लेखनी प्रतियोगिता -08-Jul-2022 - कसम
कसमें आखिर खाना ही क्यों है ?
रिश्ता ऐसा निभाना ही क्यों है ?
विश्वास की डोर न हो जिस बंधन में ,
आखिर ऐसा बंधन बांधना क्यों है?
कसमों से आज तक किसका हुआ फायदा ,
रखा ही रह गया जग में यहां सारा कायदा,
बड़े-बड़े युद्ध हमने यहां होते यहां देखे हैं ,
फैल गया जिनसे चारों तरफ रायता ही रायता।
तकदीरों को रंग बदलते हमने देखा है,
हाथों में अगर हमारे मिलन की रेखा है,
सनम तुझसे ना हो जग में कोई प्यारा ,
कसमों वादों से फिर यहां क्या होना है?
फूल बगीचों के संग कब कसमें खाते हैं ,
माली भी जब उनको गूंथ माला में जाते हैं ,
खुशबू फैलाते है फिर भी वह चारों तरफ,
शिरकत महफिल में करते नजर आते हैं।
धोखे की फितरत अगर नीयत में होगी ,
रुखसत जाने तमन्ना महफ़िल में होगी ,
चांद भी छिपता हुआ नजर आएगा ,
कसमों से जब आंखें सबकी नम होंगी।
आओ सारी कसमों को हम तोड़ दे ,
रूह से रूह के बंधन का प्यारा मोड़ दे ,
आत्माओं के मिलन की परवाह करें हम ,
तनों के मिलन की जग में आस छोड़ दें।।
#दैनिक प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)
shweta soni
09-Jul-2022 03:39 PM
Nice 👍
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Punam verma
09-Jul-2022 03:00 PM
Very nice
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Raziya bano
09-Jul-2022 06:53 AM
Bahut khub
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