वृद्धाश्रम - लेखनी प्रतियोगिता -19-Jun-2022
एक दिन पहुँची मैं जब वृद्धा आश्रम
वहाँ जाकर मेरा टूटा गया एक भ्रम।
ममता की वहाँ मुझे दिखी ना कमी
न जाने क्यों कुछ आँखों में थी नमी।
मिला था मुझे सबसे बहुत सारा दुलार
बसा था प्रत्येक कोने में स्नेह अपार।
पूछा माँ क्या करती हैं कैसे गुजरे दिन
बोली बेटा लेने आएगा बीते पल गिन।
दूजी बोली बेटी प्रभु हैं हमारा सहारा
मन रमा उसमें, वह खेवनहार हमारा।
एक बोली याद न दिला बेटे का धोखा
हम एक-दूजे का सहारा, ये ही चोखा।
पूछा एक बाबा से आपको कोई है दुख
बोले बिन औलाद बचा नहीं कोई सुख।
न जाना दौलत डाले है रिश्तो में दरार
संपत्ति की भूख मिटाये दिलों से प्यार।
बोले क्यों स्वार्थी बन है उम्मीद लगाना
एक दिन तो सबको प्रभु के घर जाना।
ऐशो-आराम की उम्र रही नहीं है हमारी
सब प्रभु की माया है, भक्ति लगे प्यारी।
देखा शब्द उनके साथ न देते भावों का
मानो दिल में बसा हो मकान घावों का।
मैनेजर बोला खाने-पीने की न है कमी
पर आत्मा बहू-बेटा पोता-पोती में रमी।
रिश्तों पर प्यार लुटा जिए ये आजीवन
उन अपनों से दूर हो खुश कैसे रहे मन।
नज़रें सदा करती रहती उनकी तलाश
बिन अपनों के बन गए ये जिंदा लाश।
एक-दूजे का दर्द बनेगा इनका सहारा
परिवार समान होगा वृद्धाश्रम हमारा।
लौट आई वृद्धाश्रम से आंखें थी नम
सास-ससुर संग सदा रहूँगी ली कसम।
डॉ. अर्पिता अग्रवाल
Seema Priyadarshini sahay
22-Jun-2022 12:01 PM
अतिउत्तम
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Punam verma
20-Jun-2022 04:03 PM
Nice
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Shrishti pandey
20-Jun-2022 10:43 AM
Very nice
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