Add To collaction

लेखनी कहानी -15-Jun-2022 उसका यकीन उठ गया

जो  मेरा  था अब मेरा  नहीं होने वाला,
बाग़-ऐ-दिल  फिर  हरा नहीं होने वाला,

मैं गर्दे-कारवाँ, वो सबा-ज़मीस्तान दोनों
मिल भी जाये तो सेहरा नही होने वाला

चिलमन को न लहरा सरे-बाज़ार तुझ पर,
देखना कोई भी शैदा  नहीं  होने  वाला

ढो रहा हूँ ग़मे-जिंदगी का बार काशानो पर,
मुझसे मेरा बारे-ग़म सरे-बादा नहीं होने वाला

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

   13
4 Comments

Seema Priyadarshini sahay

17-Jun-2022 05:40 PM

बेहतरीन

Reply

Gunjan Kamal

16-Jun-2022 01:39 AM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌

Reply

Mohammed urooj khan

15-Jun-2022 08:05 PM

Nice

Reply