बेटियाँ
ना कोई चांद अलग से है।
ना सूरज अलग चमकता है।
बेटी मे अब है वो जज्बा,
जो मंजिल नई दिलाता है।
इतिहास से लेती है शिक्षा।
सूरज से लड़ने की इच्छा।
मन में सुदृढ़ लक्ष्य धारती,
तब जाके फल पाती अच्छा।
जब विपरीत दिशा अपनाती।
तब वो कुछ हाँसिल कर पाती।
बनती वो सिरमौर सभी की,
फिर जग में है नाम कमाती।
कठिन शब्द को नही जानती।
मुश्किल को है हाँथ लगाती।
तोड़ समाज के अंकुश को वो,
अब अपना परचम लहराती।
मात समय को आज दे रही।
मान समाज से वो ले रही।
कपि सम वो है गगन नापती,
भारत माँ का नाज बन रही।
साहस शौर्य तेज क्या कहना।
बना चुकी इसको वो गहना।
चुटकी में हल सब प्रश्नों के,
सीख चुकी हर दर्द को सहना।
कमतर मत आंकों बिटिया को।
अब बेटा सम मानों उसको।
देश धर्म राजनीति बताए,
प्रेम ममत्व सिखाती सबको।
ना कोई चांद अलग से है।
ना सूरज अलग चमकता है।
बेटी मे अब है वो जज्बा,
जो मंजिल नई दिलाता है।
✍राजेश कुमार कुशवाहा "राज"
Aliya khan
04-Aug-2021 07:49 AM
Wah
Reply