Saurabh Patel

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लेखनी कहानी -28-Jun-2022 लगा हूं


जब से तेरी आंखों को पढ़ने लगा हूं
मैं ख़ुद को अनपढ़ समझने लगा हूं

तुम मुझे अब इतनी भी बुरी नहीं लगती
जब से मैं इश्क़ को इश्क़ समझने लगा हूं

शामे जिस कदर गुज़रती है तेरी यादों में
लगता है कि मैं वक्त की तेज़ी को हराने लगा हूं

वो मुझे एक नाकाम लड़का समझती है
जब से मैं इश्क़ में किए गए वादों पे अमल करने लगा हूं

अपनी ग़ज़लो में तेरा ज़िक्र कुछ यूं पसंद है मुझे
कि अपने शेर पर खुद ही मुकर्रर कहने लगा हूं

ज़माने ने मुझे बाहर कर दिया अपने दायरे से
जब से मैं अपनी सोच को तवज्जो देने लगा हूं

मेरा घर मुझे पूछता है तुम"सौरभ"ही हो
जब से मैं उसकी तस्वीर में रहने लगा हूं।

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14 Comments

Seema Priyadarshini sahay

01-Jul-2022 11:00 AM

बहुत खूबसूरत

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Saurabh Patel

01-Jul-2022 11:35 AM

जी बहुत शुक्रिया आपका

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Pallavi

29-Jun-2022 06:54 PM

Nice post

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Saurabh Patel

29-Jun-2022 10:35 PM

Thank you

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Shnaya

29-Jun-2022 04:05 PM

बहुत खूब

Reply

Saurabh Patel

29-Jun-2022 10:35 PM

जी बहुत शुक्रिया आपका

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