स्वैच्छिक
🌹🌹🌹🌹ग़ज़ल 🌹🌹🌹🌹
दिल का गुलाब मेहका हुआ सा दिखाई दे।
जब भी मुझे वो चाँद सा चेहरा दिखाई दे।
कर दूँ सलाम अ़र्ज़ मैं उसको ख़ुशी-ख़ुशी।
मुझको अगर कहीं पे वो तन्हा दिखाई दे।
क्या हो गया है मुझको बताओ मिरे ह़ुज़ूर।
हर शय में मुझको आपका जलवा दिखाई दे।
पल-पल तुम्हारे ग़म में मचलता है जानेमन।
दिल कैसे मेरा बोलिए चंगा दिखाई दे।
रो कूँ मैं कैसे ख़ुद को भला मयकशी से अब।
आँखों से उनकी जाम छलकता दिखाई दे।
लालच का जिनकी नाक पे चश्मा चढ़ा जनाब।
पत्थर भी उनको क़ीमती हीरा दिखाई दे।
आता है याद दौरे फ़िरंगी मुझे फ़राज़।
जब भी कफ़स में कोई परिन्दा दिखाई दे।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद उ.प्र.।
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Seema Priyadarshini sahay
23-Jun-2022 10:52 AM
बेहतरीन रचना
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Raziya bano
23-Jun-2022 07:23 AM
👌👌👌
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Muskan khan
22-Jun-2022 10:05 PM
👌👌
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