कौन है वो – ८

कौन है वो – ८

अगली सुबह धूप खिली हुई थी, ऐसा लगता था मानो रात को कोई तूफान आया ही ना था। मौसम खुला खुला खुशगवार था।
पिछली रात की हरारत और रमेश के संसर्ग की वजह से मालती का रोम रोम टूटा टूटा सा हो रहा था। उसे अभी तक समझ नहीं आ रहा था कि वो रोए या हंसे। गलती से ही सही उसके पति ने उसे उसका अधिकार तो दिया पर फिर भी ऐसा लगता था जैसे उसने कोई चोरी की हो। वो उठ कर नहा धो कर सबसे नजर चुराती सी रसोई घर में रोज के कार्यों में व्यस्त हो गई।
काम करते करते भी उसका ध्यान कल रात पर चला जाता, उसके जीवन में किसी भी पुरुष का ये पहला स्पर्श था, जहां तन सुखी था वहीं मन अभी भी कहीं न कहीं दुखी और आशंकित था। ईश्वर जाने उसके भाग्य में क्या लिखा है। क्या रमेश कभी उसको माफ करेगा, उस गलती के लिए जिसे करते हुए मालती का जमीर कभी उसके साथ था ही नहीं।
कितनी असहाय थी वो दादी के सामने, अपने पिता के सामने, जिनके लिए उसका अस्तित्व एक बोझ से ज्यादा कुछ भी नहीं था।
और फिर ससुराल, जहां उसका पति उससे इस लिए नफरत करता था कि उससे उसका विवाह एक धोखा था।
और आज उसके पति ने पहली बार उसे छुआ, पर क्या वो जानता था की वो उसकी पत्नी है या फिर आज भी वो उसके लिए उन्ही बाजारू शरीरों का पर्याय थी जिनको शायद हर रात उसका पति अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए चंद रुपए देकर खरीदता होगा।
दिन भर उसके मन में यही सवाल उमड़ते घुमड़ते रहे, जिनका उसके पास ना तो कोई उत्तर था ना ही कोई ऐसा इंसान जो उसे उसके उन सवालों के उत्तर ढूंढने में मदद कर पाता।
ले दे के कुछ सूखे आंसू थे जो बिन बादल बरसात की तरह कभी भी उसका दामन भिगो जाते थे।
एक वो ही तो उसके सुख दुख के साथी थे जब कोई पास नहीं होता तो आ जाते उसके गालों पर।
जीवन एक बार फिर सामान्य गति से चलने लगा, वो घटना मानो हुई ही न थी।
रमेश अब भी उसकी तरफ नजर उठा कर ना तो देखता ना ही उससे बात करता। उसके लिए तो वो मानो थी ही नहीं। अब तो मालती ने एक बार फिर से अपनी तकदीर से समझोता कर लिया।
मालती का सारा समय घर के काम काज या फिर सास ससुर की सेवा में गुज़र रहा था। समय अपनी गति से बढ़ा जा रहा था।
पर शायद ईश्वर को भी मालती के जीवन का सुख रास नहीं आता था, ज्यों ही लगता सब कुछ सामान्य हो चला है, एक नया तूफान उसको झकझोर कर चला जाता। हर बार वो तूफान में तितर बितर होती, टूट जाती, बिखर जाती फिर दोबारा से अपने आप को खड़ा करने की कोशिश करती। पर शायद इस बार नहीं.........
इस बार का तूफान उसे जड़ से उखाड़ने ही आया था।
एक दिन दोपहर के समय मालती और रमा जी खाना खाने बैठी तो अचानक मालती को उबकाई आनी शुरू हो गई, वो तुरंत नाली की ओर भागी जैसे उल्टी सी आ रही हो पर उल्टी आई नहीं और थोड़ा सर चकराने सा लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था ये क्या हो रहा है, वो वहीं नाली के पास अपना सर पकड़ कर कुछ देर तक बैठी रही।
कुछ देर बाद जब कुछ सामान्य हुआ तो वो वापस खाना खाने आई, उसे देख कर हैरानी हुई हमेशा उसकी संवेदनशील सास बजाय उससे उसका हाल पूछने के मंद मंद मुस्कुरा रही थी। उसे देख कर बड़ा अजीब महसूस हुआ, वो सवालिया निगाहों से रमा जी को देखने लगी।
उसकी सास अभी भी धीमे धीमे मुस्कुरा रही थी।
माजी आप..... उसने पूछने के लिए मुंह खोला ही था, कि रमा जी ने मुस्कुराते हुए कहा बेटा मुझे लगता है तेरा पैर भारी हो गया है।
पर कैसे, कब, तुमने मुझे बताया ही नहीं, तुम्हारी और रमेश की कब सुलह हुई.....
खैर जाने दे.... पति पत्नी के बीच की बात है.... मुझे क्यूं बताने लगी तू.... अगर जी अभी भी मिचला रहा है तो थोड़ा आम का अचार मुंह में रख ले, अच्छा लगेगा.... ये सब तो ऐसे समय में होता ही है..... और आज से अपना ज्यादा ख्याल रखना.... कोई बोझ नहीं उठाना.... चिंता मत करना.... उदास भी मत रहना... कल रमेश को बोल कर तुझे डॉक्टर के पास ले चलूंगी..... रमा जी की खुशी उनके मन में समा ही नहीं रही थी..… आने दे रमेश को आज कान खीचूंगी उसके..…. कहते कहते वो उठ कर दूसरे कमरे में चली गई जहां दीनानाथ जी आराम कर रहे थे, और झटपट खुशखबर उन्हे भी सुना दी।
मालती को कुछ समझ नहीं आ रहा था, कैसे पूरी सच्चाई उन दोनो को बताए, कैसे समझाए क्या हुआ था, कैसे कहे कि उनका बेटा आज भी उससे उतनी ही नफरत करता है जितनी पहले दिन से की।
फिर मन कहता शायद बच्चे के आने से ही उसे रमेश का थोड़ा स्नेह और विश्वास मिल जाए, शायद ये बच्चा ही उसकी किस्मत संवार दे। उसने सुना था हर आने वाला बच्चा अपने साथ अपनी किस्मत लेकर आता है।
शायद उसका बच्चा भी अपने साथ साथ अपनी मां का भाग्य भी चमका दे।
आशा और निराशा के बीच झूलती मालती को अभी भी समझ नहीं आ रहा था, कि इस खबर से उसे खुश होना चाहिए या दुखी।
इस बीच दीनानाथ जी ने आकर उसे बधाई दी और बहुत सी हिदायतें भी। उनकी वाणी में एक पिता का स्नेह और एक दादा का प्रेम उमड़ा पड़ रहा था।
मालती को इसी बात से बहुत सुकून था की उसके सास और ससुर उसे अपनी बेटी की तरह ही मान देते थे।
अब बस इंतजार था उसके पति रमेश का.... और एक उम्मीद भी.......

आभार – नवीन पहल – २८.०६.२०२२ ❤️🙏🏻👍💐

# नॉन स्टॉप २०२२ 

क्रमश:

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6 Comments

Parangat Mourya

13-Feb-2023 10:16 PM

Perfect ❤️

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Seema Priyadarshini sahay

01-Jul-2022 10:48 AM

बेहतरीन

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Pallavi

29-Jun-2022 06:36 PM

Nice episode

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