लेखनी कहानी -20-Jun-2022 रिश्तों की बदलती तस्वीर
वक्त पे आज-कल नहीं मिला करते है
अब तो आदत सी हो गई अब कहा गिला करते है
लोग सच और जूठ दोनो से मारे गए है
कुछ यादों से तो कुछ वादों से मारे गए है
रिश्ते के अहम पल अक्सर नौकरी खा जाती है
बाकी बची कसर हालात की मजबूरी निभा जाती है
घर तो सालों से कमरों में बंटते आ रहे है
मगर आज कल परिवार कमरों में बंटते जा रहे है
शहर बनाते बनाते अब गांव में लोग बहुत कम बचे है
मकानों की तादाद तो बढ़ गई मगर उन मकानों में परिवार बहुत कम बचे है
वक्त की कमी के नाम पर ये कैसी साज़िश हो रही है
पराए हाथों में आज कल बच्चों की परवरिश हो रही है
वैसे तो अकेले ही आए थे और अकेले ही जाना है
मगर ज़िंदगी गुजारने के लिए परिवार बनाए जाना है
और नियत ही जब गंदी हो तब दोष किस्मत का नहीं है
तुझे ही ठीक करने पड़ेंगे हालत, ये मामला बुरे वक्त का नहीं है
छोटे छोटे मसले कितनी जल्दी अदालत तक पहुंच जाते है
फिर जायदाद के साथ साथ बच्चे भी मां-बाप में बंट जाते है
शांति से समझना और समझाना ये परिवार का गहना है
लड़ने से मसले हल नहीं होते सबका यही कहना है
औरतों की इज़्ज़त और बड़ों की सेवा अच्छे परिवार की पहचान है
इसी जिम्मेदारी से अगर तू चूक गया तो बेअसर तेरा गंगास्नान है।
shweta soni
25-Jul-2022 08:36 PM
Bahut achhi rachana
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Saurabh Patel
25-Jul-2022 09:12 PM
बहुत शुक्रिया आपका
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Seema Priyadarshini sahay
22-Jun-2022 10:57 AM
बेहतरीन रचना
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Saurabh Patel
22-Jun-2022 05:21 PM
जी बहुत शुक्रिया आपका
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Pallavi
21-Jun-2022 04:51 PM
Nice 👍
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Saurabh Patel
21-Jun-2022 09:27 PM
Thank y
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