Add To collaction

परिस्थिति-बदलाव

बदलाव के लिए 

तर्क वितर्क इंसानो
किस आधार पर करते हो
गलत होती जो चीज 
अक्सर दूसरों के लिए 
उसे ही अपने लिए सही कहते हो।। 

अपनों की 
खुशी के लिए 
तुम सही गलत भूल जाते हो 
वेदना को
अक्सर बेगानों के 
सीमाओं की परिधि में बांध जाते हो।। 

मुझ में 
नापसंद जो चीज तुम्हें 
तुम भी कुछ वैसा ही कर जाते हो
समकक्ष नहीं पाते तुम
अपने को जब अक्सर 
औरों पर इल्जाम लगा कैसी संतुष्टि पाते हो।। 

खुद ही 
भ्रम का जाल बुनते 
मकड़ी के जैसे आतुर हो
पीड़ा में तेरी 
दिया हो साथ जिसने अक्सर 
उसकी बारी आए तो दिल खोल के हंसते हो।। 

वैभव देख 
दूसरों का..2 इतनी ईष्या
कहां से जुटाते फिरते हो
दस्तक देती 
ऐसी ही संपन्नता खुद के घर पर अक्सर 
क्या हृदय में तब भी तुम अपने इतनी ही जलन मचाते हो।।

   20
11 Comments

Seema Priyadarshini sahay

01-Jul-2022 10:39 AM

बहुत खूब

Reply

Gunjan Kamal

30-Jun-2022 12:27 AM

बेहतरीन अभिव्यक्ति

Reply

Saba Rahman

30-Jun-2022 12:09 AM

Nice

Reply