कोयल
*कोयल*
काली काली कोयल रानी
चतुराई से जीवन बिताती
कुहू -कुहू कर गीत सुनाती
इसकी मधुर तान सबको भाती
ऋतु बसंत है कोयल को भाती
आम्बा की डाली बैठ राग सुनाती
कौए के घोंसले में अंडे दे आती
बच्चे एक समान लगते कौवी सेती
सयानी बन कौए से काम करती
स्वयं स्वतंत्र हो घूमे डाली डाली
अंटार्कटिका में कोयल कभी न रहती
भारत के वृक्षों की डाली पर कुहकती
कोयल रूप की सुंदर नहीं होती
मधुर आवाज कानों में घोले मिश्री
आभा मिश्रा- कोटा
Seema Priyadarshini sahay
22-Jun-2022 11:45 AM
बेहतरीन रचना
Reply
Gunjan Kamal
19-Jun-2022 05:08 PM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌
Reply
Raziya bano
19-Jun-2022 04:38 PM
Bahut khub
Reply