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रंगभेद

हमारे पूर्वजों का कहना था कि भगवान जो कुछ भी करते है उसके पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है। ये बात सही भी है लेकिन लगता है कि आज के महाआधुनिक मानव को ये बात अभी तक समझ नहीं आई है। ये बात तो हम सभी जानते ही है कि सुंदर वस्तुएं हमेशा से ही मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित करती है, लेकिन सुंदरता की सही परिभाषा क्या है ये कोई नही जानता। आज के समय में सुंदरता के मायने ही बदल गए है। जब तक किसी इंसान का रंग गोरा न हो, कद लम्बा न हो और शरीर छरहरा न हो, तब तक हम उसे सुंदर मानते ही नहीं है।

कैसी विडंबना है कि इक्कीसवीं सदी में कहां हमे मानव सभ्यता के विकास के बारे में सोचना चाहिए था और कहां हम अभी भी रंग भेद को पकड़े हुए बैठे है। रंग भेद का नाम सुनते ही सबसे पहले नेल्सन मंडेला का ख्याल मन में आता है। आप सभी लोग इनसे भली भांति परिचित है। यदि आपने इतिहास पढ़ा है तो आपको ज्ञात होगा की किस तरह से अफ्रीका में रहने वाले अश्वेतों को निग्रो (ये एक अपशब्द है इसलिए कोई भी इस शब्द का प्रयोग ना करे) शब्द से संबोधित किया जाता था और उनका अपमान भी किया जाता है। सिर्फ श्वेत न होने और रंग काला होने की वजह से ही उन लोगों के साथ जानवरों जैसा बर्ताव किया जाता था। ये बात तो आप सभी लोग जानते है। चलिए मुद्दे की बात करते है।

कल्पना कीजिए की एक सुबह हमारी आंख खुलती है और हमें पता चलता है कि दुनियां में रहने वाले सभी काले लोग गोरे हो चुके है तो क्या होगा?

आई नो अब आपमें से कुछ कहेंगे की मै रंगभेद को बढ़ावा दे रही हूं तो ऐसा बिलकुल नहीं है। अगर जो मैने आप लोगों से कल्पना करने को कहा है वो वास्तविक में हो जाए तो परिणाम वही होगा जो एक खारे पानी में रहने वाली मछली को मीठे पानी में डालने पर प्राप्त होता है। जो लोग भूमध्य रेखा के आस पास के क्षेत्रों में पाए जाते है उनके लिए उनका काला रंग ही एक वरदान है और जिन लोगों का रंग गोरा है, उसके पीछे भी एक खास वजह है। तो चलिए उस वजह पर गौर फरमाते है जिसकी वजह से हमे अपना ये यूनीक कलर मिला है।

तो ये बात उस जमाने की है जब सभी मनुष्य अफ्रीका में पाए जाते थे। उस समय सभी मनुष्य एक जैसे दिखते थे और उनका रंग भी एक जैसा ही था। धीरे धीरे मौसम मौसम परिवर्तित होने लगा और अफ्रीका में पाए जाने वाले पेड़ पौधे सूखने लगे। इस घटना के बाद बहुत सारे मानव उस जगह को छोड़कर चले गए लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने उस जगह को नही छोड़ा था। अब जिन्होंने वो जगह छोड़ दी थी उनमें से कुछ लोग ठंडे क्षेत्रों में चले गए। ठंडे क्षेत्रों में सबसे ज्यादा सूर्य की रोशनी की कमी होती है और विटामिन डी हमारे लिए कितनी जरूरी है ये आप लोग जानते ही होंगे। प्राकृतिक चयनवाद के कारण वे मानव वहां के मौसम के हिसाब से खुद को ढाल पाने में कामयाब हो गए और उनके शरीर में उसी हिसाब से परिवर्तन आ गए।

अगर साइंस की भाषा में देखें तो हमारी त्वचा में मेलेनिन नामक द्रव पाया जाता है जो हमारी त्वचा के रंग को निर्धारित करता है। इसकी मात्रा जितनी अधिक होगी हमारा रंग उतना ही गहरा होगा। इस द्रव एक और कार्य ये भी है की ये सूर्य की रोशनी के अधिकांश भाग को परावर्तित कर देता है जिससे uv लाइट हमारी त्वचा को ज्यादा हानि नहीं पहुंचा पाती।

 अब आप जरा सोचिए की जिन ठंडी जगहों में पहले से ही सूर्य की रोशनी की कमी है,अगर ऐसे में उनकी तव्चा का रंग गहरा हो तो क्या होगा। शरीर में विटामिन डी का अभाव।

 अब यही कारण था कि उन लोगों की तव्चा का रंग समय बीतने के साथ साथ हल्का होता चला गया और वे श्वेत मानवों में परिवर्तित हो गए। उनका ये रंग उन्हे अनेकों वर्षों के संघर्षों के बाद प्राप्त हुआ है जिससे वे अपने आपको विपरीत परिस्थितियों में जीवित रख सके।

अब बात करते है उन लोगों की जो उन इलाकों में चले गए जहां सूर्य की रोशनी सबसे ज्यादा और सीधी पड़ती है। अब सीधी सी बात है की सूर्य की रोशनी जितनी ज्यादा होगी अल्ट्रा वायलेट किरणे भी उतनी ही ज्यादा होंगी।

यहां भी प्राकृतिक चयन हुआ और सूर्य की रोशनी के दुष्प्रभावों से बचने के लिए उन लोगों की तव्चा में धीरे धीरे मेलेनीन की मात्रा बढ़ने लगी जिसके कारण उनकी तव्चा का रंग गहरा होता चला गया। उन लोगों के लिए उनका काला रंग एक वरदान की तरह साबित हुआ। उनकी त्वचा का काला रंग उन्हे उस इलाके की भयानक गर्मी और उसके दुष्प्रभावों से बचाता था। अगर गलती से कोई श्वेत यहां आकर बस जाए तो उसे स्कीन कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी होने की संभावना ज्यादा है। यही वजह है की जिन ठंडे देशों में ग्लोबल वार्मिग के कारण तापमान बढ़ रहा है वहां श्वेतों में स्कीन कैंसर जैसी बीमारियां भी देखने को मिल रही है।

अब आप लोग समझ ही गए होंगे की हर रंग का अपना एक अलग महत्व है। हमारा रंग हमारे पूर्वजों ने अनेकों संघर्षों के बाद प्राप्त किया है और देखो आज हम कितनी आसानी से उसका मजाक बना देते है। अगर गोरे लोग गोरे ना हुए होते तो वे धूप की कमी से जीवित नहीं रह पाते और अगर काले लोग काले ना होते तो वे भी धूप की अधिकता से जीवित नहीं रह पाते।

अब अगर हम अपनी यानी भारत वासियों की बात करे तो हम लोग भूरे रंग के है। न पूरी तरह से गोरे और न ही पूरी तरह से काले। न चपटे चेहरे वाले है और न ही उभरे नैन नक्श वाले। अपने देश में पग पग पर मौसम बदलता रहता है और यही कारण है कि यहां गोरे, काले, सांवले और आप और हम जैसे लोग भी पाए जाते है जो कुछ कुछ जेब्रा जैसे दिखते है। कुछ लोग तो गिरगिट प्रजाति के भी पाए जाते है जो एक खास मौसम में गोरे और एक खास मौसम में सांवले हो जाते है। अब आप लोग समझ ही गए होंगे की हमारा रंग हमारे लिए क्या मायने रखता है।

बाकी तन की सुंदरता में क्या रखा है। ये मिट्टी का शरीर है और अंत में इसे मिट्टी में ही मिलना है। रंग भेद पर हम चाहे कितना भी लिख ले लेकिन ये तब तक खत्म नही होने वाला जब तक रंगों को लेकर हम अपनी मानसिकता नही बदल लेते।





जय हिन्द जय भारत

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3 Comments

Barsha🖤👑

03-Jun-2022 12:30 PM

Nice

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Neelam josi

02-Jun-2022 02:40 PM

👌👏

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Punam verma

02-Jun-2022 09:17 AM

Nice

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