Shaba

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लाल रंग


"सुबह-सुबह धरम भ्रष्ट कर दिया हमारा। तुझे समझाया था कि सबसे दूर किसी कोने में चारपाई डाल के रह। लेकिन नहीं! अरे! हमारी बात सुनता कौन है? इन बूढ़ी हड्डियों में शक्ति कम हो गई तो क्या हमारी इज्जत भी कम हो गई इस घर में।" सुबह तड़के ऊॅ॑ची आवाज में चिल्लाती हुई कमला माॅ॑ बोली।

उनकी तेज आवाज को सुनकर कावेरी रसोई से दौड़ती हुई बाहर आई। उसने देखा कि उसकी सास उसकी १३ वर्षीय बेटी महिमा को ताने-उलाहने देते हुए लगभग चिल्ला रही थीं। वहीं दूसरी तरफ डरी-सहमी महिमा एक कोने में दुबकने की कोशिश कर रही थी। 

"क्या हुआ माॅ॑जी?" डरी-सहमी महिमा पर एक नज़र डालते हुए कावेरी ने कहा।

"होगा क्या? कितना समझाया है तेरी बेटी को कि इन दिनों में सबसे दूर रहा कर। अरे! छूत के समान होते हैं ये दिन। पर ये माने तब ना। स्नान करके बैठे थे माला जपते। मुॅ॑ह उठाकर आ गई और छू लिया हमें। अब दुबारा स्नान करना पड़ेगा।" उसी उलाहना भरे स्वर में कमला माॅ॑ बोली।

"क्षमा कर दें माॅ॑जी! उसे अभी इन सबका ध्यान नहीं है। उसके लिए सब नया है ना। समझ जाएगी।" कावेरी याचना भरे स्वर में बोली।

"समझा दे अच्छी तरह। फिर से ये गलती होनी नहीं चाहिए। अब बच्ची ना रही वो। उछलने-फुदकने के दिन गए अब उसके। और हाॅ॑! एक बात और। उसे बता दियो स्नान करने बाथरूम में ना जाएगी। उधर कुऍ॑ के पास जो कपड़े का घेरा है, वही उपयोग करेगी।" कमला माॅ॑ ने हिदायत देते हुए कहा।

कावेरी ने उनके सामने सहमति में अपना सिर हिलाया और फिर महिमा की ओर देखा। रोआंसा चेहरा लिए वो चुपचाप खड़ी थी। कावेरी ने उससे कुछ कहना चाहा तो वो तेजी से अपने कमरे में चली गई। कावेरी भी उसी तेजी से उसके पीछे-पीछे गई। अंदर कमरे में खिड़की के पास खड़ी महिमा सहमी सी खड़ी थी। उसके दिल का दर्द उसके चेहरे के दर्द के साथ मिल गया था। अचानक उसका हाथ उसके पेट की ओर गया और उसके चेहरे पर दर्द की एक तेज लहर आकर रूक गई। उसने अपनी ऑ॑खों को उस दर्द की अधिकता में भींच लिया था। उसकी हालत देखकर कावेरी एक बार फिर तेजी से उसकी ओर बढ़ी। मगर वो कुछ बोल पाती, उससे पहले ही उसकी सास की तेज आवाज बाहर से आई,

"अरे ओ नाशपीटी! बिस्तर में ना चढ़ जाना, वरना वो भी अशुद्ध हो जाएगा।" 

उनकी बात सुनकर दोनों माॅ॑-बेटी की नज़रें दरवाजे के बाहर चली गई, जहाॅ॑ कमला माॅ॑ अभी भी बड़बड़ा रही थी। 

"दर्द हो रहा है?" कावेरी ने महिमा के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा।

"हाॅ॑ माॅ॑! पर शरीर से ज्यादा मन दर्द से बिलख रहा है।" महिमा ने कहा।

"क्या हुआ बेटा?" माॅ॑ ने प्यार से पूछा।

"मेरा मन दुविधाग्रस्त है माॅ॑।"

"कैसी दुविधा?"

"माॅ॑! रजस्वला होना किसी लड़की के लिए अच्छा है या बुरा?" महिमा ने अपनी माॅ॑ की ऑ॑खों में झांकते हुए सवाल किया।

"मतलब!"

"दो दिन हो गए माॅ॑। जब से मैं इन दर्द भरे दिनों को सहन कर रही हूॅ॑, दादी मुझसे किसी अछूत की तरह व्यवहार कर रही है। इन परिस्थितियों में जब मेरा शरीर इस दर्द से जूझ रहा है, मेरा मन भी उतना ही घायल हो गया है। फिर तो ये बुरा.... बहुत बुरा हुआ ना। फिर मेरी हालत के बारे में जानकर मालती दीदी ने मुझे बधाई क्यों दी? उन्होंने कहा कि मेरे शरीर से निकला ये लाल रंग मेरे सौभाग्य की निशानी है, जो उनके नसीब में नहीं था और जिसकी वजह से उन्हें जिंदगी में अनचाहे समझौते करने पड़े। और... सौभाग्य तो अच्छा होता है। बस इसी अच्छे और बुरे में मन उलझा हुआ है।

"कुछ दुविधाओं की किस्मत में सुलझन नहीं होती बेटा!" कावेरी ने उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा।

"पर क्यों माॅ॑? दो दिन पहले तक मेरे लिए सब कुछ सामान्य था। अचानक एक ही दिन में सब बदल गया। ये मत करो! वो मत करो! इसे मत छुओ। पौधों को पानी मत दो। अब तुम बड़ी हो गई। एक ही दिन में कैसे बड़ी हो गई मैं माॅ॑? मेरी दोस्त श़िफ़ा के साथ भी ऐसा ही हुआ दो महीने पहले। उसके घर में भी यही सब हो रहा था। तब हमारी टीचर ने बताया था कि इन दिनों हमें ज्यादा पोषण, देखभाल और प्यार की जरूरत होती है। पर ऐसे माहौल में मैं किससे इन सब की उम्मीद कर सकती हूॅ॑।" महिमा ने रोष भरे स्वर में कहा।

"मुझसे कर सकती हो।"

इस आवाज को सुनते ही दोनों की नज़रें दरवाजे की ओर गई, जहाॅ॑ महिमा का २० वर्षीय भाई विशाल खड़ा हुआ था। उसे वहाॅ॑ खड़ा देखकर कावेरी बुरी तरह झेंप गई।

"तू यहाॅ॑ क्या कर रहा है? ये सब तेरे मतलब की बातें नहीं है। जाओ यहाॅ॑ से!" कावेरी ने झेंपी हुई आवाज में उसे डांटते हुए कहा।

"क्यों? जो बात मेरी बहन के दर्द से जुड़ी हुई है, वह मेरे मतलब क्यों नहीं है? विशाल ने कहा।

कावेरी और कुछ कहती उससे पहले ही विशाल आगे बढ़कर महिमा के पास पहुॅ॑च गया और उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया। महिमा कौतूहल भरी ऑ॑खों से अपने भाई को देख रही थी।

"महिमा! एक बात याद रखो। रजस्वला होना ना तो शर्म की बात है और न ही बुरी बात है। इससे यह तय नहीं होता कि तुम क्या नहीं कर सकती हो, बल्कि यह तय होता है कि तुम क्या कर सकती हो! तुम एक जीवन को जन्म दे सकती हो और यह कोई आसान काम नहीं है। शक्ति का रूप होती है माॅ॑ और माॅ॑ बन सकता बुरा कैसे हो सकता है? है ना!" विशाल ने महिमा के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा।

"विशाल! अपनी मर्यादा में रहो। एक भाई अपनी बहन से इस तरह की बातें नहीं कर सकता।" कावेरी ने विशाल को फिर से डांटते हुए कहा।

"क्यों नहीं कर सकता! यह कोई ढकी छिपी हुई बात तो है नहीं। सब जानते हैं इसके बारे में। तो बात क्यों नहीं कर सकते। क्यों हम लड़कियों को, औरतों को वो माहौल नहीं दे सकते, जिसमें वो खुलकर साॅ॑स ले सके। मैं धार्मिक नियमों और निषेधों की बात नहीं करता, पर हम अपने सामाजिक और पारिवारिक नियमों में तो इतना लचीला पन ला सकते हैं, जिससे औरतों की जिंदगी सरल और सहज हो सके।" विशाल आवेशित स्वर में बोला।

"पर ऐसा नहीं होता है।" एक बार फिर आपत्ति जताते हुए कावेरी बोली।

"पहले नहीं हुआ...  तो अब होगा। कल सारी रात उसने कराहते हुए गुजार दी और आपने सुनकर भी अनसुना किया होगा। ये सोचकर कि ये तो औरतों की नियति है और... आपने भी तो ये सब झेला है, तो उसे भी झेलना होगा। मालती दीदी को इसी कमी के कारण एक विधुर और दो बच्चों के पिता से विवाह के लिए बाध्य होना पड़ा। उस समय छोटा था मैं, इसलिए विरोध नहीं कर सका। पर अपनी दूसरी बहन को दकियानूसी विचारों का दर्द नहीं सहने दूॅ॑गा। इन हालातों में उसे जिस प्यार और देखभाल की जरूरत है वो उसे मैं दूॅ॑गा। मैं उसका मन छलनी होने से पहले ही उसे संभाल लूॅ॑गा। आप अपने संकीर्ण दायरों में ही रहिए, पर मैं वो दायरा लांघकर आगे बढ़ चुका हूॅ॑। और बस बहन ही नहीं... विवाह पश्चात अपनी पत्नी के साथ भी मेरा यही व्यवहार होगा, क्योंकि हमारे जीवन को बनाने और सॅ॑वारने वाली औरतें इसकी हकदार हैं।" उद्वेलित होता हुआ विशाल बोला।

कावेरी ने कुछ कहने की कोशिश की, पर कह ना सकी। उनको इस तरह से देखकर विशाल ने कहा, " एक बात सच-सच बताना माॅ॑! क्या अपने उन तकलीफ भरे दिनों में आप कम से कम पापा से अतिरिक्त प्यार और देखभाल की अपेक्षा नहीं रखती थीं। आपकी नहीं चाहती थी कि पापा आपकी तकलीफ... को दर्द को समझें।" 

उसकी बात सुनकर कावेरी की ऑ॑खें हैरत से फैल गईं। एक-दो क्षण विशाल की ऑ॑खों में देखने के बाद उन्होंने अपनी नजरें नीचे झुका ली। विशाल ने उन पर व्यंग्य भरी एक तिरछी मुस्कान डाली और फिर महिमा की ओर मुड़ा।

"मेरी यह बात गाॅ॑ठ बाॅ॑ध लो महिमा। ये लाल रंग शर्म, बुराई या कमजोरी की निशानी नहीं है, बल्कि तुम्हारे शक्तिशाली होने का द्योतक है। वो शक्ति जो इस संसार में जीवन को जन्म देकर संसार को बनाती है। इस पर हमेशा गर्व करो, क्योंकि कई बार मालती दीदी जैसी कई औरतें भी इस सौभाग्य से वंचित रहती हैं। रही दर्द, असुविधा और साथ की बात, तो उसके लिए तुम्हारा भाई है।" विशाल ने मालती को स्नेह से देखते हुए कहा।

विशाल के प्रेम से अभिभूत महिमा उससे लिपट गई। कावेरी चुपचाप भाई-बहन को देख रही थी। साथ ही दरवाजे पर उनके पिता भी नि:शब्द खड़े थे। औरतों की इज्जत करना है, तो यकीनन पहले उनके दर्द को समझिए। विशाल ने तो छोटी सी शुरुआत अपने घर से कर दी। समय आ गया कि दूसरे भी इस तरह की शुरुआत करें, ताकि एक औरत का दर्द सभी महसूस कर सकें।



समाप्त।

Shaba


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3 Comments

Alisha ansari

31-Jul-2021 11:14 AM

Bahut badiya

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Seema Priyadarshini sahay

30-Jul-2021 10:53 AM

अच्छी सोच वाली कहानी आपने लिखी।बहुत सारी शुभकामनाएं

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🤫

30-Jul-2021 10:09 AM

एक कहानी मे कई सारे संदेश, मासिक धर्म कोई अभिशाप नही बल्कि एक वरदान है, आज के समय काफी बदलाव आया है इस विषय मे लोगो की मानसिकता मे। लेकिन अभी भी कहीं न कहीं ये विषय विचार करने योग्य है।अच्छी कहानी है शबा जी

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