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मैं हूँ कवि - लेखनी प्रतियोगिता -08-Jun-2022

शब्दों से ही है पहचान मेरी, कहलाता हूँ कवि
रोशन करना चाहूँ सम्पूर्ण जग को बनकर रवि।

शब्दों की नित नवीन माला चाहता हूँ मैं बुनना
कटु ही सही किंतु यथार्थ से सदा चाहूँ जुड़ना।

मन के उज्ज्वल भावों को शब्दों में मैं उतारुँ 
झूठ से नाता तोड़ सदा सत्य पर जीवन वारूँ।

हो घर की बात, पड़ोस या देश की कोई खबर
सरहद की कठिनाइयाँ भी मेरे शब्दों में पाती घर।

हो आकाश की ऊँचाइयाँ या पाताल की गहराइयाँ
सबका सौंदर्य वर्णन मैंने अपनी कविता में किया।

शोषित वर्ग की पीड़ा को अंतर्मन में महसूस किया
आजादी हेतु भीषण क्रांति का भी आगाज़ किया।

बेरोजगारी से व्यथित मन को कविता में उतार लिया
असंख्य पीड़ाओ को समाज समक्ष उजागर किया।

जाति, धर्म के नाम पर वैमनस्य का फैलाएँ जो जाल
ऐसे बहुरूपी भेड़ियों की मैं शब्दों से उतारूँ खाल।

भ्रष्टाचारियों की दोगली राजनीति का किया चीर हरण
फैलाता सदाचार व प्रेम जिससे अनीति का हो मरण।

गालियों, धमकियों की करता नहीं कभी परवाह
सुंदर सलोने प्रेम पूर्ण संसार की मैं करता चाह।

ईमानदारी से जीवन जीऊँ, न सोचा कैसी मेरी छवि
निडर होकर लेखनी चलाता क्योंकि मैं हूँ एक कवि।

डॉ. अर्पिता अग्रवाल

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9 Comments

Seema Priyadarshini sahay

11-Jun-2022 05:51 PM

बेहतरीन

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Swati chourasia

09-Jun-2022 10:32 AM

बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌

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Abhinav ji

09-Jun-2022 08:27 AM

Nice👍

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