लेखनी कहानी -15-Jun-2022 उसका यकीन उठ गया
जो मेरा था अब मेरा नहीं होने वाला,
बाग़-ऐ-दिल फिर हरा नहीं होने वाला,
मैं गर्दे-कारवाँ, वो सबा-ज़मीस्तान दोनों
मिल भी जाये तो सेहरा नही होने वाला
चिलमन को न लहरा सरे-बाज़ार तुझ पर,
देखना कोई भी शैदा नहीं होने वाला
ढो रहा हूँ ग़मे-जिंदगी का बार काशानो पर,
मुझसे मेरा बारे-ग़म सरे-बादा नहीं होने वाला
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
Seema Priyadarshini sahay
17-Jun-2022 05:40 PM
बेहतरीन
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Gunjan Kamal
16-Jun-2022 01:39 AM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌
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Mohammed urooj khan
15-Jun-2022 08:05 PM
Nice
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