Neema bisht

Add To collaction

लेखनी - गंगा

 गंगा


माँ गंगा तुम कितनी पावक कितनी निर्मल

कल कल करता तेरा जल,

पापियो के तुम पाप मिटाती

प्यासे की तुम प्यास बुझाती,

कोई पूजता तुझे माँ के रूप में

कोई समझता सादा जल।

माँ गंगा तुम कितनी पावक कितनी निश्छल

जीवनदायिनी हो धरती की ,

धरती को तुम स्वर्ग बनाती

गंगोत्री है तेरा उदगम  स्थान

हो तुम देवो का वरदान ।


माँ गंगा तुम कितनी पावक कितनी निर्मल 

शिवजी की जटाओ से निकलती ,
करती जीवन का कल्याण

तेरे घाटो पे बसे हैं 

सारे जगत के पावन धाम।


कोई कहता तुझे भागीरथी  कोई कहता गंगा,

अलकनंदा कोई कहता हेमवती कोई कहता त्रिपगथा

माँ गंगा तुम कितनी पावक कितनी निश्छल









    


   11
1 Comments

Haaya meer

23-Jun-2022 04:42 PM

👍👍

Reply