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इंसानियत है कहाँ?

इंसानियत है अब कहाँ?



हम तो असीमित थे, हमें बांधा है इन जालो ने
लुटेरे के घोटालों ने, राजदार गद्दीवालों ने
हम तो विस्तृत थे, हमें रोका है इनके जंजालो ने
गलतफहमी के पालों ने, अंधा आधार रखने वालों ने।

इश्क़ के आगे कभी बढ़ती नहीं अब कवि की कलम
विषहर्ता महाकाल के नाम चढ़ा रहे सब गांजा-चिलम।
धर्म की ओट में सब केवल अपना लाभ देख रहे
कठपुतली बनाकर नचाते, मतलब की रोटियां सेंक रहे।
जीव-जंतु और वृक्षानी प्रति, भुला अपना कर्तव्य सभी
प्रकृति से खिलवाड़ करना बन गया है सबका शौक अभी
"वसुधैव कुटुम्बकम" को भूले सब, घर सबके टूट रहे
अपनी कमियां कोई न देखे, दूसरों को सब खूब कहें।
मजहब के नाम पर जीव-जंतु नर हत्या का पाप कर रहे
हनन कर नियम प्रकृति के अब सब अभिशाप सह रहें।
जाने कब आएगी बुद्धि "मिल-जुलकर रहने में भलाई है"
मानव ही मानव को काट रहा ये कैसी विपदा आई है?

"धर्म ने ये कब कहा मेरे नाम पर ये नरसंहार कर
धर्म ने ये कब का कि तू धर्म का ही प्रतिकार कर
धर्म सिखाता है सदा, सुखमय जीवन बिताना
मानवता का धर्म यही, इस धर्म को स्वीकार कर!"

इंसानियत है अब कहाँ? तेरा-मेरा हो रहा
ये इसका वो उसका, क्या है किसका बताओ जरा!
क्या लेकर आया था जो लेकर कुछ जाना है?
मानव तन जो मिला, मानवता का धर्म निभाना है।
सोच लो तुम जरा, इस जीवन का क्या करना है
डरना है या डराना है, मारना है या मरना है।
जीवन का नहीं ध्येय ये, उल्टी उन्नति की राह है
खुद कुछ ना करे पर सब हासिल हो, यही चाह है।
इंसानियत को मारकर खुद को इंसान कहते हो
सौ घटिया काम करकर, खुद को महान कहते हो।
जीवन का है धर्म यही, सबका सहयोग करना है
योग के योजन से ही, हरण सब रोग करना है।

इंसानियत है पहला धर्म, पहले इंसान बनो
बन गए बहुत कुछ, अब ज्यादा न नादान बनो
हाथ में लेकर हाथ, आगे यूँ बढ़ते चलो
तुम इंसानियत की इस परिभाषा के पहचान बनो।

#MJ
#प्रतियोगिता

©मनोज कुमार "MJ" 

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10 Comments

Aliya khan

29-Jul-2021 09:11 AM

Bahut hi badiya

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Mukesh Duhan

27-Jul-2021 01:19 PM

बहुत सुंदर जी

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Kumawat Meenakshi Meera

26-Jul-2021 05:38 PM

उम्दा लेखन

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Thank you

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