स्वैच्छिक
🌹🌹🌹🌹 ग़ज़ल 🌹🌹🌹🌹
फ़साने वफ़ा के बनाती है क्या - क्या।
ये दुनिया सितम दिल पे ढाती है क्या - क्या।
यूँ ही बैठे - बैठे तसव्वुर 'में आ कर।
वो अरमान दिल में 'जगाती है क्या - क्या।
कभी 'सर्द मौसम कभी तेज़ 'बारिश।
ये क़ुदरत करिशमे दिखाती है क्या - क्या।
मुह़ब्बत के तोह़फ़े सजाने की ख़ातिर।
वो 'कमरे में अपने सजाती है क्या - क्या।
किसी 'का नशेमन तो छप्पर किसी के।
ये आँधी हवा में उड़ाती है क्या - क्या।
थकन है कभी तो कभी दर्दे 'सर है।
वो हर दिन बहाने बनाती है क्या - क्या।
कभी अपना शैदा 'कभी अपना दिलबर।
फ़राज़' अब वो मुझको बताती है क्या-क्या।
सरफ़राज़ हुसैन 'फ़राज़' मुरादाबाद उ0प्र0।
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Swati chourasia
06-Jul-2022 06:45 AM
बहुत ही सुंदर रचना 👌👌
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Raziya bano
05-Jul-2022 06:46 PM
बहुत खूब
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Gunjan Kamal
05-Jul-2022 05:29 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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