रहा था, कुछ लिखने का वक्त नहीं मिल रहा था

गतांक से आगे:
मालती रमेश को जाते देखती रह गई, वो जानती थी उसने और उसके परिवार ने रमेश को छला है, पर काश वो सुन लेता कि इस प्रपंच में बेचारी मालती तो मात्र एक कठपुतली थी जिसे उसके परिवार ने जब जैसे चाहा वैसे नचाया।
काश वो कह पाती, कि वो नहीं चाहती थी की उसका विवाह इस तरह धोखा देकर किया जाए।
पर वो ये भी समझती थी कि यहां कोई उसकी बात का यकीन नहीं करेगा, यकीन करना तो दूर कोई उसकी बात भी सुनना पसंद नहीं करेगा।
उसे समझ ही नहीं आ रहा था वो क्या करे, उसे तो बस रह रह कर अपनी किस्मत पर रोना आ रहा था, उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह कर उसके चेहरे से होकर उसके चमकीले ब्लाउज को भिगो रही थी।
रमेश के गुस्से को देख कर वो इतना तो समझ चुकी थी कि शायद अगली सुबह उसे इस घर से धक्के मार कर निकाल दिया जाएगा।
अगर ऐसा हुआ तो क्या करेगी वो, कहां जायेगी, पिता के घर के दरवाजे भी दादी तकरीबन बंद ही कर चुकी थी। उसे याद आया, चलते चलते जो दादी ने उसके कान में कहा था, वो शब्द अभी भी पिघले सीसे की तरह उसके कानों में बह रहे थे।
दादी ने कहा था, देखो अब वही घर तेरा है, हमने बहुत साल तुझे पाल लिया, बड़ी मुश्किल से जुगत लगा कर तेरा ब्याह कर रहे हैं। डोली में जा रही है, ध्यान रहे, जीते जी वो चोखट मत लांघियो, जैसे भी हो मिन्नत समाजत करके मना लीजो अपने घरवाले और उसके घरवालों को। और खबरदार जो हम पे कोई लांछन लेकर वापस लौटी, वरना मुझ से बुरा कोई ना होगा। समझी करमजली।
यही सब सोचते सोचते कमरे के उसी कोने में पड़ी मालती कब सो गई उसे पता ही ना चला।
दरवाजे पर होती थप थप की आवाज ने उसे अगली सुबह जगाया। रमेश रात का गया वापस नहीं आया था। मालती ने जल्दी से उठ कर अपने कपड़े व्यवस्थित किए और फिर घूंघट काढ़ कर आगे बढ़ कर दरवाजा खोला, देखा सामने उसकी ननद चाय की ट्रे लेकर खड़ी मुस्कुरा रही थी।
मालती को देखते ही वो शरारत भरी आवाज में बोली, और भाभी रात में सोई भी या भैया के साथ रतजगा ही किया, अच्छा भैया को उठा दो और चाय पी लो फिर तरोताजा होकर तैयार हो जाना और दोनो लोग नीचे आ जाना, कुछ मेहमान आने वाले है......
अचानक उसकी नजर पलंग पर पड़ी और वो बात कहते कहते रुक गई.... उसकी पारखी नजर झट ताड़ गई की रात कोई बिस्तर पर सोया ही ना था, साथ ही अपने भाई को वहां न पाकर वो चौंक गई, बोली, भैया कहां गए.... रात में आए तो थे फिर क्या हुआ?
क्या हुआ? मुझे बताओ भाभी।
मालती, समझ नहीं पा रही थी की क्या जवाब दे, वो बस दरवाजे के पास नजरें झुका कर चुपचाप खड़ी रही।
उसकी चुप्पी देख कर ननद चाय की ट्रे रख कर उसके पास आई और उसकी दोनो बाजू पकड़ कर फिर बोली, बोलो भाभी, क्या हुआ कल रात, मुझे बताओ, भैया ने कोई गलत बात की, आपका झगड़ा हुआ क्या, आप चिंता मत करो अगर कुछ भी गलत कहा या किया तो मैं बाबूजी को बता दूंगी, उसने फिर प्यार से पूछा।
मालती क्या बताती, बस प्रेम के इस अधिकार भरे स्वर को सुन कर उसकी अश्रु धारा बह निकली, और एक बार फिर वो जार जार रोने लगी।
मालती को यूं रोता देख उसकी ननद को कुछ समझ नहीं आ रहा था, पर उसे आभास हो चला था कुछ तो बहुत गड़बड़ है।
हैरानी ये भी थी कि ऐसा क्या हुआ की उसका सीधा समझदार भाई अपनी नव ब्याहता को शादी की पहली रात यूं छोड़ कर चला गया और वो भी बिना कुछ किसी को बताए।
उसने चाय की ट्रे रखी और मालती को ये कह कर चली गई, आप चिंता मत करो, सब ठीक हो जायेगा। आप चाय पी कर फ्रेश हो जाओ।
इतना कह कर उसने कमरे से जाते हुए कमरे का किवाड़ उढ़का दिया।
थोड़ी देर में मालती, संयत होकर उठी और जा कर खुद को तरोताजा करते हुए भाग्य के इस नए खेल का सामना करने के लिए तैयार होने लगी।
इधर ननद ने जाकर वहां का सब हाल अपनी माता जी यानी मालती की सास को बताया, सब बात सुन कर रमा जी ने अपने पति को सब हालात से अवगत करवाया। दोनो ही पति पत्नी रमेश के अचानक किए व्यवहार से काफी दुखी और चिंतित हो उठे। दीनानाथ जी, रमेश के पिता, को अपनी परवरिश पर पूरा भरोसा था फिर भी शादी के पहले ही दिन इस प्रकार बहु को अकेला छोड़ कर उसके चले जाने से वो काफी नाराज़ और परेशान थे।
काफी सोच विचार के बाद सभी मेहमानों को रमेश के कार्यालय में अचानक आए काम का वास्ता देकर सभी कार्यक्रम निरस्त कर दिए गए और रमा, दीनानाथ जी और रमेश की बहन ने मालती को उसके कमरे में ही मिलने के विचार से रमेश के कमरे का रुख किया।
कमरे में पहुंचते ही मालती ने आदर से अपने सास ससुर के पांव छुए और सर झुका कर खड़ी हो गई।
दीनानाथ जी ने अपनी धीर गंभीर आवाज में मालती को संबोधित करके बोलना शुरू किया।
मालती बेटा, हम जानते हैं रमेश के इस ओछे बर्ताव की वजह से तुम बहुत दुखी होगी, पर तुम्हारी हीं तरह हम सब को बताए बिना न जाने वो क्यों ऐसे गायब हो गया। पर तुम किसी बात की चिंता मत करो मुझे और रमा को अपने माता पिता की ही तरह समझो और बेझिझक बताओ ऐसी क्या बात हुई तुम दोनो के बीच जो रमेश आधी रात में ऐसे चला गया। यकीन रखो आज से तुम हमारे परिवार का हिस्सा हो और हमारे होते हुए तुमको यूं दुख नहीं उठाना पड़ेगा।
उनकी ऐसी प्यार भरी बातें सुन कर एक बार फिर मालती फफक फफक कर रोने लगी, रमा जी ने आगे बढ़ कर उसे अपने सीने से लगा लिया और पुचकारते हुए उसे शांत होकर सारी बात बताने के लिए कहा।
आंसुओं के बीच अगले आधे घंटे में सिसकते हुए मालती ने सारा किस्सा बयान कर दिया।
पूरी बात सुनने के बाद थोड़ी देर तक कमरे में सिर्फ और सिर्फ मालती की सिसकियां सुनाई दे रहीं थी। सब लोग हतप्रभ से चुपचाप बैठे थे। किसी को समझ नहीं आ रहा था की इस परिस्थिति से कैसे बाहर निकला जाए।
एक लंबी खामोशी के बाद एक बार फिर से दीनानाथ जी ने अपनी धीर गंभीर आवाज में बोलना शुरू किया, मालती बेटा जो कुछ भी तुम्हारे परिवार ने हमारे साथ किया वो बहुत गलत है, जानता हूं इसमें तुम ना चाहते हुए भी शामिल हो गई हो। मैं ये तो नहीं कहूंगा कि रमेश का गुस्सा होना जायज नहीं है, पर फिर भी क्यूंकि अब तुम उसकी ब्याहता पत्नी हो तो चाहूंगा की वो तुम से निबाहे और तुम्हे अपनी पत्नी का दर्जा भी दे। पर वो ऐसा करेगा या नहीं, नहीं जानता और ना ही हम उसे ऐसा करने को बाध्य कर सकते हैं। हां इस परिवार का मुखिया होने के नाते मैं तुम्हे वचन देता हूं की तुम इस घर में बहु के रूप में रहोगी और हम तुम्हे उतना ही प्यार और सम्मान देंगे जितना अपनी बेटी को देते हैं, क्यों सही है ना रमा।
जी हां, बिलकुल सही कहा आपने, रमा जी बोली, आखिर मालती हमारे घर की बहु है और किसी और की गलती की सजा हम इसे कैसे दे सकते हैं।
पहली बार मालती ने चैन की गहरी सांस ली, आखिर उसकी किस्मत से उसे एक प्यार करने वाले माता पिता मिल ही गए......

क्रमश:

आभार – नवीन पहल – ३०.०५.२०२२ 🌹🙏🏻💐🎉

# नॉन स्टॉप 2022

   16
4 Comments

Rajeev pandey

01-Jun-2022 09:45 AM

Nice

Reply

Shnaya

31-May-2022 10:06 PM

शानदार

Reply

Gunjan Kamal

31-May-2022 08:44 AM

बहुत सुंदर प्रस्तुति

Reply