Sarfaraz

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स्वैच्छिक

🌹🌹🌹*ग़ज़ल* 🌹🌹🌹

जब किया उसने आदाब चलते हुए।
रह गए दिल के अरमाँ मचलते हुए।

हाय क्या हो गया यह ही आया ख़याल।
जब भी देखा उसे आँख मलते हुए।

उसके जाते ही ऐसा अँधेरा हुआ।
जैसे दीपक बुझा कोई जलते हुए।

क्यों करें ह़ुस्ने फ़ानी पे आख़िर ग़ुरूर।
हमने देखा है सूरज को ढलते हुए।

चोट खाकर मुह़ब्बत में जो गिर पड़ा।
उसको देखा नहीं फिर सँभलते हुए।

संग क्या आतिश ए इ़श्क़ से बाख़ुदा।
हमने देखे हैं पर्वत पिघलते हुए।

देखकर मेरे दिल की ख़लिश ऐ फ़राज़।
वो भी रोने लगे पंख झलते हुए।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद उ.प्र.।

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2 Comments

Gunjan Kamal

26-Jun-2022 08:04 AM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Raziya bano

26-Jun-2022 05:42 AM

Bahut khub

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