खिड़की
"रीमा रीमा सुन!! उठ न जल्दी.. देख उस खिड़की से कोई झांक रहा है!" नैना ने डरते हुए रीमा को उठाते हुए कहा।
"क्या है नैना... तू कितना डरती है यार.. देख न बाहर कुछ नही है।" नैना को डांटती हुई रीमा बोली और पलंग पर बैठ कर खिड़की से बाहर झांकने लगी।
बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी, काला स्याह अंधेरा था, और कीड़े मकोड़ो की आवाज आ रही थी। रीमा बड़े ध्यान से एक टक बाहर देखे जा रही थी और कीड़े मकोड़ो की आवाज सुने जा रही थी।
"रीमा तू बन्द कर दे इसे! वहां सच में कोई था।" नैना एक बार फिर डरते हुए बोली।
"तू चुप कर डरपोक! सो जा चुपचाप!" रीमा ने नैना को डांट कर सुला दिया और खुद भी उसकी बगल में लेट गयी।
लेकिन अभी भी वो खिड़की की तरफ ही देख रही थी।
कुछ देर देखने के बाद उसने करवट बदल ली लेकिन अचानक ही उसने अपनी गर्दन घुमाई और फिर से खिड़की को देखा, होश उड़ गए उसके।
उस बरसती बारिश के काल स्याह अंधेरे में दो खून भरी आंखे उसी को घूर रही थी, तभी कड़ाके की बिजली चमकी और उसका पूरा खतरनाक चेहरा उसे नजर आने लगा।
©️रश्मि आर्य