सिनेमा टोक लेखांक 7, शोले भाग-4, नॉन स्टॉप राइटिंग चेलेन्ज भाग-12
सिनेमा टोक भाग-7, शोले भाग-4 नोनस्टोप राइटिंग चेलेंज भाग-12
SHOLAY
हेल्लो दोस्तो,
शोले के चौथे और अंतिम भाग मे हम बात
करेंगे दो अमिताभ बच्चन की बाकी रही बातो से...आइये शुरु करते है...
हमने अभी तक पढा की अमिताभ बच्चन के
बुरे दिनो मे कोइ फिल्म नही चल रही थी। 1995 मे एक फिल्म कम्पनी बनाइ गइ जिन का
नाम था ए.बी.सी.एल. अमिताभ बच्चन कोर्पोरेशन लिमिटेड। इस कम्पनी का काम था फिल्म
प्रोडक्शन और इवेंट मेनेजमेंट का। इस कम्पनी ने ही ‘म्रुत्युदाता’ फिल्म बनाइ थी
लेकिन इस से पहले 1996 मे एक फिल्म के लिये ओडिशन लिये गये। उन ओडिशन मे से कुछ
कलाकारो को सीलेक्ट किया गया जिन मे थे अर्शद वारसी (सर्किट), चन्द्रचुरसिंघ
(आर्या वेब सीरीज मे सुश्मिता सेन के पति जो बनते है जिस का पहले पार्ट मे ही
मर्डर हो जाता है वो किरदार), प्रिया गील और सिमरन। इन कलाकारो को लेकर एक फिल्म
बनाइ गइ ...’तेरे मेरे सपने’...ये फिल्म काफी सुन्दर और सुपरहिट रही थी। इस फिल्म
के बारे मे कुछ बताता हु।
आप को जानकर आश्चर्य होगा की अर्शद
वारसी जो खुद एक अच्छे डान्सर है उस को कभी ऐसा रोल नही मिला जो वो बखुबी नीभा
पाये। लेकिन इस फिल्म मे काफी अच्छा रोल मिला था और उस के सामने एक्ट्रेस
थी...’सिमरन’। इन दोनो पर एक गीत फिल्माया गया...’आख मारे लडका आख मारे’। इस गीत
का रीमैक सोंग फिल्म ‘सिम्बा’ मे रणवीर सिन्ह और सारा अलीखान पर फिल्माया गया है।
बाद मे ये एक्ट्रेस ‘सिमरन’ बोलीवुड
मे नही चली लेकिन साउथ फिल्मो मे ‘सिमरन’ सुपरस्टार बन गइ थी। सिमरन ने अपने वक़्त
के साउथ के अल्मोस्ट सारे सुपरस्टार के साथ काम किया है। अब वो रीटायर्ड हो गइ है।
सिमरन के नाम से कही मन्दिर भी बनाया गया है।
ठीक वैसे ही प्रिया गिल की भी कुछ
फिल्मे आइ लेकिन वो भी नही चली। चन्द्रचुर सिंघ की भी ज्यादा फिल्मे नही चली।
‘जोश’ नाम की एक फिल्म आइ थी जिस मे शाहरुख खान और एश्वर्या राइ थे। इस फिल्म मे
ये दोनो भाइ-बहन है और ऐश्वर्या राइ के सामने हीरो ये चन्द्रचुर सिंघ था।
खैर हम बात कर रहे है ‘ए.बी.सी.एल.’
की। इस कम्पनी ने एक मशहुर कोमेडी सीरियल भी बनाइ जिस को जया बच्चन ने प्रोड्युस
किया था। ‘देख भाइ देख’ नाम की ये सीरियल काफी सुपर हीट रही थी।
इस कम्पनी ने 1996 की ‘मिस वर्ल्ड’
प्रतियोगिता भी बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम मे आयोजित किया था और काफी सफल
संचालन अमिताभ बच्चन ने कर दिखाया था। लेकिन ए.बी.सी.एल. के सी.इ.ओ. श्री संजीव
गुप्ता कम्पनी छोड के कोकाकोला के साथ जुड गये और दुसरे भी कइ वजह से ए.बी.सी.एल.
कम्पनी घाटे मे चली गयी, उतना ही नही अमिताभ बच्चन बेंकरप्ट हो गये। उस समय
अम्बाणी परिवार के धीरुभाइ अम्बाणी ने अमिताभ बच्चन को काफी मदद कर दी थी (इस का
जिक्र खुद अमिताभ बच्चन ने किया है वो विडियो आप सोशियल मीडीया मे देख सकते है)।
‘पा’, ‘बुढ्ढा होगा तेरा बाप’ जैसी फिल्मे इस कम्पनी के द्वारा बनाइ गइ, लेकिन बात
नही बनी। आज भी ये कम्पनी अस्तित्व मे है लेकिन घाटे मे चल रही है।
लगातार हार से आखिर अमिताभ ही नही
बल्की जया बच्चन को भी फिर से बोलीवुड मे आना पडा और कुछ फिल्मे करनी पडी। फिर भी
इतना भारी नुकसान हो रहा था की कही से भी सफलता नही मिल पा रही थी। यहा तक की अमिताभ
को अपने दो फ्लेट्स और ‘प्रतीक्षा’ बंगलो तक गीरवी रखना पडा।
आखिर मे अमिताभ यशराज फिल्म्स के जाने
माने डायरेक्टर यश चोपरा से मिले और अपने लिये स्पेशयल स्क्रिप्ट लिखने के लिये
रीक्वेस्ट किया। उस समय यशराज बेनर मे शाहरुख खान जुडे हुवे थे। आखिर मे एक दमदार
रोल यश चोपरा ने बनाया और फिल्म मे शाहरुख खान, ऐश्वर्या राइ और तीन नये एक्टर्स
और तीन नयी एक्ट्रेस...जिस मे... जुगल हंसराज के सामने किम शर्मा, जिम्मी शेरगील
के सामने प्रीती और यश चोपरा ने अपने छोटे बेटे उदय चोपरा को लौंच किया सामने
एक्ट्रेस थी शिल्पा शेट्टी की बहन शमिता शेट्टी और एक बेहतरीन फिल्म बनाइ
‘मोहब्बते’.... ये बात है 1999 की जब ये फिल्म बन रही थी आदित्य चोपरा के
दिग्दर्शन मे और साथ साथ अमिताभ को अमेरीका मे बहुत मशहुर टीवी शो ‘व्हू वील बी
मिलियोनेर’ का भारतीय वर्जन ‘कौन बनेगा करडपति’ को होस्ट करने का सौभाग्य प्राप्त
हुवा। 2009 मे ‘बीग बोस’ के होस्ट भी रह चुके है।
एक तरफ महोब्बते सुपर डुपर हीट रही और
कौन बनेगा करोडपति ने तो पिछले 22 साल से इतिहास बना लिया है।
और फिर से ‘बिग बी’ का घोडा दौड पडा
जो लगातार चल रहा है। बाद मे तो अमिताभ बच्चन ने पिछे मुडकर नही देखा और एक के बाद
एक सुपर हिट फिल्मे दे रहे है। ‘बागबान’, ‘ब्लेक’, ‘बंटी और बबली’, ‘सरकार’, ‘चीनी
कम’, ‘पीकु’, ‘भुतनाथ’, ‘पा’ वगैरह फिल्मे लगातार हीट हो रही थी। 2013 मे होलीवुड
मे भी अमिताभ बच्चन ने ‘ध टाइटेनिक’ फेइम ‘लीयोनार्दो डी केप्रियो’ के साथ ‘ध
ग्रेट गेट्सबाय’ नाम की फिल्म भी करी। इस फिल्म मे अमिताभ ने गेस्ट रोल किया था।
2014 मे सोनी टीवी ने अमिताभ को लेकर एक सीरीयल भी बनाइ जिस का नाम था ‘युद्ध’।
वैसे ये चली नही थी लेकिन अमिताभ का रोल काफी चर्चा मे रहा था। इस के अलावा अमिताभ
ने अनगिनत फिल्मो मे नेरेटर (बेकग्राउंड वोइस आर्टिस्ट) रह चुके है जिस मे ‘लगान’,
‘बावर्ची’, ‘तेरे मेरे सपने’ वगैरह प्रमुख है।
एक दौर था की ‘अन्धा कानून’, गीरफतार
और ‘हम’ फिल्म मे अमिताभ सह कलाकार रजनीकांत और गोविन्दा पर छाये हुवे थे तो दुसरी
ओर अपने खराब दीनो मे अमिताभ को गोविन्दा के पास जाना पडा और एक फिल्म करने के
लिये रीक्वेस्ट की जिन का नाम था ‘बडे मिया छोटे मिया’। उस समय गोविन्दा की फेमिली
मे लगातार एक के बाद एक मौत हो रही थी तो गोविन्दा बिलकुल कोमेडी रोल के मुड मे
नही थे। लेकिन केवल अमिताभ की रिक्वेस्ट पर ये फिल्म बीना स्क्रिप्ट पढे कर ली।
सेट पर गोविन्दा आते थे तब उन्हे पता लगता था की कौन सा सीन और कौन से डायलोग
बोलने है। और ये फिल्म सुपर हिट साबित हुइ। इस फिल्म मे अमिताभ के सामने मुख्य
हीरोइन थी ‘रम्या’ जो बाद मे साउथ की सुपरस्टार बनी और बाहुबली फिल्म मे ‘शिवगामी’
के रोल से अमर हो गइ। ‘बडे मिया छोटे मिया’ अब दुबारा भी बन रही है।
आज भी 79 साल की उम्र मे अमिताभ की
‘ब्रह्मास्त्र’. ‘प्रोजेक्ट ए’, ‘उचाइ’, ‘गुडबाय’, ‘रणभूमी’, ‘हसमुख पिघल गया’,
‘शूबाइट’, ‘टाइम मशिन’, ‘आखे-2’, ‘ध लीजेंड ओफ कुणाल’, ‘बुद्धम शरणॅम गच्छामी’
वगैरह फिल्मे आनेवाली है।
एक रसप्रद कहानी ओर भी है। एक ही नाम
से बनी दो या तीन बार फिल्मो मे अमिताभ को काम करने को मिला है। जैसे फिल्म
‘आखे’.....’आखे’ फिल्म आज तक तीन बार बन चुकी है और तीनो की तीनो सुपर हीट रही है।
1. आखे मे धर्मेन्द्र और माला सिन्हा थे जो सस्पेंस थ्रीलर थी, 2. आखे मे
गोविन्दा, कादरखान डबल रोल मे थे वो कोमेडी सस्पेंस थी और तीसरी आखे मे अमिताभ,
अक्षय कुमार, सुश्मिता सेन, अर्जुन रामपाल, जोनी लीवर वो सस्पेंस थ्रीलर थी। तीनो
सुपरहीट रही है।
एक और फिल्म है ‘दीवार’... ये फिल्म
दो बार बनी है। दोनो मे अमिताभ है। दोनो हीट रही है। अमिताभ के सिवा केवल एक ही
कलाकार है जिस ने अपनी केरियर मे एक ही नाम से बनी दो फिल्मे करी और वो है संजय
दत्ता। संजु ने फिल्म ‘हथ्यार’ दो बार की है। देखने की बात ये है के ये दोनो
कलाकार अमिताभ बच्चन और संजय दत्त ऐसी एक फिल्म मे साथ साथ है...’दीवार’ मे।
अपने राजनीती के बुरे कार्यकाल के
दौरान उत्तर प्रदेश की ‘समाजवादी पार्टी’ के प्रमुख ‘अमरसिंघ’ के साथ फिर से
राजकिय कारकीर्दी शुरु की....लेकिन इस बार जया बच्चन आगे आइ जो आज तक सिलसिला जारी
है। एक दौर था की अमरसिंघजी अमिताभ को अपना भाइ समजते थे। लेकिन कहते है ना की
राजकारण मे कोइ हमेशा भाइ या दोस्त नही रहता। अमिताभ की पब्लीसीटी को केश करने के
चक्कर मे अमरसिंघ ने बहुत फायदा उठाया और आखिर मे ये दोस्ती भी तुटी। आज तो
अमरसिंघ नही रहे लेकिन अमरसिंघ के आखरी दिनो मे अमिताभ को काफी खरी खोटी सुननी पडी
थी। समाजवादी पार्टी के लिये अमिताभ ने काफी प्रदर्शन और एडॅवरटाइजमेंट की और एक
बार अपने आप को यु.पी. का किसान भी बना लिया जिसे हाइकोर्ट मे नकारा गया था।
इस के अलावा अमिताभ बच्चन कइ विवादो
मे फसे थे, है और फसते रहे है। जिस का जिक्र करना यहा उचित नही समजता हु।
अमिताभ बच्चन को मिले एवार्डॅ के लिये
एक और आर्टिकल बन सक्ता है इसिलिये एक लिंक देता हु आप खुद देख लो कितने एवोर्ड्स
मिल चुके है...
https://www.imdb.com/name/nm0000821/awards
अमिताभ बच्चन को 1984 मे ‘पद्म्श्री’ 2001 मे ‘पद्म भुषण’ और 2015 मे ‘पद्म विभुषण’ से सन्मानित किया गया है। इतना ही नही उन्हे मिलेनियम सुपरस्टार का बिरुद मिला हुवा है। 2008 मे ‘पेटा’ द्वारा कंटेस्टॅ पोल मे ‘एशिया’स सेक्षीएस्ट वेजीटेरियन मेल’ का खिताब मिला हुवा है। नोर्थ सिक्किम मे एक जिले मे पानी का धोध है उन का नाम ‘अमिताभ बच्चन फोल्स’ दिया गया है। फ्रांस के ‘देउविल्ले’ मे अमिताभ बच्चन को आजिवन सीटीजनशीप मिली हुइ है। 1991 की फिल्म ‘खुदा गवाह’ के शुटिंग के दौरान अफघानिस्तान सरकार के द्वारा ‘ओर्डॅर ओफ अफघानिस्तान’ से सन्मानित किया गया है। 2002-2003 मे मध्य प्रदेश सरकार ने अमिताभ बच्चन को ‘राष्ट्रिय किशोरकुमार एवार्ड’ से नवाजित किया गया है। 2014 मे ‘ला ट्रुब युनिवर्सिटी’ ओस्ट्रेलिया ने अमिताभ बच्चन के नाम से स्कोलरशिप शुरु की है। इलाहाबाद मे अमिताभ के नाम से रोड और एक स्पोर्ट्स कोम्प्लेक्ष भी है। ‘साइफइ इटावा’ मे उन के नाम से एक ‘अमिताभ बच्चन गवर्नमेंट इंटॅर कोलेज’ भी है।
अमिताभ बच्चन के नाम से 7 बायोग्राफी
बनी हुइ है।
1.
अमिताभ
बच्चन: ध लीजेंड 1999
2.
टु बी ओर
नोट टु बी: अमिताभ बच्चन 2004
3.
एबी: ध
लीजेंड (अ फोटोग्राफर्स ट्रिब्युट) 2006
4.
अमिताभ
बच्चन: एक जीवंत किवंदती 2006
5.
अमिताभ:
ध मेकिंग ओफ अ सुपरस्टार 2006
6.
लुकिंग
फोर ध बीग बी: बोलीवुड, बच्चन एंड मी 2007
7.
बच्चनालीया
2009
7.
अमिताभ बच्चन को मेहंगे शुट, मेहंगी कार के साथ साथ मेहंगी पेन का काफी शौख रहा है। ‘पार्कर’ के वो ब्रांड एम्बेसेडर रह चुके है। इसिलिये पार्कर कम्पनी अपनी हर नही पेन की लौंचिंग पर एक पेन अमिताभ बच्चन को गिफ्ट करती है। लेकिन इन सब पेनो मे सरताज है ‘मोंटब्लैंक होनोर डी बाल्ज़ाक’ जो सीमित संस्करण की कलम इसी नाम के प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक को श्रद्धांजलि देती है। इस पेन के लिये अमिताभ बच्चन ने इस पेन के लिये जो कीमत चुकाइ थी वो थी रुपये 67,790/-। इस के अलावा भी जो पेन का संग्रह उन के पास है उन की कीमत करोडो मे है। शहेनशाह शैली से जीवन व्यतीत करने वाले इस कलाकार के पास 13.16 करोड की कीमत की ग़ाडीयो का कलेक्शन है। रणबीर कपूर को अमिताभ बच्चन ने एक घडी गीफ्ट की थी जिन की कीमत थी 50 लाख।
मैने पहले भी लिखा है की अमिताभ बच्चन
के बारे मे आर्टिकल लिखना मतलब आइना दिखाने के बराबर है। फिर भी जितना हो सका उतना
बताने का प्रयास किया है। अमिताभ बच्चन की कुछ ऐसी स्टाइल है जो दुसरे लोग के लिये
करना बहुत दुर की बात है। जैसे शराबी की एक्टिंग, फिल्मो के दौडते हुवे अमिताभ को
देखो...ऐसी दौड केवल मैने शाहरुख खान मे देखी है....अमिताभ बच्चन वो शख्स है जो
मरकर भी जीन्दा हुए है जैसे फिनिक्स पक्षी....घडी, पेन और कीमती कपडो के शौखीन स्टायलिस्ट
एंड ध लीवींग लीजेंड अमिताभ बच्चन के बारे मे बस इतना ही और अब आते है ‘शोले’
पर....
1.
स्क्रिप्ट
और किरदार:
शोले फिल्म की स्क्रिप्ट सलीम-जावेद
ने केवल चार लाइन की लिखी थी जिसे प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाइ ने सीधा नकार दिया
था। ‘जंजीर’ जब बन रही थी तब सलीम-जावेद जी.पी. सिप्पी और रमेश सिप्पी के संपर्क
मे आये और उन्हे ये स्क्रिप्ट अच्छी लगी। उस चार लाइन की स्क्रिप्ट मे सलीम-जावेद
ने लिखा था की एक आर्मी ओफिसर अपने फेमीली की हत्या का बदला लेने के लिये दो एक्ष-सोल्जर्स
को भाडे पे ले आते है। रमेश सिप्पी को लगा की इस के लिये आर्मी की परमिशन और
शुटिंग मे बाधाये आ सकती है...और इसिलिये आर्मी ओफिसर की जगह पुलिस ओफिसर का चुनाव
कर लिया गया और एक्ष-सोल्जर्स की जगह दो आवारा बदमाश गुंडे जय और वीरु हो गये।
सलीम-जावेद ने केवल एक महिने मे पुरे स्क्रिप्ट उर्दु मे लीखी और एक एक पात्र के
नाम अपने दोस्तो, पहेचानवालो के डाल दिये। उर्दु स्क्रिप्ट को उन के आसिस्टंट ने
देवनागरी मे ट्रांसलेट कर दिया। अब बात करते है ये स्क्रिप्ट सलीम-जावेद को हाथ
कैसे लगी?
1954 मे उस समय के प्रख्यात दिग्दर्शक
अकीरा कुरोसावा जो समुराइ पर फिल्मे बनाते थे उन की फिल्म थी ‘सेवन समुराइ’ जो कुछ
इसी सीमीलर विषय पर ही बनी थी। इस फिल्म से सलीम-जावेद ने मुल स्क्रिप्ट उठाइ। इस
फिल्म मे डकैत वाला विषय इंडो-वेस्टॅर्न पर बना दिया जिस मे मेहबूब खान की ‘मधर
इंडिया’, दीलीप कुमार की ‘गंगा जमुना’ और विदेशी फिल्मे सर्गीयो लीयोन की
‘स्पाघेटी वेस्टर्न’, 1968 की वंन्स अपोन अ टाइम इन ध वेस्ट, 1960 की ‘ध
मेग्नीफिसंन्ट सेवन, 1971 की विनोद खन्ना और धर्मेन्द्र की ‘मेरा गाव मेरा देश’
(जिस मे विनोद खन्ना डाकु थे और उन का नाम था जब्बारसिंघ), 1973 की फिरोज खान की
‘खोटे सिक्के’ इन सब फिल्मो मे से कुछ कुछ मसाला उठाया और शोले मे डाल दिया गया।
ट्रैन का जो द्रश्य शोले मे है वो ‘गंगा जमुना’ की देन है। 1959 मे ‘नोर्थ वेस्ट
फ्रंटियर’ नाम की फिल्म है उन मे भी जो ट्रैन लुट का सीन है उस पर से भी शोले मे
ट्रैन का सीन फिल्माया गया। ठाकुर के फेमिली की हत्या का सीन वन्स अपोन अ टाइम इन
ध वेस्ट से लिया गया है।
इतना ही नही कइ द्रश्य फिल्मे 1969 की
‘वाइल्ड बंच’, 1973 की ‘पेट गेरेट एंड बीली ध किड’, 1969 की ‘बच केसीडी एंड ध
सुदान’स किड’ से लिया गया है। गब्बरसिंघ
का किरदार 1950 के आसपास ग्वालियर मे एक मशहुर डाकु गब्बरसिंघ के नाम से लिया गया
है। कीसी पुलिस का नाक और कान काटकर इस गब्बरसिंघ डाकु ने चौराहे पर लटकाया था
पुलिस को वोर्निंग देने के लिये उस हादसे को शोले मे ठाकुर के हाथ काटकर दिखाया
गया है। पाकिस्तानी मशहुर लेखक इब्न-ए-सफी की उर्दु नोवेल से भी गब्बर के कइ
कारनामे फिल्माये गये है। फिल्म ‘गंगा जमुना’ मे दीलीप कुमार ने जो खरीबोली और
अवधी भाषा का प्रयोग किया था उसी भाषा को गब्बर के डायलोग मे लिया गया है। एक
सामान्य इंन्सान डाकु से त्रस्त होकर कैसे आग मे जलता है और ये सामाजिक मुद्दा
रमेश सिप्पी को शोले मे लेना था इसिलिये गब्बर और ठाकुर का रोल इसी तरह बनाया गया।
गब्बर के रोल के लिये रमेश सिप्पी ने उस समय के डाकु के परिवेश धोती और पगडी, माथे
पर तिलक और ‘मा भवानी की कसम’ वगैरह की छोड के उस की जगह गब्बर को आर्मी का ड्रेस
पहनाया गया।
रमेश सिप्पी ने ‘ध वर्ल्ड वोर-2’
पुस्तक पढी और उन मे ‘एडोल्फ हीटलर’ के कइ फोटो थी। उन मे से असरानी के लिये
‘जैलर’ के किरदार और परिवेश का निर्माण हुवा। एडोल्फ़ हीटलर की कुछ स्पीच से असरानी
के डायलोग डीलीवरी कैसी होनी चाहिये उस का ध्यान रखा गया। इतना ही नही जैलर डायलोग
के बाद जो ‘आ..हा’ करता है वो पेटर्न ‘जेक लेमान’ जो एक नाट्यकर थे उन्होने ‘ध
ग्रेट रेस’ मे रोल किया था उसी पर से लिया गया।
जगदीप का ‘सूरमा भोपाली’ नाम तो पहले
बता दिया की ‘भोपाल’ के फोरेस्ट ओफिसर ‘सूरमा’ से लिया गया। फिल्म के बाद लोगो ने
उस फोरेस्ट ओफिसर को ‘लकडे काटनेवाला और चोर’ बोलने लगे तो उस ओफिसर ने सच मे
मुकदमा भी किया था। ‘जय’ मतलब हिन्दी मे ‘जीत’ और ‘वीरु’ का मतलब हिन्दी मे है
‘हीरो’...इस मुद्दे के साथ ये दो नाम सीलेक्ट किये गये। अमिताभ के साथ जया को लेकर
उस समय का सब से बडा सामाजीक मुद्दा ‘विधवा पुनर्विवाह’ को लिया गया। हेमा मालिनी
ने ‘अन्दाज’, ‘सीता और गीता’ जैसी फिल्मो से पहले से ही सलीम-जावेद और रमेश सिप्पी
के साथ काम कर ही रही थी। इसिलिये उसे रीपीट कर लिया गया और ‘बसंती’ रोल बनाया गया।
2.
कास्टिंग
:
‘गब्बर’ के रोल के लिये सब से पहले
‘डेनी डेंन्ग्जोंग्पा’ को ओफर किया गया...लेकिन उस समय फीरोज खान ‘धर्मात्मा’ बना
रहे थे और डेनी का एक महत्व्पुर्ण रोल उस मे था इसिलिये डेनी ने मना कर दिया।
अमजदखान को जब सीलेक्ट किया गया तो उन्होने एक किताब पढाकर अपने आप को तैयार किया
जिस का नाम था ‘अभिशाप्त चम्बल’ जो चम्बल के डाकुओ पर आधारित थी। अमिताभ बच्चन के
‘जंजीर’ के शूटिंग के कुछ अंश दिखाकर सलीम-जावेद ने रमेश सिप्पी को ‘जय’ के रोल के
लिये मना लिया और बाद मे धर्मेन्द्र ने भी अमिताभ का नाम ही दिया था। हालाकी ‘जय’
का रोल सब से पहले ‘शत्रुघ्न सिन्हा’ को दिया गया था लेकिन लेट लतीफ और मनचले
शत्रुघ्न ने देर कर दी। बाद मे शत्रुघ्न ने धर्मेन्द्र को कइ बार फोन किया इस रोल
के लिये लेकिन तब तक अमिताब की एंट्री फाइनल हो चुकी थी। सलीम-जावेद वैसे भी
अमिताभ की फ्लोप फिल्म ‘रास्ते का पत्थर’ से भी प्रभावित हुवे थे। उस समय अमिताभ
नये थे और शत्रुघ्न जम चुके थे। काफी लोबिंग किया था शत्रुघ्न ने ‘जय’ के रोल के
लिये लेकिन बात नही बनी।
‘ठाकुर’ के रोल के लिये सब से पहले
‘प्राण’ पसंदगी थी लेकिन सिप्पी साहब ने इस रोल के लिये ‘संजीव कुमार’ बेस्ट होंगे
ऐसा मानकर उस को दिया। जब की ‘ठाकुर’ के लिये सलीम-जावेद ने सब से पहले दीलीपकुमार
को चुना था। लेकिन दीलीप कुमार ने मना कर दिया और बाद मे उन्होने कहा की ये उन के
जीवन की कुछ चुनंदा फिल्मे पसंद नही करने की गलती मे से एक बडी गलती हुइ थी।
मै पहले भी बता चुका हु की ‘ठाकुर’ के
रोल के लिये धर्मेन्द्र भी लाइन मे थे (जब की धर्मेन्द्र ने ‘आप की अदालत’ मे ये कहा
की वे कभी ठाकुर या गब्बर के रोल की रेस मे थे ही नही)। लेकिन सिप्पी ने
धर्मेन्द्र को बता दिया की तो फिर ‘वीरु’ का रोल संजीवकुमार को जायेगा जो हेमा
मालीनी के साथ इश्क़ लडायेंगे। क्युकी धर्मेन्द्र को पता था की हेमा के लिये
संजीवकुमार भी लाइन मे लगे हुवे थे तो उन्होने ‘वीरु’ के लिये हा बोल दिया। दुसरी
ओर ‘टांगेवाली’ के रोल के लिये सिप्पी ने हेमा को बता दिया था की ये फिल्म की
कहानी केवल संजीवकुमार और अमजद खान के बीच की है। फिर भी हेमा ने इस रोल के लिये
रमेशसिप्पी पर पुरा भरोसा कर के रोल स्वीकार कर लिया। वैसे धर्मेन्द्र ने ‘वीरु’
रोल लेते वक्त रमेश सिप्पी से वचन लिया की ठाकुर और बसंती के बीच कोइ सीन नही
होगा। और पुरी फिल्म मे हेमा मालीनी और संजीवकुमार के आपस मे अकेले एक भी सीन नही
है।
3.
पेमेन्ट
:
शोले के लिये धर्मेन्द्र को 1 लाख 50
हजार (1.3 भी कहा जाता है लेकिन शोले के लिये सब से ज्यादा रकम वीरु के रोल के
लिये धर्मेन्द्र को ही मीली थी), अमिताभ बच्चन को 1 लाख, संजीव कुमार को 1 लाख 25
हजार, हेमा मालीनी जो उस वक़्त टोप एक्ट्रेस थी उन्हे 75 हजार, जया भादुरी को 35
हजार, अमजद खान को गब्बर के रोल के लिये 50 हजार की रकम दी गइ थी।
4.
शुटिंग:
‘शोले’ की शुटिंग के लिये ‘बेंगलोर’
(हाल बंगलुरु) से मैसुर के रास्ते पर 47 कीमी दुर ‘रामनगर’ गाव जो पत्थरो से भरा
पडा है उस जगह को सीलेक्ट किया गया और वहा ‘रामगीरी पर्वतमाला’ मे ‘रामगढ’ का सेट
लगाया गया। सब से पहले बेंगलुरु से रामनगर का रोड बनवाया गया (सरकार से अनुरोध के
बाद बना दिया गया)। आर्ट डायरेक्टॅर राम येडेकर ने वहा ‘रामगढ’ गाव का बडा सेट
बनाया। बोम्बे मे राजकमल स्टुडियो मे ‘जेल’ बनाइ गइ। बाद मे कइ सालो तक ‘रामनगर’
को ‘सिप्पी नगर’ से जाना गया। आज भी उन पर्वतमाला को देखने के लिये पब्लिक को ओफर
किया जाता है। आप बेंगलोर से मैसुर जाओ तो टुरिस्ट वाले आप को शोले शुटिंग स्थल पर
विजिट करवाते है।
3 ओक्टोबर 1973 के दिन शोले फिल्म का
पहला सीन अमिताभ बच्चन और जया भादुरी के बीच फिल्माया गया। पुरी फिल्म बनाने मे
ढाइ साल लग गये और बजेट के उपर से फिल्म जाने लगी क्युकी कुछ द्रश्य रमेश सिप्पी
ने दुबारा शुट किये।
‘ये दोस्ती...’ 5 मिनिट के गाने के
लिये पुरे 21 दिन का समय लग गया और जया भादुरी का ‘राधा’ का रोल जो शोले मे दो बार
लेम्प जलाता है और बुजाता है उस शुटिंग को लाइटिंग सही दीखे इस तरह शुटिंग मे पुरे
19 दिन लगे। बोम्बे-पुने के नजदीक ‘पनवेल’ के पास रेल्वे की पटरी पर वो ट्रैन
सीकवन्स की शुटिंग को पुरे 7 हफ्ते लगे थे। और उस समय ट्रैन के पहियो के पास
शुटिंग करने के लिये केमेरामेन ने कायदे से चलती ट्रैन के एंजिन से लटककर शुटिंग
की थी।
‘शोले’ बोलीवुड की सर्वप्रथम
‘स्टीरीयोफोनिक’ साउंड फिल्म बनी थी। उतना ही नही उस समय 70 एम.एम के फ्रेम मे
फिल्म बनानी काफी मेहंगी होती थी। इसिलिये इस फिल्म को 35 एम.एम. मे शुट कर के बाद
मे 4:3 की फ्रेम को 2.2:1 फ्रेम मे परिवर्तीत किया गया। रमेश सिप्पी ने कहा की बडी
स्र्कीन पर ये 70 एम.एम. की फ्रेम के लिये आवाज भी उतनी ही प्रभावशाली होनी चाहिये
थी इसिलिये 6 ट्रेक स्टीरीयोफोनिक साउंड मे पुरा म्युजिक लिया गया ता की बडे पडदे
पर ये प्रभाव डाल सके। इस का फायदा ये हुवा की थीयेटर मे जब धर्मेन्द्र आखरी
द्रश्य मे अमिताभ की मौत के बाद उसे पता चलता है की सिक्का दोनो तरफ से एक ही है तो
वो सिक्का गुस्से से फेक देते है। ये सिक्का जब गीरता है तो उस की आवाज कायदे से
आप सुन सकते है की जैसे सिक्का आप के पीछे की साइड मे गीरा हो।
फिल्म के पोस्टर्स पर सिनेमास्कोप
बनाकर इसे 70 एम.एम. का बडा मार्केटिंग किया गया था। इतना ही नही पोस्टर्स पर आज
तक की आइ फिल्मो से अलग मार्केटिंग के लिये लिखा गया की ‘ध ग्रेटेस्ट स्टारकास्ट
एवर एसेम्बल्ड’ और ‘ध ग्रेटेस्ट स्टोरी एवर टोल्ड’।
ये फिल्म शूटिंग मे कुछ देर इसिलिये
भी हुइ की ‘शोले’ के चार महिने मे ही जया बच्चन ‘प्रेगनंट’ हुइ और श्वेता का जन्म
हुवा। और जब फिल्म खत्म हुइ तब ‘अभिषेक’ का जन्म हो गया। जब की ‘सीता और गीता’ के
वक्त ही धर्मेन्द्र हेमा के पिछे लगे थे। इसिलिये ‘शोले’ की शुटिंग के वक्त
धर्मेन्द्र ने हेमा के साथ चक्कर का सिलसिला जारी रखा...इतना ही नही धर्मेन्द्र और
हेमा मालीनी के बीच जितने भी द्रश्य की शुटिंग थी उस दौरान धर्मेन्द्र लाइट बोय,
केमेरामेन या स्पोट बोय को द्रश्य दुसरी बार फिल्माने के लिये पैसा दिया करते थे
ता की हेमा के साथ रोमांन्स जारी रहे और बार बार मौके का फायदा मिल पाये। इसिलिये
भी ये फिल्म की शुटिंग मे देरी हो गइ थी।
एक और रसप्रद बात ये है की एक द्रश्य मे अमिताभ धर्मेन्द्र को याद दिलाता है की हेमा यानी बसंती तेरी राह देख रही है और धर्मेन्द्र नीकल जाता है बसंती को मिलने। उस तरफ बसंती को पकडने के लिये गब्बर के गुंडे बसंती के पिछे लगते है और बसंती अपने टांगे से भागती है। उस द्रश्य मे हेमा की डुप्लिकेट ने ये सीन किया था। उस हेमा की डुप्लिकेट लडकी का नाम था ‘रेश्मा पठाण’। ‘रेश्मा पठाण बोलीवुड की सर्वप्रथम महिला स्टंट वुमन है। जिस सीन मे बसंती धन्नो घोडी के साथ टांगा लेकर भागती है और टांगे का एक पहिया निकल जाता है और वो गीर जाती है वो पुरा स्टंट सीन जब रेश्मा पठाण कर रही थी तब वो खुद गर्भ से थी...फिर भी इतना खतरनाक सीन उन्होने निभाया था। उस की एक लिंक भी यहा देता हु। रेश्मा पठान हाल 65 साल की हो चुकी है और अक्सर हेमा के लिये स्टंट सीन किया करती थी।
https://www.youtube.com/watch?v=aX8QRD2CXHU
रेश्मा पठाण का इंटॅरव्यु भी आप देख
सकते है...
https://www.youtube.com/watch?v=mdNZxiiq5nY
5. फिल्म का दुसरा वर्जन :
‘शोले’ मे काफी हिंसात्मक द्रश्य
फिल्माये गये थे। सेंसर बोर्ड ने सब से पहले ‘इमाम साहब’ के बेटे की हत्या का सीन
काट दिया। इसिलिये फिल्म के केवल गब्बर अपने हाथो पर चल रहे मकोडे को मारते है वो
सुचित सीन सचीन का मर्डॅर है ऐसा दर्शक मान ले इस तरह का दुबारा शुटिंग किया गया।
ठाकुर खुद पुलिस होने के बावजुद अपने
फेमिली की हत्या के लिये भाडुती गुंडो के हाथो डाकु को सजा देता है और कानुन को
अपने हाथो मे लेता है इस बात से वाकेफ सेंसर बोर्ड ने दुसरा कारण ये दिया की इस
बात से दर्शको मे कानुन हाथ मे लेने की बात फैल जायेगी और सोसायटी मे गलत मेसेज
जायेगा। इसिलिये शोले मे ओरिजिनल सीन मे ठाकुर अपने पैरो मे पहने हुवे जुते मे जो
कीले होती है उस से गब्बर की हत्या कर देता है ऐसा सीन फिल्माया गया था। सेंसर
बोर्ड की वजह से रमेश सिप्पी को ये सीन दुबारा शुट करना पडा जहा पर अंत मे ठाकुर.
गब्बर की हत्या के लिये पैर उठाता है तब पुलिस आ जाती है और गब्बर को पकड के ले
जाती है।
ऐसे बहुत से सीन काटकर फिल्म सेंसर
बोर्ड ने कुल मिलाकर केवल 198 मिनिट की मंजुर की थी। बाद मे जब 1990 मे ब्रिटैन मे
ये फिल्म दुबारा रीलीज की गइ तब वो ओरिजिनल सीन वापस जुड दिया गया। तब से इरोज
इंटरनेशनल ने इस फिल्म की दो डीवीडी निकाली है जिस मे एक मे पुलिस आती है और गब्बर
को ले जाती है और दुसरी मे ठाकुर गब्बर की हत्या करता है ऐसा दिखाया गया है। वैसे
लेखनी के वाचको ने अगर वो सीन नही देखा है तो यु ट्युब की लिंक मै देता हु जहा पर
ठाकुर गब्बर की हत्या करता है वो ओरिजिनल द्रश्य आप देख सकते है।
https://www.youtube.com/watch?v=IQwaj58BuS4
जब सेंसर बोर्ड ने ठाकुर के द्वारा
मर्डॅर सीन केंन्सल कर दिया तब वैसे भी संजीव कुमार और धर्मेन्द्र ने रमेश सिप्पी
को कहा था की ओरिजिनल सीन मे जब ठाकुर गब्बर की हत्या करता है तब उस के बाद आप इस
लिंक मे देख सकते है की ठाकुर हत्या के बाद वही बैठ जाता है और धर्मेन्द्र एक शाल
लेकर फिर से ठाकुर को पहनाता है और ठाकुर एक बच्चे की तरह धर्मेन्द्र के सीने मे
मुह छुपाकर बहुत रोता है।
संजीव कुमार का दावा ये था की वास्तव
मे पुरी फिल्म मे ठाकुर को एक मजबुत मनोबल वाला ओफिसर दिखाया गया है। अगर अंत मे
वो तुटकर एक आदमी के कन्धे पर रोता है तो फिर उस की इमेज क्या बनेगी? दुसरा
धर्मेन्द्र ने ये कहा था की अगर ठाकुर गब्बर को मारता है तो वो अपने दोस्त की मौत
का बदले की सौगन्ध लेकर आया है उस का क्या ? और ठाकुर हाथ न होकर भी मरदानगी से
गब्बर को मारता है और वीरु हाथ पे हाथ रखकर वहा खडा रहेगा? ये क्या बात हुइ?
खैर सारी बातो को लेकर और सेंसर बोर्ड
की वजह से शोले का पुरा एंड ही बदल दिया गया था।
इस फिल्म को 3डी मे भी दुबारा रीलीज
किया गया। लेकिन 3डी वर्जन मे म्युजिक की पुरी तरह से बेंड बजा दी गइ है।
‘शोले’ मे गब्बर की भुमिका अमिताभ
बच्चन को भी पसंद आइ थी इसिलिये ये फिल्म रामगोपाल वर्मा ने दुबारा बनाइ। नाम जब ‘शोले’
रखा तो रमेश सिप्पी ने नोटिस दिया। दोनो मे समाधान नही हुवा तो उस फिल्म का नाम
बदल दिया गया और रखा गया ‘राम गोपाल वर्मा की आग’ (2007)। इस फिल्म मे गब्बर का
रोल अमिताभ बच्चन ने किया और अपनी ख्वाहिश पुरी कर ली, । वैसे सारे किरदारो के नाम
बदल दिये गये इसिलिए विलेन अमिताभ बच्चन का नाम ‘बब्बनसिंघ’ दिया गया। जय की जगह ‘हीरो’
(हीरेन्द्र धान) जो रोल अजय देवगन ने निभाया, वीरु की जगह राज जो प्रशांत राज ने
निभाया, हेलन की जगह उर्मिला मतोंडकर, ठाकुर की जगह इंस्पेक्टर नरसिम्हा के रोल मे
साउथ सुपरस्टार मोहनलाल, बसंती की जगह ‘घुंघरू’ ने ली जो भुमिका निभाइ प्रियंका
कोठारी (जिस का मुल नाम निशा कोठारी था) ने, राधा की जगह ‘दुर्गा देवी’ जो भुमिका
निभाइ सुश्मिता सेन ने, जलाल आगा ने जो मेहबूबा सोंग किया था उस की जगह ली अभिषेक
बच्चन ने। लेकिन ये फिल्म बुरी तरह पीट गइ।
एक और फिल्म आइ थी जो शोले की कुछ
कोपी के समान थी। 1985 मे ‘आन्धी-तूफान’ जिस मे ठाकुर की जगह हेमा ने ली थी, विलेन
मे डेनी, जय और वीरु की जगह शत्रुघ्न सिन्हा और मिथुन चक्रवर्ती, शशी कपूर,
मीनाक्षी शेषाद्री, राज कीरण को लेकर बनी थी। ये फिल्म भी बुरी तरह पीट चुकी थी।
6.
गीत,
म्युजिक और बेकग्राउंड म्युजिक, डायलोग्स:
संगीतकार पंचमदा ने सब से पहले मैने
लिखा वैसे केवल खाली सोडा बोटल का उपयोग कर के जलाल आगा और हेलन पर फिल्माया गया
और खुद ने गाया हुवा ‘मेहबूबा..मेहबूबा’ गीत आज तक का शोले का सब से बडा हीट गीत
है। इस गीत को फिल्मफेयर एवार्ड मे सोलो सोंग के लिये पंचमदा को नोमिनेशन भी मिला
था। ये गीत ग्रीक सिंगर ‘डेमिस रुसोस’ के द्वारा गाया हुवा ‘से यु लव मी...’ के
उपर से लिया गया था। इसे रीमीक्ष भी 2005 मे किया गया जब आशा भोसले द्वारा ये गीत
क्रोनोस क्वार्टॆट द्वारा ग्रेमी-नोमिनेटेड आल्बम मे लिया गया। संगीतकार हिमेश
रेशमिया ने अपनी पहली दिग्दर्शित फिल्म ‘आप का सुरूर’ मे इस गीत को आशा के आवाज मे
फिर से रीक्रियेट किया था।
‘ये दोस्ती’ गीत जो किशोरकुमार और
मन्नाडे की आवाज मे गाया गया है उसे मलयालम फिल्म ‘फोर फ्रेंडस’ मे शंकर महादेवन
और उदित नारायण ने गाया और रीमीक्ष किया गया। इतना ही नही 2010 मे अमेरिकन
प्रेसिडंट बराक ओबामा की भारत दौरे के समय सिम्बोलिक के तौर पर ये गीत को भारत-अमेरिका
की दोस्ती के स्वरुप दोहराया गया।
पुराने जमानेवाले को याद होगा की
रेडियो ही एक्मात्र साधन था गीत-संगीत सुन ने के लिये। उस समय एक टुथपेस्ट आती
थी...’बिनाका टूथपेस्ट’। बिनाका ने स्पोंन्सर किया हुवा एक संगीत प्रोग्राम रेडियो
पर आता था जिस का नाम था ‘बिनाका गीतमाला’ जो बात मे बिनाका का नाम ‘सिबाका’ हो
गया तो ‘सिबाका गीतमाला’ नाम हो गया था। अमीन सायाणी नाम का एंकर उस प्रोग्राम को
प्रस्तुत करता था। ये प्रोग्राम ‘सीलोन रेडियो’ (श्रीलंका रेडियो) पर आता था। ये
प्रोग्राम 1953 से लेकर 1993 तक चला था बाद मे इस
कार्यक्रम के शुरू होने के वर्ष 39 बाद टेलीविजन पर फिल्मी गीतों के काउंट डाउन (count
down) कार्यक्रम
सुपरहिट मुकाबला शुरू हो जाने के कारण इसका लोगों में प्रभाव कम होने लगा और
कार्यक्रम के 42वें वर्ष में इस कार्यक्रम को बंद कर दिया गया| हर
बुधवार को रात से 8 से लेकर 9 बजे तक एक घंटा ये प्रोग्राम आता था। ‘प्यार झुकता
नही’ फिल्म का एक गाना है ‘तुम से मिलकर ना जाने क्यु?’ ये गीत इतना पोप्युलर हुवा
था की इस गीत की स्टार्टिंग म्युजिक को बिनाका गीतमाला प्रोग्राम के शुरुआत का
संगीत बना दिया गया था।
उस समय ‘बिनाका गीतमाला’ मे उस साल के
बेहतरीन गानो मे से 1 से 20 तक की पादान पर गीत को क्रंमांक दिया जाता था। मतलब 20
वी पादान का गीत पहले रेडियो पर बजता था और पहली पादान पर जो होता था उसे आखरी
बजाया जाता था। किस गीत की रेकोर्ड (उस समय गीत की रेकोर्डॅ निकाली जाती थी जैसे
आज डीवीडी है उस से पहले सीडी, उस से पहले केसेट और उस से पहले रेकोर्डॅ रह्ती थी)
की कितनी बीक्री हुइ और दर्शको के वोट्स से क्रमांक दिये जाते थे। बाद मे फर्जी
वोट्स आने लगे तो ये सिस्टम बन्ध कर दिया गया। एक गीत लगातार 25 बार पहली पादान पर
रहे तो उसे रीटायर कर दिया जाता था। मतलब फिर उस गीत को पहली पादान नही मिलेगी।
शोले के सारे के सारे गाने इस बिनाका
गीतमाला मे अलग अलग पादान पर बजते थे। लेकिन इस से भी ज्यादा फेमस हुवा शोले का
बेकग़्राउंड म्युजिक। एक एक पात्र के लिये अलग अलग संगीत ये आर.डी.बर्मन की देन थी।
जय और वीरु के लिये अलग अलग मुड मे अलग अलग म्युजिक। राधा के लिये केवल माउथ ओर्गन
का म्युजिक। गब्बर के लिये तो इतना बेहतरीन म्युजिक था की शोले देखनेवालो ने सब से
ज्यादा गब्बर को पसंद किया था।
लेकिन सब से आश्चर्यजनक बात ये हुइ की
शोले तक जितनी भी फिल्मे आइ उस के लिये केवल गीत-संगीत ही उस फिल्म को चलने पर
पर्याप्त था। ‘शोले’ पहली फिल्म बनी जो बेहतरीन डायलोग्स ने गीत-संगीत को पिछे छोड
दिया। एक एक डायलोग बेहतरीन बने। इसी वजह से ‘शोले’ वो पहली फिल्म बनी जिन की पुरे
फिल्म की डायलोग्स और गीत की ओडियो केसेट पब्लिश की गइ।
कुछ डायलोग्स तो काफी मशहुर हुए :
1. कितने आदमी थे? 2. जो डर गया वो मर
गया 3. सिक्के और इंन्सान मे शायद यही फर्क है 4. अरे ओ सांभा कितने इनाम रखे है
सरकार हम पर 5. चल धन्नो, आज बसंती की इज्जत का सवाल है 5. ये हाथ मुजे दे दे
ठाकुर और ये हाथ मुजे दे दे गब्बर 6. बसंती इन कुत्तो के सामने मत नाचना 7. मुजे
सब पुलिसवालो की सुरत एक जैसी ही लगती है 8. बहुत जान है तेरे हाथो मे....9. हम
अंग्रेजो के जमाने के जेलर है हा..हा... 10. हमारा नाम सुरमा भोपाली है ये वे नही
है...11. खबरदार किसी ने हिलने की कोशिश की तो एक एक को भुन के रख दुंगा...12. बच
गया साला... 13. मा कहती है सो जा वरना गब्बर सिंघ आ जायेगा.... 14. खतरो से खेलने
का शायद शौख है मुजे... 14. काम जो मै चाहु...दाम जो तुम चाहो.... 15. आधे इधर
जाओ...आधे उधर जाओ...और बाकी मेरे साथ आओ... 16. गब्बर से कहना की रामगढ वालो ने
पागल कुत्तो के सामने रोटी डालना बन्ध कर दिया है... 17. जय रामजी की... 18. यु
की...ये कौन बोला ? 19. ज्यादा बोलने की
आदत तो हमे है नही.... 20. तेरा क्या होगा कालिया ? 21. तेरे लिये तो मेरे पैर ही
काफी है...22. बहुत याराना लगता है.. 23. इतना सन्नाटा क्यु है भाइ ?24. तुम्हारा
नाम क्या है बसंती ? 25. वोही कर रहा हू भैया जो मजनू ने लैला के लिए
किया था, रांझा ने हीर के लिए था, रोमीयो ने जूलिएट के लिए था… सुसाईड 26. साला नौटंकी, घड़ी घड़ी ड्रामा करता है.....
ये और फ़िल्म के
अन्य लोकप्रिय संवाद लोगों की दैनिक स्थानीय भाषा का हिस्सा बन गए थे। फिल्म के
पात्रों और संवादों को लोकप्रिय संस्कृति में संदर्भित और पैरोडी किया जाना आज तक
भी जारी है। इन सब
डायलोग्स ने दर्शको मे आग लगा दी थी। खास तौर पर 1975 मे पुर्व प्रधानमंत्री
इन्दिरा गांधी ने जब राष्ट्रिय आपातकालीन घोषित किया था तब इस फिल्म ने आग लगाइ
थी।
7. रीलीज
पुरी तैयारी कर के और सेंसर बोर्ड के
साथ काफी लडाइ के बाद ‘शोले’ को 15 अगस्त 1975 के दिन रीलीज कर लिया गया। इतनी
मेहनत के बावजुद फिल्म फ्लोप हो गइ। इतना ही नही कोलमिस्ट, जर्नालीजम और क्रिटिक्स
ने इस फिल्म के बारे मे बहुत बुरा अभिप्राय दिया। दो सप्ताह के बाद आखिर मे अमिताभ
बच्चन के बंगलो पर एक मीटिंग आयोजित की गइ। पुरी चर्चा के बाद ये तय किया गया की
फिल्म के अंत मे अमिताभ बच्चन की मौत हो जाती है उस के बदले उसे जिन्दा रखा जाये
और विधवा पुनर्विवाह जया के साथ कर दिया जाये और फिर देखा जाये की क्या होता है।
रमेश सिप्पी ने सोमवार की तारीख तय कर ली और अमिताभ और जया को शुटिंग के लिये बेंगलोर
आने का बोल भी दिया। मीटिंग के बाद बंगलो से जाते जाते रमेश सिप्पी ने अमिताभ को पीछे
मुडकर कहा की एक काम करते है....रविवार तक देखते है की क्या होता है...अगर परिणाम
सही नही रहा तो री-शुट पक्का। लेकिन तीसरे सप्ताह का रविवार आते आते इतिहास बन गया
और ये फिल्म इतनी हीट हो गइ की आलोचको को अपने शब्द वापस लेने पडे। 11 ओक्टोबर
1975 को शोले को मुम्बइ के अलावा कइ और क्षेत्रो मे रीलीज किया और फिल्म पुरे
हिन्दुस्तान मे सनसनी बनकर रह गइ।
8.
बजेट और
कमाइ:
शोले 1975 की सब से अधिक कमाइ
करनेवाली फिल्म बनी। एक फिल्म रैंकिंग वेबसाइट, बॉक्स ऑफिस इंडिया
ने इसे कमाई के आधार पर "आल टाइम ब्लॉकबस्टर" का दर्जा दिया है। ‘शोले’ का बजेट था 3 करोड रुपये और कहा जाता है की फिल्म की पहली रीलीज मे लगभग 15
करोड की कमाइ हुइ और 1980 और 1990 के शतक मे ये पुनह रीलीज की गइ। कमाइ के सटिक
आकडे तो उस वक़्त उपलब्ध नही होते थे लेकिन 3 करोड के बजेट की ये फिल्म सर्वाधिक
कमाइ का रेकोर्ड 19 साल तक कायम रखते हुवे लगभग 1.63 अरब रुपये कमा चुकी थी। 2009
मे अंग्रेजी समाचारपत्र ‘ध टाइम्स ओफ इंडिया’ की सुने तो ये फिल्म उस समय तक 3 अरब
रुपये कमा चुकी थी।
इतना ही नही ‘शोले’ भारतीय फिल्म
इतिहास मे सब से पहली फिल्म बनी जिस ने 100 से अधिक सिनेमाघरो मे रजत जयंती मनाइ
(25 वीक चली) और 60 से अधिक सिनेमाघरो मे स्वर्ण जयंति (50 वीक) मनाइ। मुम्बइ
मे मिनरवा सिनेमाघर मे शोले लगातार 5 साल तक दिखाइ गइ थी जिस का रेकोर्ड ‘दिलवाले
दुल्हनिया ले जायेंगे’ ने मराठा मन्दिर मे लगातार 20 साल तक चलने से तोडा।
डी.डी.एल.जे. वैसे लोकडाउन को बाद कर के आज भी मराठा मन्दिर मे देखी जा सकती है।
वैसे केवल एक ही शो होता है जब की शोले पुरे 5 साल मिनरवा सिनेमाघर मे दिन के 4 शो
मे दिखाइ गइ थी। वैसे 2001 मे डी.डी.एल.जे ने लगातार 286 सप्ताह चलकर शोले का रीकोर्ड
तो तोड ही दिया था।
ये कहा जाता है की उस समय सिनेमाघर के
बाहर पानी बेचनेवाला मतलब एक छोटी लौरी मे छोटी सी डंकी से एक ग्लास पानी का एक
पैसा होता था। वो पानीवाले भी लखपती हो गये थे उतनी लोकप्रियता शोले को मिली थी।
2005 मे पचासवे फिल्मफेयर एवार्डॅ मे
शोले को 50 साल की सर्वश्रेष्ठ फिल्म घोषित कर के पुरस्क्रित किया गया था। 1999 मे
बी.बी.सी ने ‘सहशताब्दी की फिल्म’ से शोले को नवाजा था। 2002 में ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट की 10 सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्मों की
सूची के शीर्ष पर स्थान प्राप्त हुआ, और 2004 में स्काई
डिजिटल के एक सर्वेक्षण में दस लाख ब्रिटिश भारतीयों के मत से इसे ‘सर्वश्रेष्ठ
भारतीय फिल्म’ का दर्जा दिया गया। 2010 की टाइम मैगज़ीन की "बेस्ट ऑफ
बॉलीवुड" सूची में यह फ़िल्म शामिल थी, और 2013 की सीएनएन-आईबीएन
की "100 महानतम भारतीय फिल्मों" की सूची में भी इसे शामिल किया गया था।
गब्बर सिंह, फ़िल्म का दुखद
खलनायक, हिंदी फिल्मों में एक ऐसा युग बनकर उभरा, जो कि "उन
खलनायकों के युग के रूप में प्रतीत होता है", जो कहानी के संदर्भ को स्थापित करने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे शान (1980) का शाकाल (कुलभूषण खरबंदा द्वारा अभिनीत), मिस्टर इंडिया (1987
का मोगम्बो (अमरीश पुरी) और त्रिदेव (1989 का भुजंग (अमरीश पुरी)। फिल्मफेयर
द्वारा 2013 में गब्बर सिंह को भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे प्रतिष्ठित
खलनायक के तौर पर नामित किया गया था, और फ़िल्म के चारों अभिनेता "80 आइकॉनिक प्रदर्शन" की
2010 की सूची में शामिल किये गए थे।
शोले ने कई फिल्मों
और कथाओं को प्रेरित किया, और फिल्मों की एक शैली, "करी वेस्टर्न", शैली को मुख्य धारा
में स्थापित कर दिया, जो स्पैगेटी वेस्टर्न फ़िल्म शैली का भारतीय रूपांतरण है। मधर
इंडिया (1957) और गंगा जमना (1961) जैसी पूर्व भारतीय डकैती फिल्मों में इसकी
जड़ें होने की वजह से इस शैली को डकैती वेस्टर्न भी कहा जाता है। यह एक प्रारंभिक
और सबसे निश्चित मसाला फिल्म भी थी, और इसने ही "मल्टी-स्टार" फिल्मों के लिए प्रारंभिक
मंच तैयार किया। यह फिल्म बॉलीवुड के पटकथा लेखकों के लिए वाटरशेड थी, जिन्हें शोले से
पहले अच्छी तरह से भुगतान नहीं किया जाता था; फिल्म की सफलता के बाद, इसके लेखक जोड़ी सलीम-जावेद सितारे बन गए और पटकथा लेखन एक
सम्मानित पेशा माना जाने लगा। बीबीसी ने गब्बर सिंह की तुलना स्टार वार्स के
चरित्र ‘डार्थ वेधर’ से करते हुए शोले को "बॉलीवुड की स्टार वार्स" के
रूप में वर्णित किया है, क्योंकि उनके अनुसार इसने बॉलीवुड पर वह प्रभाव डाला, जो स्टार वार्स (1977)
ने हॉलीवुड पर डाला था।
9.
शोले की कहानी...रीलीज से पहले और बाद मे...
फिल्म की कहानी देखी जाये तो बहुत ही
साधारण है पर रमेश सिप्पी के निर्देशन ने इसमे अलग ही जान डाल दी थी| ठाकुर बलदेव सिंह(
संजीव कुमार), सेवा निवृत पुलिस अफ़सर, डाकू गब्बर सिंह (अमजद ख़ान) को गिरफ्तार करते
है पर वो जेल से भागने मे क़ामयाब हो जाता है| बदला लेने के लिए वह ठाकुर के परिवार का
खून कर देता है| ठाकुर गब्बर को जिंदा पकड़ने के लिए दो बहादुर लोफर जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू( धर्मेन्द्र ) की मदद लेता है| रामगढ़ में इनकी
मुलाक़ात राधा (जया बच्चन) और बसंती( हेमा
मालिनी) से होती है| और फिर शुरू होती है गब्बर को
जिंदा
पकड़ने की कवायत |
फिल्म की सफलता के पीछे एक मुख्य कारण है उसके पात्र | हर पात्र एक दूसरे
से भिन्न है और सब कलाकार उसमे फिट बैठते है| जय का निहित व्यंग्य, वीरू का बचकाना
हास्य, बसंती की बकबक, ठाकुर का दृढ़ संकल्प. राधा की चुप सोच, गब्बर की दहाड़-
हर पात्र की अपनी ही खूबी है| और इन सबके साथ सलीम ख़ान की पटकथा और आर. डी.
बर्मन का संगीत|
शोले हीट रही....रमेश सिप्पी, सलीम-जावेद, अमिताभ, आर.डी बरमनदा का संगीत इस का उदय हुवा और बाद मे एक और कहानी सलीम-जावेद ने लीखी। रमेश सिप्पी ने इस बार भी नया खलनायुक चुना जिस का नाम था ‘कुलभुषन खरबंदा’ ‘शाकाल’ नाम से और जिन्होने शोले ठुकराइ थी वो भी अब इस फिल्म मे जुड गये जैसे सुनिल दत्त, शत्रुघ्न सिन्हा, शशी कपूर, राखी...और फिल्म बनी ‘शान’....इस बार खलनायक को डीजीटली दर्शाया गया।....लेकिन कहा जाता है ‘शोले की कमाइ शान मे समाइ’...मतलब शोले से भी ज्यादा बजेट पर शान फिल्म बनाइ लेकिन सुपर फ्लोप हुइ।
10. अंत मे... 'शोले' की समीक्षा:
शोले को शुरुआत
में समीक्षकों से अति नकारात्मक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थी। समकालीन आलोचकों
में, इंडिया टुडे
के के.एल. अमलादी ने फिल्म को "बुझे हुए शोले" और "एक गंभीर
दोषपूर्ण प्रयास" कहा। फिल्मफेयर ने कहा कि यह फिल्म भारतीय समाज के
साथ वेस्टर्न शैली की एक असफल मिश्रण थी, जिसने इसे "नकली वेस्टर्न फिल्म - न तो
यहां की और न वहां की ही" बना दिया। अन्य समीक्षकों ने इसे "ध्वनि और क्रोध
मात्र, अर्थहीन" और 1971 की फिल्म ‘मेरा गाँव मेरा देश’ का "निम्न दरजे का पुनर्निर्माण"
करार दिया। व्यापार पत्रिकाओं और स्तंभकारों ने शुरुआत में फिल्म को फ्लॉप तक कह दिया
था। जर्नल स्टडीज: ए आयरिश क्वार्टरली रिव्यू में 1976 में छपे एक लेख में लेखक माइकल गैलाघर ने फिल्म की तकनीकी
उपलब्धियों की तो सराहना की, लेकिन अन्य सभी तत्वों की आलोचना करते हुए
लिखा: "इसके दृश्य वास्तव में अभूतपूर्व हैं, लेकिन हर दूसरे स्तर पर यह असहनीय है; यह निराकार और
बेतुकी है, मानव छवि में अनौपचारिक तथा सतही है, और इसे कुछ हद तक हिंसा का बुरा टुकड़ा भी कहा
जा सकता है।"
समय बीतने के साथ, शोले को मिली
प्रतिक्रियाओं में काफी अंतर आया; इसे अब एक "कल्ट" या
"क्लासिक" फ़िल्म, और साथ ही हिंदी-भाषा में बनी सर्वश्रेष्ठ
फिल्मों में से एक माना जाता है। 2005 की बीबीसी की एक समीक्षा में, फिल्म के अच्छी
तरह से लिखे गए पात्रों और सरल पटकथा की सराहना की गई, हालांकि असरानी और
जगदीप की हास्यपूर्ण चरित्रों को अनावश्यक कहा गया। फिल्म की 36 वीं वर्षगांठ पर
हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा था कि यह "कैमरे के काम के साथ-साथ संगीत के मामले
में एक ट्रेलब्लैज़र थी" और "व्यावहारिक रूप से इसका हर दृश्य, संवाद या यहां तक
कि हर छोटे से छोटा चरित्र भी हाइलाइट में रहा था।" 2006 में लिंकन
सेंटर की फिल्म सोसाइटी ने शोले को एक असाधारण फ़िल्म कहा, और साहसिक तथा
कॉमेडी दृश्यों, संगीत और नृत्य के इसके निर्बाध मिश्रण के रूप में वर्णित करते हुए इसे
"निर्विवाद क्लासिक" कहा। शिकागो रिव्यू के समीक्षक टेड शेन ने 2002 में
इसके विधिवत लिखे गए कथानक और "स्लैपडैश" छायांकन के लिए फिल्म की
आलोचना की और कहा कि फिल्म "स्लैपस्टिक और मेलोड्रामा के बीच घूमती रहती"
है।निर्माता जी.पी. सिप्पी के मृत्युलेख में, न्यूयॉर्क टाइम्स समाचारपत्र में लिखा गया था
कि शोले ने "हिंदी फिल्म निर्माण में क्रांतिकारी बदलाव किया और यह भारतीय
लिपि लेखन में सच्ची पेशेवरता लाई।"
बस...बस...बस....
इस से ज्यादा शोले के लिये लिखना मेरे बस मे नही है....लेकिन शोले से जुडे मेरे
कुछ अनुभव जरुर बताना चाहुंगा...जाते जाते एक और बात बता देता हु....शोले मे एक कलाकार
ने डबल रोल किया है....क्यु जटका लगा न ? जब शोले देखियेगा तो गौर फरमाइयेगा...उस
कलाकार का नाम है ‘मुश्ताक मर्चंट’..ट्रैन ड्राइवर के हाथो से धर्मेन्द्र जो शराब
छिन लेता है वो ट्रैन ड्राइवर की भुमिका और ‘ये दोस्ती’ गाने मे धर्मेन्द्र जिस की
टोपी छिन लेता है वो आदमी दोनो भुमिकाये इस कलाकार ने निभाइ थी।
11. शोले से जुडे
मेरे अनुभव.....
क्युकी मै सिनेमा टोक आर्टिकल लिखता
हु...इसिलिये इतना तो आप लोगो को समज मे आ ही गया होगा की फिल्मो का काफी शौख रहा
है मुजे। कभी कभी तीन तीन शो देख लेता था। आज तक मेरे अनुभव रहे है की अगर मेरा
मुड ठीक न हो, कोइ काम नही बन रहा हो, चारो ओर से समस्या से थक गया होता हु, बिमार
होता हु जैसे बुखार..जुकाम...सरदर्द.. तब केवल एक अच्छी फिल्म जादु का काम कर देती
है मेरे लिये। इस वक़्त पिछले 1 साल और 8 महिने से मै अपने घर से 410 की.मी. दुर हु
और महिने मे दो या तीन बार मुजे घर जाना होता है तो लगातार 10 से 12 घंटो का सफर
करना पडता है। उस वक़्त कोइ भी फिल्म या वेबसीरीज हो तो आसानी हो जाती है। वैसे आप
कहोगे की ये तो आम बात है लोग सफर मे फिल्मे देखते ही है। लेकिन मान लो आप के पास
नेटवर्क नही है (जो अक्सर मेरे रुट मे नही होता है) या आप के मोबाइल मे कोइ फिल्मे
या वेबसीरीज डाउनलोड न हो तो क्या करोगे ?
उस वक़्त मुजे काम आता है
आर.डी.बर्मन दा और कल्यणजी आनंदजी के टाइटल म्युजिक। शोले, शान, दीवार, कालिया ऐसे
अनगिनत फिल्मो के टाइटल म्युजिक का कलेक्शन मेरे पास है जो मै बार बार सुनता रहता
हु। इस से ही जुडी कुछ कहानी मै आप को बताने जा रहा हु..
शोले की कहानी या डायलोग्स की ओडियो
केसेट मैने बचपन मे बहुत बार सुन ली थी। क्युकी शोले रीलीज के बाद पुनह रीलीज भी
हो चुकी थी। इसिलिये सिनेमाघरो मे मेरे बचपन के वक़्त शोले नही चल रही थी। एक तो
फिल्मो का शौख उपर से उस की ओडियो केसेट सुन सुनकर मुजे देखने की तलब लगी हुइ थी। लेकिन
देखु तो कहा देखु ? फिर एक बार मौका मिला...मेरी कजिन सिस्टर के पास वीडीयो प्लेयर
था। सब से पहले मैने 1986 मे शोले छोटे टीवी सेट पर वीडियो केसेट से देखी।
बाद मे दो बार और वीडीयो प्लेयर मे
देख ली लेकिन इच्छा थी सिनेमा घर मे देखने की। ये मौका मुजे मिला 1994 मे जब मेरे
शहर मे ये फिल्म फिर एक बार आइ। मैने एक दोस्त को तैयार किया और उसे दोपहर के 3 से
7 के शो मे ले गया। टाइटल म्युजिक तो मुजे इतना पहले से ही पसंद था की उसे देखने
की चाह थी (वैसे भी एक भी फिल्म मै सेंसर बोर्ड के स्टेम्प से लेकर अंत के टाइटल्स
तक देख ही लेता हु तब तक न तो सिनेमाघर छोड्ता हु और न तो टीवी..)
लेकिन उस दोस्त ने देर कर दी और हम
पहुचे तब तक टाइटल्स समाप्त हो चुके थे....आप को बताने की जरुरत नही की बाद मे उस
दोस्त के लिये गालीयो का सारा शब्दकोष समाप्त कर दिया। उपर से शोले फिल्म मे मै सिनेमाघर
मे उस दिन खो गया था...अचानक मेरा ध्यान उस दोस्त पर गया....कमीना ऐसी अच्छी फिल्म
मे खर्राटॆ लेकर सो रहा था....इतना मारा है मैने उसे फिल्म के दौरान...।
ये फिल्म मैने आज तक 27 बार देखी है
(तब तक जब तक ये जी-टीवी पर नही आइ तब तक के आकडे है)। लेकिन एक भी बार मै टाइटल्स
नही देख पाया। 15 अगस्त 1996 के दिन शोले सब से पहलीबार देशी टीवी दूरदर्शन पर
आनेवाली थी। हमारे घर मे छोटा सा ब्लेक एंड व्हाइट टीवी सेट था। उस समय मेरी
मजबुरी ये थी की मै एक दुसरे दोस्त के भाइ की शादी मे अपने घर से 22 की.मी. दुर
था। दोपहर 1.30 बजे फिल्म शुरु होनेवाली थी। मैने खाना खाया और भागा। घर
पहुचा....टीवी शुरु किया...टाइटल्स समाप्त हो चुके थे।
बहुत सालो के बाद जब जी-टीवी पर
पहलीबार शोले आनेवाली थी उस दिन मै ओफिस से जल्दी घर पहुचा....खाना खाया...रात को
8 बजे शोले शुरु होनेवाली थी। शुरु भी हुइ...मै टीवी के सामने था और शोले के
टाइटल्स को रेकोर्डॅ करने के लिये मोबाइल मे रेकोर्डिंग ओन कर लिया। सेंसर बोर्ड
का प्रमाणपत्र भी स्क्रीन पर आया...जैसे ही ट्रैन रुकी और जेलर और रामलाल घोडे पर
सवार हुये की बीजली गुल....। घर मे था तो गालीया तो बोल नही सका लेकिन बीजलीवालो
को तो मन मे बहुत गालीया सुनाइ....हैरानी की बात ये है की बीजली आइ तुरंत लेकिन तब
तक घोडे ठाकुर की हवेली पहुच चुके थे (मतलब जहा टाइटल म्युजिक समाप्त होता है)।
वैसे पिछले 10 सालो से शोले फिल्म नही देखी है। मतलब कभी कभी कोइ कोइ सीन देख लेते
है। लेकिन टाइटल म्युजिक तो यु-ट्युब पर ही देखना पडा।
दुसरा अनुभव ये रहा की शोले मे एक
द्रश्य है जब इमामसाहब के बेटे सचिन की हत्या हो जाती है। गब्बर सिंघ के हाथो पर
मकोडा होता है और उसे वो मार देता है मतलब सचिन की हत्या हो जाती है। जब दुरदर्शन
पर ये फिल्म चल रही थी तब मेरे घर मे ओनीडा कम्पनी का छोटा टीवी सेट था जो पुराना
हो चुका था। जैसे ही वो सीन आया टीवी की पिक्चर ट्युब बन्ध हो गइ। मतलब टीवी सेट
मे द्रश्य दोनो तरफ से धीरे धीरे संकुचित होते हुवे पुरा ब्लेक हो गया। उस दिन से
लेकर जब तक कलर टीवी नही आया....बहुत बार ऐसा हुवा की पिक्चर ट्युब संकुचित हो
जाती थी और उस टीवी सेट को साइड से एक जोर का थप्पड मारना पडता था तब फिर से
द्र्श्यमान होता था। ये सचिन वाला सीन जितनीबार टीवी पर आया है मतलब दुरदर्शन हो या
जी-टीवी...हर बार उस सीन मे या टीवी बन्ध, या बीजली गुल...या मुजे कोल आ गया
हो..मतलब उस सीन के साथ मेरा अनुभव ये ही रहा की फिल्म अधुरी रह जाती थी। लगता था
की गब्बर सिंघ रुबरु होकर मुजे मार रहा हो...।
टाइटल म्युजिक वैसे सब फिल्मो के
मुजे सब से अच्छा लगता है फिल्म ‘शान’ का (सुन ने के लिये..देखने मे नही...देखने
मे क्यु नही वो आप सब शान के टाइटल्स देख लेना..जेम्स बोंड की कोपी है)। जब
पहलीबार सिनेमाघर मे मै शान देखने गया...फिर वोही इतिहास...इस बार मेरे छोटे भाइ
ने देर करा दी और वो म्युजिक छुट गया।
एक और किस्सा बताता हु। आज तक की
मेरी फिल्मी सफर मे केवल दो बार ऐसा हुवा है की मै आधी फिल्म छोडकर सिनेमाघर से
बाहर आया हु। पहली फिल्म थी ‘बेंडिट क्वीन’...इस फिल्म मे फुलनदेवी पर डाकुओ के
सामुहिक बलात्कार का द्रश्य है...वो मै नही देख पाया और उस सीन से मै फिल्म छोडकर
बाहर चला आया। दुसरी बार शोले फिल्म का 3डी वर्जन जब रीलीज हुवा तब पहलीबार
सिनेमाघर मे टाइटल म्युजिक सुन ने को और देखने को मिला। लेकिन इस 3डी वर्जन मे
पुरी फिल्म मे संगीत का इतना सत्यानाश किया है की फिल्म मैने आधी छोड दी और नीकल
आया।
जब मै पढता था तब एक दौर चल रहा
था....लोग कलाकारो को चिठ्ठीया लिखते थे। कलाकार लोग तो नही पढते थे लेकिन उस के सेक्रेटरी या
मेनेजर उन चिठ्ठीयो के जवाब एक छपे हुवे पोस्टकार्ड मे देते थे। वैसे महत्व था
कलाकारो के ओटोग्राफ का। मेरे मामा ने ये आदत मुजे लगाइ और मै भी लिखने लगा।
अनगिनत कलाकारो के पत्र और ओटोग्राफ मैने इकठ्ठे किये...लेकिन बात थी अमिताभ बच्चन
की। उस वक़्त अमिताभ के ओटोग्राफ मिल पाना अल्मोस्ट असम्भव था। मै जहा ट्युशन मे
जाता था वो सर, अमिताभ के बडे फेन थे और उस स्टाइल मे ही पढाते थे। मैने जब मेरा
शौख बताया तो उस ट्युशन मे आने वाले हर एक लडके और लडकियो ने उस सप्ताह अमिताभ बच्चन
को पत्र लिखे। मैने भी लिखा। सब के आश्चर्य के बीच केवल मुजे जवाब आया और अमिताभ
बच्चन के ओटोग्राफ मैने पाये। दुसरे सप्ताह दुसरी बार भी ओटोग्राफ वाला फोटो आया
जो पहले पत्र के फोटो से अलग था।
दुसरा तो कुछ नही हुवा लेकिन ट्युशन
मे मेरा महत्व बढ गया और वो साहब कुछ विशेष ध्यान मुजे देने लगे। ये ख्वाब तो मेरे
मामा का भी पुरा नही हुवा था। वैसे ये हमारी बच्चो जैसी हरकते थी जो केवल 5 या 7
साल तक जारी रही...उन दौरान मेरे मामा ने फोन से बाते भी की... शोले के इमामसाहब
श्री ए. के. हंगल के साथ....इस कलाकार को मेरे मामा ने फोन मे बहुत गालीया दी थी। पता
नही लेकिन क्यु उन्हे मस्ती सुजी थी तो बहुत गालीया दी थी। दुसरी कलाकारा है
‘सुजाता मेहता’ जिस ने नाना पाटेकर की दुसरी फिल्म ‘प्रतिघात’ मे जबरदस्त भुमिका
निभाइ थी। उन्होने अपने हाथो से काली सियाही से मुजे पोस्टकार्ड मे जवाब भी लिखा
और अपना लेंडलाइन नम्बर भी भेजा था। लेकिन कभी उन से बात करने की मुज मे हिम्मत
नही हुइ क्युकी उस फिल्म मे भी सुजाता मेहता पर बलात्कार का सीन फिल्माया गया है।
बाकी, रुबरु कीसी कलाकार को आज तक
देखा नही है। एक फिल्म की शुटिंग मेरे शहर मे हुइ थी...फिल्म का नाम था ‘एक था
राजा’ जिस मे कादरखान, शक्ति कपूर और आदित्य पंचोली थे। एक दिन मै घर लौट रहा था
और भर बाजार मे भारी भीड थी कलाकारो को वहा खाने पे लाया गया था। अचानक एक बेहद
कीमती कार से मै चलते चलते टकराया और पिछे मुडकर देखा तो खुद आदित्य पंचोली ड्राइव
कर रहे थे। ये एकमात्र हादसा हुवा जब मैने कीसी कलाकार को रुबरु देखा। हा साउथ
सुपरस्टार ज्योतिका सदानाह को एक बार खुले ट्रक मे कुछ मार्केटिंग करते हुवे देखा
है जब मै बेंगलोर गया हुवा था तब। लेकिन वो सब इत्तेफाक की बाते है।
मुजे सारे कलाकार जिस ने अच्छी
भुमिकाये की है पसंद आते है...लेकिन बचपन से ही कभी कोइ कलाकार को रुबरु देखने की
या मिलने की कभी चाह नही हुइ। कौन बनेगा करोडपती आज तक एक भी एपिसोड पुरा मैने कभी
नही देखा। कपिल शर्मा शो की केवल क्लिप्स देखता हु और वो भी तब तक जब तक उस के
दुसरे कलाकार की एंट्री स्त्रीपात्रो मे नही हो जाती। हा डांस शो और गीत के शो मै पहले
देखा करता था जैसे बुगी वुगी...डांस इंडिया डांस...सारेगामापा ये मेरे पसंदीदा शो
रहे है। एकता कपूर की एक भी सीरीयल कभी नही देखी।
चलिये अब ‘शोले’ की कहानी खत्म करते
है। धन्यवाद आप सभी का जिस ने आज तक के पुरे 4 भाग पढे और लाइक्स कोमेंट्स दिये।
कीसी वजह से नही दिये उन सब को भी धन्यवाद। बहुत जल्दी सिनेमा टोक मे लेकर आ रहा
हु ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’....’हम आप के है कौन’..... और क्युकी उस समय मै
भी टीनएजर था तो मेरी आज तक की शोले के साथ साथ की फेवरीट फिल्म ‘मैने प्यार
किया....’ जिसे मैने सिनेमाघरो मे आज तक सब से ज्यादा देखी है...16 बार और कुल 27
बार...ऐसी फिल्मो को लेकर...फिल्मो से रीलेटेड....कुछ किस्से कुछ कहानी...को
लेकर...बहुत जल्दी आउंगा....तब तक विदा लेता हु....।
# नोनस्टोप राइटिंग चेलेंज भाग-12
shweta soni
08-Jul-2022 09:47 PM
Nice 👍
Reply
PHOENIX
09-Jul-2022 09:15 AM
Thanks
Reply
Seema Priyadarshini sahay
08-Jul-2022 08:39 PM
Nice 👍
Reply
PHOENIX
09-Jul-2022 09:15 AM
Thanks
Reply
pk123
01-Jul-2022 08:48 PM
Nice
Reply
PHOENIX
01-Jul-2022 11:35 PM
Thanks bro
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