रिश्तों की राजनीति- भाग 10
भाग 10
सान्वी कॉलेज के लिए निकल ही रही होती है, तभी अभिजीत कहता है…..चल आज मैं तुझे कॉलेज छोड़ देता हूँ।
आप आराम करो दादा, वैसे भी मैं अगर आपके साथ कॉलेज चली गयी तो रिया को अकेले कॉलेज जाना पड़ेगा।
इसकी चिंता तू मत कर, मैं दोनों को ले जाऊंगा। तुम दोनों बाइक पर एडजस्ट करके बैठ जाना।
दादा हम बच्चे नहीं है जो इस तरह साथ-साथ बाइक पर बैठ कर जाएं।
सान्वी बहस मत कर चुपचाप बाइक पर बैठ जा।
सान्वी मन मसोसकर बाइक पर बैठ जाती है।
अभिजीत रिया के घर के पास बाइक न रोककर सीधा बाइक कॉलेज ले जाता है।
सान्वी अभिजीत पर चिल्लाती है….दादा बाइक क्यों नहीं रोकी रिया के घर के आगे?
रिया को आज अपनी आई के साथ किसी जरुरी काम से जाना है, इसलिए आज वो कॉलेज नहीं आएगी।
तुझे कैसे पता दादा इस बारे में?
कल वो बाज़ार में मिली थी, उसी वक़्त उसने इस बात की जानकारी दी।
थोड़ी ही देर में कॉलेज आ जाता है। सान्वी बाइक से उतरकर कॉलेज में जा ही रही होती है कि तभी अभिजीत कहता है कि वो तीन बजे उसे कॉलेज खत्म होने के बाद लेने आयेगा।
सान्वी बिना कुछ कहे चुपचाप कॉलेज के अंदर चली जाती है। वो समझ जाती है कि रिया अपना मुँह खोल चुकी है अभिजीत दादा के आगे। लेकिन इस बार उसके मन में लेश मात्र भी डर नहीं था क्योंकि उसे अक्षय के किए गए शादी के वादे पर ज्यादा भरोसा था। वो अक्षय से मिलकर इस बारे में बात करना चाहती थी लेकिन अक्षय नदारद था, वो आज कॉलेज आया ही नहीं था। जब फोन मिलाया तो वो भी बंद आ रहा था। सान्वी को अक्षय पर मन ही मन बहुत गुस्सा आ रहा था, जरूरत के वक़्त ही वो गायब हो गया था।
आज कॉलेज में बिलकुल भी मन नहीं लग रहा था। जैसे तैसे क्लासेस खत्म होने का इंतज़ार कर रही थी। अभिजीत समय से पहले ही कॉलेज के गेट पर उसे ले जाने के लिए तैयार खड़ा था। सान्वी चुपचाप बाइक पर जाकर बैठ गयी। अभिजीत ने बाइक घर की तरफ न ले जाकर पिम्पली निलख वाले सुनसान रास्ते पर जाकर रोक दी।
सान्वी समझ गयी थी अभिजीत दादा के इस तरह सुनसान रास्ते पर बाइक रोकने का मतलब।
इससे पहले कि अभिजीत उससे कुछ पूछता, उसने खुद से कहा….हाँ दादा, पूछ तुझे क्या पूछना है मुझसे?
अभिजीत सान्वी की इस बेबाकी पर हैरान था। उसने सवाल किया….
अक्षय से तेरा क्या रिश्ता है?
वो मेरा अच्छा दोस्त है।
एक एम एल ए का लड़का और तेरा दोस्त, बात कुछ समझ नहीं आयी…
कॉलेज की शुरुवात में रैगिंग के दौरान अजीत ने मुझसे बदतमीजी करने की कोशिश की थी, जिससे अक्षय ने मुझे बचाया था और बस तबसे हम दोस्त बन गए।
अभिजीत ने गुस्से से कहा….इतनी बड़ी बात हो गयी और तूने मुझे बताना जरूरी नहीं समझा?
आई ने बताने से मना कर दिया यह कहकर कि तू कहीं गुस्से में आकर अजीत के साथ मार पीट न करे और वैसे भी तेरा आखिरी साल था, वो नहीं चाहती थी कि तू किसी मुसीबत में फँसे।
अच्छा नहीं किया आई ने, इतनी बड़ी बात छिपाकर मुझसे।
खैर जो भी हुआ हो, मुझे अक्षय के साथ तेरी दोस्ती पसन्द नहीं है। पहली बात उसका बाप एक नम्बर का भ्रष्ट नेता है और दूसरी बात अक्षय एक नम्बर का बिगड़ा हुआ, अय्याश लड़का है।
आपको तो सभी राजनेता भ्रष्ट लगते हैं। अगर वो इतना ही भ्रष्ट होता तो तीन बार एम एल ए नहीं बनता, लगातार चुनाव नहीं जीतता। रही बात अक्षय की तो वो बिल्कुल भी बिगड़ा हुआ अय्याश लड़का नहीं है। मेरे साथ हमेशा तमीज़ से पेश आता है।
सान्वी अभी तू इतनी भी बड़ी नहीं हुई है कि लोगों के दोहरे चरित्र को समझ सके।
आप मानो या न मानो, बड़ी तो हो चुकी हूँ दादा।
सान्वी तेरे भले के लिए कह रहा हूँ, यह दोस्ती तोड़ दे।
मैं और अक्षय एक दूसरे से प्यार करते हैं दादा और शादी करना चाहते हैं।
सान्वी को लगता है कि यह बात सुनकर अभिजीत और भी गुस्सा हो जायेगा लेकिन वो ज़ोर से हँसते हुए कहता है…..
दिमाग है कि नहीं तुझमें, कि घास चरने गया है। वो एम एल ए का बेटा है और तू एक मध्यमवर्गीय परिवार से। एक से एक अमीर राजघरानों की लड़कियाँ मिल जाएंगी उसे शादी के लिए, वो भला एक गरीब परिवार की लड़की से शादी क्यों करेगा?
सोच जरा, हमारी क्या औकात है उनके सामने?
तुझसे पहले कई लड़कियों से उसने शादी के वादे किये होंगे। तू पहली और आखिरी लड़की नहीं है उसके जीवन में।
देख सान्वी मैं नहीं चाहता कि तेरे साथ कुछ गलत हो। तू अक्षय से नहीं मिलेगी बस, यह बात तय है और अब इस मामले में मैं और बहस नहीं चाहता।
दादा अब मैं बड़ी हो चुकी हूँ और मुझे सही-गलत में फर्क करना आता है। आप मेरी जिंदगी को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश मत करो।
अभिजीत का मन तो कर रहा था कि सान्वी के मुँह पर एक कसकर तमाचा जड़ दे। जैसे तैसे उसने अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए कहा….ठीक है अगर तुझे अक्षय पर इतना भरोसा है तो तू उसे कल शाम मुझसे मिलने के लिए बुला ले, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा अपने आप।
ठीक है दादा, कल वो जरूर आएगा मिलने। देखते हैं किसकी जीत होती है आपकी या मेरी?
मैं तो हमेशा यही चाहूंगा कि जीत मेरी बहन की हो।
थोड़ी देर बाद सान्वी और अभिजीत घर के लिए निकल जाते हैं।
घर जाकर सान्वी कई बारी अक्षय को फोन मिलाने की कोशिश करती है, लेकिन अफ़सोस, उसका फोन बंद आ रहा होता है। सान्वी का मन किसी अनहोनी की आशंका से घबराने लगता है। उसे समझ नहीं आता वो कैसे सम्पर्क करे अक्षय से।
❤सोनिया जाधव
Seema Priyadarshini sahay
15-Jun-2022 06:19 PM
बेहतरीन भाग
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Gunjan Kamal
15-Jun-2022 03:52 PM
शानदार
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Pallavi
15-Jun-2022 07:58 AM
Nice post
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