लेखनी प्रतियोगिता -06-Jul-2022 क्यू खोया हुआ है कल में
रचयिता-प्रियंका भूतड़ा
शीर्षक-क्यों खोया हुआ है कल में
हे मनुष्य! उठ आज तुम,
आगे बढ़ा तू कदम,
क्यू डगमगा रहे हैं कदम,
क्यू खोया हुआ है कल में।
देख! आज का नजारा,
दे रहा है तुझको इशारा,
जो छूट गया पीछे ,ना पछता,
नए सलीको से बुन नया सपना।
हे मनुष्य! उठा आज तू।
रोज रवि आता ,
लेकर आता एक नई बेला,
नई भोर में लेकर आता,
इक नया उजाला,
नयी राह को यही सिखाता,
आगे तू हमेशा बढ़ना।
हे मनुष्य ! उठ आज तू।
दे तेरी मंजिल को एक नया रास्ता,
है सपनों को तुझ से यही वास्ता,
होगा तेरा पथ कांटीला,
पर तनिक नहीं घबराना,
मंजिल हो जब हमें पाना,
संघर्षों से करना होगा हमें मुकाबला।
हे मनुष्य! उठ आज तू।
जब छाया होगा घना कोहरा,
पीछे मुड़कर ना देखना,
आगे बढ़कर खोजना नहीं दिशा,
अंधेरे के बाद होता है उजियारा,
मिलेगा तुझे तेरी मंजिल का रास्ता।
हे मनुष्य ! उठ आज तू।
काली बदरिया जब भी छाए,
मन को थाम कर आगे बढ़ना,
जीवन में हर संकट का करना सामना।
हे मनुष्य ! संघर्ष से ही मिलती मंजिल,
तनिक नहीं घबराना,
रखना तू मन में आस्था,
होगा तेरा हर मकसद पूरा।
Shrishti pandey
07-Jul-2022 09:27 AM
Nicer
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Abhinav ji
07-Jul-2022 08:24 AM
Nice
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Punam verma
07-Jul-2022 07:15 AM
Nice
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