जज़्बात
जज्बात
कातिल है, पर लाश किधर है?
अरमानों का खून हुआ गर।
हाथ तो हैं, पर खाक किधर है?
कहीं ख्वाबों का महल गिरा पर।
टीस तो है, पर कांच किधर है?
सपने चकनाचूर हुए जो।
फांस तो है, पर घाव किधर है?
दिल जो किसी का टूटा है जब।
बाढ़ तो है, पर बांध किधर है?
आंसू का सैलाब बहा तो।
जोश तो है, पर होश किधर है?
गुस्से की ज्वाला फूटी जो।
तुमने समझा, मैंने समझा
जज्बातों का है एक मेला
इस मेले में भीड़ बहुत है
फिर भी इंसा रहे अकेला।।
आभार - नवीन पहल - ०४.०७.२०२२ 🙏🙏🌹❤️
# प्रतियोगिता हेतु
Pallavi
05-Jul-2022 03:09 PM
बहुत बेहतरीन
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Abhinav ji
05-Jul-2022 07:37 AM
Very nice
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Swati chourasia
05-Jul-2022 06:02 AM
बहुत खूब 👌
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