कौन है वो – ७

कौन है वो – ७


गतांक से आगे:
उस दिन देर रात में रमेश घर लौट कर आया, उसकी हालत से साफ जाहिर था की वो बुरी तरह से नशे में चूर था।
दीनानाथ जी, रमा जी और उसकी बहन ने उससे बात करनी चाही पर नशे की हालत में धुत्त रमेश ने ना तो किसी की बात सुनी ना ही किसी से सीधे मुंह बात करी। वो सीधा अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर औंधा लेट गया और कुछ देर में ही गहरी नींद सो गया।
मालती ने धीरे से उसके जूते उतार कर उसके बिस्तर से बाहर लटके पैरों को बिस्तर के उपर कर के उसे कंबल ओढ़ा दिया।
उसके बाद वो अलमारी से दूसरा गद्दा निकाल कर कमरे के एक कोने में सिमट कर लेट गई। उसके जहन में रह रह कर पिछली घटनाएं घूम रहीं थी। शायद किस्मत ने उसे रोने के लिए ही बनाया था, तभी तो बचपन से आजतक उसे केवल ठोकरें और लोगों का तिरिस्कार ही नसीब हुआ।
पूरी दुनिया में एक शायद मां ही तो थी जिसने उसे प्यार किया वरना बाकी सब ने तो उसे कोसने और दुत्कारने में कभी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
अपने जीवन के बीते सालों और आने वाले समय को सोच कर उसका मन सिहर जाता और आंखों से गंगा जमुना बह निकलती। शायद दादी सही कहती थी, वो है ही बदनसीब, उसे कोई प्यार नही कर सकता कभी.....
उसने सोचा था शायद विवाह के बाद उसकी किस्मत पलट जाए, पर अब तो उसकी रही सही उम्मीद भी चकनाचूर हो चुकी थी।
रमेश की नजरों में वो अपने लिए सिर्फ घृणा और अपमान ही देख पाई थी।
उसे लेशमात्र भी गुमान नहीं था की कभी उसका पति उसे स्नेह की नजर से देखेगा भी या नहीं। अब उसके नसीब में सिर्फ ठोकरें ही लिखी थी। ये तो उसके सास ससुर की भलमनसाहत थी की उन्होंने सबकुछ जानने के बाद उसे दोषी नहीं माना और उसे अपनी बहु स्वीकार भी कर लिया, पर क्या रमेश कभी उसे अपनी पत्नी का दर्जा देगा या नहीं। और अगर उसने अपने माता पिता की मर्जी के खिलाफ उसे घर से निकाल दिया तो क्या होगा, कहां जायेगी वो, क्या करेगी??
यही सब बात सोचते सोचते जाने कब उसकी आंख लग गई।
सुबह खिड़की से आती रोशनी और पेड़ों पर चहचहाते पक्षियों की आवाज ने मालती को उठा दिया।
सामने बिस्तर खाली पड़ा था, शायद रमेश उसके जागने से पहले ही उठ कर जा चुका था। अपनी बेबसी और बेचारगी पर मालती का दिल किया की फूट फूट कर रो पड़े, पर कब तक, उसे समझ आ गया था कि रमेश की नाराजगी उसे शायद हमेशा हमेशा ही झेलनी पड़ेगी और वो पत्नी होते हुए भी कभी उसकी पत्नी शायद ही बन पाए। इसी उहापोह में उसने अपना बिस्तर समेट कर अलमारी में रखा और फिर जल्दी से तैयार होकर नीचे रसोई में अपनी सास का हाथ बंटाने पहुंच गई।
उसके लिए ये भी एक बहुत बड़ा सहारा था की उसके सास ससुर ने उसे स्वीकार कर लिया था, कहीं न कहीं रमेश भी अपने स्वभाव वश या फिर माता पिता की इज्जत की खातिर दुनिया को दिखाने के लिए ही सही शादी का रिश्ता निभा रहा था।
धीरे धीरे दिन गुजरने लगे, मालती ने अपने सरल और मृदु  स्वभाव से सास ससुर का स्नेह जीत लिया साथ ही साथ पूरे घर का जिम्मा भी उठा लिया था। उसके सास ससुर उसके निपुण और गुणी होने की हमेशा भूरि भूरि प्रशंसा करते, समय के साथ साथ मालती को उन दोनो में अपने माता पिता नजर आने लगे, और वो जी जान से उनकी सेवा में जुट गई।
रमेश का रवैया उसके प्रति नही बदला, अलबत्ता वो तो मानो उसके लिए थी हो नहीं। वो रोज सुबह सुबह ही घर से निकल जाता और फिर देर रात को शराब के नशे में धुत्त लौटता, उसने घर में तकरीबन सभी से बातचीत करना बिल्कुल सीमित कर दिया था, कोई जरूरत होने पर वो केवल अपने मां बाप से ही बात करना पसंद करता, अव्वल तो वो हर समय शराब पिए रहता पर यदि किसी दिन नहीं भी पी तो वो हमेशा मालती से दूर रहता और कभी उस की बातों या सवालों का जवाब नहीं देता।
जीवन ऐसे ही चलता जा रहा था, मालती ने भी उसकी घृणा के साथ जीना शुरू कर दिया था, हां उसे अभी भी उम्मीद थी कि शायद एक दिन उसका पति उसे अपने ब्याहता मान कर स्वीकार कर ले।
रमेश अक्सर ऑफिस के काम के सिलसिले में बाहर दूसरे शहरों में भी जाता रहता था, जब वो बाहर कहीं जाता तो मालती पलंग पर ही सो जाती पर रमेश के सामने वो हमेशा जमीन के अपने कोने में बिस्तर लगाती।
आज भी रमेश इलाहाबाद काम के सिलसिले में गया हुआ था, और कह कर गया था कि वो एक दो दिन में ही वापस आएगा। सुबह से ही मौसम ठंडा और बारिश वाला हो रहा था। मालती ने शाम का सारा काम निपटाया और सासू मां के पैर दबाने चली गई। आज उसका सर थोड़ा भारी सा हो रहा था और बदन भी टूट सा रहा था। ज्योंहि उसने रमा जी के पैर दबाने शुरू किए उन्होंने झट उसकी कलाई पकड़ ली, और बोली, बेटा तेरे हाथ तो काफी गरम से लग रहे हैं, लगता है बुखार है।
नहीं मांजी, बस यूंही थोड़ी थकान सी है, सोऊंगी तो ठीक हो जाऊंगी, मालती बोली।
पर रमा जी ने मालती का माथा छू कर कहा, नहीं तुम्हे सच ही बुखार है, हाथ में दवा देते हुए बोली, इसे खा कर सो जाओ सुबह अगर ठीक नहीं हुआ तो डॉक्टर के पास चलेंगे।
मालती उनकी बात मान कर अपने कमरे में आ गई, बुखार की वजह से उसका पूरा बदन टूट रहा था, जल्दी से दवा लेकर वो सो गई, क्योंकि रमेश को तो आना नहीं था इसलिए वो पलंग पर ही कंबल ओढ़ कर सो गई।
दिन भर की थकान और मौसम का असर था, कुछ ही देर में वो गहरी नींद सो गई।
रात करीब 1.0 बजे घर की घंटी बजी, उमा जी ने उठ कर दरवाजा खोला, सामने नशे में धुत्त रमेश खड़ा था।
अरे बेटा तू आज ही लौट आया, क्या हुआ, तुम तो रुकने वाले थे दो दिन, उन्होंने रमेश से पूछा।
नहीं मां काम आज ही निबट गया, फिर ऑफिस की गाड़ी वापस आ रही थी, तो मैं भी आ गया, रमेश बोला।
अच्छा कुछ खायेगा, क्या, रमा जी ने पूछा।
नहीं आप जाकर सो जाओ, हम लोग रास्ते में ही होटल पर रुक कर खा लिए थे।
मुझे जोर से नींद आ रही है, मैं भी सोने जा रहा हूं रमेश बोला और लड़खड़ाता हुआ अपने कमरे की तरफ चल दिया। उसकी पलकें नशे की वजह से बंद हुई जा रही थी
अपने कमरे में आकर उसने जैसे तैसे बाहर के कपड़े उतारे और फिर बिस्तर पर जाकर लेट गया।
कुछ नशे की अधिकता और कुछ यौवन का उन्माद, उस रात अनजाने में ही रमेश और मालती का प्रथम मिलन हो गया, नशे की गिरफ्त में रमेश ना जाने उसे किन किन नामों से पुकारता रहा और मालती उसके लिए तो ये सब इतना आकस्मिक था उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि विरोध करे या स्वीकार। अंत में उसने एक बार फिर खुद को किस्मत के हवाले कर दिया।
वैसे भी रमेश ने उसकी सहमति तो मांगी ही नहीं, ना ही अपना अधिकार जताया, बस ये तो महज दो जिस्मों का मिलन था, जहां एक नशे में चूर था और दूसरा केवल मजबूर, हालातों से।
एक बात मालती को समझ आ गई कि उसका पति ना केवल शराबी था बल्कि साथ ही साथ शायद वो जिस्मों के बाजार का सौदागर भी था।
मालती के जिस्म को बेरहमी से झिंझोड़ने के बाद रमेश करवट बदल कर नशे की हालत में गहरी नींद सो गया।
मालती सारी रात एक ही सवाल से जूझती रही।
क्या वो एक पत्नी है या एक शरीर???
अगली सुबह एक बार फिर मालती के जागने से पहले ही रमेश जा चुका था.....

क्रमश:

आभार · नवीन पहल – ११.०६.2022  🙏🏻🙏🏻👍🌹

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4 Comments

Parangat Mourya

13-Feb-2023 10:16 PM

Behtreen 👌

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Seema Priyadarshini sahay

12-Jun-2022 05:51 PM

बेहतरीन रचना

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Gunjan Kamal

12-Jun-2022 10:44 AM

बहुत खूब

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