इंसानियत
इंसानियत
✍️श्याम सुंदर बंसल
आज न जाने इंसानियत कहा खो गई है
अपनो में रहकर भी अपनी पहचान गुम गई है
सोचता हूं कुछ तो कमी है
तभी तो इंसानियत पिछे रह गई।
इंसान को लोग इंसान नहीं समझते
सबका रक्त लाल लेकिन धर्म के नाम पड़ लड़ते
एक को मारो या दुजे को दर्द एक सा महसूस होता है
यह छोटी सी बात लोग क्यों नही समझते।
आज भी नारीयों का सम्मान नहीं
वो जीवित तो है लेकिन उनकी कोई पहचान नहीं
आज भी उनको पैर की जुती समझा जाता है
इसलिए इंसानियत का वहा कोई सम्मान नहीं।
आज गरिबो को देखकर मुख बिगाड़ते हो
उनको कट पुतलियों सा समझते हो
जो चाहा पैसे देकर वो करवा लेगें
आज तुम इंसान को इंसान नही समझते हो।
आन धन का अमिर मन से रह गया
आज कर्म का अमिर शर्म से रह गया
जो भी करता है अपनी शान मानता है
आज अमिर पैसो का पुतला हो गया।
आज माता पिता ने दिया बच्चों को कोई ज्ञान नहीं
वही बच्चे बडो़ का करते सम्मान नहीं
ऐसा लगता है हमारी संस्कृति कही धुमील पड़ती जा रही है
इसलिए आज बच्चों में ज्ञान को कोई जोत नही।
किसी भुखे को खाना खिला दे गवारा नहीं
किसी भिखारी को दहलिज पर पाव रखने दे स्वीकार नहीं
यह कैसे युग का आवगमन है
जहाँ इंसान को इंसान की पहचान नहीं।
ऋषभ दिव्येन्द्र
29-Jul-2021 11:48 AM
खूब लिखा आपने 👌👌
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Aliya khan
29-Jul-2021 08:50 AM
Shi kaha
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Ravi Goyal
28-Jul-2021 09:41 PM
Waah bahut sunder 👌👌
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