वो काले बादल सी
वो काले बादलों सा आज मुझको,
याद सहसा आ गई,
ना जाने क्यूं ऐसा लगा मगर,
वो मेरे दिल को ' भीगा गई '
मुझे वो याद आए आज फिर,
जो दिन पुराने बीते थे
वो ऐसे ' बादलों ' जैसे ही
मन को शीतलता पहुंचाती थी।
वो जब भी बात करती थी मुझसे,
वो मेरे मन को यूं भिगाती थी,
जैसे ' काले बादल ' मरुस्थल में
खुशियां लेकर आती थी।
वो जब - जब बोलती थी,
तो बूंद सा लोगों को,
नव - जीवन का,
आभास ' नव ' कराती थी।