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लेखनी प्रतियोगिता -02-Jul-2022

तन्हाई...

चाहु पास मैं तेरा होना 
जब मैं होता हूँ तेरे साथ 
खुशियो का यूँ छा जाना 
जब होता है हाथो में तेरा हाथ

तुझसे दूर जाना नही मैं चाहता
जाने ये किसी मजबूरी है तेरी मेरी 
रोकना चाहु भी तो नही रोक सकता
होना है जैसे रात के बाद दिन जरुरी 

तुझसे बिछड़ कर ये जाना मैंने 
अभी भी खली है दामन मेरा 
कुछ नहीं हूँ आज मैं इस जहान का 
जो पहले कभी हुआ करता था मेरा 

तन्हा तन्हा सा हूँ इस भीड़ में 
जैसे कोई लहरें न हो इस किनारे की 
जानता था देख रहा हुँ सपना कोई में 
जैसे कांटें खिल गए हो शाख पर इन फूलों की 

बस एक तम्मना है, एक आरज़ू है 
जरुरत है तो बस तेरे साथ की 
हर किसी को होती जरुरत है 
जैसे होती है दिन को रात की

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11 Comments

Shrishti pandey

04-Jul-2022 08:48 PM

Very nice

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Punam verma

04-Jul-2022 12:13 AM

Very nice

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Abhinav ji

03-Jul-2022 09:06 AM

Nice👍

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