लेखनी कहानी -24-Jun-2022 तस्वीर बदलते रिश्तो की
शीर्षक = तस्वीर बदलते रिश्तो की
रिश्ते जो कभी खून और एहसास के हुआ करते थे । जिनमे कभी एक को तकलीफ होती तो दूसरा उस तकलीफ में रोता, एक दूसरे को एक दूसरे की परेशानी और तकलीफ का एहसास होता। लेकिन अब ना जाने क्या हो गया है लोगो को, अब रिश्तो में एहसास नाम की चीज नही रही अब वहा जलन, हसद , ईर्ष्या और एक को तकलीफ में देख ख़ुशी मिलने जैसे एहसास शामिल हो गए है । ऐसी ही एक कहानी है तस्वीर बदलते रिश्तो की
"वो जो आते नही थे बुलाने पर भी कभी मेरे गरीब खाने पर ।
अब मेरे हालात बदलते ही मुझे देख कर सलाम करते है
बस कुछ इस तरह रिश्तो के रूप बदलते है "
हर बार की तरह इस बार भी जो लेखन प्रतियोगिता आयोजित हुयी थी उसकी विजयता है मेहविश जुबेर, मैं मेहविश से निवेदन करता हूँ की वो मंच पर आय और पुरुस्कार और अपनी जीती धनराशि ले जाए। कॉलेज के प्रोफेसर ने कहा।
मेहविश जो की छात्रवृति पर डॉक्टर की पढ़ाई कर रही थी और एक गरीब घर की लड़की थी जिसके घर वाले गुरबत में अपनी जिंदगी बसर कर रहे है ।
मेहविश मंच पर जाकर पुरुस्कार और 10000 रूपये की धनराशि लेकर नीचे आ जाती। वहा उसकी सहेली ज़ूनी उसे बधाई देते हुए बोली " कभी तो किसी प्रतियोगिता में दूसरे नंबर पर आ जाया कर इस प्रतियोगिता में भी तूने मुझे पीछे छोड़ दिया क्लास में तो हमेशा ही छोड़ देती है "
"ऐसी बात नही है ज़ूनी तू नही जानती इस प्रतियोगिता को जीतना मेरे लिए कितना ज़रूरी था। ये जो पैसे मिले है इनसे मेरे घर की कितनी ज़रूरते पूरी हो सकती है इसलिए हारने का तो सवाल ही पैदा नही होता " मेहविश ने उसकी बात काटते हुए कहा
"अरे मैं तो मज़ाक कर रही थी , चल अच्छा कैंटीन चलते है वही कुछ खाएंगे और हाँ तू परेशान मत हो तुझसे ट्रीट नही लूंगी । जानती हूँ ये तेरे लिए कितनी बड़ी रकम है " ज़ूनी ने कहा
"यार तू मेरी सबसे प्यारी दोस्त है , जो अमीर होते हुए भी मेरे साथ दोस्ती निभाती है , सही कहते है लोग सच्ची दोस्ती ना तो इंसान का स्टेटस देखती है और ना उसका धर्म और जात मैं तो तुझे कभी अपने पैसो से पिज़्ज़ा भी नही खिला सकती और तू है की मुझ पर और मेरे घर वालो पर अपने पैसे खर्च करती फिरती है किसी ना किसी बहाने से " मेहविश ने कहा
"छोड़ ना यार तू भी क्या लेकर बैठ गयी , तू मेरी बहन जैसी है और अगर हम जैसी पैसे वाली नही है तो क्या इस वजह से मैं तुझसे दोस्ती नही करू । अच्छा ये बता तू कह रही थी की तेरी बड़ी बहन सिमरन को कुछ लोग देखने आये थे शादी के लिए कुछ बात आगे बड़ी " ज़ूनी ने पूछा
"कहा यार, वही उम्र का मसला बेचारी हम लोगो का पेट भरने के चक्कर में 34 साल की हो गयी। अब तो थक गयी है वो स्कूल में पढ़ाते पढ़ाते आराम करना चाहती है । लेकिन घर के खर्चे पूरे नही होते है भाई है वो भी कही ना कही लगा रहता है काम के जुगाड़ में,भागा फिरता है जगह जगह ऑडिशन देने के लिए अदाकार जो बनना है उसे।
और दूसरे भाई को तो तू जानती ही है वो दिमाग़ से पागल है और अब्बा तो दिन भर घर से बाहर रहते है अवारा गर्दी करने के लिए " मेहविश ने कहा
"बुरा लगा सुन कर , कोई नही अल्लाह सब ठीक कर देगा अच्छा तुम्हारे रिश्तेदार तुम्हारी कोई मदद नही करते है , तुम्हारे खानदान में कोई नही जो तुम्हारी बहन से शादी कर सके " ज़ूनी ने कहा
मेहविश मुस्कुराते हुए बोली " रिश्तेदार, वो क्यू हमारी मदद करने लगे उन्हें तो और मज़ा आता है हमें इस तरह गुरबत की ज़िन्दगी जीते देख , उनके लिए तो हम हसीं बनाने का पात्र है और रही बात मेरी बहन को अपने घर की बहु बनाने की तो वो लोग चाह कर भी ये नही करेंगे भला उस टूटे घर और गंदे मोहल्ले से वो अपनी बहु क्यू लाने लगे जो खुद महलो में रहते है वो तो हमसे कोई ताल्लुक भी नही रखते कही हम उनसे कुछ मांग ना ले। बस इस तरह के रिश्ते है आज कल के किसी गरीब रिश्तेदार की मदद करने के बजाये उसकी हसीं बनाते है लेकिन कोई नही खुदा सब का है एक दिन हमारे भी हालात जरूर बदल जाएंगे नही बदले तो मैं बदल कर रहूंगी "
मेहविश और ज़ूनी बाते कर रहे थे तब ही वहा पर उनकी क्लास का सबसे खूबसूरत लड़का कुमेल वहा आया जो की अच्छे घर से ताल्लुक रखता है जिसे ज़ूनी पसंद करती थी लेकिन वो मेहविश को पसंद करता था लेकिन कभी कह नही पाया शायद वो कॉलेज ख़त्म होने का इंतज़ार कर रहा है मेहविश भी उसे पसंद करती है पर कहने से डरती है
"मुबारक हो, मेहविश तुम्हे,चलो तुम्हारी जीत की ख़ुशी में आज की पार्टी मेरी तरफ से " कुमेल ने कहा और कैंटीन की तरफ चल दिया
उन तीनो ने वहा बर्गर और पिज़्ज़ा खाया और जो बचा वो मेहविश ने अपने पास घर के लिए रख लिया
मेहविश का मोहल्ला,
"हाजी साहब जरा सुनिए " हाजी मरज़ान जो की मेहविश के मामू है उन्हें किसी ने आवाज़ देते हुए रोका।
उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा तो एक राशन वाला आवाज़ दे रहा था ।
"अरे शंकर तुम, क्या हुआ क्यू इस तरह आवाज़ दे रहे हो" हाजी साहब ने पूछा
"हाजी साहब वो आपकी बहन के घर का कुछ उधार है आपकी बहन के शोहर जुबेर ने कहा था कि आपसे लेलूं। इसलिए आपको रोका "शंकर ने कहा
"अस्तग़्फ़िरुल्लाह, ये जुबेर भी ना, वैसे कितना हिसाब है ज़रा बताना मैं जाकर पूछू कि आखिर क्या ज़रूरत थी ये कहने की, कि मुझसे पैसे ले लिए जाए मुझे अभी मस्जिद में मीनार तामीर करवाना है और वुज़ू खाने में भी मरम्मत करवाना है " हाजी साहब ने कहा
"कुछ ज़्यादा नही बस 5 हज़ार रूपये है हाजी साहब " शंकर ने कहा
"अभी जाकर पूछता हूँ अपनी बहन से कि आखिर किस हक़ से मैं उसका कर्ज़ा चुकता करू । उसका बेटा और शोहर अवारा गर्दी करता रहे और मैं उन सब का पेट पालता रहू । आ जाए दुकान पर तो कहना अपना कर्ज़ा खुद चुकता करे बेटी डॉक्टरी पढ़ रही है और रोना गुरबत का है हर समय " हाजी साहब ने कहा और चले अपनी बहन के घर कि तरफ ।
उसके दरवाज़े पर जाकर ज़ोर ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाया ।
मेहविश कि अम्मी आमना जो कि कपडे धो रही थी इस तरह दरवाज़ा पिटता देख बोली " कौन आ गया जो इतनी ज़ोर से दरवाज़ा बजा रहा है "
दरवाज़े पर पहुंच कर जैसे ही उन्होंने दरवाज़ा खोला तो चौक गयी और सर पर दुपट्टा और सलाम करते हुए बोली " भाई साहब आप , अंदर आइये "
हाजी साहब जो गुस्से में थे बोले " आमना तुम्हारे घर वालो कि कोई इज़्ज़त हो या ना हो इस मोहल्ले में लेकिन मेरी बहुत इज़्ज़त है और होगी भी क्यू नही मोहल्ले के गरीब घरों को हर महीने फैक्ट्री से आने वाला मुनाफा जो उनके घरों में तकसीम करता हूँ, क्यूंकि सब कुछ यही रह जाना है अपने आमाल( कर्म ) ही जाएंगे साथ "
"भाई साहब बात क्या हुयी, आखिर क्यू इतना गुस्सा है अपनी बहन पर " आमना ने पूछा बात को काटते हुए
"आज तक किसी ने भी मुझे आवाज़ देकर ये नही कहा की हाजी साहब हमारा उधार रहता है आप पर बल्कि मैं लोगो को पैसे बाटता फिरता हूँ, लेकिन आज तुम्हारे शोहर की वजह से वो राशन वाला मुझे जाते हुए टोक कर बोला की हाजी साहब आपका उधार रहता है 5000 रूपये का, मेरे लिए डूब मर जाने का मक़ाम है , कि मैं जो लोगो को पैसे बाटता फिरता हूँ उसे किसी ने टोक कर पैसे देने को कहा। तुम्हारा नाकारा शोहर उससे कह कर आया था कि हाजी साहब से पैसे ले लेना
मेरे पास क्या पैसो का दरख़्त लगा हुआ है जो मैं तुम्हारे घर वालो पर उडाता फिरू । अभी मुझे मस्जिद में पत्थर भी लगवाना है अगले महीने से काम शुरू हो जाएगा " हाजी साहब ने कहा
आमना जिसकी आँखे आंसुओं से भर आयी ये देख कर की उसका सगा भाई जो एक तरफ तो मस्जिद में पत्थर लगवाने और गरीबो को खैरात बाटने की बात कर रहा है और वही दूसरी तरफ अपनी बहन जिससे उसका खून का रिश्ता है उसका पांच हज़ार का क़र्ज़ नही चुका सकता । अगर चुका देता तो इस तरह मेरी गुरबत का मज़ाक कैसे बनाता
"अब किस सोच में पड़ गयी हो आमना बहन , और तुम्हारी बेटियां कहा है दोनों घर से बाहर है कुछ होश भी है ज़माना कितना ख़राब हो चुका है और तुम्हारा बेटा सलमान वो जरूर कही नौटंकी करने गया होगा तुम्हारे बच्चों ने तो पूरे खानदान में नाक कटाई है हमारी इसलिए कोई तुमसे रिश्ता नही रखना चाहता वो तो मैं हूँ जिससे किसी का दुख देखा नही जाता " हाजी साहब ने कहा
"जी भाई जमाना बहुत ख़राब हो गया है , यहाँ तो अपने भी बदल गए है " आमना ने कहा
"क्या कहा तुमने? मेने सुना नही " हाजी साहब ने कहा
"कुछ नही भाई , ठीक है मैं जुबेर से कह दूँगी आयींदा शंकर भाई की दुकान से उधार खरीदने पर ये ना कहे की उनका साला चुकता कर देगा, शाम को सिमरन आएगी तो उससे पैसे लेकर कर्जा चुका दूँगी अच्छा अंदर आइये चाय पी लीजिये " आमना ने कहा
नही नही, मुझे नमाज़ के लिए जाना है और वैसे भी उधार के राशन से मैं चाय नही पीता उधार खाने से अच्छा है की बंदा अपने पेट से सौदा कर ले, चलो मैं चलता हूँ ये कह कर हाजी साहब चले गए
आमना ने दरवाज़ा बंद किया और आसमान की तरफ देख कर बोली " सही कहा भाईजान आपने , उधार खाने से अच्छा है बंदा पेट से सौदा करले , अभी आपका पेट भरा है इसलिए आपके मुँह से ये बाते निकल रही है लेकिन खुदा ना करे जैसा वक़्त हम गुज़ार रहे है अगर आप गुज़ारे तो पता लग जाए की नसीहत करना और उस नसीहत को मानना दोनों कितने अलग अलग है । मेरी बेटियां जिन्हे आप ज़माने से बचाने का कह रहे हो अगर ज़माने की इतनी ही फ़िक्र थी तो आपकी गैरत जब नही जागी जब वो पहली बार इस घर को सँभालने के लिए घर से बाहर निकली थी ताकि उसके घर वाले भूख से ना मर जाए क्यू कोई अच्छा सा रिश्ता लाकर उसकी शादी क्यू नही कराई । क्या रिश्तेदार सिर्फ ताना देने के लिए होते है क्या मदद करना उनका फर्ज़ नही है "
आमना आँखों में आंसू लिए कपडे धोने बैठ गयी । तभी पीछे से सिमरन आ जाती जिसे देख उसका छोटा भाई शोएब जिसका मानसिक संतुलन सही नही है जोर जोर से ताली बजा कर उछल ते हुए बोला " आपी आ गयी , आपी आ गयी "
अपने बेटे के मुँह से ये सुन आमना ने पीछे मुड़कर देखा तो सिमरन खड़ी थी ।
"अरे सिमरन तू , आज इतनी जल्दी " आमना ने रोंधी आवाज़ में कहा
"अम्मी, मामू जान आये थे क्या? " सिमरन ने पूछा
"क्यू तुझे कैसे पता की भाई साहब आये थे या नही" आमना ने पूछा
"अम्मी वो मुझे बाहर गुस्से में जाते दिखे थे और आपकी आवाज़ बता रही है की वो फिर आपको कुछ बुरा भला कह कर गए है आपकी औलाद के बारे में। आखिर क्यू आ जाते है वो मुँह उठा कर हमारे घर हमारी ज़िन्दगीयों में आग लगाने ।
उनसे हम लोग कुछ मांगने जाते है जो भी चटनी रोटी होती है खा लेते है , फिर वो क्यू हमें परेशान करने आ जाते है अपनी अमीरी दिखाने और हमारी गुरबत का मज़ाक उडाने आखिर किसने हक़ दिया है उन्हें इस तरह हमारा मज़ाक बनाने का " सिमरन ने कहा
"बेटा वो हमारे रिश्तेदार है इसलिए हमारे घर आते है हमारा भला ही सोचते है वो " आमना ने कहा
"रिश्तेदार, इसका मतलब भी पता है आपके भाई को, क्या कहा हमारा भला चाहते है ? नही अम्मी ये आपकी गलत फ़हमी है वो हमारा भला नही सोचते है बल्कि ये देखने आते है की अब किस तरह इनकी गुरबत का मज़ाक उड़ाया जाए कोनसी दुखती नस दबायी जाए अपनी बहन और उसके बच्चों की जिससे मोहल्ले में उन्हें बदनाम करके अपना झंडा गाड़ दू। भला करना चाहते तो मेरे लिए कोई अच्छा सा रिश्ता ले आते और अब्बा को अपनी फैक्ट्री में काम पर लगा लेते नही तो आपका हिस्सा जो दबाये बैठे है वो दे देते क्या बेटियों का माँ बाप की जायदाद पर कोई हक़ नही होता है।
वैसे तो बहुत इल्म ए दीन ( इस्लाम का ज्ञान ) जानते है लेकिन इतना नही पता की इस्लाम में बेटी का भी हिस्सा है माँ बाप की जायदाद में।" सिमरन और कुछ कहती तभी आमना बोल पड़ी
चुप हो जा खुदा के वास्ते, तेरे बाप की वजह से ही आये थे वो, शंकर भाई से कह कर आया था की उधार हाजी साहब से ले लेना।
"क्या होता अगर चुका देते, वैसे भी तो मस्जिद में मीनार बनवा रहे है दुनिया को दिखाने के लिए लेकिन नही उन्हें तो एक और मौका मिल गया बहन के शोहर को जलील करने का " सिमरन ने कहा
"चल अच्छा भूख लगी होगी खाना खा ले। हाथ धो कर बैठ मैं अभी लगा देती हूँ " आमना ने कहा
"वैसे क्या बनाया हैं आज " सिमरन ने पूछा
"बेटा राशन ख़त्म हो गया था थोड़ी दाल रखी थी वही बना दी थी मेने " आमना ने कहा
"मुझे नही खाना, भूख मर गयी मेरी मैं सोने जा रही हूँ, उठाना मत " सिमरन ने कहा और अंदर चली गयी
"सिमरन बेटा मेरी बात तो सुन कल को मुर्गी बना लूंगी अगर शाम तक कही से पैसो का जुगाड़ हो गया तो अभी तो रोटी खा ले भूखे नही सोते। या अल्लाह कब हमारी परेशानिया दूर होंगी " आमना ने कहा और काम में लग गयी।
शोएब गाड़ी से खेलने लगा ओए बोला "अम्मी मेहविश बाज़ी कब आएँगी मुझे उनसे कुछ कहना है, उनसे बर्गर मंगाना है "
"चुप हो जा, जा जाकर जहर खा ले, घर में अच्छा खाना बनाने के पैसे नही है और इस पागल को बर्गर खाना है " आमना ने गुस्से में कहा
"मैं पागल नही हूँ, नही हूँ में पागल। तुम पागल हो " शोएब ने कहा और दरवाज़े की और चला गया और बाहर देहली पर बैठ गया और कहने लगा "तुम पागल हो, मैं पागल नही हूँ "
धीरे धीरे शाम होती है और मेहविश कॉलेज से घर आने लगती है। तब ही उसे याद आता की कुछ किताबें लेना है लेकिन वो सोचती की किताबों से ज्यादा मेरे घर की ज़रुरत पूरी करना है किताबें तो मैं दोस्तों और लाइब्रेरी से उधार ले लूंगी यही सोच विचार करते वो घर आ जाती है।
घर के दरवाज़े पर अपने भाई को देखती जो कुछ कह रहा था। दौड़ती हुयी उसके पास आती और पूछती " शोएब इस तरह बाहर क्यू बैठे हो "
"मैं पागल नही हूँ, नही हूँ मैं पागल " शोएब ने कहा और मेहविश के गले लग गया
"किसने कहा तुम पागल हो, देखो मैं तुम्हारे बर्गर लायी हूँ चलो अंदर " मेहविश ने कहा
"अम्मी ने, अम्मी ने, अम्मी गंदी बोली ज़हर खा लो, ज़हर खा लो " शोएब ने कहा
मेहविश उसका हाथ पकड़ कर अंदर ले आयी और उसे बर्गर दे दिया और अपनी अम्मी से बोली " अम्मी ये शोएब क्या कह रहा है आपने इसे पागल कहा और ज़हर खाने को कहा "
"हाँ, मेने कहा इससे पागल ही तो है , घर में खाने को नही है और इसे बर्गर खाना है तो मेने कह दिया ज़हर खा ले हमारी भी जान छूट जाएगी इससे और इसकी भी जान " आमना ने कहा
"क्या अम्मी आप भी , अब मत कहना कुछ मेने बर्गर दे दिया इसको " मेहविश ने कहा
"इसको क्यू दे दिया, सिमरन भूखी सो गयी उसे खिला देती,कम्बख्त राशन नही था इसलिए दाल बनायीं थी और वो गुस्से में भूखी सो गयी रोज़ रोज़ दाल बेचारी कमा कर भी ढंग का नही खा सकती " आमना ने कहा
मेहविश अपने पर्स से पैसे निकाल कर देती और कहती " ये लो अम्मी ये कुछ पैसे है एक प्रतियोगिता जीती थी उसी से मिले है कल को कुछ अच्छा पका लेना "
आमना पैसे देख खुश हो जाती और कहती " मेहविश बेटा सबसे पहले राशन वाले के पैसे दे आ , वरना तेरा बाप फिर उससे कहेगा की भाईजान से ले लेना वो फिर हंगामा कर देंगे "
"क्या, अब्बा ने राशन वाले से कहा की पैसे मामू से ले लेना हद है यार, फिर वो आय होंगे आपको बाते सुनाने
और इसी वजह से सिमरन ने भी खाना नही खाया होगा "मेहविश ने कहा
"चल छोड़ अब जो होना था वो हो गया , जो गुरबत का मज़ाक बनना था बन गया अब तू खाना खा कर पैसे दे आ " आमना ने कहा
मेहविश भी सिमरन के पास चली गयी जहाँ वो सो रही थी ।
"आपी उठो देखो क्या लायी हूँ तुम्हारे लिए ।" मेहविश ने कहा
"क्या लायी है , फिर कुछ लायी होगी बचा हुआ अपने दोस्तों के आगे का मुझे नही खाना कुछ भी , तंग आ गयी हूँ मैं इस घर और इस घर की गरीबी से मौत भी नही आती" सिमरन ने नींद से उठ कर कहा
मेहविश कुछ बोल ना सकी और बर्गर उसके पास रख दिया।
इसी दौरान दरवाज़े पर किसी की दस्तक होती है ।
आमना दरवाज़ा खोलती और कहती " अरे सीमा तुम, सब ठीक तो है "
सीमा जो की दो घर छोड़ कर रहती है ।
"आमना बाज़ी, मेहविश घर पर है " सीमा ने पूछा
"हाँ, है क्या हुआ, बच्चीया तो ठीक है " आमना ने पूछा और मेहविश को आवाज़ देते हुए कहा बेटा देखो सीमा आंटी आयी है बाहर आना ज़रा
"बस इनकी और कमी थी , ज़रूर अपने बीमार बच्चों की दवा लेने आयी होंगी मुफ्त में " सिमरन ने गुस्से में कहा
"क्या हो गया सिमरन तुम्हे, तुम्हे पता है पड़ोसियों का कितना हक़ होता है दूसरे पडोसी पर , और वो बेचारी भी तो हमारी तरह दुखो की मारी है , अगर मेरी दवाई से उन्हें और उनके बच्चों को फायदा हो जाता है तो इसमें बुरा क्या है " मेहविश ने कहा
"सब को फायदा हम ही पहुंचाय, हमें कोई फायदा ना पहुंचाय उल्टा हमारा मज़ाक बना कर चला जाए " सिमरन ने कहा
" वो जो ऊपर बैठा सब देखता है , एक ना एक दिन इंसान को अच्छे और बुरे कर्मो का फल देता है , इंसान के हाथ में कुछ नही " मेहविश ने कहा और बाहर चली गयी ।
"आओ बेटा, केसी हो बार बार तुम्हे परेशान करना अच्छा नही लगता लेकिन क्या करू । मजबूर हूँ " सीमा ने कहा
"कोई बात नही आंटी , आप हमारी पडोसी है आप जब चाहे मेरे पास आ सकती है अब बताइये किस की दवाई लेना है , बच्चीया तो ठीक है " मेहविश ने पूछा
हाँ, बेटा भगवान की दया से बच्चीया तो ठीक है किन्तु मैं थोड़ी बीमार हूँ शायद थकान हो गये घर घर जाकर काम करने से, पति तो बेवड़ा है उसे तो शराब के आगे कुछ नज़र नही आता ।
माँ बाप तो ब्याह करके भूल ही गए । इतने साल हो गए किसी भाई ने भी खबर नही ली मेरी। ना जाने कौन सा बोझ थी मैं उन पर जो इस तरह मुझे अपने सर से उतार फेका।
ना जाने मेरी बुआ को मुझसे क्या ऐसी दुश्मनी थी । की मेरी शादी इस बेवड़े रघु से करा दी। रिश्ते में दगा दी उन्होंने। ना मुझे पढ़ने दिया और ना मेरे माँ बाप ने पढ़ाया मुझे कितना अच्छा होता आज अगर मैं पढ़ी लिखी होती तो अपने बच्चों को पढ़ाती और कुछ अच्छा काम करती ।
आमना बहन तुमने सही करा अपनी बच्चियों को पढ़ा कर अब देखो यही तुम्हारा घर चला रही है । मैं भी अपनी बच्चियों को पढ़ा कर रहूंगी ।
"आंटी आपके देवर और जेठ नही है , वो आपकी कोई सहायता नही करते है " मेहविश ने पूछा
"बेटी इस दुनिया में कोई अपना नही और रिश्तेदार तो बिलकुल भी नही, मेरे देवर और जेठ अगर अच्छे होते तो यूं मेरे पति को शराब पिला कर उसका सारा हिस्सा अपने नाम ना करलेते और अब कहते है रघु ने हमें खुद दिया है वो हिस्सा क्यूंकि उसे मुझ पर भरोसा नही कही मैं बेच कर उसे छोड़ कर भाग ना जाऊ।
अगर भागना होता तो अब तक भाग जाती, भाग कर जाउंगी कहा इस ज़ालिम दुनिया में " सीमा ने कहा
"आंटी आप रघु अंकल को छोड़ क्यू नही देती, या उनसे कहे की अपना हिस्सा वापस लो अपने भाइयो से" मेहविश ने कहा
"बेटा दो बेटियां है मेरी, ऐसे में अगर पति का साथ छोड़ दिया तो ये समाज में फिर रहे भेड़िये मौका पाकर हमारी इज़्ज़त पर हाथ डाल देंगे। बस इसी वजह से अपने पति से तलाक नही लेती हूँ में की जैसा भी है कोई घर की तरफ आँख उठा कर नही देखता मेरे " सीमा ने कहा
मेहविश अंदर से कुछ दवाई ले आयी और बोली " आंटी ये दवाई खा लेना आपको ज़रूर आराम मिलेगा "
"बेटा तेरे हाथ में ईश्वर ने शिफा दी है , मुझे ज़रूर आराम मिल जाएगा मुझे बहुत ख़ुशी होती है तुझे देख कर , देखना एक दिन तू बहुत बड़ी डॉक्टर बनेगी तुझे देखकर मुझे हिम्मत मिलती है मैं भी अपनी बेटियों को जब तक किसी मक़ाम तक पंहुचा ना दूँगी तब तक चेन से नही बेठूगी " सीमा ने कहा
"तुम सब की दुआओ का नतीजा है , जो आज मेरी बेटी डॉक्टरी पढ़ रही है , वरना इस गुरबत में तो दो वक़्त की रोटी मिलना ही बहुत मुश्किल है" आमना ने कहा
"बाज़ी सिमरन का कुछ हुआ, कही बात बनी " सीमा ने पूछा
"नही सीमा कही कुछ नही हुआ, उम्र जो हो गयी उसकी इस घर की चक्की में पिस पिस कर " आमना ने कहा
"देखना एक दिन जरूर सिमरन को उसके अच्छे कर्मो का फल मिलेगा, " सीमा ने कहा
"हाँ, जरूर एक बार कोई रिश्ता सही तरह से ठीक बैठ जाए, दहेज़ की भी कोई चिंता नही उसके मामू दे देंगे दहेज़ वो कहते है बस तुम रिश्ता पक्का करो दहेज़ मैं दे दूंगा " आमना ने कहा
"अच्छी बात है , लेकिन मुझे लगता नही रिश्तेदार कहते तो बहुत कुछ है पर करते नही आज कल तो रिश्तेदारों का खून सफ़ेद हो गया है आज कल के रिश्तो की तस्वीर बदल सी गयी है। पहले खून के रिश्ते होते थे अब रिश्तो का खून हो रहा है । पहले रिश्तो में एक दूसरे के दर्द का एहसास होता था लेकिन अब लोग एक दूसरे को दर्द में देख कर उस पर नमक छिड़क जाते है और बाद में हस्ते है अच्छा बाज़ी मैं चलती हूँ फिर आउंगी आप परेशान मत हो ईश्वर ने चाहा तो सिमरन अपने घर की ज़रूर हो जाएगी " सीमा ने कहा और चली गयी ।
थोड़ी देर बाद आमना का बेटा मोहसिन वहा आता जिसे देख उसकी माँ कहती " बेटा कहा गया था , कुछ काम की बात बनी या पूरा दिन बाप की तरह अवारा गर्दी करता रहा "
"नही अम्मी, कुछ नही हुआ एक दो जगह ऑडिशन दिए थे अब देखो क्या जवाब आता है , वो मुझे अदाकारी करने के लिए लेते है या नही " मोहसिन ने कहा
"बेटा इस काम को छोड़ कर कोई दूसरा काम पकड़ ले, तेरे मामू और चाचा को भी तेरा ये सब करना पसंद नही " आमना ने कहा
"रहने दो अम्मी रिश्तेदार कहा चाहते है की कोई और तरक्की करे , देखना एक दिन जब बड़ा अदाकार बन जाऊंगा तो ये रिश्तेदार ही कहेँगे बहुत अच्छा काम कर रहा है हमारा भांजा ता भतीजा , देखना अम्मा जब हम भी अमीर हो जाएंगे तब इन रिश्तेदारों की तस्वीर कैसे बदल जाएगी कैसे हमारे घर आने के बहाने ढूंढ़ेंगे अभी तो झाँकते भी नही आकर और फिर देखना केसा हमें दावतो पर बुलाएंगे " मोहसिन ने कहा
"ठीक है बेटा जो दिल चाहे करो बस इतना ध्यान रखना की एक ने तो हमारे खातिर अपनी जवानी कुर्बान करदी लेकिन मैं दूसरी को ऐसा नही करने दूँगी जो करना है जल्दी करो ताकि उन दोनों को भी आराम मिल जाए और मैं भी अपनी ज़िम्मेदारियों से फ़ारिग हो जाऊ। क्यूंकि बाप तो तुम्हारा कभी अपनी ज़िम्मेदारियों को समझेगा नही जवानी से बुढ़ापा आ गया उस पर और रिश्तेदार इस काबिल नही तो जो कुछ करना है तुम्हे ही करना है ।" आमना ने कहा
मोहसिन उदास हो कर वहा से चला गया ।
इसी तरह दिन गुज़रते रहे । सब की ज़िन्दगिया चलती रही । कुमेल मेहविश को अपने दिल की बात बताने के बहाने ढूंढ़ता रहता । ज़ूनी उससे एक तरफ़ा प्यार करती वो नही जानती की कुमेल मेहविश से प्यार करता है वो समझती है की कुमेल उससे मिलने आता है जब जब वो मेहविश के साथ होती है ।
मोहसिन भी जगह जगह ऑडिशन देता रहता कही थोड़ा बहुत काम करता लेकिन पैसे नही मिलते। जुबेर आमना का शोहर बीड़ी सीगरेट को अपना दोस्त बनाये फिरता है। उनके घर की हालत अच्छी नही थी .
एक दिन सिमरन और उसकी माँ घर पर थी तभी उसकी चाची जो की काफी अमीर थी अपनी बेटी की शादी का कार्ड लेकर आती और आमना को देते हुए मज़े लेने के लिए बोली " भाभी पता नही आप कब हम लोगो को अपने घर की शादी में बुलाओगी। मेरी तीसरी बेटी की शादी है ये मेने तो अपनी बेटियां 18 साल में ही ब्याह दी पता नही आप क्यू लिए बैठी हो अब तक , किसी बूढ़े के साथ बांध कर चलता करो कब तक उसे घर में बैठा कर रखोगी "
सिमरन जो अंदर सुन रही थी बाहर आकर बोली " चाची आपसे किसने कहा हमें अपने घर की शादी में बुलाने को, आखिर क्यू आप हमारे घर अपनी बेटियों की शादी का कार्ड लेकर आयी हो ये देखने की जेठानी किस हाल में है । आपकी बेटियां जिस उम्र में अपने घर की हो गयी उस उम्र में मैं इस घर की मरम्मत करा रही थी कि कही बरसात में ये हम पर ना आ गिरे, मैं बच्चो को टूशन पढ़ा रही थी कि कही मेरे भाई बहन भूख से ना मर जाए और आप यहाँ हमारा मज़ाक बनाने आयी हो और मेरी माँ से कह रही हो किसी बूढ़े से शादी करवादे मेरी आपको शर्म नही आती एक माँ से इस तरह कि बात करते हुए । आप किस तरह के अपने हो जिन्हे किसी की तकलीफ का एहसास नही बल्कि मजे ले रहे है "
"तोबा, तोबा आमना तुम्हारी बेटी की ज़ुबान कितनी लम्बी है, यही वजह है जो ये अब तक घर में बैठी है ये लो कार्ड दिल चाहे तो आ जाना वरना कोई ज़रूरी नही बेवजह मेरी बच्ची को हसद भरी नज़रो से देखोगी तुम माँ बेटी। तुम लोगो का तो गुरबत का रोना खत्म नही होता और ना होगा तुम्हारे चाचा तो मना कर रहे थे लेकिन मैं ही पागल थी जो कार्ड देने चली आयी । बेटी डॉक्टरी पढ़ रही है और रोना तुम लोगो का गरीबी का है और हाँ मोहसिन से कहना कोई ढंग का काम करले उसके चाचा बहुत गुस्सा है उस पर ना जाने किस तरह के चड्डी बनयान के ऐड देता है टेलीवीज़न पर । लोगो को बताते हुए भी शर्म आती है की ये हमारा भतीजा है " उसकी चाची ने कहा और चली गयी
"सिमरन तुझे क्या ज़रुरत थी अपनी चाची से इस तरह बात करने की बेवजह पूरे खानदान में बदनाम करती फ़िरेगी एक तो पहले ही कोई रिश्तेदार हमारे घर नही आता और अब तो बिलकुल भी नही आएगा " आमना ने कहा
"नही चाहिए हमें कोई रिश्तेदार हम ऐसे ही सही है , पहले कौन आता था जो अब कोई आएगा । पहले भी हमारा मज़ाक बनाने आते थे अब भी आ जाएंगे लेकिन अब मैं खामोश नही बेठूगी चाहे आपके भाई हो या कोई और रिश्तेदार। इन लोगो ने बहुत दुख दिया है ये रिश्तेदारों के नाम पर कलंक है इन्हे रिश्ते निभाने नही आते है बस गलतियां ढूँढ़ते है देखा कैसे कह रही थी किसी बूढ़े के हाथ में मेरा हाथ बांध दो जैसे की मैं कोई गाय हूँ और किसी भी खूटे से बांध दो मेरे अंदर तो कोई जज़्बात ही नही है ना ही अरमान " सिमरन ने कहा और अपने कमरे में चली गयी ।
आमना की आँखों में आंसू थे उसने हाथ फेला कर कहा " या अल्लाह मेरे घर की परेशानियों को दूर करदे ताकि ये रिश्तेदार आकर मुझे और मेरे बच्चों को तकलीफ ना दे या फिर इनके दिलो में अपने गरीब रिश्तेदारों के लिए मोहब्बत डाल दे ये रिश्तो को समझें ना की लोगो के हालातो को देख कर उनकी हसीं बनाये "
इसी तरह कुछ दिन गुज़ार गए
एक दिन सीमा उनके घर आती और आमना से कहती " आमना बाज़ी आपके लिए खुशखबरी है , वो अपनी रज़जो है जिसके यहाँ में झाड़ू पोछा करने जाती हूँ उसके यहाँ कुछ लोग आये थे जो अपने लड़के के लिए लड़की ढूंढ रहे थे । लड़के का कारोबार दुबई में है लेकिन उसकी उम्र कुछ ज्यादा है करीब 38 साल क्यूंकि बड़ा भाई था घर का कारोबार ज़माने में उम्र बढ़ गयी शाम को वो लोग आ रहे है सिमरन को देखने "
आमना ने ये सुना तो उसे सीने से लगा कर बोली " सीमा तुमने वो कर दिया जो मेरे ना तो मायके वाले कर सके और ना ससुराल वाले तुमने एक पडोसी होने का हक़ अदा किया "
"आमना बहन तुमने और तुम्हारी बेटी ने भी तो हरदम मेरी कितनी मदद की जब जब रघु ने मुझे मारा तब तब मेहविश ने ही मेरा इलाज किया, मेरा भी कोई रिश्तेदार भटका नही मेरे घर अब मेरा भी तो कुछ फर्ज़ बनता है बेटियां तो सब की साँझा होती है मुझे बहुत फ़िक्र रहती थी सिमरन की ईश्वर ने चाहा तो आज सब कुछ अच्छा होगा " सीमा ने कहा
"हाँ, मेरी बहन तो कब आएंगे वो लोग " आमना ने पूछा
"शाम को आएंगे मेने उन्हें सब बता दिया की लड़की की उम्र कितनी है और घर के हालात कैसे है , उन्हें किसी चीज से आपत्ति नही उन्हें बस पढ़ी लिखी लड़की चाहिए " सीमा ने कहा
"तुम्हारा बहुत शुक्रिया, सीमा तुमने मेरी बेटी के लिए इतना सोचा जितना की कोई खून के रिश्ते में भी नही सोचता " आमना ने कहा
बाज़ी खून का ना सही लेकिन इंसानियत का रिश्ता तो है हम लोगो के बीच । अमीर लोगो में तो इंसानियत भी मर चुकी है। अच्छा बाज़ी मैं चलती हूँ शाम को आउंगी सिमरन से कहना अच्छे से तैयार हो जाए। सीमा ने कहा और वहा से चली गयी ।
आमना बहुत खुश थी और शाम का इंतज़ार कर रही थी और मेहविश और सिमरन के आने का इंतज़ार कर रही थी ।
शाम हो चली थी दोनों बहने अपने घर आ गयी । आमना ने दोनों को बताया की सीमा एक रिश्ता ला रही है वो जहाँ काम करने जाती है उनके यहाँ कोई आया है जिन्हे पढ़ी लिखी लड़की चाहिए अपने बेटे के लिए ।
"सीमा आंटी रिश्ता ला रही है , देखा आपी तुमने पडोसी ही पडोसी के काम आता है , तुम हमेशा उनके यहाँ आकर मुझसे मुफ्त का इलाज कराने पर गुस्सा होती थी । आज वही सीमा आंटी जो हमारे धर्म की भी नही है लेकिन फिर भी सिर्फ इंसानियत के रिश्ते को निभाने के लिए तुम्हारे लिए चिंतित थी । जो चिंता हमारे रिश्तेदारों को होना चाहिए थी वो उन्हें थी तुम्हारी शादी की इसलिए कहते है पडोसी का हक़ रिश्तेदारों से पहले है " मेहविश ने कहा
सिमरन खुश थी । थोड़ी देर बाद मेहमान आये उन्हें सिमरन पसंद आयी और वो कुछ पैसे देकर और शादी इसी महीने करने का कह कर चले गए ।
आमना परेशान थी उन्हें कुछ नही चाहिए था लेकिन खाली हाथ तो रुक्सत नही कर सकती थी । उसने अपने भाई के आसरे पर उन्हें हाँ कह दी क्यूंकि हाजी साहब ने कहा था की वो सिमरन का दहेज़ दे देंगे इसी आस में आमना ने शादी के लिए हाँ कह दी।
धीरे धीरे दिन करीब आने लगे आमना अपने भाई से मिलना चाहती लेकिन वो मस्जिद में पत्थर लगवाने में व्यस्त थे ।
वही दूसरी तरफ मेहविश का कॉलेज ख़त्म होने वाला था । कुमेल उसे अपने दिल की बात बताना चाहता था इसलिए उसने कॉलेज की फेयरवेल पार्टी का दिन चुना ।जो कुछ दिनों में होने वाली थी
वो पहले ज़ूनी से बात करना चाहता था मेहविश के बारे में क्यूंकि ज़ूनी को मेहविश के बारे में सब पता था उसके घर के हालात के बारे में इसलिए वो ज़ूनी के पास आया अंगूठी लेकर।
ज़ूनी समझी की वो उसे प्रोपोज़ करेगा लेकिन जब उसने कहा की वो आने वाली फेयरवेल पार्टी में मेहविश को प्रोपोज़ करेगा उसे झटका लग गया क्यूंकि प्यार तो ज़ूनी उससे करती थी और वो समझती थी की वो भी उससे प्यार करता है लेकिन ऐसा नही था ।
ये सुन ज़ूनी को बेहद गुस्सा आया । ज़ूनी मेहविश से बदला लेना चाहती थी उसने अपने आप से कहा "पहले तो सिर्फ क्लास में ही मेरा हक़ छीनती रही लेकिन अब उसे भी छीन रही है जिसे मैं प्यार करती हूँ लेकिन मैं ऐसा नही होने दूँगी मैं कुमेल को हासिल करके रहूंगी चाहे मुझे अपनी दोस्ती की क़ुरबानी ही क्यू ना देना पड़े ये जो दोस्ती का रिश्ता है इसका रूप अब बदलने का समय आ गया अब वो मेरे हक़ पर डाका डालने जा रही है अब तक तो वो सिर्फ क्लास में ही अव्वल आती और मेरा पुरुस्कार ले जाती लेकिन अब नही कुमेल सिर्फ मेरा है और मेरा रहेगा "
आमना ने अपने भाई से बात की पैसो की लेकिन उसे उस जवाब की उम्मीद नही थी जो हाजी साहब ने उसे दिया वो बोले " आमना , सिमरन तुम्हारी और जुबेर की बेटी है उसके लिए जो भी दहेज़ होगा वो माँ बाप इकठ्ठा करते है ना की रिश्तेदार। तुम्हारे शोहर ने क्या किया जिंदगी भर अवारा गर्दी के अलावा और तुम्हारा बेटा चड्डी बनयान के ऐड देता फिरता है टेलीविज़न पर । मेरे पास पैसे नही है जो थे वो अल्लाह के घर में पत्थर लगा कर अपनी आख़िरत ( मरने के बाद की जिंदगी )सुधारने में लगा दिए अब जो भी हज़ार पांच हज़ार रूपये होंगे वो में न्योते में दे दूंगा और कोई भी रिश्तेदार तुम्हारी मदद को नही आएगा क्यूंकि तुम्हारी देवरनी ने पूरे खानदान में तुम्हे और तुम्हारी बेटियों को जुबान चलाने के लिए बदनाम कर दिया है । बस सादगी से निकाह करो और ज़िम्मेदारी से फ़ारिग हो यूं हमारी तरह धूम धड़ाके से अपनी बेटी की शादी करने के ख्वाब मत देखो उसमे बहुत पैसा लग जाता है जो तुम लोगो ने देखा भी नही होगा पूरी जिंदगी में "
आमना को बहुत उम्मीद थी अपने भाई से लेकिन उसने हरी झंडी दिखा दी साफ साफ। उसे लगा की शायद उसका भाई रिश्ता निभा सके अपना होने का लेकिन वो गलत थी।
आमना बहुत परेशान थी बेटी की शादी को लेकर बहुत से रिश्तेदारों के घर गयी लेकिन सब ने मना कर दिया ये सोच कर इनको पैसे देना मतलब अपने हाथो से पैसो को कुए में फेकना क्यूंकि इनके जैसे हालात है दस सालों में भी ये उनका कर्ज़ा नही उतार सकते ।
आख़िरकार जब मेहविश को पता चला की उसकी अम्मी कुछ चंद पैसो के खातिर रिश्ते दारों के दरबाज़ो पर जलील और रुस्वा होती फिर रही है तब वो अपनी दोस्त ज़ूनी के पास गयी ।
ज़ूनी जो की अब पुरानी वाली ज़ूनी नही रही थी वो बदल चुकी थी और उससे नफरत करने लगी थी उसके साथ उसका दोस्ती का रिश्ता अब दुश्मनी में बदल चुका था उनके रिश्ते की तस्वीर बदल चुकी थी ।
मेहविश ने जब उससे पैसे मांगे तब ज़ूनी बोली मैं पैसे दे दूँगी लेकिन एक शर्त है मेरी।
"केसी शर्त " मेहविश ने पूछा
मेहविश तुम क्लास में अव्वल आती रही, हर मुकाबले में मुझे पीछे छोड़ दिया लेकिन अब मैं तुम्हे अपने प्यार पर डाका डालने नही दूँगी । आने वाली कॉलेज फेयरवेल पार्टी में कुमेल तुम्हे प्रपोज़ करेगा मैं जानती हूँ की कही ना कही तुम भी उसे पसंद करती हो लेकिन तुम्हे अगर अपनी बहन के दहेज़ के लिए पैसे चाहिए ।
और चाहती हो तुम्हारी बहन का घर बस जाए तो तुम्हे उस दिन जब कुमेल तुम्हे प्रोपोज़ करे उसे मना करना होगा ना चाहते हुए भी अगर ये शर्त मंजूर है तब तुम पैसे ले जा सकती हो वरना जिंदगी भर अपनी बहन का घर ना बस पाने की वजह बन कर खुद को कोसती रहोगी ।
मेहविश जो खामोश खड़ी सोच रही थी कि आखिर आज दोस्ती के रिश्ते कि भी तस्वीर बदल गयी। जो दोस्त मुझे अपनी बहन मानती थी आज वो उसी के प्यार का सौदा इस तरह कर रही है कि एक तरफ उसकी बहन को रख दिया और दूसरी तरफ उसके प्यार को और पैसे बीच में रख कर कह रही है कि किसी एक को चुनु ।
मेहविश ने अपनी बहन को चुना और मोहब्बत कि क़ुरबानी दे दी और पैसे लेकर घर आ गयी ।
कुछ दिनों बाद सिमरन कि शादी हो गयी । मेहविश बहुत रोई उस दिन कुछ दिन बाद कॉलेज फेयरवेल में ना चाहते हुए भी वो गयी और जब कुमेल ने प्रोपोज़ किया तो दिल पर पत्थर रख कर उसे साफ इंकार कर दिया और वहा से चली आयी और घर आकर बेहद रोई ।
कुछ दिन बाद मोहसिन को एक फ़िल्म में काम मिला जिसके उसे पैसे मिले। मेहविश जिसने लंदन में छात्रवृति के लिए आवेदन किया था उसकी मंज़ूरी मिल गयी और वो आगे की पढ़ाई करने लंदन चली गयी ।
सिमरन दुबई चली गयी अपने शोहर के साथ ।
आमना उसका शोहर और उनका पागल बेटा घर में रह गए घर एक दम खाली हो गया ।
8 साल बाद
"रागिब बेटा उठो देखो खाला ( मासी) को एयरपोर्ट लेने जाना है उनकी फ्लाइट आती ही होगी " सिमरन ने अपने बेटे को उठाते हुए कहा
"सिमरन बेटा सोने दे उसे वो भी तो अभी दो दिन पहले ही दुबई से आया है , जुनेद ( सिमरन का शोहर )कब तक आएंगे " आमना ने पूछा
अम्मी वो शायद नही आये वो बहुत व्यस्त है साली साहिबा से मिलना चाहते थे उसे डॉक्टर की पढ़ाई मुकम्मल करके आता देख वो भी खुश होना चाहते थे लेकिन ऑफिस में काम बहुत था आ नही सके । इसलिए मुझे और रागिब को भेज दिया
अम्मी मोहसिन नही आया , सिमरन ने पूछा
"बेटा कहा, अब वो फिल्मो और ड्रामो में व्यस्त रहता है इतना मशहूर अदाकार जो बन गया है लड़कियां तो उसकी दीवानी है । तेरे मामू और चाची भी उसकी तारीफ कर रहे थे उस दिन सब रिश्तेदार हमारे घर आये थे शायद आज आएगा अपनी बहन से मिलने" आमना ने कहा
"क्या सच में, हमारे रिश्तेदार वो भी हमारे घर और मामू और चाची तारीफ कर रहे थे मोहसिन की जबकी वो तो उनके खानदान की नाक कटवाता था चड्डी बनयान के ऐड करके " सिमरन ने कहा
"हाँ, अब सब बदल गए तेरे मामू भी हर दो दिन में चक्कर लगाते है और साथ में किसी ना किसी दोस्त को लाकर कहते है ये देखो मेरी बहन जिसका मुझसे रिश्ता दिल का है " आमना ने कहा
"अम्मी, मामू और रिश्तेदार नही बदले दरअसल हमारा वक़्त बदल गया पहले जब हम उस घर में रहते थे जिसका प्लास्टर उतर जाता था तब तो कभी मामू अपने दोस्तों को नही लाये क्यूंकि उनके दोस्त उनसे ही सवाल कर बैठते की तुम कैसे भाई हो खुद आलिशान घर में रहते हो और तुम्हारी बहन टूटे फूटे घर में अपनी जिंदगी गुज़ार रही है । अम्मी पैसे ने रिश्तो की तस्वीर बदल दी कल तक मेरा भाई जो उनकी नाक कटवाता था अब जब वो लाखो रूपये कमा रहा है तब वो उनका प्यारा हो गया अगर इतना प्यार जब उस पर दिखा देते तो कितना अच्छा हो जाता दोगले रिश्तेदार। क्या कहा था आपसे की अपनी बेटी की शादी किसी बूढ़े से कर दो और अपनी जान छुड़ाओ अब सीने पर साप लोट आते है जब पता चलता है की मेरा शोहर मुझे दुबई में अपने साथ रखता है वो तो चाहते थे की मैं किसी बूढ़े के साथ शादी कर लू और वो मेरा मज़ाक बनाये लेकिन वो जो उपर बैठा सब देख रहा है उसके घर देर है लेकिन अंधेर नही।
उसने आज हमारी तस्वीर भी बदल दी।" सिमरन ने कहा
चल छोड़ अब जो हुआ सो हुआ अब जल्दी से ड्राइवर से कह कर गाड़ी निकल वा हमें एयरपोर्ट जाना है मेहविश को लेने।
थोड़ी देर बाद मेहविश घर आ जाती है वो अब एक दिमाग़ के मरीज़ो की डॉक्टर बन गयी थी क्यूंकि उसे अपने भाई जैसे बच्चों का इलाज करना था ।उसका भाई बड़ा हो गया था और उसका इलाज चल रहा था जो उस समय गरीबी कि वजह से ना हो पाया था ।
मेहविश से मिलने उसके सभी रिश्तेदार आये थे उसके मामू भी उसे डॉक्टर बना देख बोले " मुझे पता था कि मेरी भांजी एक दिन ज़रूर एक बड़ी डॉक्टर बनेगी आखिर भांजी किसकी है "
सिमरन दूर खड़ी अपने मामू की बाते सुन रही थी और अपनी अम्मी की तरफ देख कर हसने लगी और उनके जाने के बाद बोली " मामू तो बिलकुल ही बदल गए उन्हें आज मेहविश के डॉक्टर बन जाने पर गर्व हो रहा था जबकी जब हम गरीब थे तब आकर कहते थे कि जब तुम्हारे पास पैसे नही है तो बेटी को पढ़ा क्यू रही हो सच में मामू की तो तस्वीर बिलकुल बदल गयी हमारे हालातो के साथ ।"
"छोड़ो आपी उन पुरानी बातो को जिंदगी में आगे बढ़ो सब कुछ बदल गया अब ना वो वक़्त रहा और ना हालात, गुरबत ने सब के चेहरे दिखा दिए कि कौन अपना है और कौन पराया । सारे रिश्तो और रिश्तेदारों की तस्वीर बदल गयी हमारे हालातो के साथ साथ " मेहविश ने कहा
"बहन दिल पर नक्श हो गया है रिश्तेदारों का वो चेहरा अब अगर दूध में भी नहा कर आ जाए फिर भी साफ नही हो पाएंगे उनकी वो बाते आज भी मेरे कानो में गूँजती है , चाची की वो बात मेरे दिल पर लिखी है कि आमना अपनी बेटी कि शादी किसी बूढ़े के साथ करदो मरते दम तक नही भूल पाऊँगी ये बात जब जब उनका चेहरा देखती हूँ वो दिन याद आ जाता है कैसे अपनी बेटी कि शादी का कार्ड फेक कर गयी थी और कहा था आना हो तो आ जाना वरना मत आना इस तरह कोई अपने दुश्मन को भी अपनी खुशियों में नही बुलाता जिस तरह वो हमारी रिश्तेदार हो कर हमें बुलाने आयी थी , बुलाना तो एक बहाना था दरअसल वो तो अपनी बेटी के बहाने मेरी उम्र का मज़ाक बनाने आयी थी और फिर सारे रिश्तेदारों में बदनाम कर दिया था मुझे की आमना की बेटी जुबान चलाती है ऐसे रिश्तेदारों का तो गला दबा देने का दिल करता है मेरा " सिमरन ने कहा
"चल अब जाने भी दे अल्लाह ने हमारी सुन ली हमारा भी आजमाइश ( इम्तिहान ) का वक़्त था वो जो हमने मिलकर हिम्मत के साथ गुज़ारा " आमना ने कहा
तभी दरवाज़े पर दस्तक होती और एक औरत दो लड़कियों के साथ हाथ में मिठाई का डब्बा लेकर अंदर आती ।
"आमना बाज़ी नमस्ते " उस औरत ने कहा
"सीमा तुम, कहा थी इतने दिनों बाद मिली हो कहा गायब हो गयी थी मेने मोहल्ले में पूछवाया था तो पता चला तुम वहा से चली गयी " आमना ने कहा
"बाज़ी पहले तो मैं आप सब का मुँह मीठा करूंगी क्यूंकि मेरी बेटी ने बारहवीं पास करली और दूसरी ने दसवीं और मेने सुना है मेहविश बेटी भी आ गयी विदेश से डॉक्टर बन कर " सीमा ने कहा
"जी आंटी आपकी दुआओ से मैं डॉक्टर बन गयी आप सुनाए रघु अंकल कैसे है , अब भी शराब पीते है या नही " मेहविश ने उसे गले लगा कर पूछा
"एक बात कहु तुम दोनों को देख कर मुझमे हिम्मत आ गयी थी और मेने उसे तलाक दे दी क्यूंकि मेरी बेटियां बड़ी हो रही थी मुझे डर था की कही उसके रिश्तेदार मेरी बेटियों का सौदा ना करवा दे चंद पैसो के लालच में इसलिए मेने उसे छोड़ दिया उसने मुझे बहुत मारा लेकिन मेने हिम्मत नही हारी फिर भगवान की दया से एक NGO ने मुझे आसरा दिया और अब मैं वही काम कर रही हूँ और पढ़ भी रही हूँ क्यूंकि वहा एक अध्यापिका है वो कहती है पढ़ने लिखने की कोई उम्र नही होती बस इंसान में हौसला होना चाहिए इस साल में दसवीं की परीक्षा दूँगी ।" सीमा ने कहा
"ये तो बहुत अच्छा फैसला लिया था तुमने सीमा । चलो अच्छा आओ बैठो चाय पीते है पहले तो हालात नही थे की तुम्हे कुछ खिला पिला सके लेकिन आज अल्लाह का शुक्र है की घर सारी चीज़ो से भरा हुआ है तुम्हारी वजह से मेरी बेटी का घर बस पाया अगर तुम उस दिन इसके लिए वो रिश्ता ना लाती तो शायद आज भी ये कुंवारी ही रहती " आमना ने कहा
"जी आंटी मैं आपकी बहुत शुक्र गुज़ार हूँ, आपने वो काम किया जो हमारे रिश्तेदारों को करना चाहिए था , मैं एक बात कहु मुझे माफ कर देना जब भी आप मेहविश से अपने बच्चों की दवाई लेने आती तो मुझे अच्छा नही लगता था क्यूंकि आपका और हमारा कोई ऐसा रिश्ता नही था की जिससे आप हमें कोई फायदा पंहुचा सकती क्यूंकि आपका धर्म अलग था और हमारा अलग लेकिन उस दिन मेरी सोच बदल गयी जब आपने मेरी परवाह अपनी बेटी की तरह करी बिना ये सोचे की ये दूसरे मजहब की है। आज अगर मेरा खुद का परिवार है तो सिर्फ और सिर्फ आपकी वजह से आप मेरे उन सभी रिश्तेदारों से अफ़ज़ल हो जिनके साथ मेरा खून का रिश्ता है और जिसकी तस्वीर वक़्त के साथ भी नही बदली जो उस वक़्त भी हमारे हालातो में हमारे साथ थी और आज भी " सिमरन ने कहा और उसे गले लगा लिया
"अरे सिमरन ये क्या कर रही हो, मेने तो तुम लोगो को देख कर हालातो के साथ लड़ना सीखा था, तुम लोग ही तो मेरे अपने थे जो मेरे जख्मो पर मरहम लगाते थे वरना मेरे अपनों ने तो मुझे विदा करके एक बार भी पीछे मुड़ कर नही देखा की मैं ज़िंदा भी हूँ या मर गयी रिश्तो की ऐसी तस्वीर बदलते मेने आज तक नही देखा था जैसा की मेरे रिश्ते दार बदले थे मुझे विदा करने के बाद " सीमा ने कहा रोते हुए ।
उसके बाद उन लोगो ने खूब बाते करी चाय नाश्ता किया और सीमा चली गयी ।
कुछ दिन बाद सिमरन और मेहविश बाजार जा रहे थे तभी मोल में उसे ज़ूनी दिखी जो काफी बदल गयी थी और चेहरे से बीमार लग रही थी ।
सिमरन जबरदस्ती मेहविश को उसके पास ले गयी , मेहविश उसके पास जाना नही चाहती थी । सिमरन मेहविश से बोली " ये तो तेरी अच्छी दोस्त हुआ करती थी कई बार हमारे घर भी आयी थी लेकिन अब तू इससे मिलना क्यू नही चाह रही है "
मेहविश उसकी बात का जवाब देती इससे पहले ही ज़ूनी ने मेहविश को देख लिया।
वो दोनों एक दूसरे को देखने लगी तभी ज़ूनी की आँख से आंसू निकल आये और वो बोली " बहुत प्यारी लग रही हो सुना है दिमाग़ की डॉक्टर बन गयी हो वक़्त कितनी तेज़ी से निकल गया "
"सही कहा ज़ूनी वक़्त बहुत तेज़ी से निकल गया और लोगो के असली चेहरे भी दिखा गया " मेहविश ने तंस करते हुए कहा
ज़ूनी समझ गयी उसकी बात का मतलब वो हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगते हुए बोली " मेहविश मुझे माफ करदो ना जाने मुझे क्या हो गया था मोहब्बत को खरीदने चली थी जानते हुए भी की किसी की मोहब्बत खरीदी नही जा सकती चाहे आप कितने ही पैसे वाले क्यू ना हो, मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया इन 8 सालों में मैं कुमेल की बीवी तो बन गयी लेकिन उसके दिल में जगह नही बना सकी बनाती भी कैसे उसके दिल में तो अब भी तुम्हारी मोहब्बत भरी हुयी है। मैं रोज़ इसी डर के साथ जीती हूँ की कही उसे पता चल गया की उसकी मोहब्बत का सौदा मेने उसके मेहबूब के हालातो का फायदा उठा कर किया था तो वो कभी मुझे माफ नही करेगा शायद इसी वजह से मुझे कैंसर हो गया और अब मैं मरने वाली हूँ "
"ज़ूनी एक बार मुझसे कह देती की तुम कुमेल से प्यार करती हो तो मैं खुद तुम्हारे रास्ते से हट जाती क्यूंकि जितने एहसान तुम्हारे मेरे ऊपर थे उन्हें शायद अपने प्यार की क़ुरबानी देकर भी मैं नही उतार पाती लेकिन तुमने हमारी दोस्ती के रिश्ते को पैसे से तोल कर उसकी तस्वीर बदल दी और साबित कर दिया की एक अमीर और गरीब की कभी दोस्ती नही हो सकती कभी ना कभी उसे अपनी दोस्ती की कीमत अदा करनी होगी जैसे मेने की थी उस दिन कुमेल को तुम्हारे कहने पर छोड़ कर जाओ मेने तुम्हे माफ किया क्यूंकि शायद तुम्हारा साथ कॉलेज में ना होता तो शायद आज मैं डॉक्टर ना बन पाती तुम्हारी ही किताबों से पढ़ कर मैं डॉक्टर बन गयी इसलिए मेने तुम्हे माफ किया और हाँ वो बात अपने दिल में ही दफन कर लो भूल कर भी कुमेल को मत बताना वरना वो समझेगा की उसकी मोहब्बत इतनी सस्ती थी जो चंद पैसो में बिक गयी उसे जिंदगी भर अफ़सोस रहेगा कि उसने इतनी गरीब लड़की से मोहब्बत कि थी की जिसने ज़रुरत पड़ने पर अपनी मोहब्बत का ही सौदा कर दिया बस इतना एहसान मुझ पर कर देना की उसको कुछ मत बताना उसे इसी गलत फ़हमी में रहने देना की मेने उससे प्यार किया ही नही कभी। " मेहविश ने कहा और सिमरन का हाथ पकड़ कर आँखों में आंसू लेकर वहा से आ गयी।
कुमेल ने सब कुछ सुन लिया था जो कुछ भी उन दोनों ने कहा।
सिमरन, मेहविश से पूछती है कि ऐसा क्या सौदा किया था ज़ूनी ने तेरे साथ, कि तू उससे बात भी नही करना चाहती और ये कुमेल कौन था तूने तो कभी नही बताया।
"छोड़ो ना आपी रात गयी बात गयी बेवजह गड़े मुर्दे उखाड़ना " मेहविश ने कहा
नही मेहविश मुझे सच सच बता कि आखिर क्यू तूने पैसे लिए और आखिर ज़ूनी ने तुझसे क्या कहा।
मेहविश ना चाहते हुए भी सिमरन को सब कुछ बता देती है।
सिमरन ये सुन अपने मुँह पर हाथ रख कर कहती " मेरी बहन इतनी बड़ी क़ुरबानी तूने मेरे लिए दी, अपने प्यार का सौदा कर बैठी चंद पैसो के खातिर, नही होती मेरी शादी मुझे कोई आपत्ति नही थी लेकिन तूने एक रिश्ता जोड़ने के लिए अपना रिश्ता दांव पर लगा दिया, क्यू मेरी बहन सच्चा प्यार करने वाले किस्मत से मिलते है और तूने मेरे खातिर उसे गंवा दिया क्यू किए तूने ऐसा इतनी बड़ी क़ुरबानी क्यू दी तूने "
"आपी जो कुछ तुमने हमारे लिए किया उसके आगे ये कुछ भी नही था और अगर मुझे तुम्हारा एहसास नही होता तो फिर हमारे बीच जो बहन का रिश्ता है वो बे मायने होता क्यूंकि रिश्ते एहसासो के होते है जिनमे एक दूसरे के दर्द और तकलीफ बिना उसके कहे समझ जाए सामने वाला। अगर मैं अपने प्यार की क़ुरबानी नही देती तुम्हारे दर्द को नही समझती तो फिर मुझमे और हमारे बाकी रिश्तेदारों में क्या अंतर रह जाता क्यूंकि वो भी तो हमारे दर्द को नही समझते थे जो उन्हें समझना चाहिए था । आपी शायद कुमेल और मेरा साथ मुकद्दर में नही था अगर होता तो आज हम दोनों एक साथ होते।
इसलिए आपी अब तुम परेशान मत हो और हाँ मुझे बताना था मुझे लंदन में एक लड़के से प्यार है जो मेरे साथ ही पढता था उसने मुझे प्रोपोज़ किया था और अब वो मेरे जवाब का इंतज़ार कर रहा है मैं उसे हाँ कह दूँगी और जिंदगी में आगे बढ़ जाउंगी सब रिश्तो की तस्वीर दिखा दी वक़्त और हालात ने हमें, अब हमें कुछ और देखने की ज़रुरत नही हमारा परिवार एक दूसरे के साथ है हर सुख दुख में इसलिए हमें अब किसी और की ज़रुरत नही।" मेहविश ने कहा और दोनों बहने हाथ थामे अपने घर आ गयी
मासिक प्रतियोगिता हेतु लिखी कहानी , धन्यवाद पढ़ने के लिए
🤫
09-Jul-2022 12:58 PM
Kahani achchi h lekin ye khani ka concept pahle bhi kahin padha h, apki hii kisi kahani me,
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Swati chourasia
24-Jun-2022 12:06 PM
बहुत ही बेहतरीन कहानी जीवन की सच्चई को दर्शाती हुई 👌👌👌👌👌👌
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Raziya bano
24-Jun-2022 12:02 PM
Bahut hi sundar rachna hai
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