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स्त्री





"किया मैंने ही अक्सर जब
 नाफ़रमानियां उसकी !
 छलक जाती है तब आंखों
 से मेहरबानियां उसकी !!
 मेरे चेहरे पे जब भी फ़िक्र
 के आसार पाये हैं ;
 बदल देती मेरी दुनिया को
 तब नूरानियां उसकी !!"
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