एक मुर्दे की मौत
भाग 1
मेरे सामने इस वक़्त जो शख्स बैठा था वो इस वक़्त सुरत से ही परेशान हाल लग रहा था...वो मेरे सामने वाली कुर्सी पर बैठा हुआ इस वक़्त बेचैनी से अपना पहलू बदल रहा था।
" आपके मुताबिक आपका भाई पिछले पंद्रह दिन से लापता है और अभी तक उसकी कोई खबर नही लगी है" मैंने उस परेशानी में डूबे हुए शख्स से पूछा।
" जी ! उसकी घरवाली मतलब मेरी भाभी ने तो यही बताया है कि मेरे भैया पंद्रह दिनों से घर नही आये है" उस शख्स की आवाज से भी उसकी अपने भाई के प्रति चिंता टपक रही थी।
" इतने दिनों तक क्या आपकी भाभी सिर्फ आपके भैया के आने का इंतजार करती रही...पुलिस में कोई रपट दर्ज नही करवाई" मैंने अपनी तीक्ष्ण दृष्टि उस शख्स पर डाली।
" जी तीन दिनों के बाद भाभी ने रपट लिखवाई थी थाने में...लेकिन वहाँ से भी कोई जानकारी नही मिली...मुझे डर है कि मेरे भैया के साथ कुछ गलत न हो गया हो" उस शख्स ने धीरे धीरे खुलते हुए कहा।
" आपके भाई के साथ कुछ गलत होने का अंदेशा क्यो है आपको" मैंने शंकित दृष्टि से उस शख्स को घूरा।
" मेरे भाई की तो ये पहली शादी थी लेकिन मेरी भाभी की ये दूसरी शादी थी...उनका पहला पति भी इसी तरह से गायब हुआ था...जिस तरीके से मेरा भाई लापता हुआ है" उस शख्स की बात सुनते ही मेरे मुंह से एक सीटी निकल गई थी।
लगता है अभी तक आपने अपने इस खाकसार को नही पहचाना है...अरे मैं वही आपका खादिम अनुज.. आप तो मेरे धंधे के बारे में जानते ही है...मैं पेशे से एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ...लेकिन आप मुझे शक धोखा पीछा या तलाक के केस हैंडल करने वाला जासूस मत समझ लेना....आपके इस खादिम को सिर्फ और सिर्फ कत्ल के केसों में ही दिलचस्पी होती है। मेरे इस धंधे में मेरी सहायक है एक रागिनी नाम की लड़की....जिसका पूरा नाम है रागिनी कश्यप...ये मोहतरमा मार्शल आर्ट की अपने कॉलेज के जमाने की चैंपियन है.., जिसका रोब ये यदाकदा मुझे भी दिखाती रहती है...,लेकिन दिमाग के मामले में आला दर्ज़े के दिमाग की मालकिन है...आपके इस खाकसार का एक छोटा सा आफिस दिल्ली के नेताजी सुभाष प्लेस स्थित एक टावर में है...चपरासी नरेश को मिलाकर कुल जमा तीन लोग हमारी डिटेक्टिव एजेंसी में है....,.चौथा आदमी था हमारा खबरी...."जहां न पहुंचे रवि वहाँ पहुंचे" कवि की तर्ज पर हमारा खबरी अनेक मौकों पर अपनी काबलियत सिद्ध कर चुका था। लेकिन इस वक़्त मैं शक्ति नगर के एक फ्लैट में अरुण नाम के शख्स के सामने बैठा हुआ था। जिसका बड़ा भाई पिछले पंद्रह दिनों से लापता था,और जिसे पुलिस भी अभी तक ढूंढने में नाकामयाब रही थी।
"इसका मतलब आपको अपनी भाभी पर शक है...की आपका भाई लापता हुआ नही है...बल्कि उसे लापता किया गया हैं" मैंने अरुण के मन की बात उसके मुँह से उगलवानी चाही।
" जी मुझे तो सौ प्रतिशत यकीन है" अरुण ने पूरी बेबाकी से कहा।
" लेकिन कोई कारण तो होगा इस सोच के पीछे" मैंने अरुण को और कुरेदा।
" मेरे भाई के घर पर आजकल एक पुलिसिये का हद से ज्यादा आना जाना है..घर के अंदर के ही किसी बन्दे ने मुझे बताया है कि भैया के घर से बाहर जाते ही वो पुलिसिया वहां आ धमकता था...और कम से कम चार पांच घन्टे के बाद वहां से निकलता था" अरुण ने अपने लेबल पर ही काफी जानकारी जुटाई हुई थी।
" मतलब आपकी भाभी अपनी आदत की मारी हुई है...दूसरे पुरुष से सम्बन्ध बनाने में उसे कोई हिचक या डर महसूस नही होता" मैंने अरुण की भावनाओ को अपनी आवाज दी।
" जी ऐसा ही समझ लीजिए...इसलिए मैं आशंकित हूँ कि मेरे भाई के साथ कुछ गलत न हो गया हो" अरुण ने मेरी ओर ये बोलते हुए निरीह नजरो से देखा।
" आप निश्चिन्त रहिये...मैं सच्चाई की तह तक पहुंचने की पूरी कोशिश करूंगा....अपनी भाभी का पता बताइए...और उस पुलिसिये के बारे में बताइए कि वो किस थाने में ड्यूटी में कर रहा है" मैंने अब अपने मतलब की थोड़ी सी जानकारी जाननी चाही। बकौल अरुण उसकी भाभी वही कमला नगर के एक बंगले में रहती थी...जो कि अरुण के पिता ने कभी पुराने जमाने मे बनवाया था...पिता के बाद बंटवारे में अरुण के हिस्से में शक्ति नगर वाला ये मकान आ गया था,जहाँ इस वक़्त आपका ये खाकसार विराजमान था। और अरुण का भाई जिसका नाम विजय था.., उसके हिस्से में वो कमला नगर वाला बंगला आ गया था...जहां से वो पिछले पंद्रह दिनों से लापता था।
मैंने सारी जानकारी लेने के बाद वहां से चलने की इजाजत माँगी...तो अरुण ने मुझे दो मिनट वही रुकने को बोला। कुछ ही पलों में अंदर से आकर अरुण ने मेरे हाथ मे एक पचास हजार की हरियाली मेरे हाथों में रख दी...उस हरियाली को देखकर मुझे भी चारो और अब हरियाली ही हरियाली नजर आने लगी थी....आपका ये खादिम वैसे भी आती हुई लक्ष्मी को कभी न नही बोलता है...इसलिए उन नोटों को अपने माथे से लगाकर मैंने अपनी जेब के हवाले किया।
" ये एडवांस है...फीस आप जो कहोगे वो आपको मिलेंगी" अमीर बन्दों की मैं हमेशा इसी बात का कायल रहता हूँ..पैसे देने के मामले में कभी कोताही नही बरतते है। मैंने अरुण से गर्म जोशी से हाथ मिलाया और शक्ति नगर के उस मकान से मैं बाहर निकल आया।
************
अरुण ने उस पुलिसिये का जो नाम बताया था,वो था सतबीर राठी...एसआई के ओहदे पर जनाब वही के लोकल थाने में विराजमान थे। मेरे लिए उस थाने में जाने का एक सबब ओर भी था कि उस थाने के एस एच ओ साहब के साथ मैं पहले भी एक केस के सिलसिले में काम कर चुका था( पढिये वो पैंतालीस मिनट) इंस्पेक्टर राजेश श्रीवास्तव अभी भी उसी थाने में अपने पद पर कायम थे....इसलिए मुझे थाने से सम्बन्धित किसी भी काम मे इस केस में तो रुकावट आनी नही थी। मैं कोई पंद्रह मिनट में ही अरुण के घर से थाने में पहुंच चुका था।
" आपके खादिम को अंदर आने की इजाजत है क्या हुजूर" मैंने एसएचओ साहब के कमरे के दरवाजे पर खड़े होकर हुंकार भरी। मुझ पर नजर पड़ते ही राजेश श्रीवास्तव जी अपनी सीट से खड़े होकर तेज कदमो से मेरी तरफ आये और गर्मजोशी से मेरे हाथों को अपने हाथों में थाम लिया।
" बड़े दिनों में दर्शन दिए ...जासूस साहब...लगता है आजकल कुछ ज्यादा ही केस मिलने लगे है आपको"राजेश जी ने मुझे अपने सामने बिछी एक कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और तुरंत अर्दली को बुलाने के लिए घण्टी बजा दी। अर्दली फ़ौरन से पेश्तर कमरे में हाजिर हो गया।
" दो बढ़िया सी काफी लेकर आओ और साथ मे कुछ खाने के लिए भी लेकर आना"राजेश जी को मेरी कॉफी पीने की आदत का पहले से ही इल्म था।
" हुजूर आपके दरबार में आज किसी काम से हाजिर हुआ हूँ" मैंने राजेश जी का समय ज्यादा न खराब करते हुए मुद्दे की बात पर आया।
" हाँ ! बोलो...,मेरी जद में काम हुआ तो अवश्य करूँगा" राजेश जी ने तुरंत बोला।
" आपके इलाके से एक आदमी पिछले पंद्रह दिनों से लापता है...उसके केस की प्रगति के बारे में जानना था"मैंने बात की शुरुआत की।
" आदमी का नाम बताओ..एक दो केस तो मेरी जानकारी में भी है" राजेश जी ने उत्सुकता से मेरी ओर देखा।
" लापता शख्स का नाम है विजय वर्मा..पिछले पंद्रह दिनों से घर से ही लापता है....उसके लापता होने के तीन दिन बाद उसके भाई ने उसके लापता होने की रपट भी आपके यहाँ पर दर्ज करवाई थी..लेकिन उसके भाई का कहना है कि इस केस में पुलिस कुछ कर ही नही रही है" मैंने बिना किसी संकोच के राजेश जी को पूरी बात को बताया।
" विजय वर्मा का केस तो राठी के पास है...मैं अभी उसे बुला कर पूछ लेता हूँ..., इस केस की क्या स्थिति है" राजेश जी ने जिस पुलिसिये का नाम लिया था,उसे सुनकर मैं चोंक गया था...यहाँ तो बंदरो को ही केलो की रखवाली का काम दिया हुआ था।
"क्या नाम बताया आपने...राठी..कहीं ये सतबीर राठी तो नही" मैंने तुरंत राजेश जी से पूछा।
" हाँ! सतबीर राठी ही है...तुम जानते हो इसे" अचानक से राजेश जी ने दिलचस्पी से पूछा।
" नही जानता तो नही हूँ...लेकिन इनके बारे में सुना बहुत कुछ है...इनको मेरे बारे में मत बताना की मैं एक जासूस हूँ...बाकी बाते आपको बाद में बताऊंगा" ये बोलकर मैंने उस अर्दली कि तरफ देखा जो इतनी जल्दी कॉफी लेकर हाज़िर हो गया था।
" जरा राठी को बोलो की मैं बुला रहा हूँ" कॉफी रखते ही राजेश जी ने अर्दली को बोला। अर्दली सहमति में सिर को हिलाता हुआ कमरे से बाहर चला गया।
कोई पांच मिनट में ही लगभग सत्ताईस अट्ठाइस साल का एक नवयुवक कमरे में दाखिल हुआ..जो शायद सीधा एसआई की पोस्ट पर ही भर्ती हुआ लग रहा था।
" जी जनाब!आपने बुलाया मुझे" राठी ने अदब से खड़े होकर बोला।
" राठी एक मिनिट बैठो..और मुझे उस विजय वर्मा के केस के बारे में बताओ कि उस केस में क्या हुआ है अभी तक" राजेश ने राठी को बोला।
"जनाब अभी इन्वेस्टीगेशन चल रही है...इस मामले में उसके बड़े भाई की भूमिका संदिग्ध लग रही है...उस दिन आखिरी बार जब वो घर से गया था तो अपने भाई से मिलने की बात बोलकर ही निकला था...जैसा कि विजय की वाइफ ने अपने बयान में बताया है...लेकिन उसका भाई इस मामले में कोई सहयोग नही दे रहा है" राठी ने उसके भाई से बिल्कुल उलट कहानी सुनाई।
" लेकिन उसका भाई तो बोल रहा है कि पुलिस उसके भाई को तलाश करने के लिए कुछ कर ही नही रही है" राजेश जी ने अपनी जुबान से मेरे अल्फाज बोले।
" वो गलत बोल रहा है जनाब! जितनी बार भी उसे मैंने इस बारे में बात करने के लिए बुलाया है वो हर बार ना नुकर करता है...यहाँ तक कि एक बार जब मैं उसके घर पर उससे पूछताछ करने गया...तब भी उसने अपने बच्चो से ये कहलवा दिया कि वो घर पर नही है...अगर उसे अपने भाई की इतनी ही चिंता है तो वो पुलिस से बचता हुआ क्यो घूम रहा है" राठी की बात में अगर सच्चाई थी तो अरुण को भी अब मुझे अपने शक के घेरे में रखना पड़ सकता था...लेकिन बिजय की बीवी से अपनी आशनाई के चलते राठी कोई कहानी भी बना सकता था और उसके भाई को फंसा भी सकता था। मैं अभी सिर्फ राठी की बातों को सुनना चाहता था..मैं अभी विजय की बीवी और उसके बारे में राजेश जी के सामने कुछ भी पूछना नही चाहता था...क्योकि मैं अभी सिक्के के सिर्फ एक पहलू से वाकिफ था..सिक्के का दूसरा पहलू समझने के लिए मुझे अभी विजय वर्मा की बीवी रोशनी वर्मा से मिलना जरूरी था।
" अगर वो खुद से नही आ रहा है तो पुलिसिया तरीके से उठाकर लाओ उसे यहाँ..फिर मैं खुद उससे पूछताछ करूँगा" राजेश जी उस सिचुएशन में यही बोल सकते थे।
" ठीक है जनाब !फिर आज रात को मैं फिर से उसके घर जाता हूँ...और इस बार थोड़ी सी सख्ती से पेश आकर उसे अपने साथ ही उठाकर लाऊंगा" राठी ने राजेश जी को बोला।
" ठीक है अभी तुम जाओ...जब उसे लेकर आओ तो मुझें बताना"ये बोलकर राजेश जी ने राठी को वहां से जाने का इशारा किया।
" ये तो कुछ और ही बोल रहा है...जो शख्स तुमसे पुलिस के द्वारा कुछ नही करने की शिकायत कर रहा है...वही पुलिस का सहयोग करने से कतरा रहा है" राजेश जी ने मेरी ओर हैरानी से देखते हुए कहा।
" ये बात तो मुझे भी हैरत में डाल रही है...मैं उन साहब से इस बारे में खुद बात करूँगा...आखिर कोई तो वजह होगी..पुलिस से दूर भागने की" मैंने राजेश श्रीवास्तव की हाँ में हाँ मिलाई। इस बातचीत के दरम्यान ही हम लोग कॉफ़ी और नाश्ता खत्म कर चुके थे।मैंने राजेश जी से विदा ली और थाने से बाहर आ गया।थाने से बाहर आते ही मैंने अब विजय वर्मा के घर के पते पर एक सरसरी नजर डाली। उसके बाद अपनी गाड़ी को उस पते की दिशा में मोड़ दिया। कोई दस मिनट की तलाश के बाद मैं उस दो मंजिला बंगले के दरवाजे की बेल बजा रहा था...ये सब पुराने जमाने मे सदर और चांदनी चौक के व्यापारियों के द्वारा खरीदे गए बंगले थे...अब तो दिल्ली में इस तरह के बंगले बनना बीते जमाने की बात हो चुकी थी।
दरवाजा जिन मोहतरमा ने खोला वो कोई शक्ल से ही गंगूबाई लगने वाली कोई पैंतीस साल की महिला थी।
" रोशनी मैडम से मिलना था" मैंने निहायत ही तमीज भरे स्वर में उन्हें बोला।
" मेमसाहब तो अभी सो रही है...उनकी कल रात से ताबियत बहुत खराब है" उस गंगूबाई ने मुझे टरकाने वाले अन्दाज में बोला।
" तुम्हे यहां तनख्वाह लोगो को दरवाजे से ही भगा देने की मिलती है क्या..मैडम को बोलो की मैं उनसे उनके पति के बारे में बात करने के लिए आया हूँ..जो कि पिछ्ले कई दिनों से लापता है" मेरी तेज आवाज का असर ये हुआ कि गंगूबाई बिना कुछ बोले ही अंदर की ओर दौड़ती हुई चली गई। वो जितनी तेजी से गई थी उतनी ही फुर्ती से लौट कर भी आई।
" चलिए मेमसाहब बुला रही है आपको" गंगूबाई ने मेरी ओर अजीब सी नजरो से देखते हुए कहा।
" जब कोई मिलने के आता है तो पहले उससे उसका परिचय पूछ कर फिर मेमसाहब से बात करके फिर कोई जवाब देना चाहिए...अपने मन से ही किसी को दरवाजे से भगाने का काम नही करना चाहिए" मेरी बात सुनकर गंगूबाई ने मेरी ओर कातर नजरों से देखा।।
" गलती हो गई साहब"गंगू बाई ने डरे हुए स्वर में कहा।
" नाम क्या है तुम्हारा" मैंने अब उसका डर कम करने के लिए पूछा।
" गंगूबाई साहब! आप यहां बैठिए...मैं मैडम को बुला कर लाती हूँ" ये बोलकर वो मुझे अवाक अवस्था मे वही छोड़कर अंदर की तरफ गुम हो गई।
मैं इस वक़्त रोशनी मैडम के इंतजार में वहां बिछे एक आलीशान सोफे पर जाकर पसर गया। मुझे इंतजार था कि रोशनी मैडम कब आकर इस मेहमानखाने को अपनी रोशनी से रोशन करेगी। उन मोहतरमा ने मुझे ज्यादा देर इंतजार नही करवाया...उसे देखते ही विजय का उसका दूसरा पति बनने का माजरा मेरी समझ मे आ गया था। वो अपने नजाकत भरे कदमो से मेरी ओर बढ़ती हुई चली आ रही थी। कसम से अगर उसकी चाल में नजाकत न होती तो वो मोहतरमा अभी तक कब की मेरे सामने आकर विराजमान हो चुकी होती। मोहतरमा कोई ज्यादा हसीन परी तो नही थी,लेकिन उसका रहन सहन का सलीका उसे सुंदर बना रहा था। उसके नयन नक्श ही उसके पूरे शरीर की यूएसपी थे। बाकी दौलत पास हों तो छोटी मोटी कमियां तो खुद ब खुद दूर हो जाती है। आपका खाकसार इस वक़्त उस मोहतरमा पर अपनी तीक्ष्ण दृष्टि इसलिए जमाये हुए था की मैं देखना चाहता था कि अपने पति के गुम हो जानें का दुख उनके चेहरे से भी नुमाया हो रहा था या नही। लेकिन उसके मेकअप के ढके चेहरे पर दुख का मुझे कोई नामो निशान नही मिला था। मैं बस अब उसके खनकने का इंतजार कर रहा था।
भाग 2
" आप कौन हो...आपको कभी इससे पहले देखा नही" आखिरकार वो मोहतरमा खनखनाई।
" आपके इस खाकसार को देखने के लिए भारत सरकार ने टिकट लगाई हुई है मोहतरमा...इसलिए शायद आप कभी न देख पाई हो" मैंने हल्का सा मुस्करा कर जवाब दिया।
" आदमी दिलचस्प और हाजिरजवाब लगते हो...गंगूबाई बता रही थी कि आप मेरे लापता पति के बारे में कुछ बात करना चाहते थे...आप जानते है क्या उनके बारे में कुछ" बोलते बोलते रोशनी ने मेरे सामने वाले सोफे पर बैठने का उपक्रम किया।
" अभी तो कुछ नही जानता...अभी तो सिर्फ इतना जानता हूँ कि आपके पति पिछले पंद्रह दिनों से लापता है...जिनके लापता हो जाने की रपट आपने तीन दिन बाद पुलिस में लिखवाई...जिसकी खोजबीन सतबीर राठी नाम का एक एसआई कर रहा है", ये बोलकर मैंने उन मोहतरमा के कटीले नयन नक्श पर अपनी निगाहे जमा दी।
" तुम तो कोई जासूस जान पड़ते हो...किसी के कहने पर यहां आए हो या पुलिस से लीड निकलवा कर धंधे पानी की तलाश में यहां आए हो" मोहतरमा सुंदर होने के साथ साथ आला दिमाग की मालकिन भी थी।
" जी दाद देनी पड़ेगी आपकी इन कयामत खेज नजरो की...आप तो पहली नजर में ही अपने खादिम की काबलियत को पहचान गए" मैंने रोशनी पर एक दिलफरेब मुस्कान फेंकते हुए बोला।
" मतलब आप जासूस हो...लेकिन मुझे तो किसी भी जासूस की सेवा की जररूत नही है...आप अपना कार्ड यहाँ छोड़ जाइये...अगर जरूरत लगेगी तो आपको जरूर याद करूंगी...क्योकि अभी पुलिस जांच कर रही है और मुझे उनकी जांच पर पूरा भरोसा है" रोशनी अचानक से बेजार स्वर में बोली।
" पंद्रह दिनों में पुलिस आपके पति का रुमाल तक नही ढूंढ सकी है मैडम...और आपको पुलिस की जाँच पर इतना भरोसा है...लगता है पति के लापता हो जाने का कोई खास गम नही है आपको...इसलिए ऐसा बोल रही हो" मैंने उन मोहतरमा की दुखती रग को दबाया।
" उनका कोई किडनैप नही हुआ है...वो अपनी मर्जी से गये है...इसलिए अपनी मर्जी से लौट भी आएंगे..इसलिए मैं उनके लिए ज्यादा चिंतित नही हूँ...पड़े होंगे अपनी किसी रखैल की आगोश में" अचानक से रोशनी की आवाज में तल्खी उभर आई थी।
" लेकिन पुलिस को तो आपने इसके उलट ही बयान दिया है...उसमे तो आपने उनके भाई अरुण पर ही अपने भाई को लापता करने का शक जाहिर किया है...और अब आप किसी रखैल का जिक्र कर रही है...आप का पहले का बयान सही मानू या अभी का बयान सही समझू" मैं अब इस चालाक लोमड़ी को अपनी बातों के शिकंजे में कसना चाहता था।
" इसकी सफाई मैं आपको क्यो दूं...आप कौन होते है...इन बातों को पूछने वाले" अचानक से रोशनी ने फिर से पैतरा बदला।
" क्योकि जिस भाई पर आप अपने पति को गायब करने का शक जता रही है..उसी भाई ने आप पर भी उनके भाई को लापता करने का शक जताया है...और ये शक तब और भी पुख्ता हो जाता है जब ये पता चलता है की आपका पहला पति भी इसी तरह से लापता हुए था..जैसे आज आपका ये वर्तमान पति गायब हुआ...और वजह बताऊ या इतनी वजह काफी है...आपसे पूछताछ करने के लिए" मैंने उन्ही मोहतरमा को उन्ही की टोन में जवाब देकर उनके नट बोल्ट ढीले किए। अब उनके अंदर मारता हुआ जोश अचानक से किसी पानी के बुलबुले की तरह से बैठ गया।
" ये सब भी तुम्हे अरुण ने ही बताया होगा" इस बार रोशनी की आवाज में वो पहले वाले तेवर नही थे।
" जी ! उन्होंने ही बताया है...और उन्होंने तो और भी बहुत कुछ बताया है...लेकिन वो मैं आपको अभी नही बताऊंगा...क्योकि मैं सुनी सुनाई बातों पर नही सबूत सहित इक्कठा की गई पुख्ता बातों को ही बताता हूँ" मैंने उसके बचे खुचे तेवरों पर भी लगाम लगाने के इरादे से बोला।
" लेकिन मेरे पहले पति का इन सब बातों से कुछ नही लेना देना...अगर पूछताछ ही करनी है तो उसी अरुण से करो..जिसने मेरे खिलाफ भड़का कर आपको मेरे पास भेजा है" रोशनी ने मेरी ओर देखकर बोला।
" मैडम एक गिलास पानी मिलेगा" मैंने दरवाजे के हिलते हुए पर्दे को देखकर बोला।
" जी पानी के सिवाय कोई और इच्छा हो तो वो भी आपकी पूरी की जायेगी....बोलिये चाय लेगे या काफी" रोशनी ने एकदम से बदले हुए स्वर में कहा।
" जी फिलहाल तो सिर्फ पानी ही पिलवा दीजिए"मैंने हल्की सी मुस्कान के साथ रोशनी को बोला तो जवाब में उसके भी होठो पर एक कातिल मुस्कान उभर आई..,"नारी तेरे रूप अनेक" मैं ये सोचकर मंद मंद मुस्करा दिया।
रोशनी ने गंगूबाई को आवाज लगाई...गंगू बाई एक सेकेण्ड के सौवे हिस्से से भी कम समय मे कमरे में हाजिर हो गई...उसके कमरे में आते ही दरवाजे के पर्दे ने हिलना बन्द कर दिया। मैं एक अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ गंगूबाई को देखकर मुस्कराया।
" जाओ पहले पानी लेकर आओ...फिर दो काफी बना कर के आओ" रोशनी का रवैया अब एक दम से बदल गया था।
" अब आप शुरू से वो सभी बात बताएगी...जो आपने अभी तक पुलिस को भी नही बताई" मैंने गंगूबाई के जाते ही अपनी पूछ्ताछ फिर से शुरू की।
" वो उस रातअपने भाई अरुण से मिलने के लिए ही घर से निकले थे...उसके बाद से उनकी कोई खबर नही है" रोशनी ने सतबीर राठी के मुंह से सुनी हुई बात ही दोहराई।
" उस रात अरुण से किसी खास काम से मिलने गए थे..या सिर्फ भाईचारे में मिलने गए थे" मैंने फिर से पूछा।
" दरअसल पापा की बीमा पालिसी को लेकर दोनों भाइयों में कुछ अनबन थी..पापा जी आखिरी समय तक हमारे साथ ही रहे थे...उनकी बीमा पालिसी में नॉमिनी विजय थे...इसलिए सारा पैसा विजय को ही मिलना था..लेकिन अरुण भी उस पैसे में से अपना हिस्सा मांग रहा था..जबकि जीते जी अरुण ने पापा जी को कभी एक गिलास पानी के लिए भी नही पूछा था।
" बीमा पालिसी कितने की थी" मेरे लिए ये जानना सबसे अहम था।
" जी दस करोड़ की...काफी पुरानी पालिसी थी...पापा के जवानी के दिनों की...जिसके दस करोड़ मिलने थे"रोशनी की बात सुनते ही मेरे मुंह से एक सिटी निकल गई।
" अगर विजय को इस दरम्यान कुछ हो जाता है तो वो रकम किसे मिलेगी...आपको या अरुण को" मैंने जिज्ञासा से पूछा।
" जी अरूण को मिलेगी" रोशनी ने सपाट लहजे में बोला।
" क्यो ! आप तो विजय की पत्नी हो फिर आपको क्यो नही मिलेगी" मैंने उसके खूबसूरत मुखड़े को निहारते हुए पूछा।
" मैं कानूनी रूप से उनकी पत्नी नही हूँ...हम पिछले पांच साल से लीव इन मे रह रहे है" रोशनी ने ये बोलकर मानो कोई धमाका कर दिया हो। मैं एकटक अवाक सा उसकी ओर देखता रहा।
" ये बात अरुण जानता है..की आप लीव इन में रह रही हो...फिर तो वो आपसे बंगला भी खाली करवा सकता है...तब तो आपके लिए अरुण का मिलना बेहद लाजिमी है..नही तो आप तो सड़क पर आ जाएगी"मैंने सभी कुछ एक ही सांस में बोल दिया।
" जी अब आप ही बताइए...विजय के गायब होने से किसको ज्यादा फायदा है..मुझें या अरुण को" मोहतरमा ने लाख रु का सवाल पूछा था। लेकिन ये सब जानकर मेरे दिमाग की बत्ती गुल हो चुकी थी। अगर फायदे की बात की जाए तो रोशनी की बताई हुई बातों की रोशनी में विजय के गायब होने में सिर्फ अरुण का ही फायदा था। लेकिन फिर अरुण खुद ही अपने भाई को गायब करके मुझे क्यो उसको ढूंढने के काम मे लगाएगा। यही सोचकर मैं अजीब सी उलझन में फंस चुका था। अब इन दोनों में से कोई तो झूठ बोल रहा था...कोई औरत पांच साल से बिना फेरे लिए ही घर में साथ रह रही हो..उसके बारे में घरवालों को न पता हो ये हो नही सकता था। तभी गंगूबाई हाथ मे कॉफी की ट्रे लेकर हाजिर हो गई...वाकई में दिमाग की खोई हुई ताकत को वापस लाने के लिए इस वक़्त कॉफी की मुझे सख्त जरूरत थी। मैने बिना किसी तकल्लुफ़ के कॉफी का मग अपने हाथ मे उठा लिया और एक घूंट भरते ही मेरे दिमाग के घोड़े फिर से हिनहिनाने लगे।
" अब थोड़ी सी बात आपके पहले पति के बारे में भी हो जाये" मैंने रोशनी की ओर देखते हुए बोला।
" जी उनका इस केस से क्या लेना देना...वे तो शायद अब इस दुनिया में भी नही हो" रोशनी ने मेरी बात सुनकर बेचैनी से अपना पहलू बदला।
" वे इस दुनिया मे है या नही इस बारे में बाद में बात करेंगे..अभी तो बस मुझे इतना बता दीजिए कि उनके लापता होने के पीछे की वजह क्या थी" मैंने दो टूक शब्दों में पूछा।
" उन्हें तो उनके काम की जगह से ही गायब किया गया था...मुझे तो उनके लापता होने के बारे में भी दो दिन बाद पता चला था"रोशनी की बाते अब रहस्यमयी होती जा रही थी।
" मैं कुछ समझा नही..ऐसा क्या हुआ था..आपने भी तो अपने पति के गायब होने की वजह तलाशने की कोशिश की होगी" मैं अब इस मामले की भी पूरी गहराई में उतरना चाहता था।
" जी उन दिनों मेरे पहले पति पुणे में जॉब कर रहे थे...वो एक कांट्रेक्टर के पास काम कर रहे थे....जिनका काम पुल या कोई सरकारी इमारत बनाने का ठेका लेने का काम था..मेरे पति रंजन एक सिविल इंजीनियर थे...वो काम के सिलसिले में ही पुणे से मुम्बई गए थे...रास्ते मे ही उनकी गाड़ी एक खाई में गिरी थी...उस गाड़ी में तीन लोग सवार थे...दो लोगो की लाशें मिल गई थी...लेकिन मेरे पति न जिंदा मिले न मुर्दा" रोशनी की आवाज मानो किसी कुँए से आ रही थी।
" फिर आपने उन्हें ढूंढने का प्रयास तो किया होगा...अगर वो उस हादसे में बच गए थे तो उन्हें घर तो लौट कर के आना चाहिए था" मैंने अपने सवाल के जवाब की तलाश में रोशनी को देखा।
"जी यही तो आज तक समझ नही आया कि वे इस तरह से कैसे लापता हो सकते है...वे तो ऐसे लापता हुए की मानो इस दुनिया मे कभी आये ही नही थे..मानो मुझ से कोई संबंध ही न रहा हो" रोशनी अब बोलते हुए सिसकने लगी थी...मैं नही जानता था कि ये आँसू सच्चे थे या झूठे थे...आज की दुनिया मे कुछ भी हो सकता है।
"पुणे में आप कहाँ रहती थी और आपके पति किस कम्पनी में काम करते थे..उसके बारे में बताइए"मैं अब खुद से कुछ बातों की सच्चाई पता लगाना चाहता था
" जी मैंने बोला न कि मेरे पहले पति का इस केस से कुछ भी लेना देना नही है...फिर आप क्यो पूना का पता जानना चाहते हो" रोशनी ने फिर से बेचैनी से पहलू बदला।
"मैं अपने स्तर से आपके पति के इस तरह से लापता होने की जांच करना चाहता हूँ...क्या पता इस जांच में आपके खोये हुए पहले पति मिल ही जाए...क्या आपको अपने पति के मिलने की खुशी नही होगी" मैंने अपनी बातों के जाल में इस उड़ती हुई चिड़िया को फ़साना चाहा।
" बिल्कुल खुशी होती अगर वे उसी समय या विजय के मेरी जिंदगी में आने से पहले मिल जाते...अब विजय के होते हुए मैं उन्हें फिर से नही अपना सकती हूँ" रोशनी परेशान स्वर में बोली।
" मेरे ख्याल से विजय के साथ आपकी शादी नही होने की वजह भी शायद यही रही होगी...क्योकि अगर आप विजय से शादी कर भी लेती तो भी आपके पहले पति की गुमशुदगी को जब तक साढे सात साल नही हो जाते...तब तक आपकी शादी को अवैध ही माना जाता" मैंने अपनी राय ज़ाहिर की।
" जी आप ज्यादा अच्छे से समझते है" रोशनी ने मेरी बात का गोलमोल जवाब दिया।
" लिखने वाले ने आपकी विवाह की रेखाओं में कुछ अजीब सा घालमेल नही किया हुआ है....दो- दो पति आपको मिले और आज की तारीख में दोनो ही लापता है...कुछ अजीब सा नही लगता आपको... कभी उस विधाता को भी कोसती होगी आप....की आपकी किस्मत में ये क्या लिख डाला" मैने हमदर्दी भरें स्वर में रोशनी को बोला। मेरी बात को उन मोहतरमा ने बड़ी शिद्दत से अपने दिल पर ले लिया था...तभी उनकी आंखों से टप टप आंसू टपकने लगे थे। मैं अपनी जगह से उठा और अपनी जेब से रूमाल निकाल कर रोशनी की तरफ बढ़ाया।
" इन आसुओं को संभाल कर रखिये...किसी और मौके पर काम आएंगे" मैंने उसके हाथ मे रुमाल को पकड़ाते हुए बोला।
" मतलब"उसने अपनी हिरनी जैसी आंखों को मुझ पर जमाते हुए पूछा।
" मतलब फिर कभी बताऊंगा..अभी तो आपके हुस्न के दीदार करने के लिए कई बार आऊंगा...फिलहाल बन्दे को इजाजत दीजिये"ये बोलकर मैं लंबे लंबे डग भरता हुआ बाहर की ओर चल पड़ा। एक बार फिर से पर्दे के पीछे से हलचल हुई। गंगू बाई मेरे ही इंतजार में दरवाजे के पास खड़ी हुई।
" किसके कहने पर पर्दे के पीछे छुपकर लोगो की बात सुनती हो"मेरे अचानक से सीधा ही पूछ लेने से गंगूबाई सकपका गई।
" साहब!मैं तो किसी की बात नही सुनती" गंगूबाई ने मेरी बात का प्रतिवाद किया।
" अगली बार जब पर्दे के पीछे से खींचता हुआ तुम्हारी मालकिन के सामने लाकर खड़ा करूँगा न.., तब न तुम्हारी ये नौकरी बचेगी और न ये बातें...जो अभी मेरे सामने बोल रही हो" मैंने गंगूबाई को धमकाते हुए बोला।
" साहब मैं तो गरीब औरत हूँ...मैं क्या करूंगी किसी की बात सुनकर" गंगूबाई मेरी हर बात का जवाब दे रही थी।
" गरीबी दूर करने के लिए ही यहाँ की बात सुनकर दूसरे लोगो तक पहुंचाती हो...अगर ये बात तुम्हारी मालकिन को बता दी तो खड़े पैर तुम्हे नौकरी से निकाल देगी...कहो तो उस आदमी का नाम भी बताऊं ..जिसके लिए तुम ये काम करती हो" मेरे आखिरी वाक्य ब्राह्मस्त्र थे जिन्होंने गंगूबाई को अपनी मारक क्षमता से हिला कर रख दिया।
"साहब गलती हो गई...आगे से फिर कभी नही करूंगी..इस बार माफ कर दो" गंगूबाई ने आहिस्ता से गिड़गिड़ाते हुए बोला।
"एक शर्त पर माफ करूँगा...जो काम तुम ओरो के लिए कर रही हो...वही काम मेरे लिए भी करना होगा...तुम्हारी गरीबी को मैं अच्छे से दूर कर सकता हूँ" मैंने एक दो हजार के नोट की लाली उसकी आंखों के आगे लहराई तो उसकी आँखों मे लालच की लाली हिलोरें मारने लगी। उसने उस नोट को झपटने में पल भर की भी देरी नही की...मैंने खामोशी के साथ अपना कार्ड उसके हाथ मे थमाया।
" इस घर मे किस आदमी ने कितनी साँसे ली...मुझे सब पता चलना चाहिये" ये बोलकर मैं उसके जवाब का इंतजार किये बिना ही वहां से तेजी से निकल गया।
अभी मेरा अरुण वर्मा से मिलने का कोई इरादा नही था...लिहाजा मैंने अपनी गाड़ी को अपने घर की ओर दौड़ा दिया। आज पहले दिन ही मैं इस केस की कुछ परतों को उघाड़ने में कामयाब हो चुका था। देखते है आने वाले समय मे आपके खादिम के हाथों से और क्या क्या गुल खिलने वाले थे।
भाग 3
अगले दिन सुबह ग्यारह बजे जब मैं नेताजी सुभाष प्लेस स्थित अपने आफिस पहुंचा तो मोहतरमा रागिनी कम्प्यूटर में किसी फ़ाइल में खोई हुई थी। मुझ पर उसका ध्यान तब गया जब नरेश ने अपनी सीट से खड़े होकर मेरा अभिवादन किया।
" ओह्ह आप आ गए...मैं तो सोच रही थी कि आप शायद आज भी आफिस से बंक मार रहे हो" रागिनी ने तंज भरे स्वर में कहा।
" अगर मैं आफिस से बंक न मारू तो तुम्हारी तनख्वाह के भी लाले पड़ जायेंगे" ये बोलकर मैंने मुझे कल मिली पचास हजार की हरियाली को रागिनी की टेबल पर सरका दिया। रागिनी ने एक नजर उस हरियाली पर डाली और एक नजर मुझ पर डाली।
" अभी तक शहर में कही भी किसी की जेब काटने की चोरी होने की या कही पर डाका पड़ने की खबर तो आई नही है....फिर ये सुबह सुबह इतने पैसे कहाँ से ले आये गुरुदेव" रागिनी कभी भी अपनी आदत से बाज नही आती थी।
" मतलब सीधी बात तो तुम कभी सोच ही नही सकती हो...हर समय उल्टा ही सोचोगी" मैंने ताव भरे स्वर में कहा।
" इस दुनिया को समझने के लिए उल्टा ही सोचना पड़ता है गुरुदेव" रागिनी ने दार्शनिक की तरह से बोला।
" तुम्हारी उम्र न अभी रोमांस करने की है...अपनी शादी के बारे में सोचने की है...अपना हनीमून प्लान करने के बारे में सोचने की है....तुम कहाँ अभी से दुनियादारी में पड़ने लगी हो" अब मैं भी उसकी खिंचाई करने के मूड में आ चुका था।
" शादी के बारे में मेरे मम्मी पापा सोचेंगे...और हनीमून के बारे में मेरे पतिदेव सोचेंगे...रही रोमांस की बात तो वो भी शादी के बाद अपने पतिदेव के साथ ही करूंगी...फिर क्यो अभी से इन चीज़ों में मगजमारी करूँ" रागिनी ने एक ही बार मे मुझे निशब्द कर दिया था।
" तुम्हे देख कर लगता तो नही है कि तुम चालीस साल की उम्र से पहले शादी करने वाली हो.. मतलब जवानी का सावन भी पतझड़ का मौसम बनकर बीतेगा तुम्हारा" मैंने मुस्करा कर बोला। लेकिन इस बार मेरी बात सुनकर रागिनी के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आई।
" गुरुदेव! मेरा तो साठ साल की उम्र में भी शादी हो जाएगी...अपनी सोचो...और दो तीन साल के बाद चालीस साल की औरतें भी घास डालना बन्द कर देगी" रागिनी ने पूरी गहराई से तंज कसा।
" इस जासूसी के धंधे में औरत के इतने रूप देख चुका हूँ कि शादी करने का मन ही नही करता" मैंने कुछ सोचते हुए बोला।
" क्यो फिर किसी दुखियारी का केस आपके हाथ मे आ गया है क्या" रागिनी ने बात का रुख मोड़ते हुए कहा।
" दुखियारी भी ऐसी की पट्ठी ने दो दो शादियां की और दोनो ही पति लापता हो गए" मैंने कल वाले केस के बारे में बताया।
" क्या बात है...इतनी बुरी औरत है क्या जो उससे तंग आकर दो दो पति छोड़कर ही नही भागे बल्कि लापता ही हो गए" रागिनी भी अचंभित स्वर में बोली।
" ये भी तो हों सकता है कि किसी फायदे के लिए उसने ही अपने दोनों पतियो को लापता कर दिया हो" मैंने अपनी राय प्रकट की।
" लेकिन उसके पीछे वजह भी तो होनी चाहिए" रागिनी ने कुछ सोचकर बोला।
" कोई ठोस वजह तो अभी नही मिली है...लेकिन केस दिलचस्प है...जरा खबरी को फोन लगाओ..उसे शायद पूना भेजना पड़े" मैंने अचानक से कुछ याद करते हुए बोला।
" इस केस के तार पुणे से जुड़ रहे है क्या" रागिनी ने उत्सुकता से पूछा।
" रोशनी नाम की उस औरत के पहले पति के तार पुणे से जुड़े हुए है...वो मोहतरमा अपने पहले पति की पुणे के बारे में कोई भी जानकारी देने को राजी नही है...इसलिए अपने स्तर पर ही उसके पहले पति को ढूंढना होगा" मैंने रागिनी को बताया।
" गुरु देव! पूरा केस जरा तफसील से बताओ...तभी कुछ माजरा समझ मे आएगा" रागिनी ने मेरी ओर देखकर बोला।
उसके बाद मैं रागिनी को कल अरुण वर्मा से मिलने से लेकर रोशनी के मिलने तक कि पूरी कहानी बताता चला गया। रागिनी पूरी तन्मयता से मेरी हर बात को सुन रही थी।
" कहानी में पेंच तो है सर...ये औरत या तो हद से ज्यादा चालाक है या हद से ज्यादा बेवकूफ" ये बोलकर रागिनी ने मेरी तरफ देखा।
" वो कैसे" मैंने असमंजस से उसकी ओर देखा।
"उसने अपने दोनों पतियों के साथ एक जैसा ही ट्रीटमेंट किया है...जो उसकी बेवकूफी को दर्शाता है...कोई भी जब इस औरत का बेकग्राउंड टटोलेगा तो ये एक मिनट में एक्सपोज़ हो जाएगी" रागिनी ने मेरी ओर देखकर बोला।
" और वो चालाक कैसे है" मैंने रागिनी द्वारा कही गई बात का पूरा मतलब समझना चाहा।
" चालाक इसलिए है कि वो अपनी तरफ से ध्यान हटाने के लिए ही अपने देवर को इस मामले में घसीट रही है...जब अरुण के पिता ने ही विजय को अपनी पालिसी में नॉमिनी बनाया हुआ है तो अरुण क्यो इतने सालों बाद कोई चाल चलेगा...उसके पिता ने हो सकता है कि उस पालिसी के बदले में अरुण को कुछ और दिया हुआ हो" रागिनी अभी तक रोशनी की चालाकी सिद्ध नही कर पाई थी....लेकिन मुझे एक इशारा जरूर मिल गया था.., अरुण से एक बार फिर से बात करके इन पालिसी की सच्चाई के बारे में जानने का।
रागिनी ने इस बीच खबरी को फोन मिलाकर मुझे पकड़ा दिया था।
" गुरुवर प्रणाम! कहिए इस सेवक को कैसे याद किया" खबरी फोन उठाते ही चहका।
" अपना झोला उठाकर जरा आफिस आ जा...तुझे एक टूर पर भेज रहा हूँ" मैंने खबरी को बोला।
" गुरुदेव...देश में ही भेजोगे या विदेश में..अगर विदेश भेजना हो तो पासपोर्ट भी साथ ही लेता आऊं" खबरी भी आजकल खूब चक्कलसबाजी करने में माहिर हो गया था।
" पासपोर्ट, आधार कार्ड,वोटर कार्ड,ड्राइविंग लाइसेंस,राशन कार्ड...जो भी तुम्हारे पास हो सब लेते आना...क्योकि बेटा तुझे अमरीका भेजने का प्लान है...और वहां कोई भरोसा नही की तुझ से कौन सा कार्ड मांग ले...इसलिए तू सब लेकर आ बेटा...लेकिन जरा जल्दी आ फिर मुझे भी कही जाना है"मैने ये बोलकर बिना खबरी का जवाब सुने ही फोन काट दिया।
" क्या हुआ बड़े भन्नाए हुए लग रहे हो" रागिनी ने मेरे फोन रखते ही पूछा।
" कमीना पूछ रहा था कि पासपोर्ट भी लेता आऊं क्या...कहीं विदेश भेज रहे हो क्या...यहां मैं तो आज तक विदेश गया नही ये महाराज विदेश जायेगे...आज इसे पैदल ही पुणे भेजूंगा" ये बोलकर मैं रागिनी के पास से हटकर अपने केबिन में घुस गया। तभी रागिनी ने भी केबिन में कदम रखा।
" तुम आज से पांच छ साल पहले का कोई ऐसा केस नेट पर सर्च करो..जिसमे किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी की कोई गाड़ी पुणे से मुम्बई के रास्ते मे खाई में गिरी हो और उसमें लोग मारे गए हो" मैंने रागिनी की ओर देखकर बोला। रागिनी मुझे बिना कुछ बोले ही अपने कंप्यूटर पर जाकर बैठ गई और अपने काम में जुट गई..तभी नरेश भी चाय का कप लेकर मेरे केबिन में उपस्थित हो गया।
*************
खबरी के आने के बाद उसे पुणे का काम समझाने के बाद मैंने अब अरुण से मिल लेना ही मुनासिब समझा...अरुण इस वक़्त बवाना स्थित अपनी फैक्ट्री में था। उसने मुझे अपना पता भेजा और अब मैं अपने आफिस से बवाना वाले रास्ते पर था। बवाना में अरुण वर्मा की पानी की छतों पर लगने वाली टंकी की मैनुफैक्चरिंग करने की फैक्ट्री थी। मैं जब फैक्ट्री के गेट पर पहुंचा तो गार्ड ने मुझे अरुण वर्मा के केबिन का रास्ता बता दिया। शायद मेरे आने की इत्तिला अरुण ने गार्ड को पहले से ही दे दी थी। मैं कुछ ही पलों के बाद अरुण के केबिन ने उसके सामने बैठा हुआ था।
"रोशनी मैडम का कहना है कि जिस रात विजय गायब हुआ है उस रात वो आपसे मिलने के लिये ही घर से निकले थे..उनके गायब होने के पीछे बकौल रोशनी के आपका ही हाथ है" मैंने बिना किसी लाग लपेट के अरुण को बोला।
" मुझे पता था वो ऐसा ही कुछ कहेगी...,क्योकि उस रात मेरे पास विजय के आने का सुबह से ही प्लान था...वो इसी फैक्ट्री के बारे में कुछ बात करने के लिए आने वाला था...शायद उसी बात का फायदा उठाकर उसी समय विजय को उन लोगो के द्वारा गायब किया हो...क्योकि ये तो मेरी व्हाटसअप चैट से आसानी से स्थापित हो ही सकता था कि उस रात विजय मुझ से मिलने के लिए मेरे घर आने वाला था" अरुण ने बात को एक नया ही मोड़ दे दिया।
" लेकिन आपकी भाभी का कुछ और ही कहना है...उनके मुताबिक आपके पापा की कोई दस करोड़ की पॉलिसी के बारे में बात करने के लिए विजय को आपने बुलाया था..न कि अपनी फैक्ट्री के बारे में बात करने के लिए" मैंने ये बोलकर अरुण के चेहरे की प्रतिक्रिया देखने के लिए उसके चेहरे पर अपनी निगाह जमा दी।
" ऐसी पॉलिसी तो एक नही कई है...किसी मे मैं नॉमिनी हूँ किसी मे विजय नॉमिनी है...मुझे उसके बारे में विजय से क्या बात करनी थी...साफ सी बात थी...जिस पालिसी में जो नॉमिनी था उसका पैसा उसे ही मिलना था...,उस बारे मे हमारे बीच मे कोई झगड़ा ही नही था...उस रात तो हम दोनो भाई इसी फैक्ट्री की प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए ऐसा ही एक प्लांट हम कुंडली इंडस्ट्रियल एरिया में लगाने के लिए मिलने वाले थे...क्योकि इस एक फैक्ट्री से हम मार्किट के आर्डर पूरे नही कर पा रहे थे" अरुण ने पूरी बात बताई।
" लेकिन रोशनी का तो कहना है कि उस बीमा की आधी रकम तुम विजय से मांग रहे थे...और इसी वजह से उसे गायब कर दिया या हो सकता है उसे मार भी डाला हो" मैंने ये बोलकर फिर से अरुण को गौर से देखा। भाई के मरने की बात पर उसके चेहरे पर अनगनित रंग आकर चले गए।
" अनुज जी आपसे रिक्वेस्ट है कि आप जल्दी से जल्दी मेरे भाई को ढूंढ दीजिये...अगर उस चांडाल औरत ने मेरे भाई के मरने की आशंका व्यक्त की है तो मुझे डर है कि कही सच मे ही मेरे भाई के साथ कुछ हो न गया हो...रही बात उस औरत की आशंका की तो मेरे भाई के मरने का सबसे ज्यादा फायदा तो उसी औरत को होने वाला था..मेरे पापा की पॉलिसियों के अलावा मेरे भाई की अपनी खुद की काफी बड़ी पॉलिसी है और फिर वो बंगला...एक झटके में सब उसी का हो जाना है" अरूण ने मेरी कर देखकर बोला।
" उसका नही हो सकता....क्योकि उसका कहना है कि कानूनी रूप से वो आपके भाई की पत्नी है ही नही...और ये बात तुम्हे भी पता थी" मैंने रोशनी की बताई बात को ही अरुण को बोला।
" मेरी समझ मे नही आ रहा है कि वो औरत इतने झूठ क्यो बोल रही हैं...अरे भाई के साथ उसकी शादी के एक नही हजारों सबूत है...उसकी शादी की एल्बम मौजूद है,..उस शादी में शहर के आये हुए बड़े बड़े लोग उस शादी के गवाह है...फिर वो क्यो इतना बड़ा झूठ बोल रही है" अरुण अपनी भाभी के झूठ से कुछ बौखला सा गया था।
" लेकिन मान लो अगर वो खुद कह रही है कि वो आपके भाई की कानूनी रूप से बीवी नही है तब तो ये सब आपको ही मिलना है" मैंने फिर से बात को घुमाफिरा कर पूछा।
" लेकिन जब भाई ही नही होगा तो मैं ऐसी दौलत को क्या रोज अगरबत्ती दिखाऊंगा...खानी तो मुझे वही दो रोटी है..हम खानदानी पैसे वाले लोग है...पैसो के लिए ऐसी खूनी साज़िस नही रचते की भाई ही अपने भाई के खून का प्यासा हो जाये...जितने करोड़ के लिए मैं अपने भाई को मारूंगा उससे दस गुना पैसा मेरी एक आवाज पर मैं मार्किट से इक्कठा कर सकता हूँ,..हमारे बाप दादा के नाम का इतना रसूख है अभी भी मार्किट में" अरुण ने दमदार आवाज में अपने ऊपर जाहिर की गई शंका का खंडन किया।
" अपनी भाभी के झूठ का पर्दाफाश करने के लिए उनकी शादी का कोई प्रमाण आपके पास मौजूद है" मैंने अरुण की इमोशनल स्पीच से बिना प्रभावित हुए अपना अगला सवाल किया।
" उसके घर में ही मिल जाएगा...अगर ढूंढोगे तो और भी बहुत कुछ मिल जाएगा" अरुण ने विश्वास भरे स्वर में कहा।
" लगता है अपनी भाभी के घर पर गंगूबाई के जरिये काफी अच्छे से नजर रखते हो" मेरी बात सुनते ही अरूण के चेहरे पर फिर से असंख्य भाव आकर चले गए।
" नजर नही रखता हूँ...,जबसे मेरा भाई गायब हुआ है..ये जानने का प्रयास कर रहा हूँ....की उस घर मे आखिर पक क्या रहा है" अरुण लगभग तपे हुए स्वर में बोला।
" अच्छा करते हो,..वैसे वो गंगूबाई उस घर मे कब से काम कर रही है" मैंने ऐसे ही अरुण से ये सवाल पूछा।
" जब से ये रोशनी हमारे घर में आई है तभी से ये भी है..शायद रोशनी की ही कोई पुरानी जानकार है" अरुण के द्वारा बताई गई ये बात मेरे लिए किसी काम की हो सकती थी...वैसे भी गंगूबाई अपनी शक्ल सूरत से उत्तर भारत की लग भी नही रही थी...कोई बड़ी बात नही थी कि उसका कनेक्शन पुणे ही से निकले।
मैंने इसके बाद अरुण के पास से विदा ली और अपनी गाड़ी का रुख एक बार फिर से रोशनी के बंगले की ओर मोड़ दिया। जहां पहुंचकर इस बार मेरा गंगूबाई से बात करना इन्तेहाई जरूरी हो गया था।
भाग 4
मैंने कोई डेड घण्टे के बाद रोशनी के घर पहुंचकर कॉलबेल बजाई। दरवाजा हमेशा की तरह गंगूबाई ने ही खोला।मुझे दरवाजे पर देखते ही उसके चेहरे पर हल्के से असमंजस के भाव उभरे।
" साहब आप! लेकिन मालकिन तो इस वक्त आपसे नही मिल पाएगी" गंगूबाई ने सहमे से स्वर में कहा। मैं तब तक दरवाजे को ठेल कर उस बंगले के अंदर कदम रख चुका था। मैंने अपने चारों तरफ नजर दौड़ाई...चारो तरफ अपार शांति और सन्नाटा छाया हुआ था। कमला नगर जैसे भीड़ भाड़ वाले इलाके में किसी घर में इतनी शांति का वातावरण मिलना कोई कम आश्चर्य की बात नही है।
" मैडम कही बाहर गई हुई है....या घर मे ही किसी और काम मे बिजी है" मैंने एक कुटिल मुस्कान अपने होठो पर लाते हुए बोला।
" जी घर मे ही है...लेकिन इस वक़्त कोई आया हुआ है.. और इस वक़्त मैडम को किसी भी हाल में परेशान नही करने का सख्त आदेश है" गंगूबाई इस वक़्त अजब से धर्मसंकट में फंसी हुई थी।
" मुझे पता है कौन आया हुआ होगा...और मैडम किस काम मे बिजी होगी...लेकिन इस वक़्त मैं तुम्हारी मैडम से नही तुमसे मिलने के लिए आया हूँ" मैंने गंगूबाई की ओर देखकर बोला।
" साहब मुझ से क्या काम आ गया आपको...कोई बात होगी तो मैं खुद ही आपको ख़बर कर दूंगी" गंगूबाई ने डरते हुए बोला।
" तुम कुछ घबराई हुई सी लग रही हों...कुछ गड़बड़ हुई है क्या यहाँ" मैंने गंगूबाई की आवाज की घबराहट को पहचान कर उससे पूछा।
" नही साहब ! गड़बड़ तो कुछ भी नही हुई है...डर लग रहा है कि कही मेमसाहब ने आपके साथ देख लिया तो मेरा क्या होगा" गंगूबाई ने बोला।
" कैसे देख लेगी...अभी तुमने ही तो बोला है कि मैडम उस पुलिसिये के साथ किसी जरूरी काम मे बिजी है" मैने बात को अलग ढंग से घुमाया।
" साहब लेकिन उसे आये हुए काफी समय हो गया है....तभी बोलते बोलते गंगूबाई रुक गई...वो तुरन्त समझ गई कि वो गलत मुंह फाड़ बैठी है।
" कितनी देर में वापिस जाएगा वो पुलिसिया" मैंने फिर से उसी के बारे में पूछा।
" साहब आप जानते हो उसे" इस बार गंगूबाई ने कुछ भी छुपाने के प्रयास नही किया।
" छोड़ो इस बात को...ये बताओ ये पुलिसिया तुम्हारे साहब के गायब होने के बाद से यहां आने लगा है या मैडम का कोई पुराना आशिक है" मैंने खुले शब्दो में गंगूबाई से पूछा।
" साहब मेरे ऊपर तो कोई बात नही आएगी न" गंगूबाई ने जवाब देने से पहले अपनी तसल्ली करनी चाही।
" तुम्हारे ऊपर कोई बात नही आएगी...तुम जो भी जानती हो वो मुझे बताओ..लेकिन यही दरवाजे पर खड़े खड़े नही..कहीं पर आराम से बैठकर बात करो" मैंने गंगूबाई की ओर इस बार पांच सौ के दो नोट बढाते हुए बोला।
" साहब क्यो मेरा स्टैडर्ड गिरा रहे हो...कम से कम पिछली बार जितना तो दो" गंगूबाई बेबाकी से बोली।
" ये पेशगी है...बाकी पूरी बात सुनने के बाद" मैंने गंगूबाई के लालच को जिंदा रखा।
"चलिए साहब फिर बंगले के पीछे मेरे कमरे में चलिए...वहाँ पर मैडम कभी भी नही आती है..अगर मैं उन्हें नही दिखाई देती हूँ तो वो मुझे इण्टरकॉम करती है" गंगूबाई ने एक बार फिर से अंदर की ओर देखते हुए बोला।
" चलो ! जहां भी लेकर चलना है" मैंने अब बंगले के पीछे की तरफ अपने कदमो को बढ़ाया....गंगूबाई मुझ से आगे दौड़कर रास्ता दिखाने लगी।
कुछ ही पलों में बंगले के पीछे बने हुए सर्वेंट क्वार्टर के एक कमरे में मैं गंगूबाई के साथ एक कुर्सी पर विराजमान था।
" साहब मैं मैडम के साथ पिछ्ले सात आठ साल से हूँ " गंगूबाई ने मेरी ओर देखकर बैठते ही बात शुरू कर दी।
" सात आठ साल पहले तो मैडम पुणे में रहती थी..तुम भी पुणे में ही रहती थी क्या" मैंने गंगूबाई से पूछा।
" साहब मैं भी पुणे में ही रहती हूँ..मैडम के हस्बैंड जिस बिल्डर के पास काम करते थे....उनके लिए सारा सामान खरीदने का काम भी साहब ही करते थे...अपने अभी जो साहब है विजय साहब का उनकी बिल्डिंग में पानी की टंकी लगाने का काम था..उसी सिलसिले में जब भी विजय साहब पुणे आते थे...तो वो मैडम के घर पर ही ठहरते थे...मैडम तभी से विजय साहब को जानती है...फिर अचानक से मैडम के हस्बैंड गोपाल साहब गायब हो गए...और कुछ महीने के बाद जब उनके जिंदा रहने की कही से कोई किरण नजर नही आई तो मैडम विजय साहब के साथ ही दिल्ली आ गई...विजय साहब ने इतनी उम्र हो जाने के बाद भी शादी नही की थी...फिर मैडम उनके साथ इसी बंगले में रहने लगी..मैडम शुरू से ही मुझे और मेरे काम को पसंद करती थी..इसलिये उन्होने मुझें भी दिल्ली बुलवा लिया..मैं तभी से दिल्ली में उनके साथ हूँ"ये बोलकर गंगूबाई चुप हो गई।
"गोपाल बाबू कैसे और क्यो गायब हुए थे..इस बारे में कुछ जानती हो" मैंने गंगूबाई से पूछा।
" उनका तो एक्सीडेंट हुआ था...उसी एक्सीडेंट में वो गायब हो गए..वो एक पहाड़ी रास्ता है साहब जो मुम्बई से पनवेल के रास्ते मे पड़ता है...पता नही वही कही किन्ही पहाड़ियों में गुम हो गए वे" गंगूबाई भी सिर्फ सुनी सुनाई बातें ही बयान कर रही थी।
" ऐसे तो दुर्घटना स्थल से दो ही तरीको से इंसान गायब हो सकता है गंगूबाई ! या तो इंसान जिंदा बच जाए और वो खुद ही उठकर वहां से चलता बने...या फिर उसे जमीन ही निगल जाए" मैंने गंगूबाई की ओर मुस्करा कर देखते हुए बोला।
"साहब मैं तो इस बारे में और कुछ नही जानती हूँ" गंगूबाई ने मेरी ओर देखकर बोला।
" एक बात और बताओ...तुम तो रोशनी मैडम की इतनी विश्वासपात्र हो फिर तुम पहले अरूण को और फिर मुझे यहां की बाते बताने के लिए क्यो तैयार हो गई" मैंने गंगूबाई से वो सवाल पूछ लिया,जिसको पूछने की उम्मीद गंगूबाई ने कभी नही की होगी।
" साहब! अरुण साहब भी पैसे देते है और आप भी देते हो...फिर पैसा किसे बुरा लगता है..ऊपर से मुझे अब मैडम के रंगढंग अच्छे नही लगते...साहब लापता है और मैडम यहां उस आदमी के साथ अपनी अय्याशी में बिजी है" गंगूबाई ने अपने मन का गुबार निकाला।
" पुणे में क्या मैडम यही अय्याशी विजय के साथ भी करती थी" मैंने बातों बातों में ये सबसे काम का सवाल पूछ डाला।
" साहब वहां मैं तो रात को रहती नही थी.. दिन में तो मैंने ऐसा विजय साहब के साथ कभी कुछ देखा नही" गंगूबाई ने साफगोई से जवाब दिया।
"तुमने एक बात का जवाब नही दिया कि ये पुलिसिया विजय साहब के लापता होने से पहले से ही यहाँ आता है या उनके बाद आना शुरू हुआ है" मैंने अपना सबसे पहले पूछा गया सवाल फिर से दोहराया।
" साहब ये अभी साहब के गायब होने के से आने लगे है" गंगूबाई ने बताया।
" अब मैडम का पुणे का पता भी बता दो....और गोपाल साहब की उस कंपनी का नाम भी बता दो..जिसमे वो काम करते थे" मेरे लिए ये जानना सबसे ज्यादा अहम था..क्योकि खबरी के पूना पहुंचने से पहले उसे ये दोनों जानकारी देनी जरूरी थी...तभी वो वहां पहुंचते ही अपने काम पर लग सकता था।
गंगूबाई ने दोनों जगहों के बारे में बिना किसी हिलहुज्जत के बताया...जिसे मैंने अपने फ़ोन की नोट्स पैड में नोट किया।
" अच्छा तुम्हारी मैडम का बेडरूम किधर है" अचानक से मैंने गंगूबाई से पूछा। मैंने इस बार दो हजार का नोट गंगूबाई की तरफ बढ़ाते हुए पूछा।
" साहब अभी वहां मत जाइये...अगर मेमसाहब की नजर आप पर पड़ गई तो वे मेरा आज ही मुम्बई का टिकट कटवा देगी" गंगूबाई व्याकुल स्वर में बोल भी रही थी और ललचाई हुई नजरो से उस गुलाबी घटा को देख भी रही थी।
" तुम चिंता मत करो...तुम्हारी मैडम के फरिश्ते भी मुझे नही देख पाएंगे" मैंने गंगूबाई को विश्वास दिलवाया।
" ठीक है साहब...आइये मेरे साथ" ये बोलकर गंगूबाई ने मेरे हाथ से उस नोट को झपटा और उठकर कमरे से बाहर निकल गई...आपका ये ख़ाकसार भी उस मराठी पोरी के पीछे पीछे चल पड़ा।
************
रोशनी के बेडरूम की ओर इशारा करके गंगूबाई वहां से गायब हो गई। मैंने बैडरूम की ओर आहिस्ता से अपने कदमो को बढ़ा दिया। तभी रोशनी के कमरे का दरवाजा खुला और एक बन्दा कमरे से बाहर निकला। मैंने तत्काल वही लगे हुए पर्दे के पीछे खुद को छुपाया। रोशनी अभी भी अस्तव्यस्त हालत में ही थी। उसने उस सख्स के विदा होने से पहले उसके होठो पर अपने अधरों को चिपका कर एक विदाई चुम्बन दिया और उस बन्दे को अपनी पकड़ से आज़ाद किया। वो बन्दा अब बिल्कुल मेरे सामने से गुजर रहा था। लेकिन वो सतबीर राठी नही था...अगर ये वो पुलिसिया नही था तो अरुण ने मुझें सतबीर राठी का नाम क्यो बताया। गंगूबाई भी तो इसे पुलिसिया ही बता रही थी। क्या एक ही नाम के दो बन्दे है...और दोनो ही पुलिस महकमे से सम्बंध रखते है। एक सतबीर राठी वो है जो इन मोहतरमा के पति की तलाश कर रहा है...और ये वाला शख्स भी सतबीर राठी है या इस औरत ने इस बंगले को कोई अय्याशी का अड्डा बनाया हुआ है,..पैसे की तो इस औरत के पास कोई कमी नही थी..पैसों के लिए तो ये अपने जिस्म की तिजारत करेगी नही...फिर क्या इसे शौक है अपने नए नए यार पालने का।कुछ समझ नही आ रहा था..अभी इस औरत के सामने इन सारी बातों को खोलने या पूछने का वक़्त भी नही आया था...क्योकि अभी सारा मामला शुरुआती स्टेज में था। मगर ये गौरखधंधा था क्या? कितने चेहरे थे इस औरत के। इस बन्दे के बारे में तो मुझे गंगूबाई से ही फिर से पूछना होगा..क्योकि ये बंदा पुलिसिया है और इसका नाम सतबीर राठी है...ये भी तो गंगूबाई ने ही अरुण को बताया होगा...इसकी बताई हुई जानकारी तो अरुण मेरे साथ शेयर कर रहा था।
रोशनी इस वक़्त अपने कमरे में वापस जा चुकी थी। मैं उसके कमरे के पास पहुंचा। मैंने दरवाजे के पास जाकर अंदर झांक कर देखा ..पट्ठी करवट बदल कर आराम से उसी अस्त व्यस्त हालत में सोने की मुद्रा में लेटी हुई थी। इसके चेहरे पर अपने पति के लापता होने का रत्ती भर भी शिकन नही था..ये तो बल्कि गुलछर्रे उड़ाने में मशगूल थी। अजब औरत थी। अपने पति के लापता होने पर घडीयाली आंसू भी नही बहा रही थी। बल्कि अपने पहले पति को याद करके तो कल मेरे सामने इसने जरूर कुछ आंसू ढलकाये थे। मैंने एक नजर फिर से उस कमजर्फ पर डाली और फिर से गंगूबाई की तलाश में बंगले के पीछे वाले हिस्से की तरफ चल पड़ा। लेकिन मुझे गंगूबाई अपने कमरे में नही मिली। मुझे बंगले में उसके मिलने की कोई और जगह मालूम नही थी...मैं अंदाजे से ही बंगले के पीछे ही उस दिशा में बढ़ा...जहां नौकरों के लिए टॉयलेट बाथरूम की व्यवस्था की गई थी। टॉयलेट की ओर जाने का इस वक़्त मेरे पास सिर्फ एक ही कारण था कि मुझे खुद को बड़ी तेज लघुशंका आ रही थी। इसलिए टॉयलेट को देखकर मैने राहत की सांस ली। कोई मुझ से पूछें की इस दुनिया का सबसे बड़ा सुख क्या है..तो मैं यही कहूँगा की लघुशंका से परेशान इंसान को अगर उसकी शंका का समाधान करने के लिए उचित जगह मिल जाए तो उससे बड़ा सुख कोई नहीं है। मैंने बाथरूम का दरवाजा खोला....दरवाजा खोलते ही मेरी लघुशंका वही अटक कर रह गई जहां वो अभी तक अटकी हुई थी।सामने ही गंगूबाई पथराई हुई आंखों से लाश बनकर पड़ी हुई थी। उसके गले को बड़ी बुरी तरह से रेता गया था...कुछ ही देर पहले तो ये मुझ से बात कर रही थी...सिर्फ पंद्रह मिनट के अंदर इसे इस दुनिया से रुखसत कर दिया गया। मैंने गंगूबाई की लाश को उसी अवस्था मे पड़े रहने दिया और तत्काल वहां के पुलिस इंस्पेक्टर राजेश श्रीवास्तव को फोन मिलाकर वहां हुई वारदात की पूरी जानकारी दी। इंसेक्टर राजेश ने मुझे वहां तत्काल पहुचने का आश्वासन दिया और मुझे वही रुकने के लिए बोला। मैंने गंगूबाई के कत्ल की सूचना इस वक़्त रोशनी को देना उचित नही समझा....मैं चाहता था कि पुलिस को रोशनी उसी हालत में मिले...ताकि वहां किसी दूसरे आदमी की आमद को स्थापित किया जा सके।
मैं बाथरूम से हटकर अब मेन गेट की तरफ आ गया था...बंगले का मेन गेट इस वक़्त बन्द तो था लेकिन उसका लॉक नही लगा हुआ था। हालात तो यही बयान कर रहे थे की गंगूबाई का कत्ल उसी आदमी ने किया है...जो रोशनी के साथ रंगरलिया मना रहा था। लेकिन अगर पुलिस चाहे तो इस केस में मुझे भी लपेट सकती थी। गंगूबाई के कमरे से और उस टॉयलेट से मेरी उंगलियों के निशान आसानी से मिल सकते थे...लेकिन इन्स्पेक्टर राजेश इस मामले में मेरी बात पर विश्वास जरूर करेगे। क्योकि जिस निर्मम तरीके से गंगूबाई को मारा गया था उस हालत में कातिल के कपड़ों पर भी खून लगा हुआ होना चाहिए था...ये ख्याल मन मे आते ही मैने एक सरसरी नजर अपने कपड़ों पर डाली...मेरे कपडो पर खून का एक भी छींटा नही था। ये मेरे लिए राहत की बात थी। अब मैं पुलिस की किसी भी थ्योरी को काट भी सकता था,और अपनी थ्योरी को समझा भी सकता था।
तभी पुलिस सायरन की आवाज से वो इलाका गूंज उठा...कुछ ही पल में दो तीन जिप्सी की दरवाजे के बाहर रुकने की आवाज आई... कुछ ही देर में दरवाजे पर लगी कॉलबेल घनघनाई ...., तभी मैंने देखा कि रोशनी बिल्कुल सजी धजी सामान्य हालत में दरवाजा खोलने के लिए जा रही थी। इसका मतलब क्या रोशनी को मालूम था कि गंगूबाई मर चुकी है..क्योकि मैंने तो हर बार गंगूबाई को ही दरवाजा खोलने के लिए आते हुए देखा है। ये क्या गोरखधंधा है। तभी दरवाजा खुला और इन्स्पेक्टर राजेश श्रीवास्तव ने अपने सहकर्मियों के साथ अंदर कदम रखा। मैं भी इंस्पेक्टर राजेश को देखकर उनकी तरफ बढ़ गया।
भाग 5
" तुम यहाँ क्या कर रहे हो" मुझे देखते ही रोशनी आश्चर्य के साथ इस प्रकार से बोली की इंस्पेक्टर राजेश श्रीवास्तव की तवज्जो भी एकाएक मेरी ओर चली गई।
" आइये अनुज साहब...किधर है वो लाश" राजेश जी ने मुझ पे नजर पड़ते ही पूछा।
" लाश ? किसकी लाश की बात कर रहे हो आप...यहां हो क्या रहा है" रोशनी लाश की बात सुनते ही बदहवास सी बोली।
" इन साहब के कहे अनुसार आपकी नौकरानी गंगूबाई का किसी ने कत्ल कर दिया है...हम उसी लाश के बारे में पूछ रहे है" इंस्पेक्टर राजेश ने एक तीव्र दृष्टि रोशनी पर डालते हुए पूछा।
"उसकी लाश! उसको तो मैंने सामान लाने के लिए बाजार भेजा है...इसीलिए जब डोरबेल बजी तो दरवाजा खोलने के लिए मैं आई हूँ...नही तो हमेशा गंगूबाई ही आंगतुक के लिए दरवाजा खोलती है" रोशनी इतनी देर में शानदार कहानी गढ़ चुकी थी।
" अनुज साहब पहले आप हमें उस लाश के पास ले चलिये..बाकी बातें तो हम करते रहेंगे" राजेश जी ने उतावले स्वर में मेरी ओर देखकर बोला।
" जी आप आइये मेरे साथ" ये बोलकर मैं राजेश जी के साथ उसी टॉयलेट की ओर बढ़ गया...,जहां पर गंगूबाई की लाश पड़ी हुई थी। रोशनी किन्ही ख्यालो में खोई हुई हमारे पीछे पीछे आ रही थी।
उस टॉयलेट के पास पहुंच कर मैंने इंस्पेक्टर राजेश को इशारा किया और वहां से पीछे हट गया। इंस्पेक्टर राजेश टॉयलेट के अंदर घुसे...सामने ही गंगूबाई उसी हालत में पड़ी हुई थी जिस हालत में मैं उसे छोड़कर गया था। टॉयलेट में पीछे पीछे घुसी रोशनी इस वक़्त गुमसुम सी एकटक गंगूबाई की ओर देखे जा रही थी।
" आप तो कह रही थी कि गंगूबाई को आपने सामान लाने के लिए बाजार भेजा था...फिर ये यहाँ कैसे पहुंच गई" राजेश ने अचानक से घुम कर रोशनी से सवाल किया।
" सर! मैं तो इनके बारे में कुछ भी नही जानती की ये यहाँ कैसे पहुंचेहै...मैं तो अपने बेडरूम में आराम कर रही थी" रोशनी ने एक बार फिर मेरे वहां होने के औचित्य पर सवाल उठाया। मैं इस लोमड़ी की सारी चालाकी अच्छे से समझ रहा था...लेकिन आपका खादिम तो मौके पर चौका मारने पर यकीन रखता है ...लेकिन अभी वो मौका मेरे लिए आया नही था।
" राठी...फोरेंसिक टीम और फोटोग्राफर और एम्बुलेंस वालो को यहां आने के लिए बोल दो...तब तक मैं जरा इन दोनों से बात कर लूं" ये बोलकर इंस्पेक्टर राजेश ने हम दोनों को अपने साथ आने का इशारा किया।
" गंगूबाई यही रहती थी..या यहां सिर्फ काम करने के लिए आती थी" इंस्पेक्टर राजेश ने ये सवाल रोशनी से किया।
" जी वो हमारी परमानेंट मैड थी....वो यही पीछे सर्वेंट क्वार्टर में रहती थी" रोशनी ने जवाब दिया।
" यादव मेरे साथ आओ जरा" इंस्पेक्टर राजेश ने अपने एक मातहत को आवाज लगाई। यादव राजेश जी के एक बार पुकारते ही उनके दरबार मे हाजिर हो गया।
" चलिये मैडम...दिखाइए गंगूबाई का कमरा" ये बोलकर राजेश जी रोशनी के साथ साथ चल दिये...आपका ख़ाकसार भी भला पीछे क्यो रहता....लिहाजा मैं भी उन लोगो के पीछे चल दिया।
गंगूबाई का कमरा बिल्कुल व्यवस्थित था...वहाँ किसी भी प्रकार की किसी जोर जबरदस्ती का कोई भी निशान नही था...लग रहा था कि हत्यारे ने गंगूबाई को कही बाहर ही अपना शिकार बनाकर उसे ले जाकर टॉयलेट में डाल दिया था। लेकिन अगर कही बाहर से उसे टॉयलेट में ले जाया जाता तो टॉयलेट के बाहर गंगूबाई के शरीर से टपकने वाले खून के निशान तो मिलने चाहिए थे...मैंने अपनी ही सोच को तुरंत अपने ही तर्क से काटा।
" साहब यहां तो बस ये तीन हजार रु मिले है...इसके अलावा तो और कुछ भी संदिग्ध नही है इस कमरे में" तभी यादव ने अपने रुमाल से उन नोट को उठाकर अपने साहब को दिखाते हुए बोला। ये वही आपके ख़ादिम के दिये हुए नोट थे,जिनके लालच का शिकार होकर वो मेरे आगे अपनी मालकिन के बारे में बुक्का फाड़ रही थी।
" इन्हें यही रख दो..फोरेंसिक टीम इन्हें सील करेगी" राजेश जी ने यादव को बोला और फिर से वे रोशनी से मुखातिब हो गए।
" ये पैसे आपने दिए थे रोशनी को बाजार से सामान लाने के लिए" राजेश जी ने रोशनी से पूछा।
" नही ...पैसे तो उसके पास छोटे मोटे सामान लाने के लिए रहते ही थे...जिनका वो एक साथ हमेशा हिसाब दिया करती थी...अब इतनी पुरानी नौकरानी पर इतना भरोसा तो करना ही पड़ता है" रोशनी ने पहले से सोचा हुआ जवाब ही दिया।
" हाँ तो जासूस महोदय! अब आप बताइए....आप यहाँ क्या कर रहे थे" इंस्पेक्टर राजेश अब आपके खाकसार से मुखातिब हुए।
" मैं तो इन्ही मोहतरमा से मिलने के लिए आया था...लेकिन मुझे गंगूबाई ने बोला कि मैडम किसी और शख्स के साथ अपने बेडरूम में है..वो अभी मुझ से नही मिल सकती है...तो मैंने गंगूबाई से बोला कि मैं मैडम का इंतजार कर लेता हूँ...जैसे ही मैडम अपने विशेष कार्यक्रम से फारिग हो जाए तो मुझे उनसे मिलवा दीजिएगा" ये बोलकर मैंने एक कुटिल मुस्कान रोशनी की ओर डाली...लेकिन उसका चेहरा बिल्कुल निर्विकार था...वहां न कोई उतार चढ़ाव था और नही किसी असमंजस का भाव था।
" मतलब आपके हिसाब से जिस वक्त आप आये उस वक़्त बंगले में एक आदमी की उपस्थिति और भी थी" राजेश ने मेरी बात का निचोड़ निकाला।
" ये आदमी झूठ बोल रहा है..,मेरे बैडरूम में कोई भी आदमी नही था...ये कोई मनगढ़त कहानी बना रहा है...इससे पूछो की मुझ से मिलने के लिए मेरे साथ कोई बात हुई थी इनकी...या मैने इन्हें बुलाया था"इस मोहतरमा के एक ही वार ने मेरी सारी बातों की धज्जियां उड़ा दी थी।
" मैडम सही बोल रही हैं क्या" इस बार राजेश ने सवालिया निगाहों से मेरी ओर देखा। उनकी नजरो की तपिश बता रहे रही थी कि किसी पुलिसिये की दोस्ती के मुगालते में कभी किसी इंसान को नही रहना चाहिए...किसी ने सही कहा था कि पुलिस की न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी अच्छी।
" मैडम आधी बात सच बोल रही है..और आधी बात झूठ बोल रही है" इतनी जल्दी तो इस रंग बदलती औरत से आपका ख़ादिम भी हार मानने वाला नही था।
" कैसा आधा सच और आधा झूठ"राजेश ने फिर से मुझ से पूछा।
" आधा सच तो ये है कि ये बात मैडम बिल्कुल सही बोल रही है कि इनसे मिलने को लेकर मेरी इनसे कोई बात नही हुई थी..और आधा झूठ इनका ये कहना कि इनसे मिलने के लिए इनसे बात करना निहायत ही जरुरी है तो मुझ से कल बिना कोई पहले से अपॉइंटमेंट लिए हुए मैडम ने बात कैसे कर ली" मैने कल की बात याद दिलातें हुए रोशनी की आज की बात को फ्यूज कर दिया।
" मैडम आप ये बताइए कि वो तीसरा आदमी कौन था,जिसके बारे में ये जासूस साहब बोल रहे हैं" अचानक से राजेश ने बात का रुख रोशनी की ओर मोड़ दिया।
" मैं पहले ही बोल चुकी हूं कि यहां कोई तीसरा बन्दा नही था...मुझे तो लगता है कि गंगूबाई का खून भी इसी बंदे ने किया है।
" मैं क्यो गंगूबाई का खून करने लगा मोहतरमा...मेरी और उसकी जान पहचान जुमा जुमा डेड दिन की है..और मैं तो आपके सामने खड़ा हुआ हूँ,...एकदम साफ सुथरा..रिन साबुन से नहाया हुआ चमकदार झागदार..कही लग रहा है आपको की ये बन्दा अभी ताजा ताजा एक खून करके हटा है" मैने नाटकीय अंदाज में रोशनी की बातों की हवा निकाल दी...मेरा अंदाज देखकर इंस्पेक्टर राजेश भी मुस्कराए बिना नही रह सके।
" आपके बंगले में सीसीटीवी कैमरे तो लगे ही होंगे...उससे एक मिनट में स्थापित हो जाएगा कि यहां पर कोई बन्दा था या नही..अगर आप सच मे झूठ बोल रही है तो यही आखिरी वक्त है आपके पास सच बोलने का..अगर कैमरे ने अनुज की बात को सही साबित कर दिया तो मैं आपको इस कत्ल के केस में अच्छे से नाप दूंगा मैडम" इंस्पेक्टर राजेश ने अब जाकर रोशनी को अपना पुलिसिया रूप दिखाया था।
" साहब फोरेंसिक टीम आ गई है" तभी यादव ने बंगले के बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज सुनकर बोला।
" राठी को बोलो की वो फोरेंसिक टीम के साथ रहे" ये बोलकर राजेश जी एक बार फिर से रोशनी से मुखातिब हुए।
" मैडम एक तो मैं अभी तक आपकी नौकरानी के कत्ल का कोई औचित्य नही समझ पाया हूँ...दूसरी बात मैं अभी तक आपके झूठ बोलने की वजह भी नही समझ पा रहा हूँ..अगर सच मे यहाँ कोई तीसरा बन्दा था तो आप बता क्यो नही देती हो....ताकि हम उससे भी पूछताछ कर सके"राजेश जी ने इस बार नम्र स्वर में उसे गिलोय का रस पिलाया।
" जी ! आप समझने की कोशिश कीजिये मैं एक औरत हूँ...और इससे मेरी शादीशुदा जिंदगी खतरे में पड़ जायेंगी" रोशनी ने दो दिन में शादी के बारे में दो अलग अलग बयान दिए थे...लेकिन अभी मैं इन सब बातों का उल्लेख इंस्पेक्टर राजेश के सामने नही करना चाहता था..अभी मैं उस बंदे के बारे में जानना चाहता था..जिसके बारे में अब रोशनी का मुंह फाड़ना जरूरी हो गया था। मैं अपने कुछ पत्तो को तुरुप के पत्तो के तौर पर बचाकर रखना चाहता था...क्योकि इस मर्दमार औरत से मेरी कई मुलाकातें होना लिखी हुई थी।
" ये सब तो आपको किसी और से सम्बन्ध बनाने से पहले सोचना चाहिए था....जहाँ तक मेरी जानकारी में है...पिछ्ले कई दिनों से आपके पति लापता है...उनकी गैर हाजिरी में आप किसी गैर मर्द के साथ अपनी अय्याशी में डूबी हुई हो...आपकी ये हरकत आपको सीधे सीधे शक के घेरे में खड़ी करती है कि कही आपने ही तो अपने पति को गायब नही करवा दिया है" इंस्पेक्टर राजेश की बात सुनते ही रोशनी का वो मेकअप पुता चेहरा भी अपनी सफेदी को छुपा नही सका।
" मेरे पति के गायब होने में मेरा कोई हाथ नही है..इंस्पेक्टर साहब...उनको तो उनके भाई ने ही कही गायब किया हुआ है....हां मैं मानती हूँ कि शादीशुदा होते हुए भी मेरे किसी गैरमर्द से सम्बंध बनाना गलत है...लेकिन इन गलत सम्बन्धो को बनवाने में मेरे ही पति का सबसे बड़ा हाथ था" रोशनी पता नही क्या बोले जा रही थी...मेरे साथ साथ राजेश जी भी अजीब सी नजरो के साथ इस वक़्त रोशनी को घूर रहे थे।
" आपकी बात समझ नही आई...आपके पति ही आपको दूसरे मर्दों के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए उकसाते थे" राजेश जी ने अपनी नजर रोशनी के उस कटीले चेहरे पर चिपकाते हुए कहा।लेकिन इस बात का जवाब देने की बजाए...इस वक़्त रोशनी सिसकियां भरने लगी थी...ये औरत जो बातों में आपके खाकसार को अभी कुछ देर पहले हजम कर रही थी इस वक़्त वो इमोशनल कार्ड खेल रही थी..और बख़ूबी खेल रही थी।
"रोशनी मैडम !ये वक़्त अपनी करनी पर रोने का नही है...बल्कि जो भी बात है साफ साफ बताइये...ताकि हम आपके पति को भी ढूंढ सके...और गंगूबाई के कातिल को भी पकड़ सके" इंस्पेक्टर राजेश ने कुछ पल उसके सिसिकया भरने के बाद बोला।
" मैं बहुत अभागन औरत हूँ इंस्पेक्टर साहब ! मेरे पहले पति एक एक्सीडेंट का शिकार हुए थे..उसमे न तो उनकी लाश ही।मिली और न ही वे जिंदा किसी को दिखाई दिए...उस वक़्त मैं समझ ही नही पाई की मैं खुद को क्या समझू..., सुहागन या विधवा ! उन दिनों जब मैं एक विधवा का जीवन ही गुजार रही थी...तभी मेरी जिंदगी में इन विजय साहब का आगमन हुआ...विजय मेरे पति के पुराने क्लाइंट थे...जब भी वे दिल्ली से काम के सिलसिले में पुणे आते थे तो हमारे यहां ही ठहरते थे...विजय साहब को मेरे हाथ का खाना बहुत पसंद था..इसी वजह से मेरे पति भी इन्हें घर पर ही ठहरने के लिए इसरार करते थे" ये बोलकर रोशनी एक पल को चुप हुई।
" उन्ही दिनों में विजय साहब एक बार हमारे घर आये और मुझ से शादी करने का प्रस्ताव रखा..तब तक मैं अपने पहले पति गोपाल की तरफ से नाउम्मीद हो चुकी थी...उनकी कही से भी कोई खबर नही मिल रही थी...मैंने इसी नाउम्मीदी के चलते विजय साहब का दामन थाम लिया..मेरी ओर इनकी उम्र में कोई बीस साल का अंतर है...इसी अंतर की वजह से वो मेरी जरूरत को पूरा करने में नाकाम रहते थे....इतने बड़े आदमी की बीवी होने के चलते मैं अपना दुख किसी को बता भी नही पाती थी....लेकिन विजय मेरे दुख को समझतें थे..., और अपनी कमजोरी को भी जानते थे..वे अक्सर एक ही बात बोलते थे कि उन्होंने मेरी जिंदगी को बर्बाद कर दिया...जबकि मुझे यहां किसी भी बात का कोई दुख नही था..बेशुमार पैसा था...सोसाइटी में इज्जत थी...सिर्फ एक इस बात को छोड़कर मुझे कभी कोई दुख महसूस नही हुआ...लेकिन विजय के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था...वो मेरी ज़िंदगी के इस दुख को भी मिटाना चाहते थे...उन्ही के कहने पर और उन्ही की जोर जबरदस्ती के बाद मैं किसी गैरमर्द के साथ संबंध बनाने के लिए राजी हो गई" ये बोलकर रोशनी एक बार फिर से चुप हो गई।
यहाँ तक जो भी बात रोशनी ने बोली थी...उस बात को गंगूबाई ने भी मुझे बताया था। ये भी हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई थी।
" लेकिन अभी आपने बोला कि उस आदमी के बारे में बताने से आपकी शादी शुदा जिंदगी बर्बाद हो जाएगी....जब सभी कुछ आपके पति की सहमति से हो रहा था तो आपकी शादी शुदा जिंदगी कैसे बर्बाद होती" इस बार राजेश जी की जगह आपके इस खाकसार ने सवाल किया तो रोशनी के चेहरे पर सख्त नागवारी के भाव उभरे....मुझ से तो इन मोहतरमा की जैसे जन्मजात दुश्मनी हो चुकी थी...लेकिन आपके इस सेवक को ऐसी बिगड़ेदिल शाहजादियों को अपने काबू में करना आता था....बहरहाल मैं इस वक़्त अपने सवाल के जवाब का इंतजार कर रहा था।
" जिस आदमी से मेरे संबंध है वो भी शादीशुदा है...और हमारी इस बात के आम हो जाने के बाद कौन सा मर्द दुनिया का सामना कर सकता है...इसलिये एक नही बल्कि दो दो शादी शुदा जिंदगी बर्बाद हो सकती है" इन मोहतरमा की तर्क शक्ति विलक्षण थी।
" चलिए मैं आपको भरोसा देता हूँ...की इन बातों को हम किसी के सामने नही आने देंगे...लेकिन आप उस शख्स को अभी यहां बुलाइये" राजेश जी ने रोशनी को भरोसा दिया।
अब रोशनी के पास बहाना बनाने के लिये कोई तर्क बचा ही नही था...लिहाजा वो बेबसी के आलम में अपने फोन से एक नंबर मिलाने लगी....अब राजेश के साथ साथ मुझे भी उस शख्स के आने का बेसब्री से इंतजार था।
भाग 6
आंगतुक को वहाँ पर आने में कोई एक घण्टे से भी ज्यादा का समय लग गया था...लेकिन बन्दा वही था जो मेरे सामने इन मोहतरमा के बेडरूम से निकला था। इस दरम्यान पुलिस की फोरेंसिक टीम और फोटोग्राफर अपना काम निबटा चुके थे। गंगूबाई की लाश को भी पोस्टमार्टम के लिए भेजा जा चुका था। मेरी पहली नजर ने ही उस बन्दे को अपने शक के दायरे से बाहर कर दिया था। उस बंदे को अपने शक के दायरे से बाहर करने की वजह एक ही थी कि वो बन्दा अभी भी उन्ही कपडो में था...जिन कपडो में वो यहां से गया था...उसके कपड़े भी मेरी तरह से ही बेदाग थे....और सबसे बड़ी वजह जितनी देर में मैं रोशनी को उसके बैडरूम में सोते हुए देखकर नीचे गंगूबाई के पास गया था...उतनी देर में किसी का इतने नृशंस तरीके से गला काटकर भाग जाने का सवाल ही पैदा नही होता था। अगर ये बन्दा कत्ल करके भागता तो कम से कम इसके भागते हुए कदमो की आवाज मुझे तो सुनाई देती। इसलिए आपके ख़ादिम की अदालत में ये बन्दा बाइज्जत इस मामले से बरी किया जा चुका था।
" नाम क्या है तुम्हारा" इंस्पेक्टर राजेश ने बिना किसी लागलपेट के उस शख्स से पूछा।
" जी राजबीर राठी है जनाब" उस बंदे ने बड़े अदब से राजेश जी की बात का जवाब दिया।
" क्या काम करते हो" ये राजेश जी का अगला सवाल था।
" जी मैं भी आपके महकमे से ही हूँ जनाब" राजबीर राठी के जवाब से मुझ से ज्यादा राजेश साहब चौंके थे।
" मैडम को कैसे जानते हो" राजेश जी के स्वर में अभी भी कोई नरमी नही थी।
" जी फैमिली फ्रेंड है हम लोग...इनके पति के रहते हुए ही हम लोगो का एक दूसरे के यहां आना जाना है" राजबीर राठी बिना किसी छुपाव के जवाब दे रहा था। राजबीर और सतबीर चूंकि दोनो ही मिलते जुलते नाम थे...हो सकता है कि गंगूबाई तभी नाम का धोखा खा गई हो...आखिर थे भी दोनो पुलिस में ही।
" आज भी तुम यहाँ आये थे" राजेश जी ने फिर से पूछा।
" जी जनाब...सुबह दस बजे से दो बजे तक मैं यही था" राजबीर ने सपाट लहजे में बोला।
" खैर मैं ये तो नही पूछुंगा की इनके पति की गैरहाजिरी में तुम इतने समय तक यहां क्या कर रहे थे....क्योकि तुम्हारे सम्बंध में मैडम सभी कुछ बता चुकी है....आज इस बंगले में क्या हुआ है ये जानते हो" इंस्पेक्टर राजेश ने अपने पुलिसिया लहजे में ही उससे सवाल जवाब कर रहे थे।
" नही सर! जब मैं यहां से गया था तब तक तो यहां कुछ भी नही हुआ था" राजबीर ने विश्वास भरे लहजे में बोला।
" यहाँ की मैड गंगूबाई का कत्ल हो गया है...उस कत्ल के समय तुम भी यहाँ मौजूद थे..इसका मतलब समझते हो"राजेश जी ने इस बार गहराई से राजबीर पर अपनी नजर जमाते हुए बोला।
" क्या? लेकिन मैंने तो उसे आखिरी बार देखा था ...तब वो जिंदा थी" राजबीर ने चौंकते हुए जवाब दिया।
" तुमने उसे आखिरी बार कब जिंदा देखा था" राजेश जी ने पूछा।
" सुबह दस बजे के आसपास...जब मैं यहां पहुंचा था...दरवाजा गंगूबाई ने ही खोला था" राजबीर ने जवाब दिया।
" उसके बाद तो मैंने भी उसे डेढ़ बजे से पहले तक जिंदा देखा था" इस बार उस बातचीत में मैंने भी टांग अढ़ाई।
" लेकिन मैंने उसे वापसी में नही देखा था" राजबीर ने एक नजर मुझ पर डालते हुए कहा।
" इसका मतलब..कत्ल के वक़्त तुम तीनो लोग बंगले में मौजूद थे...यादव अभी फोरेंसिक वाले गए तो नही है...जरा मल्होत्रा साहब को बोलो की इन तीनो के भी फिंगरप्रिंफ के सैंपल ले ले" राजेश जी की बात सुनते ही मेरे दिल की धड़कन तेज हो चुकी थी...क्योकि अभी तक मैंने ये बात नही बताई थी कि मैं स्पेशली गंगूबाई से मिलने के लिये ही यहाँ आया था। ये बात भी नही बताई थी कि गंगूबाई के कमरे से बरामद हुए वे तीन हजार रु भी मैंने ही उसे दिए थे...अगर कोई मेरा दुश्मन पुलिसिया इस वक़्त इस केस को हैंडल कर रहा होता यक़ीन मानिए वो इन बातों की बिना पर आपके खाकसार को एक बार तो जेल की हवा खिला ही सकता था। शुक्र था कि राजेश जी के साथ मेरे सम्बंध मधुर थे...इस बात का भी शुक्र था की मेरा उनके ऊपर इम्प्रेशन कानून की मदद करने वाले जासूस के रूप में था...न कि कानून को तोड़ मरोड़ कर और सबूतों में उलटफेर करके कानून कि धज्जियां उड़ाने वालो में शामिल था।
" हम दोनों के अलावा यहां पर तीसरे शख्स के रूप में ये जासूस साहब भी यहां मौजूद थे...इनसे भी तो पूछ लो जरा की इतनी देर तक ये जनाब किस काम मे मशगूल थे" रोशनी ने एक बार फिर से अपनी मेरे साथ दुश्मनों वाली भड़ास निकाली।
" मैडम मैं उस वक़्त इन साहब के साथ आपकी रंगरलियों को देखने में मशगूल था...आपने जो इनकी जाते हुए झप्पी भरके पप्पी ली थी न वो मैंने अपनी आंखों से देखी थी "इस बार मैने उन मोहतरमा की अक्ल हमेशा के लिए ठिकाने लगाने की सोच कर बोला। मेरी बात सुनते ही उन मोहतरमा के चेहरे पर से हजारों रंग आकर चले गए।
" तमीज से बात कर...तेरे जैसे जासूसों को मैं रोज अपने थाने से धक्के मार कर भगाता हूँ" तभी उसका यार राजबीर राठी मेरे ऊपर बदतमीजी से गरजा।
" जानता हूँ जनाब आप जैसे पुलिसियों से मेरा भी पाला रोज पड़ता है...आप की शक्ति अपरम्पार है...आप मुझे किसी भी झूठे केस में फंसाकर उम्र भर के लिए जेल में सड़ा सकते हो....आपकी महिमा को कौन नही जानता हुजूर...आप तो इस देश के सर्वशक्तिमान आदमी हो" मैने इज्जतदार भाषा मे उस पुलिसिये को भिगो भिगो कर जूते मारे।
" तुम दोनों चुप रहो...नही तो अभी तुम दोनों को सिर्फ शक के आधार पर ही अंदर डाल दूंगा...और राजबीर साहब ये बताइये की इस वक़्त आप डयूटी पर है" अचानक से राजेश बाबू ने अपना पैतरा बदल दिया था।
" जी जनाब...डयूटी पर हूँ" ये जवाब देते हुए राजबीर के न उगलते बन रहा था न निगलते।
" इसका मतलब अपने डयूटी के समय मे तुम यहाँ रंगरलिया मना रहे थे...इस वक़्त में तुम अगर किसी का खून भी कर दो...तो तुम तो खुद को थाने में डयूटी पर दिखाकर साफ बच जाओगे"अचानक से राजेश जी की ये बात सुनते ही राजबीर के चेहरे पर पसीना उभर आया।
" साहब गलती हो गयी..आगे से ऐसी गलती कभी नही करूँगा" राजबीर की पुलिसिया अकड़ एक मिनट में ढीली हो गई थी।
" तुम मिस्टर अनुज से ऐसे बात कर रहे हो जैसे जासूसी का काम करना इनका सबसे बड़ा गुनाह हो...जानते भी हो अभी तक कितने केस में ये पुलिस की अलग अलग थानों में मदद कर चुके है...और मैडम मैं उन अफसर में से हूँ जो कानून की नजर में अगर ख़ुद का बेटा भी गुनाहगार हो,तो उसे भी फाँसी पर चढ़वा दू...आप मुझे सिखाएगी की मुझ से कब किससे कितनी पूछताछ करनी है" राजेश जी ने एक ही बार मे उन दोनों आशिक और माशूक का नशा एक साथ उतार दिया था।
" साहब गलती हो गई...आगे से मैं यहां कभी फटकूँगा भी नही...बस इस बार माफ कर दो जनाब" राजेश जी की एक ही झाड़ में राठी का सारा पानी उत्तर चुका था। रोशनी मैडम भी इस वक़्त नीची निगाहों से जमीन कुरेदना शूरू कर चुकी थी।
" तुम जानते हो न कि यहां तुम्हारी उंगलियों के निशान लेते ही मुझे तुम्हारे बारे में डिपार्टमेंट को लिख कर तुम्हारे खिलाफ विभागीय जांच की सिफारिश करनी पड़ेगी...की अपनी ड्यूटी के समय मे तुम चार घण्टे तक यहाँ क्या कर रहे थे..और तुम ये भी जानते हो कि इस वक़्त कौन कौन सी कानून की धाराओं का मैं तुम्हारे खिलाफ इस्तेमाल करूँगा...तुम्हारे जैसे पुलिसकर्मियों की वजह से डिपार्टमेंट का नाम बदनाम होता है" राजेश जी ने उस पुलिसिये की कारस्तानी को बहुत गंभीरता से ले लिया था। इसमे कोई दो राय नही थी कि उस पुलिसिये की अनेक गलतियां थी...और वो अच्छे से नप सकता था। तभी मल्होत्रा साहब अपने एक मातहत के साथ अपने साजो सामान के साथ वहां हाजिर हो गए....मल्होत्रा साहब के साथ अभी कुछ ही दिन पहले केशव पुरम में हुए रुस्तम मर्डर केस में मेरी मुलाकात हो चुकी थी।
" अरे जासूस साहब आप यहां भी" मल्होत्रा साहब ने नजर पड़ते ही अपना हाथ मेरी ओर बढाया..जिसे मैंने गर्मजोशी से थाम लिया।
" आप जानते हो अनुज को" राजेश जी ने दिलचस्पी से मेरे बारे में पूछा।
" हाँ केशव पुरम में इंस्पेक्टर नर सिंह ने मिलवाया था इनसे...वहां भी इन जनाब ने एक मर्डर केस सॉल्व किया था" मल्होत्रा साहब काफी खुशमिजाज इंसान थे।
"लेकिन आज आपको इनके भी फिंगर प्रिंट लेने होंगे...क्योकि मकतूल के मर्डर के वक़्त ये भी यहां मौजूद थे" राजेश जी ने मुस्करा कर बोला।
" कोई नही जी आप कहते हो तो ले लेते है..अपना तो यही दिन रात का काम है जनाब" मल्होत्रा साहब ने हँसते हुए बोला।
उसके बाद हम तीनों के फिंगर प्रिंट लिए गए...इन फिंगर प्रिंट की रिपोर्ट मैं जानता था की क्या आने वाली थी। लेकिन मैं ये भी जनता था की सिर्फ फिंगर प्रिंट मिलने से ही किसी को कातिल साबित नही किया जा सकता था। किसी को कत्ल का दोषी साबित करने के लिए और भी बहुत चीज़ो की जरुरत पड़ती है...जो कि मेरे केस में सम्भव ही नही था।लेकिन गंगूबाई से मिलने और बात करने की बात छुपा कर मैं कुछ गलती कर रहा था..ये आवाज बार बार मेरे दिल के किसी कोने में उठ रही थी। लेकिन अब मैंने अपनी इस सोच को झटका...अब इस बारे में कुछ भी बोलना होगा तो फोरेंसिक की रिपोर्ट आने के बाद ही बोलूंगा।
रोशनी और उस पुलिसिये राजबीर राठी का सारा नशा पहले ही इंस्पेक्टर राजेश ने उतार दिया था...राठी ने शायद ये मुगालता पाल लिया था कि स्टाफ का आदमी होने की वजह से इंस्पेक्टर साहब शायद उस पर कुछ रहम खा जायेगे...लेकिन ये मुगालता सिर्फ मुगलता बन कर ही रह गया था। लेकिन इन बातों के बाद रोशनी बार बार कनखियों से सिर्फ मेरी ओर ही देखे जा रही थी। पता नही उसका ये हृदय परिवर्तन क्योंकर हुआ था।
" अभी तुम लोग जा सकते हो...रिपोर्ट आने के बाद मैं तुम सभी को फिर से तलब करूँगा..लेकिन रोशनी जी कल आप एक बार थाने आ जाना...मुझे आपसे और भी बहुत से सवालो के जवाब जानने है" इंस्पेक्टर राजेश ने रोशनी से मुखातिब होते हुए कहा।
"सर ! आपके इस ख़ादिम को भी इजाजत है अब"मैने राजेश जी की तरफ देखते हुए पूछा।
" हां आप भी जा सकते हो...लेकिन मेरे बुलावे पर तुरन्त हाज़िर हो जाना" राजेश जी ने मुझे ताकीद किया।
" बन्दा तो आपके बिना बुलावे पर भी हाज़िर हो जाएगा जनाब"ये बोलकर मैने विदा लेने के अंदाज में हाथ बढ़ाया। जिसे राजेश जी ने तत्काल थाम लिया। उसके बाद मैं वहां से रुखसत होकर अपनी गाड़ी में बैठ चुका था। मैने गाड़ी में बैठते ही गंगूबाई के बताए हुए पुणे के पते खबरी को टेक्स्ट मेसज किये। उसके बाद मैंने अरुण वर्मा को फोन मिला दिया। दुसरी बेल पर ही अरुण ने मेरा फोन उठा लिया।
" निकल आये क्या रोशनी के यहाँ से" फोन उठाते ही अरुण ने पूछा।
" हाँ अभी अभी वही से निकला हूँ...लेकिन तुम्हे कैसे पता कि मैं यहां रोशनी के पास था" मैंने जानते बूझते फिर भी पूछा।
" अरे जनाब हमारे भी बन्दे हर जगह फिट है...वैसे ही इतने बड़े धंधे को नही सम्हालते है" अरुण ने अपनी डींगें हाकी।
" फिर तो तुम ये भी जानते होंगे..की आपकी खबरी गंगूबाई का आज दोपहर को कत्ल हो गया" मैंने अरुण का रिएक्शन देखने के लिए उसे बताया।
" कब...उसका कत्ल कोई क्यो करेगा" अरुण मेरी बात सुनकर बुरी तरह से चौंका था।
" अब ये तो उसे मारने वाला ही बता सकता है...की उसने उसे क्यो मारा" मैंने अरुण को उसी अंदाज में जवाब दिया।
" ये तो बहुत बुरा हुआ...उस बेचारी गरीब ने किसी का क्या बिगाड़ा था" अरूण का हमदर्दी भरा स्वर मेरे कानों में पड़ा।
" वैसे जब तुम ये बात जानते थे कि रोशनी तुम्हारे पुणे की किसी क्लाइंट की ही बीवी थी तो तुमने ये बात मुझें पहले क्यो नही बताई" मैंने अरुण से शिकायती लहजें में बोला।
" किसी इंसान की काबलियत आजमाने का ये मेरा अपना तरीका है अनुज बाबू...मैं देखना चाहता था कि इस मामूली सी बात तक आप कितनी जल्दी पहुंच सकते हो...और आपने सिर्फ एक दिन में ही वहां तक पहुंच कर अपनी काबिलयत को साबित कर दिया...अब मुझे यकीन हो गया है कि मेरे पास बर्बाद नही होंगे...,मेरे भाई का पता अब चलकर ही रहेगा" अरुण ने अजीब सी बात बोली।
" आपकी भाभी के उस आशिक का नाम सतबीर राठी नही राजबीर राठी है...आपकी खबरी ने आपको गलत नाम बताया था"मैंने उसकी एक और जानकारी दुरूस्त की।
" गंगूबाई से सुनने में गलती हो गई होगी" अरूण ने सामान्य स्वर में बोला।
" अच्छा एक बात बताओ..तुम्हारे भाई को कोई मर्दाना कमजोरी भी थी क्या....आज रोशनी ने बताया कि तुम्हारे भाई की मर्जी से ही उसने उस पुलिसिये से सम्बन्ध बनाए थे"मैने अरुण से ये बात भी पूछना जरूरी समझी।
" दरअसल इतनी पर्सनल बातें कभी हम दोनों भाइयो के बीच मे हुई नही थी...क्योकि उनके पैदा होने के दस साल बाद मैं पैदा हुआ था तो उम्र के इस फासले की वजह से मैं कभी उनसे इस लेबल तक खुल नही पाया था...एक बड़े भाई की इज्जत ही उन्हें देता था" अरुण ने एक सामान्य सी बात मुझें बोली।
" ठीक है अरुण साहब....फिर बात करते है...अभी रास्ते मे हूँ"ये बोलकर मैंने फोन को काट दिया। अभी फोन काटा ही था कि फोन पर रोशनी का नाम ट्रू कालर में चमक उठा।अभी तो इस हसीना के पास से ही मैं आ रहा था...इतनी जल्दी इसे मुझ से क्या काम पड़ गया था।
" जी बोलये मैडम...अपने इस सेवक को इतनी जल्दी कैसे याद किया" मैंने फोन उठाते ही बोला।
" पहले बताओ ! मुझ से नाराज तो नही हो" अब ये पता नही इस नारी का कौन सा त्रिया चरित्र था कि इस वक़्त ये मेरी नाराजगी के बारे में पूछ रही थी।
" आपने मेरी कौन सी भैंस खोल ली मोहतरमा ! जो मैं आपसे नाराज होऊंगा" मैंने अपनी बात को चांदी का वर्क चढ़ा कर उस हसीना के हुजूर में पेश किया।
"लेकिन मैं तभी मानूँगी की तुम मुझ से नाराज नही हो जब तुम अभी वापस मेरे पास आओगे...मुझे तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है" मैडम की बात सुनकर बस वही घिसा पीटा सा शेर मुझे याद आ गया..बदले बदले से मेरे सरकार नजर आते है...मुझको कयामत के आसार नजर आते है" ।
" ठीक है हुजूरे आला..आपका ये खिदमतगार अभी आपकी खिदमत में पेश होता है। ये बोलकर मैंने फोन को काट दिया और अपनी गाड़ी को अशोक विहार के पूल से उतरते ही यू टर्न दे दिया।बन्दा अब फिर से कमला नगर के उसी बंगले की ओर जा रहा था...जहां वो कयामत मेरा पलक पाँवड़े बिछाये हुए इंतजार कर रही थी।
भाग 7
मैं वहां से कोई आधा घण्टे में वापिस रोशनी के बंगले पर पहुंच पाया था। दरवाजा इस बार रोशनी ने ही खोला था...उसने हल्का सा मुस्करा कर आपके खाकसार पर एक दिलफरेब मुस्कान फेंकी और मेरे लिए अंदर आने का रास्ता छोड़ दिया। गंगूबाई की मौत के बाद एक अजीब सा सन्नाटा उस बंगले में पसरा हुआ था और बंगले का अधिकांश भाग इस वक़्त अंधेरे में डूबा हुआ था...लेकिन मैं खुशनसीब था कि मेरे आगे रोशनी मुझे खुद रास्ता दिखाते हुए चल रही रही थी।
उस विशाल ड्राइंगरूम में मैंने रोशनी के साथ प्रवेश किया...उस ड्राइंगरूम में मैं कल भी आ चुका था। रोशनी ने मुझे सोफे पर बैठने का इशारा किया...और खुद कही अंदर की ओर जाते हुए मेरी नजरों से ओझल हो गई। कुछ ही देर में रोशनी एक ट्रे में एक व्हिस्की की बोतल और सॉफ्ट ड्रिंक और कुछ स्नैक्स लेकर मेरे सामने हाजिर हो गई। मुझे इन मोहतरमा के दिल मे चलने वाले ख्यालो का और वहां होने वाले अगले कामो का एहसास हो चुका था.. लेकिन मैं अभी खामोशी से सभी कुछ देखे जा रहा था। रोशनी ने दो गिलास में व्हिस्की डाल कर मेरी ओर देखा।
" पानी या सॉफ्ट ड्रिंक" उसने सवालिया नजरो से मेरी ओर देखा।
" लगता है गंगूबाई की मौत का जश्न मनाया जा रहा है" मैंने मुस्कराते हुए रोशनी से बोला। मेरी बात सुनकर उसने ऐसे मुंह बनाया मानो कुनैन की कडवी गोली किसी ने उसके मुंह मे रख ढ़ी हो।
" नही जनाब !ये तो आपके आने का जश्न मनाया जा रहा है" ये बोलकर उसने एक बार फिर से मेरी ओर इशारे से पूछा कि व्हिस्की में क्या मिलाऊँ।
मैंने सिर्फ पानी की बोतल उठाई और अपने मुंह के लगा ली।
" मैं इन दोनो में से कुछ भी नही पीता" मैंने पानी पीकर बोतल को वापिस उसी ट्रे में रखते हुए कहा। उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।
" इसी धरती के निवासी हो या किसी दूसरे ग्रह से आये हो" रोशनी ने अपने गिलास में सॉफ्ट ड्रिंक को मिलाते हुए बोला।
" ये बताइये की आपने इस नाचीज़ को क्यो बुलाया है...क्या काम है आपको मुझ से" मैंने अब बात का रुख मोड़ने में ही भलाई समझी।
" आज मुझे तुम्हारी काबलियत का सही से पता चला...पुलिस के इतने बड़े बड़े ऑफिसर भी जब तुम्हारी काबलियत का लोहा मान रहे है तो कुछ तो बात होगी तुम में....इसलिए मैं तुम्हे दो काम सौपना चाहती हूँ" ये बोलकर रोशनी ने अपना गिलास उठाया और एक ही सांस में पूरा गिलास खाली करके ट्रे में वापिस रख दिया...उसके बाद एक मुट्ठी में कुछ भुने हुए काजू लेकर अपने मुंह ने डाल लिए। पीने के मामले में मोहतरमा काफी तजुर्बेकार थी।
" कौन से दो काम" मैंने उसकी तरफ देखकर पूछा।
" पहला काम गंगूबाई के हत्यारे को तलाश करना..और दूसरा काम है मेरे पति की खोज ख़बर भी निकालना...पैसा तुम्हे उम्मीद से भी चार गुना मिलेगा" रोशनी की बात सुनकर मैं अचंभित सा उसकी और देखता रह गया। मुझे लग रहा था की पैसो के मामले में एक और सौम्या का मेरी जिंदगी में आगमन हो चुका था।
" लेकिन आपके पति की खोजबीन तो मैं आपके देवर अरुण के कहने पर कर ही रहा हूँ...उस काम की तो वे मुझे पेशगी भी दे चुके है" मैंने ईमानदारी से रोशनी को बोला।
" कोई बात नही...तुम उस हरामखोर से भी पैसे बटोरो...मुझे कोई ऐतराज नही है...लेकिन मेरे पति को ढूंढने का काम तुम मेरे लिये करोगे" रोशनी अपना दूसरा पेग भी तैयार कर चुकी थी। उसने उन काज़ुओ की प्लेट उठाई और उसे मेरे आगे कर दिया।
"ये तो खाते होंगे या इनसे भी जनाब को एलर्जी है" रोशनी ने नशीली आंखों से मुझे देखते हुए बोला। मैंने मुस्करा कर प्लेट से काजू उठा लिए...वो भी मुट्ठी भरकर।
" मुझे सिर्फ शराब से एलर्जी है" मैंने रोशनी की बात का जवाब दिया।
" और शवाब से " रोशनी ने फ़ौरन से पेश्तर मेरी बात को पकड़ा।
" उससे तो डबल एलर्जी है" मैंने उसकी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए जवाब दिया।
" इतना साधू इंसान इस धंधे में क्या कर रहा है" रोशनी ने दूसरे गिलास को भी एक झटके में खत्म करते हुए कहा।
"धंधा कोई गलत नही होता...बस इंसान सही होना चाहिए"मैने रोशनी की बात का एक फैंसी सा जवाब दिया।
" चलो फिर काम की बात करो..जो मैंने अभी बोला है...उस पर काम करोगे" रोशनी अब मुद्दे की बात पर आते हुए बोली।
" आपके पति को ढूंढने के काम मे तो मैं पहले से ही लगा हुआ हूँ...गंगूबाई के कातिल को ढूंढना भी आपके पति के ढूँढने के काम से ही जुड़ा हुआ है" मैंने रोशनी को एक गोलमोल से जवाब दिया।
" मैं चाहती हूं कि गंगूबाई का कातिल जरूर पकड़ा जाए...मैं नही चाहती कि अगर उसके आगे पीछे कोई नही था तो उसकी आत्मा को न्याय भी न मिल सके...,वो मेरी पिछले आठ सालों से सेवा कर रही थी...इतना तो उसके लिए करना मेरा फर्ज बनता है" अचानक से रोशनी भावुक हो गई थी। मैं इस औरत को इन दो दिनों ने अभी तक समझ नही पाया था....कभी मुझे ये सेक्स की भूखी एक अय्याश औरत लगती थी और कभी इसका कोई दूसरा ही रूप मेरे सामने प्रकट हो जाता था।
" तुम चिंता मत करो...गंगूबाई की आत्मा को न्याय जरूर मिलेगा...उसका कातिल कानून के फंदे से बच नही पाएगा...लेकिन तुम मेरे एक सवाल का सही सही जवाब दो" मै अब असल मुद्दे पर ही उससे बात करना चाहता था।
" बोलो" रोशनी अब अपने लिए तीसरा पेग बनाने के काम मे भी जुट चुकी थी।
" उस पुलिसिये को तुमसे तुम्हारे पति ही ने मिलवाया था या कोई और बात है...क्योकि मुझे तुम्हारी वो कहानी हजम नही हो रही है" मैंने ये पूछकर उसकी आँखों मे झांका जो उस वक़्त शराब के नशे की वजह से लाल हो चुकी थी।
" उसे मैने अपने पति से मिलवाया था...वो मेरी एक सहेली का पति है...बिस्तर में शानदार है...,इसलिए मुझें उसके साथ किसी बात का डर नही था...ऊपर से पुलिस में था तो एक्सट्रा प्रोटेक्शन भी थी" रोशनी ने बेबाक स्वर में मेरी बात का जवाब दिया।
" ये तुम्हारी सहेली कहाँ पाई जाती है" मेरे इस सवाल पर रोशनी गंभीरता से मेरी ओर देखने लगी।
" अब उससे भी मिलने का इरादा है क्या तुम्हारा" रोशनी अपने तीसरे पेग को भी खत्म करते हुए बोली।
" अपने धंधे का उसूल ही ऐसा है...जो भी केस में सामने आता है उससे एक बार तो मिलने का फर्ज बनता है" मैने रोशनी की बात का जवाब दिया।
" मिल लो यही मॉडल टाउन में स्टेडियम के पास रहती है....पतिदेव तो या तो थाने में होते है या फिर मेरे बिस्तर में...,तो घर पर अकेली ही मिलेगी...जो पूछना हो आराम से पूछ लेना,...लेकिन उस औरत का इस केस से कुछ लेना देना नही है"रोशनी का नशा अब उसके सिर चढ़कर बोलने लगा था।
" एक बात और बताओ..जब पुलिस आई थी तो तुमने बोला था कि तुमने गंगूबाई को सामान लाने के लिए बाजार भेजा था...सामान लाने के लिए उसे तुमने कब बोला था" मैंने रोशनी के चेहरे पर नजर गड़ा कर पूछा।
" बहुत पहले बोला था...,कोई साढ़े बारह या एक बजे का समय होगा...लेकिन वो शायद बाजार जा ही नही पाई...हत्यारे ने उसके पहले ही उसका काम तमाम कर दिया होगा" रोशनी ने मेरी ओर देखकर बोला। अभी वो अपने लिये शायद और पेग बनाने से परहेज कर रही थी।
" नही उसके बाद डेढ़ बजे तो मैं आया हूँ तो दरवाजा उसी ने खोला था..तब तक तो वो जिंदा थी..,.उसके बाद मैं तुम्हारे बैडरूम के पास वो मुझे छोड़कर गई थी...तब तक पौने दो बज चुके थे...तब तक भी वो जिंदा थी...उसके बाद आधा घण्टे के बाद वो पुलिसिया यहां से निकला था...उस दरम्यान उसका कत्ल हुआ होगा....उस पुलिसिये ने गंगूबाई को नही मारा..इसका गवाह तो मैं खुद हूँ...,फिर मेरे बाद इस बंगले में कौन आया होगा...जो भी आया है उसी बन्दे ने गंगूबाई का कत्ल किया है...लेकिन गंगूबाई को मारने से किसी का क्या फायदा होने वाला था" मैं मानो खुद से ही बात किये जा रहा था।
" सीसीटीवी कैमरे की फुटेज पुलिस लेकर गई है...,शायद उस फुटेज से वो बन्दा पकड़ा जाए...,कल मुझे भी पुलिस स्टेशन दोपहर को दो बजे बुलाया गया है...मेरे सामने ही उस फुटेज को देखा जाएगा," रोशनी ने ये काम की बात मुझे बताई थी।
" अचानक से ये सब क्यो शुरू हुआ है...तुम्हारे पति का गायब होना और फिर गंगूबाई का कत्ल...तुम्हारे पति के गायब होने से गंगूबाई का कत्ल होने का क्या सम्बन्ध हो सकता है...क्या कातिल किसी और मकसद से बंगले में आया था...जिसे गंगूबाई ने पहचान लिया हो..और इसी वजह से गंगूबाई मारी गई हो...कातिल नही चाहता होगा कि उसकी पहचान गंगूबाई किसी के सामने उजागर कर पाए" मैं पता नही क्यो इस वक़्त एक नशे में डूबी हुई बेवड़ी के सामने इस केस के बारे में बोला जा रहा था।
" तुम कहना क्या चाहते हो" लेकिन वो बेवड़ी नही थी...वो पूरे होशोहवास में थी...ये उसके इस सवाल ने सिद्ध कर दिया था। वैसे भी बडे लोगो को ये दो चार पेग कहाँ नशा करते है...इतने पेग तो चैन की नींद सोने के लिए इन्हें रोजाना ही लगाने पड़ते होगे।
" कहीं तुम्हारा पहले वाला पति तो जिंदा नही है...कही उसी का रचा हुआ ये सारा खेल तो नहीं है...कहीं उसी ने तो तुम्हारे इस पति को गायब नही किया है" मैंने एक साथ कई सवाल रोशनी के सामने खडे कर दिए।
" लेकिन इतने सालों बाद...अगर वो जिंदा भी है तो उसे मेरे सामने या मेरे पति के सामने आने में क्या प्रॉब्लम हो सकती है...वो क्यो विजय को गायब करेगा...वो क्यो गंगूबाई का कत्ल करेगा...कोई वजह भी तो होनी चाहिए" रोशनी ने मेरे सवालो को अपने किंतु परन्तु से काटना चाहा।
" इस क्यो का जवाब ही तो तलाशना है...गंगूबाई के कत्ल से तो किसी का फायदा होता नही दिखता...फिर उसे इस दिल्ली जैसे शहर में जहां उसे कोई नही जानता...कोई क्यो मारेगा"मैंने फिर से सवाल किया।
" तुम यार अपनी फीस के चक्कर मे अरुण को भूल रहे हो...,मेरे पति के लापता हो जाने या उनके साथ कुछ गलत होने का सबसे ज्यादा फायदा उसी को होगा...क्योकि इस बात को वो भी जानता है कि मैं उसके भाई की कोई ब्याहता बीवी नही हूँ...वो सिर्फ वक़्त का इंतजार कर रहा है..और कुछ महीनो तक अगर विजय वापिस नही आये तो वो मुझे इस बंगले से भी निकालने वाला सबसे पहला इंसान वही होगा...इस अंजान शहर में भला मेरा साथ कोई क्यो देगा"रोशनी की बात उसके नजरिये से ठीक भी थी।
" लेकिन वो तो बोल रहा है की आपकी शादी विजय के साथ हुई हुई है...जिसमें बाकायदा शहर के काफी नामी गिरामी लोगो की उपस्थिति थी" मैंने रोशनी को बोला।
" वो बस एक इंट्रोडक्शन पार्टी थी जो मुझे अपने यार दोस्तों से मिलवाने के लिए विजय ने दी थी....तुम तो जानते ही हो इन बड़े लोगों को पार्टी करने का बस एक बहाना चाहिए होता है...बस वो पार्टी मेरे बहाने से दी गई थी...उसी पार्टी के कुछ फोटोग्राफ को वो चालाक इंसान अपने फायदे के लिये इस्तेमाल करना चाहता है" ये बोलकर रोशनी चुप हो गई।
" कैसे" मैं चाहता था कि वो अपनी अधूरी बात को पूरा करे।
" अगर विजय को कुछ हो जाता है तो वो इस बिना पर मुझे उसका कातिल ठहरा सके कि मैं तो पहले से ही एक बदचलन औरत हूँ...हो सकता है कि मैंने अपने पहले पति को भी ऐसे ही मारा हो ताकि उस बिना पर वो विजय की जायदाद को कब्जाने के लिए वो मुझे क़ातिल ठहरा सके " रोशनी की बात में दम तो था। अरुण,रोशनी की बैकग्राउंड के दम पर रोशनी को आसानी से सवालो के घेरे में खड़ा कर सकता था। सवालो के घेरे में तो खैर वो अभी भी थी।
" तुम्हारे उस पुलिसिये के साथ संबंधों के बारे में अरुण को पता है" मैंने जानते बूझते भी रोशनी से पूछा।
" वो कमीना सब जानता है, बल्कि उन संबंधों की आड़ में वो मेरे साथ खुद के सम्बंध बनाने की कोशिश कर चुका है...लेकिन मुझे उस इंसान की शक्ल से भी नफरत है" रोशनी की बताई बात ने मेरे कान खड़े कर दिए थे....रोशनी की बात मुझे मज़बूर कर रही थी कि मैं अब अरुण के बारे में अपनी राय नए सिरे से बनाऊँ। मैं इस वक़्त एक गहरी सोच में डूब चुका था।
इस वक़्त इस केस में मेरे सामने कई सम्भावनाओ के द्वार खुले रहे थे। एक संभावना की तलाश में तो मैने खबरी को पुणे भेजा हुआ था...जिसके पास से मुझे कल कोई खबर मिलने की उम्मीद थी और दूसरा द्वार मुझे अब अरुण के बारे में नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर रहा था। हालांकि मैंने उसके इस तर्क पर तब भी विश्वास नही किया था...जब वो अपनी खानदानी पैसे वाला होने की डींगें हांक रहा था। मेरी जानकारी के मुताबिक इन दोनों भाईयों के पास इस वक़्त जो दौलत थी वो सिर्फ इनके पिता के द्वारा कमाई हुई दौलत थी...मतलब सिर्फ एक पीढ़ी पुरानी...अगर खानदानी पैसे वाले होते तो ये दौलत पीढ़ी दर पीढ़ी चली आनी चाहिए थी...और फिर जिसके पास जितनी ज्यादा दौलत होती है...उसकी दौलत की भूख उतनी ही और ज्यादा बढ़ जाती है।तीसरी संभावना मेरे सामने रोशनी और उस पुलिसिये की आशनाई से भी उत्पन्न हो रही थी...इस प्रकार के अवैध संबंध ही अनेक अपराधों को जन्म देते है....पता नही कब किस इंसान का कौन सा ज़ख्म उभर जाए और कौन कहाँ पर चोट कर डाले।
" किस सोच में खो गए" मेरे मुँह से इतनी देर तक कोई आवाज न सुनकर रोशनी ने अपनी बंद होती आंखों को खोला।
" मेरे ख्याल से तुम्हे नींद आ रही है..मुझे अब चलना चाहिए" ये बोलकर मैं उठने लगा तो उसने फौरन ही लपक कर मेरा हाथ पकड़ लिया।
" आज की रात यही रुक जाओ न...अब तो गंगूबाई भी नही रही...मुझे डर लग रहा है...अकेले इतने बड़े बंगले में" रोशनी ने मेरी ओर देखकर बोला।
" नही रुखे रुखसार...रात को तो मैं यहाँ नही रुक सकता,..मुझे जाना ही होगा...मेरी मानो तो मुझे बाहर तक छोड़कर आओ...फिर दरवाजा बंद करके इस बोतल को अपने साथ बैडरूम में ही ले जाओ....फिर बैडरूम का भी अच्छे तरीके से दरवाजा बंद करके दो पेग और लगाओ....अच्छी नींद आ जायेगी तुम्हे....,फिर कल सुबह फोन करके मैं तुम्हारी खोज ख़बर ले लूँगा" मैंने उसके सोने का उसे शानदार प्लान बताया...क्योकि मेरा रात को रुकने का मतलब था इस गरीब की इज्जत का लूट जाना..जो ये बंदा अपनी शादी से पहले चाहता नही था। मेरी बात उस बेवड़ी को भी पसंद आई...उसने मेरा सहारा लेकर खुद को सोफे से खड़ा किया और मुझे बाहर तक छोड़ने के लिए मेरे साथ चल पड़ी। अभी हम दोनों दरवाजे तक पहुंचे ही थे कि एक जोड़ी कदमो की धम्म की आवाज उस बंगले में गूँजी। नशे में भी रोशनी को उस आवाज का एहसास हो गया था..रोशनी डर के मारे तुरंत मुझ से लिपट गई। पता नही ये औरते कॉकरोच छिपकली..बरसात में बिजली के कड़कने से और किसी अनजान के कदमो की आहट से इतना क्यो डरती है। हालांकि उस आवाज से तो मैं भी चौंक गया था।
" अनुज लगता है कोई बंगले में है...शायद गंगूबाई का कातिल मुझे भी मार डालना चाहता है...प्लीज या तो तुम यही रुक जाओ...या मुझे भी अपने साथ ले चलो,..मैं अभी मरना नही चाहती" रोशनी बुरी तरीके से मुझ से लिपटी हुई थी।
इस वक़्त मुझे भी इन हालातों ने धर्मसंकट में डाल दिया था। उन कदमो की आहट से मुझे भी किसी के बंगले में होने का एहसास हो गया था। मेरे जाने के बाद अगर इन मोहतरमा को कुछ हो गया तो जो पुलंदा आज मेरा दिन में पुलिस के हाथों से बंधने से बचा था..वो पुलंदा कल जरूर बंध जाना था...क्योकि आज रात को मेरी इस बंगले में आमद को पुलिस के लिए स्थापित करना कोई भारी काम नही था। लिहाजा मैंने मेन डोर को अच्छे से लॉक किया और रोशनी को खुद से चिपकाये हुए ही अंदर की ओर लेकर चल पड़ा। मन मे बस यही भावना थी कि भली करेंगे राम!,
भाग 8
रोशनी मेरे साथ ऐसे चिपक कर चल रही थी मानो वो अब मुझ से उम्र भर जुदा न होना चाहती हो। मेरे आज रात को रोशनी के पास रुकने का सिर्फ एक ही मकसद था...की रोशनी के साथ आज की रात कोई हादसा न हो जाये...,क्योकि उस बंगले में किसी के कदमो की आवाज तो आपके ख़ादिम ने भी सुनी थी...वैसे भी आप तो जानते ही हो की जमाने भर की मुसीबतजदा हसीनाओ की मदद के लिए आपका ये खाकसार हमेशा दो कदम आगे ही रहता था। इसलिए भले ही ये हसीना इस वक़्त पीकर टुल्ल हो रही हो...लेकिन इस मुसीबत में इस कमज़र्फ को भी छोड़कर न जाने की एक वजह और भी थी...अगर आज रात को ये किसी हादसे का शिकार हो गई तो यकीन मानिये इस बार न पुलिस की रहमुनाई मेरे किसी काम आने वाली थी और न ही इंस्पेक्टर राजेश मेरे साथ कोई मुरव्वत बरतने वाला था...और अभी तो इंस्पेक्टर राजेश से कल थाने में जाकर आज की उस गलती की माफी भी मांगनी थी जो गलती मैंने गंगूबाई के बारे में न बताकर की थी।
इस वक़्त मैं रोशनी को उसके बैडरूम में लाकर लिटा चुका था। मैंने कमरे में नजर दौड़ाई...कमरे में बेड के अलावा एक सोफा भी पड़ा हुआ था....मैंने सोफा देखकर चैन की सांस ली...,आज की रात मैंने उस सोफे पर ही सोकर गुजारनी थी।भले ही सामने वाली पार्टी अय्याश थी लेकिन आपका ख़ादिम अय्याश नही था...अपने भी धंधे के कुछ उसूल थे। मैने दरवाजे को अच्छी तरह से बंद किया। उसके बाद मैंने उस बन्द कमरे में हर खिड़की दरवाजे को अच्छी तरह से चेक किया। यहाँ तक कि मैंने कमरे में ही अटैच्ड बाथरूम को जाकर अच्छे से खंगाला... लेकिन मुझे वहां कोई चिड़िया का बच्चा तक नजर नही आया। मैने एक नजर बेड पर बेसुध पड़ी रोशनी के ऊपर डाली। शराब के नशे में उसे न कोई होश थी न खबर...मैंने कमरे की लाइट को ऐसे ही जले रहने दिया। मैं जाकर अब सोफे पर लेट गया था। उससे पहले मैं रोशनी के बेड से उसका मखमली तकिया उठाना नही भूला था। अब बिना तकिए के तो आपके ख़ादिम को भी नींद कहाँ आने वाली थी।
क्या किस्मत बनाई थी बनाने वाले ने भी आपके खाकसार की ....सामने महकती और बहकती जवानी थी...लेकिन अपने राम कह रहे थे कि बेटा सब्र रख तेरा टाइम भी आएगा। मैं अब इस केस के बारे में और ज्यादा न सोचकर अपनी आंखों में निंदिया रानी के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। लेकिन बार बार मेरे जेहन में उन्ही कदमो की वो धम्म वाली आवाज सुनाई पड़ रही थी। अगर मैंने अकेले में वो आवाज सुनी होती तो वो मेरा वहम भी हो सकता था...लेकिन वो आवाज मेरे साथ साथ रोशनी ने भी सुनी थी। इसलिए मैं उस आवाज को अपने जेहन से हटा नही पा रहा था। क्या वो शख्स अभी भी बंगले के अंदर ही होगा...या मुझे इस वक़्त यहां पर पाकर जिस रास्ते से आया होगा उसी रास्ते से वापिस लौट गया होगा। क्या मुझे उस शख्स को उसी वक़्त उस आवाज वाली दिशा में ढूंढना चाहिए था...क्या मुझ से एक बहुत बड़ी गलती हो चुकी थी....अगर उसे उसी समय धर दबोच लिया होता तो इस तरह आज की रात जगराता तो नही करना पड़ता।
लेकिन इस तरह से मैं अगर सभी खिड़की दरवाजे बंद करके बैठूगा तो ये बंगले में कूदने वाला शख्स तो कभी सामने आएगा ही नही,...मुझे उसे सामने आने का मौका देना चाहिए था...अगर मैं उसके शिकार को उसके सामने खुला डाल देता तो मैं उसे रंगे हाथो दबोच लेता और केस आज ही सॉल्व हो जाता। लेकिन अगर मैं शिकार को न बचा पाता तो...तो इस रोशनी का तो बिना बिजली का बिल भरे ही बोलो राम हो जाता। सोचने को इस वक़्त बहुत कुछ था...ऐसा करता तो वैसा हो जाता...वैसा करता तो ऐसा हो जाता...बड़ी बात ये थी कि रोशनी इस वक़्त मेरे सामने थी और सही सलामत थी। मैं यही सब सोचते सोचते कब नींद के आगोश में समा गया...इसका मुझे एहसास तक नही हुआ।
अगले दिन सुबह मैं तब जागा जब कोई मुझे झिंझोड़ कर जगा रहा था। मैं हड़बड़ा कर उठा...रोशनी बदहवास सी मुझे जगाने में लगी हुई थी।
"क्या हुआ? इतनी घबराई हुई क्यो हो"मैंने रोशनी के बदहवासी से भरे चेहरे पर नजर पड़ते ही पूछा।
" वो ...वो विजय..विजय की लाश पड़ी हुई है...ड्राइंग रूम में" रोशनी के ऐसा बोलते ही मेरे तो कांटो तो खून नही रहा।
" ये क्या बोल रही हो...विजय तो गायब था न..उसकी लाश कहाँ से आ गई यहाँ पर" मैंने अविश्वास भरे स्वर में कहा।
" मुझे नही पता...वो कहाँ से आया..कब आया..लेकिन उसकी लाश इस वक़्त ड्राइंग रूम में पड़ी हुई है" रोशनी काफी हद तक अब खुद को सम्हाल चुकी थी।
" चलो दिखाओ मुझे" मैं अब तक सोफे से खड़ा हो चुका था।
मेरी बात सुनते ही रोशनी किसी हिरनी की तरह मेरे आगे दौड़ी...मुझे भी दौड़ते हुए उसके साथ अपने कदमताल मिलाने पड़े।
विजय की लाश उसी सोफे पर पड़ी हुई थी...जिस सोफे पर कल रात को आपका ये खाकसार पसरा हुआ था। जिसके सामने ये मोहतरमा पेग पर पेग चढ़ाये जा रही थी। व्हिस्की की बोतल बचे हुए काजू सॉफ्ट ड्रिंक की बोतल और वो पानी की बोतल..सभी कुछ वैसे ही पड़ा हुआ था...जैसा हम लोगो ने रात को छोड़ा था।
विजय की लाश पर किसी भी प्रकार के किसी खून के कोई निशान नही थे...लगता था उसकी मौत दम घुटने से हुई थी...क्योकि उसकी आंखें अभी भी ऐसा लग रहा था मानो की वो बाहर को आकर निकलना चाहती थी।मैंने एक नजर विजय के ऊपर डाली और फिर एक नजर रोशनी पर डाली...रोशनी एकटक बस विजय को ही देखे जा रही थी।
"तुमने लाश को पहली बार कब देखा था" मैंने रोशनी से पूछा।
" अभी ...जब मैं तुम्हे जगाने गई थी...उससे जस्ट पहले" रोशनी ने जवाब दिया।
" तुम इधर क्या करने आई थी" मैंने अगला सवाल किया।
" रात को कुछ ज्यादा ही पी ली थी...तो हैंगओवर से सिर में दर्द हो रहा था...तो मैं उठकर अपने लिए कॉफी बनाने जा रही थी... तभी मेरी नजर सोफे पर पड़ी और सोफे पर पड़ी इस लाश पर पड़ी।
" बैडरूम से किचन तक जाने का रास्ता ड्राइंगरूम से ही जाता है" मैंने फिर से रोशनी से पूछा।
" हाँ किचन का रास्ता यही से जाता है" रोशनी ने एक संक्षिप्त सा जवाब दिया।
सुबह सुबह मेरे गले मे बहुत बड़ी मुसीबत गले मे पड़ चुकी थी। नमाज अदा करने के चक्कर मे रोजे मेरे गले में पड़ चुके थे। कहाँ तो मैं आज रात को रुका था,की रोशनी को किसी भी मुसीबत से बचा लू...और कहां अब विजय की लाश का ढोल भी अब मुझे ही बजाना था। मौका ए वारदात पर एक गुमशुदा आदमी की लाश..पास में ही पड़ी व्हिस्की की बोतल और उन दो गिलास के साथ साथ वो पानी की बोतल जिस पर मेरी उंगलियों के निशान आसानी से मिल सकते थे....और साथ में पहले से ही अपने पति के गायब करने के शक में आई हुई एक नाफ़रमाबरदार बीवी...और उसकी बीवी के साथ मौजूद आपका ये ख़ादिम...पुलिस बड़ी शिद्दत से मेरी गर्दन का नाप लेती। लेकिन अब ये गले मे पड़ा मुसीबत का ढोल भी बजाना भी मुझे ही था। सुबह सुबह पुलिस को इस लाश की सूचना देने की बदमजा जिम्मेदारी भी आपके इस सेवक को ही निभानी थी।
" अब क्या करे अनुज...ये लाश यहाँ कैसे आई होगी"रोशनी और मैं इस वक़्त एक ही नाव में सवार थे।
" शायद खुद चलकर आई होगी...अपनी बीवी के साथ सोए हुए बेचारे को बहुत दिन हो चुके थे...इसलिए आया होगा...लेकिन अपनी बीवी को मेरे साथ देखकर बेचारा यहां इस सोफे पर बैठा होगा....फिर बेचारा सदमे से मर गया होगा" मैंने बिना वजह उटपटांग बात की...जिसे सुनकर रोशनी के चेहरे पर भी अजीब से भाव उभरे।
" तुम्हे ऐसे समय मे भी मजाक सूझ रहा है" रोशनी ने थोड़ा सा नाराजगी से बोला।
" तुम बात ही ऐसी पूछ रही हो मैडम...अरे तुमने मुझे खुद तो जगाया है...मुझ से पहले लाश को तुमने देखा है...तो तुम्हे ज्यादा पता होगा न...की लाश कैसे यहाँ पर आई" मैंने उसी के अंदाज में जवाब दिया।
" यार! मैं पूछ रही हूँ...की विजय को यही पर मारा गया है या इसकी लाश को बाहर से लाकर यहां प्लांट किया गया है...ताकि हत्या में हमे फंसाया जा सके" रोशनी ने " हमे" शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया था।
"हमे नही मैडम सिर्फ तुम्हे...मैं तो कल इत्तेफाक से यहां था" मैंने रोशनी की बात का विरोध किया।
"इत्तेफाक से ही सही..मौजूद तो यही थे न...पुलिस तो अब हम दोनों से ही इस लाश के बारे में पूछेगी" रोशनी पता नही क्यो अपने साथ मुझे लपेटने की कोशिश कर रही थी। जबकि मैं इस वक़्त एक और सम्भावना पर विचार कर रहा था...मुझे नही पता था कि रोशनी कब सोकर उठी थी..और वो कब कमरे से बाहर आई थी...ये भी हो सकता था कि रोशनी बहुत पहले से उठी हो..और विजय को यहां देखकर उसके साथ कोई हाथापाई हुई हो..और रोशनी ने ही विजय का गला दबाकर मार डाला हो...लेकिन उसने गला दबाया किस चीज़ से होगा...मैंने एक बार फिर से विजय की लाश के ऊपर नजर दौड़ाई....ये देखकर आपके खादिम की तिरपन कांप गई कि विजय के पास शायद वही तकिया पड़ा था..जिस तकिए को रात को मैं उस सोफे पर अपने सिर के नीचे लगा कर सोया था। मैं रोशनी से बिना कुछ बोले ही उसके बैडरूम की ओर भागा। बैडरूम में घुसते ही मैंने सोफे पर नजर डाली...जिस तकिए को मैं अपने सिर के नीचे लगा कर सोया था...वो तकिया सोफे से गायब था...जिस तरफ मैं सोया हुआ था...इस वक़्त वहां पर सोफे के साथ कि गद्दी ही नजर आ रही थी।इसका मतलब ये सारा खेल मुझे फसाने के लिए खेला जा रहा था। लेकिन कोई मुझे क्यो फ़सायेगा...अभी तक तो मैं इस खेल के सूत्रधार के आसपास भी नही पहुंचा था। मैं सोचते सोचते वापिस ड्राइंग रूम में आ चुका था...रोशनी ने सिर्फ मेरी तरफ देखा...उसने एक बार भी नही पूछा कि मैं कहाँ गया था...शायद उसे एहसास हो चुका था कि मैं क्या देखने के लिए उसके बैडरूम में गया था। शिकारी ने जाल बड़ी खूबसूरती से बुना था। कल रात की घटनाओं के बारे में मैंने एकबार फिर से विचार करना शुरु किया। क्या रोशनी ने मुझे रात को यहाँ पर रोकने के लिए ही सारा ड्रामा रचा था...क्या रोशनी रात को सोई नही थी,..वो सिर्फ मेरे सोने का इंतजार कर रही थी..क्या वो सिर्फ मुझे इस कत्ल में बलि का बकरा बनाना चाहती थी।लेकिन वो बलि का बकरा मुझे कैसे बना सकती थी। मैं तो कल रात को अंदर से दरवाजा बंद करके सो रहा था..दरवाजा तो सुबह उठकर या उससे पहले रोशनी ने ही खोला होगा...लेकिन अगर विजय की लाश ड्राइंगरूम में मिली है तो जाहिर है कि उसे मारा भी यही गया होगा।लेकिन अगर इसे मारा यहां जाता तो इसका गला सोफे की गद्दी से दबाया जाता..इसका मतलब या तो इसे रोशनी के बेडरूम में ही मारा गया है, और मुझे फसाने के लिए उस तकिए का इस्तेमाल किया गया..जिस पर मैं सिर रख कर सोया हुआ था।लेकिन अगर विजय को बैडरूम में मारा गया है तो मुझे कोई आवाज क्यो न आई..मेरी नींद क्यो नही टूटी...मुझे कोई खटका क्यो नही हुआ...मैंने एक नजर रोशनी की काया पर डाली और दूसरी नजर विजय के ऊपर डाली...रोशनी,विजय को बेहोशी की हालत में तो काबू करके उसका दम घोंट सकती थी..लेकिन उसके होशोहवास में ये उसके बस की बात नही थी।इसका मतलब विजय को कही और मारकर यहाँ पर लाकर डाला गया है..और ये काम रोशनी का अकेली का नही हो सकता हैं।
मैं एक के बाद एक मन मे उठने वाले भवंरजाल में उलझता ही जा रहा था...जितना सोच रहा था उतने ही नए नए विचार सामने आते जा रहे थे। अभी अरूण के बारे में तो सोचा ही नही था..क्या पता ये मर्दखोर औरत अरुण के साथ मिलकर ही कोई खेल,खेल रही हों...आखिर बकौल रोशनी,विजय की मौत का सबसे ज्यादा फायदा तो अरुण को ही होने वाला था...लेकिन रोशनी और अरुण के साथ होने के विचार को मैने तुरन्त खारिज कर दिया। लेकिन ये निश्चित था कि जिसने भी विजय को मारा है उसके साथ रोशनी मिली हुई थी। अभी भले ही मैं कड़ियों को सही से नही जोड़ पा रहा था...लेकिन इतना जरूर था कि कहानी अब मेरे कुछ समझ मे आती जा रही थी। मैं अब पुलिस और अरुण दोनो को ही इस कत्ल के बारे में बताने जा रहा था...क्योकि इस समूचे सोच विचार ने मेरे दिमाग के कोहरे को काफी हद तक साफ कर दिया था। अब मैं पुलिस की किसी भी जांच से नही भागना चाहता था...घटनास्थल पर मेरी मौजूदगी महज एक इत्तेफाक थी। गंगूबाई के कत्ल के वक़्त भी मैं यहां मौजूद जरूर था...लेकिन मेरा उसके कत्ल से कोई लेना देना नही था...लेना देना तो मेरा विजय के कत्ल से भी कुछ नही था....लेकिन पुलिस के सवालो के घेरे में लाने लायक स्थितियां तो इस वक़्त मेरे खिलाफ बनी ही हुई थी। लेकिन मैं पुलिस की जांच से न तो भाग ही सकता था और न ही अपनी यहां की मौजूदगी को छुपा ही सकता था इसलिए मैंने एक बार फिर इंस्पेक्टर राजेश को फोन करने के लिए अपने फोन को अपनी जेब से निकाल लिया था। वैसे भी मेरा इस लोकाक्ति पर पूर्ण विश्वास था की
"सत्य परेशान जरूर हो सकता है...मगर पराजित नही हो सकता"।
भाग 9
पुलिस के आने से पहले ही अरुण का बंगले में आगमन हो चुका था। भाई की मौत का गम उसके चेहरे से झलक रहा था। अरुण के साथ उसकी बीवी भी इस वक़्त वहां मौजूद थी। अरुण शायद कुछ कहना चाहता था...लेकिन वो बोलते बोलते रुक जाता था।
अरुण के आने के कोई आधा घण्टे बाद पुलिस का जत्था भी बंगले में पहुंच चुका था....पुलिस के आला अधिकारियों के आने का भी सिलसिला शुरू हो चुका था...विजय उस इलाके की एक बड़ी हस्ती था...तो उसकी हत्या की जांच भी उच्च स्तरीय ही होनी थी। वैसे भी पुलिस मर्डर के तो हर केस की जांच उच्च स्तरीय ही करती है...क्योकि पुलिस के लिए भी सबसे बड़ा चैलेंज कोई हत्या का केस ही होता है।तभी मुझे इंस्पेक्टर राजेश श्रीवास्तव मेरी ओर आता हुआ नजर आया।
" तो महाराज आप भी कल पूरी रात से यही विराजमान थे" इंस्पेक्टर राजेश शायद मुझ से पहले रोशनी से मिलकर आ रहे थे।
" जी जनाब इत्तेफाक से मैं कल रात को यही पर था" मैने साफगोई से जवाब दिया।
" यहां पर रात को होने की वजह जान सकता हूँ" राजेश जी ने मेरी ओर देखकर पूछा। मैंने उन्हें वहां पर अपने रात में होने की वजह का तफसील से बयान किया। मैंने उन्हें यहां से जाने के बाद रोशनी के मुझे फोन करके बुलाने से लेकर रात को यहाँ रुकने की पूरी कहानी सुना दी। राजेश जी मेरी बात समाप्त होने तक दिलचस्पी के साथ पूरी बात सुनते रहे।
" लेकिन उन मोहतरमा का तो इस बारे में कुछ और ही कहना है" राजेश जी ने मेरी बात खत्म होने के बाद बोला।
" उनका कहना है कि मेरी प्रार्थना पर अनुज बाबू यहां रात को रुके जरूर थे...लेकिन रात को पता नही कहाँ से मेरे पति जो पिछले सोलह सत्रह दिनों से गायब थे..वो अचानक वहां पर आ गए..और मेरे कमरे में अनुज को देखकर वो भड़क गए..फिर अनुज का और मेरे पति का झगड़ा हुआ..उसी झगड़े में अनुज ने मेरे पति का तकिए से दम घोंटकर उनकी हत्या कर दी" कमीनी ने बेहद शानदार कहानी बनाई थी।
" उन्होंने ये नही बताया कि उनके पति यहां पर रात को कितने बजे तशरीफ़ लाये थे" मैंने हल्का सा मुस्करा कर बोला।
" मुस्कराइए मत जनाब ! आप बहुत गहरी मुसीबत में है...मैं भले ही आपका पुराना वाक़िफकार हूँ...लेकिन कानून के मामले में मैं कोई लिहाज नही कर करूँगा"राजेश जी ने परोक्ष रूप से अपनी रहमत का साया मुझ गरीब पर से हटा लिया था।
" लेकिन मेरी लिहाज तो आप तब नही करोगे न जब मैं सच मे ही गुनाहगार होऊंगा" मैंने राजेश जी से सवाल किया।
" हाँ अगर...तुमने कुछ नही किया होगा तो मैं क्यो तुम्हारे खिलाफ कोई कार्यवाही करूँगा" राजेश जी ने मेरी बात का जवाब दिया।
" पहले तो आप उन मोहतरमा से उनके पति के आने की टाइमिंग के बारे में पता कीजिये...फिर मैं आपको बाकी के सवालो के भी जवाब दूंगा" मैंने राजेश जी को बोला।
" मैंने उससे पूछा है इस बात को..लेकिन वो बोल रही है कि रात को उसने डर की वजह से व्हिस्की के पेग कुछ ज्यादा लगा लिए थे...इस वजह से वो गहरी नींद में सो रही थी...लेकिन जब मैं सुबह सोकर उठी तो उन्हें ड्राइंग रूम के सोफे पर इसी हाल में वो लाश दिखी...जिस हाल में वो लाश अभी है" राजेश जी ने मेरी ओर देखकर बोला।
" आपने उनसे ये तो पूछा होगा कि जब मेन गेट अंदर से बंद था...उनका बेडरूम का दरवाजा अंदर से बन्द था..., तो विजय बाबू कोई उड़कर तो अंदर आये नही होगे..किसी ने तो उनके लिये दरवाजा खोला होगा" मैं तर्क पर तर्क दे रहा था।
" उसके मुताबिक आपने दारू नही पी थी...आप ही एकमात्र शख्स थे जो यहाँ होश में थे..तो दरवाजा भी आपने ही खोला होगा" राजेश जी के पास मेरे सवाल का जवाब था।
" जब उसने मुझे दरवाजे पर देखा तो उसने मेरे साथ दरवाजे पर ही क्यो नही झगड़ा किया...बैडरूम तक आने का क्यो कष्ट किया" मैंने फिर से सवाल किया
" शायद वो अपनी आंखों से पहले अपनी बीवी की हालत देखना चाहता हो" राजेश ने फिर से जवाब दिया।
" आपको उसकी बताई कहानी पर यकीन है..लेकिन मेरी बताई सच्चाई पर आपको यकीन नही है"मैंने राजेश जी को शिकायती लहजें में कहा।
" अभी मैं सिर्फ तुम लोगों के बयान ले रहा हूँ...विश्वास तो मैं सबूतों की रोशनी में ही करूँगा"राजेश जी ने स्पष्ट लहजें में बोला।
" फिर सबूत मांगिये उन मोहतरमा से की मैंने उनके सामने ही उनके पति का खून किया है...एक ऐसे आदमी का खून किया है जो बकौल उन्ही मोहतरमा के खुद उसे दूसरे मर्दों के साथ सुलाता था...लेकिन मुझे उसके कमरे में सिर्फ देखने से उस बन्दे की मर्दानगी जाग गई और वो मुझ से झगड़ा करने लगा" मैंने अब हल्के से गुस्से में आकर प्याज के छिलकों को उतारना शुरू किया।
" ये उनका जाति मामला है कि वो किसको अपनी बीवी के साथ सुलाता है...लेकिन इसका मतलब हर अंजान आदमी को वो अपनी बीवी के साथ बर्दास्त कर लेगा क्या" इंस्पेक्टर राजेश ने एक फिजूल सा तर्क दिया।
" जब कोई आदमी अपनी बीवी को किसी एक मर्द के साथ बर्दास्त कर सकता है तो वो सौ लोगो के साथ भी बर्दाश्त कर सकता है क्योकि यहां पर बात सिर्फ मानसिकता की आती है...लेकिन ये बहस इसलिए फिजूल है कि न तो मैं उसकी बीवी के साथ उसके बेड पर सोया था और न ही वो मेरी आगोश में थी...जो मेरा उसके साथ कोई झगड़ा होता...मैं अलग से एक सोफे पर सोया हुआ था...और सभी खिड़की दरवाजें अच्छे से चाक चौबन्द बंद करके सोया था...ताकि उन मैडम की जान को कोई खतरा न हो....क्योकि उसने मुझे रोका ही अपनी जान के खतरे की दुहाई देकर था...और अभी कुछ देर रुक जाइये...अभी खुद ही साबित हो जाएगा कि इस लाश को कही और से लाकर यहां पर डाला गया है" मेरी बात सुनते ही राजेश जी चौक कर पड़े।
" ये तुम कैसे कह सकते हो" राजेश ने मेरी ओर गहरी नजरो से देखते हुए बोला।
" लाश देख चुके हो" मैंने सवाल के बदले में सवाल किया।
" हाँ अच्छी तरह से" राजेश ने बोला।
" लाश में कोई कमी नजर आई" मैने फिर से पूछा।
" लाश में कमी? मैं कुछ समझा नही"राजेश ने उलझन भरे स्वर में कहा।
" अगर मकतूल रात को कहीं बाहर से बंगले में आया था..और आते ही वो सीधा बैडरूम में घुसा है...और वहां मुझे देखते ही उसने मेरे साथ हाथापाई कर दी...तो उसके जूते तो उसके पांव में होने चाहिए...जो कि नही है...वो बिल्कुल नंगे पाँव है...रही सही कसर आपकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट पूरी कर देगी..मरने का सही समय बता कर" मैंने राजेश सर के ज्ञान चक्षु खोले।
" हो सकता है केस को दूसरा रंग देने के लिए तुमने ही जूते गायब कर दिए हो,..आखिर जासूस हो....पुलिस को चकमा देने के हजार हुनर होंगे तुम में" राजेश ने पूरी बेमुरव्वत से बोला। शायद इस बंगले में दो दिनों में दो लाशें मिलने से और दोनो ही लाशो के मिलने के समय मेरी मौजूदगी से राजेश साहब बुरी तरह से मुझ से तप चुके थे।
" मतलब जनाब! ठान के बैठो हो कि आज मुझे ही सूली पर चढ़ाओगे...आपके हिसाब से बन्दा जब इतना काबिल है कि वो कानून को गुमराह करने के लिए इतनी तरतीब कर सकता हूँ...तो मैं ये भी जानता होऊंगा की अगर मैं किसी का कत्ल करुंग़ा तो खुद की ही फांसी का सामान करूँगा...ऐसे में मैं उसे बेहोश करके या उसे धक्का वगैरह देकर यहां से भागने की कोशिश नही करुंग़ा"मैं खुद को निर्दोष बताने के चक्कर मे तर्क पर तर्क दिए जा रहा था।
" यहां पर भी तुम्हारा ये गुमान आड़े आ गया होगा कि...तुम तो जासूस हो कानून को तो गुमराह कर ही लोगे...इसलिए मकतूल का तकिए से दम घोंटते हुए तुम्हे जरा भी नही सोचना पड़ा होगा" राजेश जी न मेरे तर्क की धज्जियां उड़ाते हुए बोला।
" मतलब मैं एक जासूस हूँ तो मैं सब कुछ प्लान बनाकर कर सकता हूँ...एक आम इंसान होता तो आप ये सोचकर मुझें छोड़ चुके होते की ये बेचारा तो क्या प्लान करेगा..इसे तो घर ही जाने दो" अब मैं इंस्पेक्टर राजेश के अड़ियल रवैये से आज़िज आ चुका था।
" मैं इतनी आसानी से किसी को भी नही छोड़ता जासूस साहब....बहरहाल यहां से फूटने की कोई कोशिश मत करना..पुलिस कार्यवाही के बाद आपको मेरे साथ थाने चलना है" राजेश जी एक दम निर्मोही स्वर में बोलकर अंदर की तरफ बढ़ गए।
मैं अभी रोशनी मैडम की हर चाल को देख लेना चाहता था और परख लेना चाहता था..इसलिए मैं कोई भी उल्टी चाल नही चलना चाहता था। लेकिन इतना जरूर था कि अगर मैं इंस्पेक्टर राजेश को अपनी बातों से संतुष्ट नही कर पाया तो आज का दिन मेरा थाने में ही गजरने वाला था। जहां तक मेरा अंदेशा था कि विजय का क़त्ल कही और करके उसकी लाश को यहाँ लाकर डाला गया था...वो बिल्कुल तथ्यो पर आधारित था...इस लाश को यहां तक लाने में रोशनी ने अपनी पूरी भूमिका अदा की थी....रोशनी का एक झूठ तो सीसीटीवी कैमरे देखते ही पकड़ा जाएगा.....अगर सच मे विजय बाहर से आया था तो उसे बाहर से अंदर आते हुए कैमरे की पकड़ में होना चाहिए था....मेन गेट अंदर से बंद था..उसे मैने अपने हाथों से बंद किया था...उस मैंन गेट को खोलने के लिये जरूर रोशनी ही बैडरूम से गेट तक आई होगी...ऐसे में रोशनी और विजय को कैमरे की जद में होना चाहिये था। मतलब रोशनी का ये दावा तो उसी वक़्त हवा हो जाएगा कि विजय के क़त्ल के समय वो तो नशे में धुत होकर सो रही थी और दरवाजा मैने खोला होगा। ये सब सोचते ही मेरे होठो पर एक अधखिली सी मुस्कान आ गई। मैं सोचते सोचते इस वक़्त बंगले के बगीचे वाले हिस्से में आ गया था..बगीचे के कुछ हिस्से में ऐसा लगता था..मानो मिट्टी ताजा ही लाकर डाली गई हो...तभी मुझे रात को उन कदमो की धम्म की आवाज का ख्याल आया..जो मुझे और रोशनी को एक साथ सुनाई दी थी। मैं अब बंगले की दीवार के साथ साथ अपनी नजरो को दौड़ा रहा था। लेकिन अभी तक बंगले की उस दीवार के साथ मुझे कोई भी ऐसे कदमो के निशान नही मिले थे। इसका मतलब कोई बंदा पहले से ही बंगले के अंदर बैठा हुआ था... जिसने मुझे रोकने के लिये यहाँ पर कूदने का नाटक किया। कौन हो सकता है ऐसा बन्दा जो रोशनी की इस काम मे मदद करने के लिए यहाँ मौजूद रह सकता है।
रोशनी का आशिक वो पुलिसिया इस काम मे रोशनी की मदद कर सकता है...हो सकता है की रोशनी ने उसके साथ मिलकर ही ये सारी प्लानिंग की हो...पहले अपने पति को गायब किया और फिर इतने दिनों तक किसी मेरे जैसे बकरे का इंतजार किया गया...ताकि जब अपने पति को मारने की नौबत आये तो किसी भी मेरे जैसे बकरे को फंसाया जा सके...लेकिन मुझे तो अरुण ने इस केस में इन्वॉल्व किया है,..मैंने अरुण से एक बात तो आज तक पूछी ही नही थी...की उसे मेरा रेफरेंस किसने दिया था...मेरी डिटेक्टिव एजेंसी का किसी न्यूज़ पेपर में तो कोई विज्ञापन आता नही है...जहाँ से पढ़कर उसने मुझ से संपर्क किया होगा। मुझे अरुण से इस बात को पूछना चाहिये था।
मैं वहां से उस तरफ बढ़ा जिस तरफ अरूण बैठा हुआ था..जब मैं वहां पहुंचा तो इंस्पेक्टर राजेश इस वक़्त अरुण से ही बात करने में मशगूल था। अरुण के साथ राजेश जी को देखते ही मैंने अपने कदमो को वही रोक लिया। तभी राजेश जी की नजर मुझ पर पड़ी और उन्होंने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया। मैं तुरंत उनके पास पहुंचा।
" ये मामला तो बहुत उलझा हुआ है..हर किसी के पास विजय को मारने का अलग अलग उद्देश्य है...तुम विजय को इसलिए मार सकते हो क्योकि विजय ने तुम दोनों को अपने बेडरूम में एक साथ पकड़ लिया था..अरुण साहब अपने भाई को इसलिए मार सकते है क्योकि उसके बाद विजय की दौलत पर ये आसानी से काबिज हो सकतें है....और रोशनी जी के पास तो एक से ज्यादा कारण है अपने पति को मारने के...क्योकि उसका अफेयर और लोगो के साथ भी था..तो हो सकता है कि इन अवैध संबंधों की ही बलि वो चढ़ गया हो" राजेश जी ये सब बोलकर एक बारगी को चुप हुए।
" इसका मतलब सबसे लचर वजह मेरे पास ही है विजय को मारने की...जबकि एक पहले से बदचलन औरत के लिए मेरा इस तरह से किसी का कत्ल करना बनता ही नही है"मैने फिर से खुद को पाक साफ बताने की कोशिश की।
" रोशनी मैडम के अवैध संबंधों में अब आपकी भी गिनती हो रही है...क्योकि कल रात को आप ही उसके बेडरूम में पाए गए थे मिस्टर अनुज" राजेश जी ने इस दफा थोड़ा सा मुस्कराने की चेष्ठा की।
" मतलब फिजूल में ही मेरी गिनती हो रही है..." खाया पिया कुछ नही...गिलास तोड़ा बारह आना"मेरे मुंह से तपे हुए स्वर में निकला।
" रात को तो आपने खाया भी बहुत है और पिया भी बहुत है..टेबल पर रखी हुई वो व्हिस्की की बोतल वो गिलास वो काजू की प्लेट..अपनी रात की दास्तान खुद सुना रही है" राजेश ने मेरी बात पर तुरंत तंज कसा।
" मैंने उनमे से सिर्फ थोड़े से काजू औऱ दो घूंट पानी के पिये थे..क्योकि मैं न तो कभी दारू पीता हूँ और न ही कोई सॉफ्ट ड्रिंक...एक कॉफी पीने के अलावा मुझ में और कोई अवगुन नही है प्रभू...चाहो तो मेरी वर्जिनिटी का टेस्ट करवा लो..आज तक शुद्ध चौबीस कैरट खरा कुँवारा हूँ...फिर क्यो मुझे अय्याश साबित करने पर तुले हो भगवन...मेरा कसूर सिर्फ इतना है कि मैं एक मुसीबतजदा एक लड़की को किसी भी ख़तरे से बचाने के लिये उसके पास रुक गया था....वो मोहतरमा अलग बेड पर सोई थी और मैं अलग सोफे पर...आप कल रात की सीसीटीवी फुटेज देखिए..अभी सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा" आपका खाकसार अब अपनी फुल फॉर्म में आए चुका था।
" आपकी ये मदद भी मैं नही कर सकता हूँ..क्योकि कल ही हम उस कंप्यूटर की हार्ड डिस्क को लेब में जांच के लिए भेज चुके है...इसलिए कल रात को इस बंगले के सीसीटीवी कैमरा काम ही नही कर रहे थे..अब हमें पता नही था कि इतना जल्दी इस बंगले में दूसरा खून भी हो जाएगा...नही तो हम दूसरा रास्ता ढूंढते" राजेश जी की बात सुनते ही मेरे कांटो तो खून नही रहा था। इस बार आपका ख़ादिम किसी बहुत गहरे जाल में फंस चुका था..लेकिन इस वक़्त भी मुझे एक ही बात कचोट रही थी...कोई मुझे क्यो फ़साना चाह रहा था...किसको मुझ से इतना बड़ा ख़तरा होने जा रहा था की उसे मुझे ही फ़साना पड़ रहा था।
" कोई बात नही...और बहुत सारे रास्ते है जो मेरी बेगुनाही साबित करेगे" मैंने राजेश जी को देखकर निरीह स्वर में कहा।
" उन सभी रास्तों को ढूंढ कर रखो...नही तो ऐसा न हो की जेल जाने का रास्ता खुल जाए आपका" ये हूल देकर राजेश साहब एक बार फिर से अंदर की ओर प्रस्थान कर गये थे। उन्ही के पीछे पीछे अरुण भी अंदर की ओर चल दिया...,मैं जाते हुए सिर्फ उनके कदमो के निशान देखता रहा। तभी आपके खाकसार के दिमाग की बत्ती जल पड़ी...मैं मंद मंद मुस्करा पड़ा।
भाग 10
मैं भी उन्ही कदमो का पीछा करते हुए अंदर ड्राइंग रूम में पहुंचा....विजय की हत्या की खबर उसके रिश्तेदारों में भी फैल चुकी थी...वहाँ लोगो का आना जाना शुरू हो चुका था...लेकिन पुलिस की घेराबंदी की वजह से किसी भी रिश्तेदार को इस समय बंगले के अंदर नही आने दिया जा रहा था।
ड्राइंगरूम में इस वक़्त फोरेंसिक टीम अपना काम शुरु कर चुकी थी.. फ़ोटोग्राफर भी अपने काम को मुस्तैदी से करने लगा था। मैं एक बार फिर से विजय की लाश पर गौर से अपनी नज़र डालने लगा.. विजय के शरीर पर उसकी रोजमर्रा की पहने जाने वाली सभी चीजे अभी तक वैसी ही थी...गले मे एक मोटी सी सोने की चैन चमक रही थी। इसके अलावा उसके बाए हाथ मे एक काले पट्टे की आजकल चल रही इलेक्ट्रिक वाच भी नजर आ रही थी।ये कोई आम घड़ी नही थी...जो सिर्फ समय बताती है...ये घड़ी आपकीं सेहत की भी पूरी मोनिटरिंग करती थी....आप दिन भर में कितने कदम चले है...आपकी प्लस रेट क्या है...आपका बीपी कितना है....आप दिन भर में आज कितने कदम पैदल चले हो...इन सभी बातो को ये घड़ी बताती थी।उस घड़ी को देखकर मेरी आँखों मे एक अनोखी चमक उभर आई थी। जिसने भी विजय को मारा था.., उस शायद इस घड़ी के बारे में कोई ज्यादा जानकरी नही रही होगी....नही तो इस घड़ी को वो मकतूल की कलाई पर किसी भी हाल में नही छोड़ता। पुरानी कहावत है कि लाश अपने कतील का खुद पता बताती है...तभी इस दुनिया मे सबसे ज्यादा मर्डर करने वाले लोग ही पुलिस के द्वारा पकड़े जाते है।
" लगता है विजय साहब अपनी सेहत को लेकर काफी सजग रहते थे" मैंने इंस्पेक्टर राजेश की ओर देखकर बोला।
" आजकल हर आदमी अपनी सेहत को लेकर सजग ही रहता है अनुज बाबू" राजेश जी ने खिसियाये हुए स्वर में जवाब दिया।
" रोशनी मैडम को कहाँ भेज दिया सर...उन्हें तो यही होना चाहिए था...या आपने उन्हें इस केस में सिर्फ उनसे बात करके ही क्लीन चिट दे दी है" मेरी बात सुनकर राजेश जी बौखला कर एकटक मेरी ओर देखने लगे।
" तुम कहना क्या चाहते हों" राजेश जी ने मुझें घूरते हुए कहा।
" यही कहना चाहता हूँ कि मकतूल की बीवी और उसका पूराना इतिहास खुद संदिग्ध है..आप उन्हें भी जरा अपनी निगाहबीनी में रखिये" मैंने राजेश जी की कर देखकर बोला।
राजेश ने मुझे खा जाने वाली नजरो से देखा....मैं आज राजेश का अपने प्रत्ति रवैया समझ नही पाया था...ये बन्दा जो कल तक मेरा मुरीद था आज रात भर में ऐसा क्या हो गया था कि इसे मेरी हर बात उल्टी ही नजर आ रही थी। ये बन्दा सिर्फ परिस्थिजन्य हालातो के आधार पर ही मुझे कातिल समझ रहा था...जबकि अभी तक एक भी सबूत इस बन्दे को मेरे खिलाफ नही मिला था।
"अब आप मुझे सिखाओगे की कत्ल के केस की जांच मुझे कैसे करनी चाहिए" राजेश ने मेरी ओर घूरते हुए कहा।
"सिखाने को तो मैं बहुत कुछ सिखा सकता हूँ...लेकिन इस वक़्त आपको सिर्फ एक बात सिखाना चाहता हूँ" मैं अब राजेश के पुलिसिया रोब से बाहर निकल कर उनसे बात कर रहा था।
"बोलो क्या सिखाओगे मुझे" तभी इंस्पेक्टर राजेश बिल्कुल मेरे सामने आकर खड़ा होकर बोला। उसके हाव भाव से लग रहा था कि वो बन्दा इस वक़्त मुझ पर अपने पुलिसिया हथकण्डे आजमाने से भी बाज नही आने वाला था।
" राजेश कुमार जी अगर इस बंगले में सीसीटीवी कैमरे इस वक़्त काम नही कर रहे है तो विजय साहब की कलाई में बंधी ये घड़ी हमारे लिए सीसीटीवी कैमरे से भी ज्यादा काम कर सकती है" मेरी बात सुनकर राजेश ने अपनी निगाहों को विजय की कलाई पर बंधी हुई घड़ी पर घुमाया।
" इस घड़ी में ऐसी क्या खास बात है" ये बोलकर राजेश जी ने इस घड़ी के बारे में अपनी अज्ञानता का ही प्रदर्शन किया था।
" पहले आप इनकी धर्मपत्नी श्रीमती रोशनी देवी को यहाँ बुलाइये....मैं आपके सामने उनसे कुछ पूछना चाहता हूँ" मैने राजेश जी की आंखों में आंखे डालकर बोला। इंस्पेक्टर राजेश ने अपने एक मातहत को इशारा किया...वो पुलिसिया तुरंत ही अंदर की तरफ चला गया। कुछ ही देर में रोशनी मैडम अपने चेहरे पर दुनिया भर के दुख की चादर ओढ़े मेरे सम्मुख खड़ी थी।
" आपके पति विजय साहब बीपी वग़ैरह की बीमारी से परेशान रहते थे क्या"मैं इस वक़्त विजय की लाश को अपने शरीर से ढाँपकर इस प्रकार से खड़ा था कि रोशनी की नजर इस वक़्त अपने पति की लाश पर नही पड़ रही थी।
" हाँ बीपी से भी परेशान थे और उनका हार्ट भी सिर्फ चालीस प्रतिशत ही काम कर रहा था" रोशनी कुछ सोचतें हुए बोली।
"फिर तो वो अपनी हेल्थ को लेकर बहुत चिंतित रहते होंगे" रोशनी समझ नही पा रही थी कि एक मरे हुए आदमी की सेहत के बारे में मैं क्यो इतने सवाल पूछ रहा था।
" हाँ हेल्थ को लेकर तो बहुत चौकस रहने वाले इंसान थे वे...अपनी बीपी इत्यादि की मॉनिटरिंग के लिये उन्होंने स्पेशल एक बहुत महंगी वाच विदेश से मंगवाई थी...जिसे वे सिर्फ नहाते वक्त ही अपनी कलाई से उतारते थे" रोशनी बोलते बोलते समझ चुकी थी कि मैं उससे क्या बुलवाना चाहता था। उसने असहाय सी नजरो से एक बार राजेश जी की ओर देखा और एक बार अरुण की ओर देखा। वे दोनों भी अभी मेरे सवालो का सिर्फ मन्तव्य समझने में ही अपने दिमाग का इस्तेमाल कर रहे थे।
"मल्होत्रा साहब ! विजय बाबू की कलाई में बंधी घड़ी को भी आप जांच में लेंगे ही तो इनकी घड़ी का पूरा विश्लेषण करके अपनी फोरेंसिक रिपोर्ट में साथ लगाना" मैंने मल्होत्रा साहब की तरफ देखकर बोला।
"वो तो मैं लगाऊंगा ही अनुज साहब...लेकिन लाश की हालत बता रही है की ये कम से कम 48 घण्टे पुरानी लाश है" मल्होत्रा साहब ने अचानक से वहां पर बम फोड़ दिया।
"मल्होत्रा साहब इस बात को आप अभी से कैसे बता सकते हो" राजेश जी ने तत्काल मल्होत्रा साहब की बात का विरोध किया।
" राजेश सर ! मैंने जिंदगी में इतनी रोटियां नही खाई..जितनी लाशें देखी है...मैं तो मुर्दे की शक्ल देखकर बता सकता हूँ कि हे बेचारा किस गम में मरा है" मल्होत्रा साहब ने ये बोलकर हँसने की कोशिश तो की थी...लेकिन मकतूल की बीवी को देखकर उन्होंने अपनी हँसी को दबा लिया था।
" ये घड़ी की रिपोर्ट भी आपकी इसी बात को साफ करेंगी...मल्होत्रा साहब की इस बन्दे की दिल की धड़कन कब से रुकी हुई है...ये बन्दा कब से एक कदम भी इस दुनिया में नही चला है...अब सिर्फ ये देखना बाकी है कि इस बन्दे की पोस्टमार्टम रिपोर्ट इस बन्दे की मौत का वक़्त क्या बताती है" मैंने मल्होत्रा साहब की तरफ देखते हुए एक नजर राजेश के चेहरे पर भी डाली...राजेश बाबू के चेहरे की चमक इस वक़्त कहीं खो सी गई थी।
" कहिए इंस्पेक्टर साहब! अभी भी आप बोलोगे की इस कत्ल में मेरा कोई हाथ है"मैंने राजेश जी की तरफ देखकर बोला।
" मरने वाले की बीवी के बयान पर किसी से भी पूछताछ करना मेरा फर्ज है अनुज साहब" राजेश जी ने अब लीलापोती करने की कोशिश की।
"पूछताछ करने में और किसी को गुनाहगार ठहराने में बहुत
अंतर होता है...आप तो सुबह इन मोहतरमा से बात करने के बाद से सिर्फ मुझे ही कातिल ठहराने की कसम खाये हुए थे" मेरी इस साफगोई से कही बात पर अब राजेश बाबू की बोलती बंद हो चुकी थी...उन्हें उम्मीद नही थी कि मैं मल्होत्रा साहब और उनके स्टाफ के आगे उनकी इस तरीके से आरती उतारूंगा...लेकिन ये बन्दा मुझें सुबह से तपा रहा था...इसलिये अब मैं मौके पर चौका लगा रहा था।
" लेकिन मौका ए वारदात पर सिर्फ तुम दो लोग थे...इसलिए मेरे शक के दायरे से आप दोनो ही बाहर नही हुए हो" राजेश जी अब अपनी खीज मिटाने के लिए बोले।
" लेकिन आप हमें शक के दायरे में रखने से पहले ये तो विचार कीजिये...की ये लाश सच में बाहर से लाई गई है...या इसे बंगले में से ही कही से लाकर यहां डाला गया है...इतना बड़ा बंगला है..क्या पता इन्हें यही कही छुपा कर रखा गया हो और अफवाह इनके लापता होने की फ़ैला दी गई हो" मैं ने रोशनी पर एक नजर डालते हुए बोला।
"वो तो हम पता लगा लेंगे अनुज साहब" राजेश ने मेरी बात का जवाब दिया।
"लेकिन जब फोरेंसिक एक्सपर्ट इस बात को बोल रहे है कि लाश की हालत बता रही है कि इस बन्दे को मरे हुए कम से कम 48 घण्टे हो चुके है तो कम से कम मैं तो इस इल्जाम से बरी हो जाऊंगा न कि कल रात को इस बन्दे का मुझ से झगड़ा हुआ और झगड़ा भी इन मोहतरमा की वजह से हुआ....और मैं इनका इतना बड़ा दीवाना हूँ कि मैंने गुस्से में आकर इनके पति का इस तकिए से मुंह दबाकर इन्हें मार डाला...कम से कम अब इन मैडम से ये तो पूछ लीजिये की इन्होंने इतना बड़ा झूठ बोलकर मुझें फसाने की कोशिश क्यो की...अगर की तो किसके इशारे पर की...इस मोहतरमा के पीछे कौन है वो शख्स जो पर्दे के पीछे रहकर ये सारे खेल खेल रहा है"मै एकाएक बोलता चला गया।
अब रोशनी खामोश नजरो से मेरी ओर देख रही थी। मेरे बोलने का मतलब वो समझ चुकी थी...वो समझ चुकी थी की कानून का शिकंजा उस पर कसने वाला था।
"मैंने कुछ नही किया...मैं तो सुबह तक अपने बेडरूम में सो रही थी...मैंने तो जब इनकी लाश देखी और लाश के पास इस तकिए को देखा तो मैंने यही अंदाजा लगाया कि रात को विजय बंगले में आये होंगे...उनका अनुज से आमना सामना हुआ होगा...फिर हो सकता है की अनुज के हाथों से ही ये मारे गए हो...मैंने सिर्फ अंदाजा लगा कर अनुज पर शक किया था...किसी के कहने पर अनुज को फंसाने की कोशिश नही की...मुझे क्या पता कि विजय दो दिन पहले ही मर चुके है..अगर पता होता औऱ मुझे अनुज को फ़साना ही होता तो क्या इतनी लचर कहानी बनाती जिसकी धज्जियां पोस्टमार्टम रिपोर्ट आते ही उड़ जाती" रोशनी ने जो बोला उसमें कुछ हद तक सच्चाई तो थी...लेकिन फिर सवाल उठता था कि मेरा तकिया यहां कैसे पहुंचा...बैडरूम का दरवाजा तो अंदर से बंद था...किसी ने तो दरवाजा खोला होगा..तभी तो ये तकिया यहां आया होगा।
"तुम्हे अच्छी तरह से याद है कि तुम रात को एक बार भी नही उठी थी"इस बार राजेश जी ने रोशनी से पूछा।
"मेरी आदत है रात को उठकर पानी पीने की...रोजाना तो गंगूबाई मेरे कमरे में पानी रख जाती थी..लेकिन कल रात को गंगूबाई भी नही थी..और मैं भी नशे में थी...तो हो सकता है कि मैं रात को पानी पीने के लिए उठी होऊ और फिर दरवाजे को सही से बंद किये बिना ही आकर के सो गई हूं और...ये बोलकर रोशनी बोलते बोलते रुक गई। रोशनी अपने पहले के बयान से बिल्कुल उल्टा बयान दे रही थी। उसके इस बयान ने कम से कम मुझे तो साफ तौर पर क्लीन चिट दे दी थी...लेकिन अब ये स्थापित करना था कि रोशनी इस बार भी सच बोल रही थी या झूठ।
" मैडम !आप सुबह से दो बार अपने बयान बदल चुकी है...अब इससे ज्यादा मैं आपको रियायत नही दे सकता...आप चाहो तो अपने वकील को बुला सकती हो..मैं आपको पूछताछ के लिये हिरासत में ले रहा हूँ" ये बोलकर राजेश ने अपने मातहत को लेडी कॉन्स्टेबल को बुलाने के लिए बोला।
राजेश जी की बात सुनते ही अब रोशनी के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी थी।
" लेकिन मैं बिल्कुल सच बोल रही हूँ...मुझे रात के बारे में सच मे याद नही हैं कि क्या हुआ था...अनुज से पूछ लो...मैने कल रात को सच मे बहुत ज्यादा दारू पी ली थी" कमीनी अब खुद को बचाने के लिये सहारा भी मेरा ही ले रही थी।
"अभी तो तुम मुझे इस कत्ल में फसाने के लिये उधार खाये हुए बैठी थी..अब मुझ से ही उम्मीद कर रही हो कि मैं तुम्हे बचाऊ" बारह साल में तो कुत्ते के भी दिन बदलते है यहाँ तो अभी बारह मिनट ही हुए थे...सुबह तक जो शनि की साढ़े सती मुझ पर चढ़ी हुईं थी वो अब अपनी वक्र चाल से रोशनी के ऊपर चढ़ चुकी थी।
"लेकिन तुम पुलिस को सच तो बोलोगे" रोशनी अब लगभग गिड़गिड़ा रही थी।
"मैं क्यो बताऊ मोहतरमा...ये तो अभी जब आपका मेडिकल टेस्ट होगा तो उसमें आ ही जाएगा कि रात को आप कितनी टल्ली थी" मैंने रोशनी को बोला।
"लेकिन मान लो जब तुम रात को पानी पीने के लिए उठी होगी तब आपने ड्राइंग रूम में लाश तो देखी होगी" तभी राजेश जी ने रोशनी से पूछा।
"अगर उस वक़्त मैंने लाश को देखा होता तो उसके बाद तो मैं सो ही नही सकती थी...लाश को शायद मेरे दोबारा सोने के बाद ही लाया गया होगा...क्योकि तकिया भी कोई तभी उठा कर ले गया होगा...जब उसे दरवाजा खुला मिला होगा" रोशनी अब अपने दिमाग के घोड़ो को दौड़ाने लगी थी।
"लेकिन क़ातिल की मुझ से क्या दुश्मनी थी...उसने मेरा तकिया उठाकर मुझे फसाने के कोशिश क्यो की...उसने तुम्हे फसाने की कोशिश क्यो नही की"मैंने अपने दिमाग मे काफी देर से घूमते इस सवाल को रोशनी से पूछा।
"मुझे लगता है कि क़ातिल कोई बहुत समझदार इंसान है...उसनें सिर्फ जांच को भटकाने के लिये तकिया लाश के पास लाकर डाला होगा...क्योकि इस बात को तो वो भी जानता ही होगा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट मौत का समय बता ही देगी...फिर उसकी ये तकिए से मुंह दबाकर मारने की थ्योरी तो वैसे भी नही टिकने वाली थी....बस ये खेल सिर्फ जांच को कुछ समय के लिये भटकाने के लिए खेला गया है" इस बार मल्होत्रा साहब ने सभी के ज्ञानचक्षु खोलने का काम किया।
" मुझे भी लगता हैं कि ऐसा ही कुछ हुआ होगा" राजेश जी ने बुझे हुए स्वर में कहा।
" अब तो मेरे घर जाने के रास्ते खुले हुए है न सर....या अभी भी कोई रास्ता जेल जाने के लिए बचा हुआ है"मैने मुस्करा कर राजेश साहब से पूछा। जवाब में राजेश जी सिर्फ एक खिसियाई हँसी हँस कर रह गए।
अब घुम फिर कर हम सभी वही आ गये थे ...आखिर इन कत्ल की वारदातों के पीछे था कौन...मुझे एक और बन्दे की खामोशी इस मामले में कचोट रही थी...और वो बन्दा था अरुण वर्मा...वो बन्दा आज सुबह से ही एक शब्द नही बोला था...सुबह से उसने खामोशी अख्तियार की हुई थी। क्या भाई की ऐसी मौत ने उसे खामोश कर दिया था या इस खामोशी की वजह कुछ और थी....यहाँ के झमेले से निबटने के बाद मैंने फिर से अरुण से मिलने का निश्चय किया...आखिर मैं भी तो जानू की इस बन्दे के मन मे इस वक़्त चल रहा क्या है।
भाग 11
शाम को कोई सात बजे जाकर इंस्पेक्टर राजेश ने मुझे घर जाने की इजाजत दी। वहां से मुझे और रोशनी को थाने ले जाकर हम दोनों के बयान कलमबद्ध किये गए। एक एक बात का बारीकी से पूरा विवरण लिखवाने के बाद ही आपके खादिम की जान वहां से छूटी थी।
मैं कोई आठ बजे के आसपास ही अपने घर पहुंचा था।आज सुबह उठते ही लाश के दर्शन हुए थे तो आज दिनभर रोटी तो कहां नसीब होनी थी। इस वक़्त पेट मे चूहें मिल्खा सिंह बनकर दौड़ रहे थे। घर जाकर देखा तो मेरा खाने का टिफिन आया हुआ था। मेरा दरवाजा खुलने की आवाज सुनते ही मेरी पडोसन मेरा खाने का टिफिन लेकर हाजिर हो चुकी थी। दरअसल जब भी मैं घर पर नही होता हूँ तो टिफिन वाला मेरा टिफिन मेरी पडोसन को दे जाता था। जिस दिन मैं रात को घर नही लौट पाता था..उस दिन ये टिफिन मेरे पड़ोसियों के ही काम आ जाता था....आप कहेंगे कि आजकल की फ्लैट संस्कृति में कौन सा पड़ोसी किसी के काम आता है...लेकिन ये एक गलत धारणा लोगो मे बन चुकी है...एक बार किसी से बोलकर तो देखिये....बस आजकल सिर्फ इतना फर्क आया है कि अब लोग दूसरे के खुलने का इंतजार करते है बनिस्बत खुद खुलने के...बस इसी इंतजार में कई बार उम्र बीत जाती है। अब आप भी कहेंगे कि मैं कहाँ आज दार्शनिक बन गया।
मैंने अपनी पडोसन से जिनका नाम शिवानी था...मुस्कराते हुए अपना टिफिन लिया। मैंने हमेशा की तरह से उन्हें खाने का आमंत्रण दिया और उन्होंने हमेशा की तरह मुस्करा कर मेरे आमंत्रण को ठुकरा दिया,और अपनी एक दिलफरेब मुस्कान मेरी ओर बिखेर कर अपने घर में वापस लौट गई। मैने फ्रेश होकर अभी खाना खत्म ही किया था कि मेरे खबरी का नंबर मेरे फोन पर चमकने लगा। मैंने तत्काल फोन को रिसीव किया।
" बेटा आज सुबह से तेरे फोन का इंतजार कर रहा हूँ...पुणे की जगह मुम्बई पहुंचकर वहां बार मे मजरा देख रहा है क्या"मैने फोन उठाते ही बोला।
"गुरु मेरी तो अभी तक पुणे में ही चक्करघिन्नी बनी हुई है...पुणे में जहां ये रोशनी मैडम रहती थी..इनके वहां से आने के बाद उस फ्लैट में तीन किरायेदार बदल चुके है...और वहां से इन लोगो के बारे में कोई विशेष जानकारी नही मिल पाई है...लेकिन उस गोपाल के आफिस में एक बन्दा मिला है जो बोल रहा था कि जिस दिन वो एक्सीडेंट हुआ था...उस दिन गोपाल पुणे में ही नही था...उसके बारे में गलत अफवाह फैलाई गई थी कि गोपाल भी उस एक्सीडेंट का शिकार हुआ था..दरअसल उस एक्सीडेंट में एक गोपालकृष्णन नाम का कोई साउथ इंडियन मारा गया था...उसी गोपालकृष्णन की आड़ में एक घालमेल करके ये कहानी बुनी गई कि गोपाल भी उस गाड़ी में था" ये बोलकर खबरी ने चुप्पी साधी।
"लेकिन ये कहानी बुनने में कौन किस से फायदा उठाना चाहता था" मेरे मुंह से बरबस ही निकला।
"गुरु मुझे तो लग रहा है कि इस रोशनी और इसके पति ने मिलकर कोई खेला रचा है...इन्ही दोनो का कोई लोचा लग रहा है" खबरी ने अपनी अक्ल लड़ाई।
"शायद तुम सही कह रहे हो...तुम इस बात का पता लगाओ की एक्सीडेंट के वक़्त गोपाल पुणे में नही था तो कहां था..उस एक्सीडेंट के बाद क्या किसी ने फिर से गोपाल को पुणे में देखा था क्या...अगर वो देखा गया है तो फिर तो सारा माजरा साफ हो जाएगा..क्योकि यहां पर भी विजय वर्मा का कत्ल हो चुका है" मैंने खबरी को बताया।
"गुरु मैं कल रात को इसी वक्त आपको फोन करके बताऊंगा...अगर इस बारे में कुछ और भी पता चलता है" खबरी ने मुझे बोला।
"तुम इस गोपाल और रोशनी के रिश्तेदारों को ढूंढने की भी कोशिश करो..क्या पता,अगर ये बन्दा जिंदा हो तो किसी न किसी से तो मिलने की कोशिश जरूर की होगी" मैने खबरी को बोला। मेरी बात को सुनकर खबरी ने उन लोगों के बारे में भी तहकीकात करने की बात बोलकर फोन को काट दिया।
मैंने थोड़ी देर उस फोन की ओर देखा और फिर उसे अपने बेड पर रख दिया।
मैं इस केस के सभी पहलुओं पर फिर से विचार करने लगा। इस केस में सबसे पेचीदा चरित्र रोशनी मैडम का था। वो औरत अपने बचाव में कब कौन सी कहानी गढ़ ले कुछ कहा नही जा सकता था।उसका झूठ पकड़े जाते ही तुरन्त पलटी मारने में उसे महारत हासिल थी। गंगूबाई के कत्ल के वक़्त की उसकी एलिबाई तो आपका ये खाकसार खुद ही था...उस वक़्त वो उस पुलिसिये के साथ रंगरलियों में मशरूफ थी। विजय की लाश को अगर फोरेंसिक एक्सपर्ट मल्होत्रा साहब दो दिन पुरानी बता रहे है तो कम से कम कल की रात तो उसने फिर विजय का कत्ल नही किया है।अब जो सबसे पेचीदा सवाल था...वो यही था की अगर विजय को कही बाहर मार कर उसकी लाश को बंगले में लाकर डाला गया है तो कातिल को ये जरूर मालूम था की कल बंगले में लगे हुए सीसीटीवी काम नही कर रहे थे। बंगले में सीसीटीवी काम नही कर रहे थे,इस बात की जानकारी तो खुद आपके ख़ादिम तक को आज सुबह इंस्पेक्टर राजेश के बताए हुए ही हुई थी। सीसीटीवी की जानकारी रोशनी के पास थी...जब रोशनी के पास थी तो उसके जरिये और भी लोगो तक ये जानकारी आसानी से पहुंच सकती थी.., लेकिन लाख टके का सवाल ये था कि विजय की लाश को बंगले में प्लांट करके कातिल को क्या हासिल होने वाला था...अगर इस कत्ल में रोशनी भी शामिल थी तो वो खुद ही बंगले में लाश को डालकर खुद ही पुलिस की तवज्जो अपनी ओर क्यो करवाएगी.., ये तो वही बात हुई कि "आ बैल मुझें मार" !
इन तथ्यों के आधार पर तो रोशनी बिल्कुल बेकसूर ठहरती है। फिर जिसने भी इस केस में कल विजय की लाश को बंगले में डालकर रोशनी और मुझे फसाने की कोशिश की है...वो हकीकत में कोई रोशनी का दुश्मन ही होगा। अभी तक बार बार रोशनी ने खुलकर अपना शक अरुण पर ही जाहिर किया है। देखा जाए तो अगर रोशनी की शादी का कोई भी कानूनी दस्तावेज या सबूत मौजूद नही है तो विजय की मौत का सबसे ज्यादा फायदा अरुण को ही होने वाला था। क्या सच में अरूण इन सब घटनाओ के पीछे हो सकता हैं...या जो तस्वीर का एक ही रुख मैं देख पा रहा हूँ...उसका कोई दूसरा रूख भी हो सकता है...क्या पता रोशनी खुद सामने न आकर अपने किसी चाहने वाले से ये सब करवा रही हो...औरत चाहे तो आदमी से क्या नही करवा सकती है। आये दिन अनेको क़त्ल सिर्फ अवैध संबंधों की वजह से ही दुनिया भर में होते है...तो क्या रोशनी ये सब अपने उस पुलिसिया यार से करवा रही थी...हालांकि कल गंगूबाई के कत्ल से उस पुलिसिये को मैने खुद ही क्लीन चिट दी थी...लेकिन वो बन्दा पुलिस में था...फिर उसके किसी पेशेवर कातिल के साथ संबंध होना कौन सी बड़ी बात थी...पुलिसियों का तो रोज ऐसे लोगों से पाला पड़ता रहता है। इसके अलावा अगर खबरी की खबर सही निकली तो रोशनी के पहले पति गोपाल का तो बहुत सारी वजहों से इस केस के साथ नाता जुड़ जाता है। हो सकता है कि रोशनी के पहले से ही विजय के साथ पुणे में सम्बन्ध हो..जिनकी जानकरी गोपाल को हो गई हो...जिसका उसने विरोध किया हो...फिर विजय और रोशनी ने मिलकर ही गोपाल को ठिकाने से लगा दिया हो...लेकिन किसी तरह से वो मरने से बच गया हो और अब वो दिल्ली पहुंच कर इन लोगो को ठिकाने लगा रहा हो। गंगूबाई को मारने का जो उद्देश्य मैं अभी समझ नही पा रहा हूँ...वो उद्देश्य गोपाल के पास हो।क्योकि सही मायनो में गंगूबाई को मारने का उद्देश्य सिर्फ गोपाल के पास ही था...हो सकता है उसको बंगले में गंगूबाई ने देख लिया हो और अपना भेद खुलने के डर से ही उसने गंगूबाई को मार डाला हो।
मैं पता नही कितनी ही देर तक इसी उधेड़बुन में ख्यालो में ही कातिल को तलाश करता रहा...ये तलाश मेरी आँखें नींद की वजह से बंद होने के बाद ही बन्द हुई।
************
अगले दिन दोपहर को एक बजे तक मैं फिर से अरुण के सामने बैठा था। मेरी मुलाकात रोशनी के बंगले पर ही अरुण के साथ हो पाई थी...आज सुबह ही विजय की पोस्टमार्टम के बाद लाश मिलने के बाद तुरंत ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया था। क्योकि लोग बता रहे थे की लाश की स्थिति काफी खराब थी...जिस वजह से लाश के मिलते ही तुरन्त ही उसका अंतिम संस्कार किया गया। इसका मतलब मल्होत्रा साहब का आकलन सही था कि लाश दो दिन पहले की थी। हालांकि अभी इस बारे में इंस्पेक्टर राजेश से कोई बात नही हुई थी।
" कल से बड़े चुप चुप नजर आ रहे हो सरकार..किस सोच में डूबे हुए हो" मैंने अरुण से पूछा।
"आखिर वही हुआ जिसका मुझे डर था...ये शातिर औरत मेरे भाई को खा ही गई" अरुण ने मेरे सामने अपनी चुप्पी को तोड़ते हुए कहा।
"अभी तक के हालातो में कुछ नही कहा जा सकता है कि विजय को किसने मारा है...लगता है तुम्हारे भाई ने भी अपनी जिंदगी में कई उलझन पाल रखी थी...ये रोशनी तो तुम्हारे क्लाइंट की ही बीवी थी...मेरी जानकारी में आया है कि विजय बाबू जब भी पुणे जाते थे तो किसी होटल में न रुक कर रोशनी के घर पर ही रुका करते थे...इसमे तुम्हे कुछ अजीब नही लगता" मैंने अरुण से सीधा सवाल किया।
"अजीब तो लगता था...लेकिन भाई की एक परेशानी थी कि वो बाहर रहकर भी बाहर का खाना बहुत ही मुश्किलों से खाते थे...हो सकता है इसी वजह से वे रोशनी के यहां रुकते हो....कई बार क्लाइंट को भी धंधे के चलते ऐसे फैमिली रिलेशन बनाने में कोई आपत्ति नही होती" अरुण ने साफगोई से जवाब दिया।
"अब मैं यहाँ पर दो नजरिये से सोच रहा हूँ.. आपका क्लाइंट आपके भाई के बारे में सभी बातें जानता था...वो जानता था कि विजय बाबू गाड़ी बंगले वाले इंसान है...पैसा भी खूब है...सबसे बड़ी बात की जीवन में अकेले है...इन सब बातों को ध्यान में रखकर रोशनी और उसके पहले पति गोपाल ने किसी साज़िस के तहत तुम्हारे भाई को फांसा हो और फिर जब जो वो लोग चाहते थे वो उन लोगो ने पा लिया हो...उसके बाद उन्होंने ये खेल खेलकर तुम्हारे भाई को रास्ते से हटा दिया हो" मैंने अपनी पहली सम्भवना अरुण के सामने रखी।
"तुम सही दिशा में सोच रहे हो...और दूसरा नजरिया क्या है" अरुण ने दिलचस्पी से पूछा।
" दूसरा नजरिया ये है कि विजय और रोशनी का पुणे आते जाते हुए आपस मे सम्बन्ध बन गए हो...जिसकी जानकारी गोपाल को न हो...जब उसे इसकी जानकारी हुई होंगी तो उसने इन सम्बन्धो का विरोध किया होगा...तब विजय और रोशनी ने मिलकर गोपाल को ठिकाने लगा दिया हो...और उसके गायब होने की अफवाह फैला दी हो...इन लोगो के दुर्भाग्य से गोपाल बच गया हो और अब वो यहां आकर इन लोगो से बदला ले रहा हो...क्योकि गंगूबाई को मारने में सिर्फ गोपाल के अलावा किसी और का फायदा होता हुआ मुझे नजर नही आता" मैंने अपना दूसरा नजरिया भी अरुण को बताया।
" एक तीसरा नजरिया भी है...,एक बार को हम पूरी पिक्चर से गोपाल को बाहर करके देखे तो ये भी हो सकता है कि रोशनी ने अपने उस पुलिसिया यार के साथ मिलकर मेरे भाई को मारा हो...और सिर्फ कत्ल के उद्देश्य से ध्यान भटकाने के लिए पहले गंगूबाई को मारा हो और फिर मेरे भाई की लाश को सामने लाये हो...क्योकि भाई तो गंगूबाई से भी पहले से ही मर चुका था" अरुण ने भी अपने दिमाग को दौड़ाया।
"फिर इस केस में एक बात और निकल कर आती है...या तो फिर विजय को इसी बंगले में मारा गया होगा और गंगूबाई की नजरों में ये सब किसी तरह से आ गया होगा...गंगूबाई एक लालची औरत थी ये तुम भी जानते हो और मैं भी जानता हूँ...गंगूबाई ने रोशनी और उसके यार को ब्लैकमेल करने की कोशिश की होगी ! तभी गंगूबाई मारी गई होगी" मैंने अब चौथा नजरिया भी अरुण को बताया।
"अब जाकर तुमने सही लाइन पकड़ी है...ऐसा हुआ नही होगा...बल्कि ऐसा ही हुआ है"अरुण ने थोड़ा सा उत्साहित स्वर में बोला।
"लेकिन अगर ऐसा हुआ है तो सबूत जुटाने के लिए हमे इस बंगले की चप्पे चप्पे की तलाशी लेनी होगी..अभी एक दो दिन तो यहां पुलिस रात को भी तैनात रहेगी...फिर बंगले की तलाशी का इंतजाम तुम्हे ही करना होग़ा" मैंने अरुण को बोला।
"उसकी चिंता मत करो...वो सब मैं हैंडल कर लूंगा"अरुण ने मेरी ओर देखकर बोला।
"अच्छा एक बात सच सच बताओगे" मैंने इस बार अरुण के चेहरे पर नजर जमा कर पूछा।
"बोलो" अरुण ने सवालिया निगाहों से मेरी ओर देखा।
"कल रात को इस बंगले में तुम मौजूद थे न"मैने हल्का सा मुस्करा कर पूछा।
"तुम्हे कैसे मालूम" अरुण ने मेरी बात को बिना किसी हिलहुज्जत के एक सेकेण्ड में मान लिया।
"कल सुबह तुम्हारे जूतों पर लगी मिट्टी ने मुझे कल सुबह ही बता दिया था की कल रात को बंगले में तुम्ही थे..इस बात को कल मैंने इंस्पेक्टर राजेश के सामने इस लिए नही खोला..क्योकि फिर वो कल ही तुम्हे इस केस में लपेट देता.. जैसे की वो मुझे लपेटने की कोशिश कर रहा था...अब जब तुम कल रात को यही थे तो विजय की लाश की सच्चाई भी जानते होंगे"मैंने अरुण से पूछा।
"मैं इस बात से इनकार नही करूँगा की कल रात को मैं यहाँ आया था...जिन कदमो की आहट की वजह से रोशनी ने तुम्हे यहां रोका था...वो मेरे ही कदम थे...लेकिन रोशनी को तुम्हारे साथ देखकर मैं तुम दोनों के अंदर जाते ही मैं वापस लौट गया था...चाहो तो इस बात की तस्दीक तुम मेरी वाइफ से भी कर सकते हो कि मैं रात को कितने बजे से उसके साथ था"अरुण ने मुझ से कुछ भी नही छुपाया था।
"इस तरह से बंगले में घुसने की क्या वजह थी" मैंने अगला सवाल किया।
"यही वजह थी जो तुमने अभी सोची है...मैं भी कल भाई को ढूंढने के लिए ही बंगले में घुसा था....लेकिन तुम्हे यहां मौजूद देखकर मैं वापस लौट गया था" अरुण ने जवाब दिया।
"मतलब महाराज को भी जासूसी का शौक है"मैने मजाकिया लहजे में बोला।
"जासूसी नही मुझे अपने भाई के साथ ऐसा ही कुछ होने की आशंका थी..उसी आशंका की वजह से मैं कल रात को यहां आया था...वही आशंका मेरी सुबह तक सच भी हो गई" अरुण ने साफगोई से बोला।
"ठीक है...जैसे ही यहाँ की तलाशी लेने का मौका मिलता है...तुम मुझें काल करो..बन्दा फोरन से पेश्तर हाजिर हो जाएगा" मैंने अब वहां से निकलने का उपक्रम किया।
"ठीक है...मैं तुम्हे काल करता हूँ" ये बोलकर अरुण ने मुझे विदा देने के अंदाज में अपना हाथ बढ़ाया। मैं भी विदा लेकर बंगले से बाहर आ गया। अब आपके ख़ादिम का अगला निशाना था...राजबीर राठी..माशूक इतनी बड़ी मुसीबत में थी और आशिक साहब के दर्शन ही नही हो रहे थे। ये तो जनाब की अपनी माशूका के साथ बहुत नाइंसाफी थी।
भाग 12
मैं उस थाने में पहुंचा जहां पर राजबीर राठी नाम के उस पुलिसिये की तैनाती थी। थाने में पहुंचकर राजबीर राठी को ढूँढने के लिए मुझे कोई खास मसक्कत नही करनी पड़ी। थाने की पहली मंजिल में स्थित एक कमरे में मुझे राजबीर राठी मिल गया था। मुझे देखकर उसके चेहरे पर कोई खास खुशी के भाव नही उभरे,बल्कि असमंजस से उसने मेरी ओर देखा।
"तुम यहाँ क्या करने आये हो" उसी असमंजस में उसने मुझ से पूछा।
"कमाल है राठी साहब ! वहां आपकी चहेती इतनी भारी मुसीबत में फंसी हुई है और आप यहाँ आराम से बेफ़िक्री से बैठे हुए है...आपको उन मैडम की जरा भी चिंता नही है क्या" मैंने मजाकिया लहजे में राठी साहब की चककल्स ली।
"मेरा उन चीज़ों से कुछ लेना देना नही है अनुज साहब! बस वो मौज मेले के लिए आसानी से उपलब्ध एक चीज़ थी मेरे लिए...लेकिन बात जब मेरी नौकरी पर बन आई है तो फिर क्यों मैं उस रास्ते पर वापस जाऊं" राजबीर राठी ने रोशनी मैडम से पल्ला झाड़ने वाले अंदाज में बोला।
"मैडम के पास तो इतना पैसा है कि आपको जीतना पैसा पूरी उम्र की इस पुलिसिया नौकरी के बाद मिलता..., उतना तो वो एक महीने में आप पर लुटा सकती है...फिर एकाएक मैडम से इतनी बेरुखी क्यो राठी साहब"मुझें राठी की ये बार कुछ हजम नही हो रही थी।
"पुलिस की नौकरी में एक अलग ही रुतबा होता है...और किसी औरत के साथ आशनाई अलग चीज़ होती है..और वो भी तब जब दोनों ही शादीशुदा हो...उस दिन की घटना के बाद मेरे खिलाफ विभागीय जांच कभी भी हो सकती है.. क्योकि उस थाने का जो एस एचओ है...वो किसी को नही बख्शता है" ये बात तो राठी ने सही कही थी...इस बात का एहसास तो मुझ कल खुद हो गया था।
"आपको ये खबर तो मिल ही गई होगी कि रोशनी मैडम के पति विजय का भी कत्ल हो चुका है और उनकी लाश भी बड़े ही नाटकीय अंदाज में उन्ही के बंगले से मिली है" मैंने राठी पर नजर गड़ाते हुए पूछा।
"हाँ रोशनी का फोन आया था मेरे पास...पूछ रही थी कि क्या करूँ...मैंने उसे यही बोला था कि जो सच हो पुलिस के सामने वही बोलना...क्योकि मेरा जाति तजुर्बा है कि पुलिस के पास सच जानने के और भी सेकड़ो रास्ते होते है" राठी ने मेरी ओर देखकर बोला।
"तो फिर तो रोशनी को ये आईडिया आपने ही दिया होगा कि उस कत्ल में मुझे फसाने के लिए मेरे नाम का स्यापा पुलिस के आगे जोर शोर से करे" मैंने राठी की बात में से बाल में से खाल निकाली।
"मैंने उसे सिर्फ सच बोलने के लिए बोला था...अब उसे लगा होगा कि तुमने उसके पति को मारा है तो उसे वही सच लगा होगा..फिर उसने वही पुलिस के आगे बोला होगा" राठी ने सफाई दी।
"आप दोनों की आशनाई को देखते हुए ये भी तो हो सकता है की आप दोनों ने ही विजय को कहीं पर बंगले में कैद करके रखा हो और फिर मौका देखकर मार डाला हो...,और जब उस बंगले में रात में मेरी मौजूदगी का पता चला होगा तो लाश को बंगले में से ही निकाल कर उस ड्राइंग रूम में ले जाकर डाल दिया हो और फिर वो तकिया वहां प्लांट कर दिया गया जिस पर सिर रख कर मैं सो रहा था" मैंने राठी की ओर देखकर पूरी साफगोई से बोला। मेरी बात सुनकर उसके चेहरे पर सख्त नागवारी के भाव उभरे।
"बहुत ही लचर कहानी बना रहे हो मेरे दोस्त...कम से कम इतना तो सोचो कि मैं भी उस डिपार्टमेंट से ताल्लुक रखता हूँ...जिसका काम ही दिन रात कत्ल के केस हैंडल करना होता है...जो चीज़ महज अड़तालीस घण्टे में लोगो की पकड़ में आ सकती है उसे मैं क्यो अमलीजामा पहनाऊँगा"राठी ने मेरी ओर सवालिया निगाहों से देखते हुए बोला।
"कौन सी चीज" मैंने संक्षेप में पूछा।
" मुझे रोशनी बता चुकी है कि लाश दो दिन पुरानी थी...और उसे अड़तालीस घण्टे पहले ही कत्ल किया गया था...सोचो अगर मैंने रोशनी के साथ मिलकर विजय को मारा होता तो कम से कम मैं तो इस बात को जानता ही था कि जैसे ही लाश का पोस्टमार्टम होगा...सच्चाई सामने आ जायेगी....और तुम साफ छूट जाओगे" राठी की इस बात में दम था।
"मान लो सच मे तुम दोनों ने ही उसे मारा होता तो तुम क्या करते" मैंने अजीब सा सवाल किया।
"मैं उस लाश को ही बाहर नही आने देता...पुलिस की फाइलों में हजारों गुमशुदा लोग दफन है एक और हो जाता...लापता लोगों के पीछे वैसे भी पुलिस ज्यादा नही भागती है" राठी अपने डिपार्टमेंट की पोल खुद ही खोलने में लगा हुआ था।
"मतलब रोशनी और आप दोनों इस मामले में पूरी तरह से पाक साफ हो...फिर एक पुलिस वाला होने के चलते बताओ कि विजय की मौत से किस को फायदा हो सकता था" मैने इस बारे में राठी के विचार भी जानने चाहे।
" अरुण से ज्यादा तो किसी का फायदा हो ही नही सकता" राठी ने ये बोलने में एक पल भी नही सोचा।
"मतलब इस मामले में आशिक और माशूक की सोच बिल्कुल एक जैसी मिलती जुलती है" मैंने अपने ही अंदाज में राठी से बोला।
"क्या मतलब"राठी मेरी बात सुनकर एकदम से अचकचा गया था।
"मतलब की आपकी चहेती रोशनी देवी के भी यही विचार है..वो भी अरुण को ही इस पूरे मामले में कसूरवार ठहरा रही है" मैंने मुस्करा कर राठी को बताया।
"जो भी समझदारी से सोचेगा...उसे पहली बारी में ही समझ मे आ जायेगा कि अरुण के अलावा और किसी को कोई फायदा नही है" राठी ने फिर से अरुण के नाम पर ही जोर दिया।
"फिर पांच सालों से रोशनी मैडम क्या उस बंगले में भुट्टे भून रही थी...अपने फ्यूचर की प्लानिंग तो उसने भी की होगी...उसने भी तो कोई रास्ता तलाशा होगा कि कल को अगर विजय को कुछ हो जाता है तो उसके पास भी तो कुछ होना चाहिए था, जिससे उन परिस्थितियों में विजय की वारिस होने का दावा कर सके" मैंने ठंडे दिमाग से राठी को बोला।
"अब उसकी प्लानिंग के बारे में तो वही जानती होगी...मेरा और उसका साथ तो सिर्फ बिस्तर तक था....इससे ज्यादा कुछ नही" राठी ने इस बार बेशर्मी से जवाब दिया था।
"लेकिन यही बिस्तर का साथ कभी कभी लकड़ियों के बिस्तर तक पहुंचा देता है..जहाँ जलने के अलावा और कोई चारा नही होता...अब मैं चलता हूँ...उम्मीद है कि अब आप अपनी चहेती से उचित दूरी बनाकर रहेंगे..नही तो सावधानी हटी दुर्घटना घटी के बारे में तो आपने सुना ही होगा...आपकी ही ट्रैफिक पुलिस का स्लोगन है" ये बोलकर मैं उठ खड़ा हुआ..राठी ने भी अपनी कुर्सी पर बैठे बैठें ही मेरी ओर अपने दोनों हाथ जोड़ दिये...मानो कह रहा हो कि...चलो बला टली।
***********
मैं वहां से नेताजी सुभाष प्लेस स्थित अपने आफिस में पहुंचा। रागिनी और नरेश अपनी गपशप में बिजी थे। जैसे ही रागिनी की नजर मुझ पर पड़ी...उसके होठो पर मुस्कान खिल उठी।
"गुरु ! लगता है केस सुलझा लिया है आपने...तभी आपके चरण आज इस आफिस में पड़े है" रागिनी ने हमेशा की तरह बकलोली की।
"केस तो अभी भी जलेबी की तरह ही उलझा पड़ा है...हर कोई सामने से क़ातिल नजर आ रहा है...लेकिन जब तथ्यो की गहराई में उतरो तो सभी बेकसूर नजर आ रहे है" मैने अपने केबिन में जाते हुए रागिनी को बोला।तभी रागिनी भी मेरे पीछे पीछे केबिन में प्रवेश कर चुकी थी।
"कमाल है! लेकिन ये मामला तो गुमशुदगी का था न...ये कत्ल कब और किसका हो गया" जब रागिनी ने ऐसा बोला तब जाकर मुझे ध्यान आया कि दो दिन से मैं रागिनी के संपर्क में बिल्कुल रहा ही नही था।
" अरे हाँ यार! तुमसे तो इस केस के बारे में बात ही नही हुई है" फिर मैंने रागिनी को तफसील से अभी तक कि घटी सभी घटनाओं के बारे में बताया..गंगूबाई के कत्ल से लेकर विजय की लाश की बरामदगी तक पूरी कहानी मैंने रागिनी को बताई। मैंने उसे इंस्पेक्टर राजेश के बारे में भी बताया जो पता नही किस वजह से मुझे इस कत्ल के केस में फंसाने के लिए उधार खाए हुआ बैठा था। पूरी बात सुनकर रागिनी कुछ देर सोच में डूबी रही.., फिर उसने सोच समझकर मुझे अपना एक परम ज्ञान दिया।
" गुरु एक बात तो निश्चित है...,की तुम इन हसीनाओ के चक्कर मे किसी दिन लंबे फसोगे...अपनी इस आदत को सुधार लो....हर हसीना को बचाने का ठेका सिर्फ आपने ही नही लिया हुआ...वो भी ऐसी हसीना जो पहली फ़ुर्सत में आपको ही बलि का बकरा बनाने पर आमादा हो" रागिनी ने मेरी ओर देखकर किंचित गंभीरता से कहा।
" अब मुझे क्या पता था कि वो कमीनी मुझे ही अपने पति के कत्ल में फसाने की कोशिश करेगी...,वो भी उस पति की जिसकी मैंने उस दिन से पहले कभी जिंदा शक्ल नही देखी थी..सीधा मुर्दा ही देखा था"मैंने रागिनी की बात को कुछ कुछ समझते हुए कहा।
" गुरु आप जासूस हो...आपको तो जब तक गुनाहगार पकड़ा न जाये तब तक हर किसी को अपने शक के दायरे में रखना चाहिए....,न कि किसी की जरा सी भी प्रार्थना पर उसके बैडरूम में रुकने के लिए तैयार हो जाओ...आदमी मयखाने से निकलते हुए पकड़ा जाने पर ही जमाने की नजर में बिना पिये भीब शराबी बन जाता है...फिर आप कितना भी शरीफ बनने की कोशिश करो कोई आपकी शराफत पर विश्वास नही करेगा" रागिनी की बात मेरी समझ में आ रही थी। लेकिन क्या करूँ आपके खाकसार का दिल ही कुछ ऐसा था कि किसी भी नूरजहां को मुसीबत में फंसा देखकर उसे नजरअंदाज कर ही नही पाता था। जबकि मैं ये भी जानता था की मैं इन सबके चलते अनेको बार मुसीबत में फंस चुका था।
" अच्छा मेरी माँ! अब इस केस के बारे में कुछ बात कर लें" मैंने रागिनी के सामने अपने दोनो हाथ जोड़ते हुए कहा।
"खबरी ने कोई रिपोर्ट दी है क्या पुणे से" रागिनी ने मेरी ओर देखकर पूछा।
" कल रात को उसका फोन तो आया था.., लेकिन अभी कोई ठोस जानकारी नही जुटा पाया था वो...आज रात को वो फिर से फोन करेगा ...,लेकिन एक बात उसने जरूर चौकाने वाली बताई है कि उसके एक कुलीग ने इस बात से इंकार किया है कि उस एक्सीडेंट में रोशनी के पहले पति गोपाल को कुछ हुआ था" मैंने रागिनी को बताया।
" क्या मतलब" रागिनी ने मेरी ओर प्रश्न भरी नजरों से देखा।
" मतलब की उस कुलीग ने बताया की एक्सीडेंट के दिन तो गोपाल पुणे में ही नही था...उस एक्सीडेंट में मरने वाला कोई गोपाल कृष्णन नाम का आदमी था...जिसे लेकर गोपाल की गुमशुदगी की कहानी रची गई थी" मैंने रागिनी को विस्तार से समझाया।
"फिर तो इन दोनों हत्याओ के तार भी रोशनी और गोपाल की जुगलबंदी से ही हिल रहे होंगे...अगर गोपाल सच मे जिंदा हुआ तो" रागिनी ने मेरी ओर देखकर बोला।
" लेकिन अभी ये बात पुख्ता नही की है खबरी ने...मैंने जरा उसे और गहराई से इस बात की तह तक जाने के लिए बोला है" मैंने रागिनी को बोला।
" आपने इस बारे में रोशनी से बात की...,कम से कम उसके चेहरे का रिएक्शन तो देखना चाहिए था" रागिनी ने पूछा।
" अरे यार! कल रात को ही तो खबरी ने बताया है...आज मैं गया था रोशनी के बंगले पर...लेकिन आज विजय के अंतिम संस्कार की वजह से बंगले पर मिलने जुलने आने वालों का तांता लगा हुआ था...,इस वजह से रोशनी की तो आज मैं शक्ल तक भी नही देख पाया"मेरी बात सुनकर रागिनी हल्का सा मुस्करा दी।
"फिर तो गुरु अभी तक आपने खाना भी नही खाया होगा...आपकी चहेती के दर्शन जो नही हुए आपको" रागिनी ने फिर से मेरी चककल्स ली।
"हाँ उसी कमी को तो पुरा करने के लिए आफिस आया हूँ...,,की चलो यहां न सही आफिस में ही किसी हसीन चेहरे के दर्शन कर लो" मैंने नहले पर दहला जड़ते हुए कहा।
"गुरु इस हसीना का चेहरा देखने के बाद तो लोगों को सात दिन तक ख़ाना नही मिलता...अब आज की ही बात ले लो...सुबह शीशे में अपना ही थोबड़ा देखकर आई थी...आज अभी तक लंच भी नसीब नही हुआ है"रागिनी बातो में आज तक मुझ से नही हारी थी...फिर आज कैसे हार सकती थी।मैं उसकी बात सुनकर मुस्करा दिया।
"चल फिर लंच मंगवा...दोनो एक साथ ही लंच करते है" मैने रागिनी को बोला।
"मैं तो लंच लेकर आई हूँ....आप अपने लिए मंगवा लो" रागिनी ने मुझे बोला।
"तुम्हारा लंच तो मैं खाऊंगा....तुम अपने लिये बाहर से मंगवा लो...तुम्हे तो पता ही है घर का बना हुआ खाना मुझें बहुत कम ही नसीब होता है" मैंने रागिनी की ओर मुस्करा कर देखते हुए बोला।
"वो तो आपको मैं लंच टाइम में आफिस में देखते ही समझ गई थी कि आज मुझे बाहर से ही खाना मंगवाना पड़ेगा" ये बोलकर रागिनी अपना टिफिन लेने और नरेश को खाना लाने के लिए बोलने के लिये केबिन से बाहर चली गई।रागिनी के जाने के बाद मेरी सोच की सुइयां एक बार फिर से रोशनी की ओर घूम गई। तभी केबिन का दरवाजा खुला और रागिनी अपना टिफिन लिये हुए अंदर आई और टिफिन खोलकर मेरे सामने सजा दिया। अब आपका ख़ादिम तो जन्म जन्म का भूखा था..मैं खाने पर ऐसे टूटकर पड़ा मानो संसार का यही आखिरी खाना हो। मैंने रागिनी के लिए खाना आने का भी इंतजार नही किया। ये देखकर रागिनी भी मेरी ओर देखकर मन्द मन्द मुस्करा रही थी।
"गुरु ये सारी मगजमारी और खून खराबा विजय की दौलत के लिए हो रही है..तो एक बार उन कागजो की भी तो तहकीकात कर लो कि ये दौलत गाड़ी बंगला विजय के मरने के बाद आखिर मिलने वाला किसे था" रागिनी ने एकदम वो बात बोली...जिसे चेक करने का अभी तक मेरे दिमाग में ख्याल तक नही आया था। मैं हमेशा इस बात को कहता आया हूँ कि जब भी मैंने रागिनी से किसी केस के बारे में डिस्कस किया है...रागिनी ने हर बार उस केस में कोई न कोई नई राह जरूर दिखाई है। आपके खाकसार ने मुतमइन नजरो से रागिनी की ओर देखा।
"तुम सही बोल रही हो...इसके लिए तो मुझे विजय के सॉलिसिटर को ढूंढना पड़ेगा...जो विजय के सारे लीगल काम देखता हो" मैंने कुछ सोचते हुए बोला।
" ये काम आपके लिए कौन सा मुश्किल है,...सॉलिसिटर की जानकारी तो आपको मिनिटों में मिल जायेगी" रागिनी ने बोला ही था कि तभी नरेश रागिनी का खाना लेकर आ गया। अब रागिनी भी अपना खाना खाने में मशगूल हो गई थी...जबकि मैं ख़ाना खाकर फ्री हो चुका था।
अब मेरे सामने करने के लिए दो काम थे....एक तो रोशनी के बंगले की तलाशी लेना...और दूसरा विजय के सॉलिसिटर से मिलकर इस वक़्त उसकी चल अचल संपति और उसके वारिस की जानकारी हासिल करना। रोशनी के बंगले की तलाशी मैंने आज रात को ही बिना अरुण के ही लेने का फैसला किया..,क्योकि रागिनी की एक बात मुझे बहुत पसंद आई थी कि एक जासूस होने के नाते मुझे जब तक गुनाहगार पकड़ा न जाये,सभी को अपने शक के दायरे में रखना चाहिए। यही सोचकर अब मैंने अकेले ही बंगले की तलाशी लेने का फ़ैसला किया। दूसरा कारण ये भी था कि आज की रात तो मुझे वहां कुछ सबूत मिलने के चांस भी थे...क्योकि पिछले दो दिनों से तो रोशनी पुलिस और आने जाने वालों के फेर में ही फंसी हुई थी...अगर बंगले के अंदर ही विजय को मारा गया है तो ये काम बिना रोशनी के तो हो नही सकता था...और इन दो दिनों में कम से कम उसे तो सबूत हटाने का या मिटाने का कोई मौका मिला नही होगा।
यही सोचकर अब मैं रात होने का इंतजार करने लगा।
क्रमशः
भाग 13
मैं इस वक़्त विजय के सॉलिसिटर के सामने बैठा हुआ था। वो एक कोई पचास साल का शख्स था.., जिनके सिर के बीच के बाल साफ हो चुके थे। इस वक़्त वो शख्स अपने चश्मे के पीछे से मेरी और गहराई से झांक रहे था। विजय के सॉलिसिटर आलोक श्रीवास्तव के बारे में पता करने में आपके ख़ादिम को कोई ज्यादा मुश्किल नही आई थी।कमला नगर के पास ही स्थित विजय नगर में एक डबल स्टोरी फ्लैट में आलोक श्रीवास्तव ने अपना आफिस बनाया हुआ था। आफिस में कर्मचारियों की संख्या बता रही थी कि सॉलिसिटर साहब की प्रैक्टिस अच्छे से चल रही थी।
" आपको विजय वर्मा के बारे में और उनकी वसीयत के बारे में जानना है...जान सकता हूँ कि मैं आपकी ये सेवा किस खुशी में करूँ"आलोक श्रीवास्तव शक्ल से ही कोई घाघ इंसान नजर आ रहा था।
"क्योकि उनके क़ातिल तक पहुंचने में हमारे लिए ये जानकारी काफी मुफीद हो सकती हैं कि उनकी मौत से सबसे ज्यादा फायदा किसे हो सकता है" मैंने बिना किसी लागलपेट के बोला।
"लेकिन ये काम तो पुलिस का है..और ये जानकारी को आज सुबह पुलिस वाले भी लेने आये थे" आलोक श्रीवास्तव आसानी से अंटे में आने वाला शख्स नही था।
"जिस काम को पुलिस सरकारी तौर पर करती है उसी काम को आपका ये सेवक प्राइवेट रूप में करता है...आपने मेरे कार्ड पर मेरे धंधे के बारे में तो पढ़ ही लिया होगा...अगर आप मेरी कुछ मदद कर देगे तो अपनी भी दाल रोटी का जुगाड़ हो जाएगा सर" मैंने खुशामद भरे स्वर में कहा।
" सिर्फ दाल रोटी...भाई ये क्यो नही कहते कि बटर चिकन के साथ रॉयल स्टेज की बोतल में डूबना चाहते हो....विजय वर्मा के क़ातिल को अगर पुलिस से पहले तुमने पकड़ लिया तो तुम्हारी तो पांचों उंगलियां घी में होगी" श्रीवास्तव किस बात की भूमिका बना रहा था मैं अच्छे से समझ रहा था।
"साफ साफ बोलो न मालिक की...जानकारी देने की कीमत चाहते हो"मैं अब बात को रबड़ की तरह से ज्यादा खींचना नहीं चाहता था।
"समझदार हो भैया....देखो सबसे काम की इनफार्मेशन मैं ही तुम्हे दे सकता हूँ..मेरे बताते ही फिर बेधड़क चाहे तो उस आदमी की गर्दन पकड़ लेना...लेकिन आज की दुनिया मे हर बात की कीमत होती है.. फिर इतनी कीमती बात की कीमत तो होगी ही होगी" उस आधे गंजे के चेहरे से ही लालच शहद बनकर टपक रहा था।
"लेकिन अभी तो तुम बोल रहे थे न कि तुम पुलिस भी इस जानकरी को लेने के लिए तुम्हारे पास आई थी....पुलिस को तो दे ही ढ़ी होगी तुमने जानकारी" मैंने उस घाघ बन्दे को बोला।
"भइये पुलिस आई जरूर थी...लेकिन हाल फिलहाल मैने उन्हें टाल दिया है...उनसे मैंने एक दो दिन की मोहलत मांगी है..कोई बहाना बना कर...अब अगर तुम मांगते हो तो बोलो...नही तो मेरा टाइम खोटी मत करो" ये बन्दा हद से ज्यादा चालाक था।
"लेकिन अगर यही जानकारी पुलिस के पास भी निकली तो फिर क्या होगा" मैं उसकी बात को पुख्ता कर लेना चाहता था।
"जितना माल तुम मुझे दोगे...उसका दुगना वापस"गंजे की बोलने की अदा से मुझे उसकी बात में दम नजर आया।
"कीमत बोलो" मैंने बिना कोई हिलहुज्जत के बोला।
"एक लाख" उसने ऐसे तपाक से बोला जैसे पहले से ही सोच कर बैठा था।
" इतने पैसे तो शायद मुझे क़ातिल को पकड़ने के बाद भी नही मिलेंगे...जितने के लिए तुम मुंह फाड़ रहे हो" मैंने उखड़े हुए स्वर में बोला।
"अगर तुमने क़ातिल पकड़ लिया तो तुम दस लाख से कम क्या लोगे...इतनी मोटी आसामी का केस तुम्हारे हाथ में है..मैं तो बस उसका दस परसेंट ही मांग रहा हूँ" गंजा पूरी बेशर्मी से बोला।
"दिए...तुम्हे एक लाख दिये...तुम कागजात दिखाओ"अब रुपयों को लेकर बहस करने का कोई फायदा नही था..क्योकि जब नाश मनुज पर छाता है तो सबसे पहले लालच ही उसके सिर पर सवार होता है।
"ऐसे नही भैया..इस हाथ ले और इस हाथ दे" गंजा घाघ ही नही हद दर्जे का चालाक इंसान भी था।
"एकाउंट में ट्रांसफर कर दूं" मैंने अपना मोबाइल हाथ मे पकड़ते हुए बोला।
" भइये एकाउंट में डालोगे तो अट्ठारह परसेंट जीएसटी और लग जायेगी"ये आदमी सच मे हद दर्जे का कमीना इंसान था।
"फिर इतनी नकदी तो मेरे पास अभी है नही" मैंने लाचारी से बोला।
"भईया फिर एक काम करो...एकाउंट में एक लाख दस हजार डाल दो.. अब आधा जीएसटी का टैक्स मैं भुगत लूँगा...तुम भी क्या याद करोगे की किस दिलदार आदमी से मिले थे" उस बेशर्म इंसान ने खुद ही अपनी तारीफ के कसीदे पढ़े। मैने उसका एकाउंट नम्बर लेकर उसके अकाउंट में एक लाख दस हजार भेजे। पैसे भेजते ही उस बन्दे ने अपने पीछे ही लोहे की अलमारी की दराज खोली और एक हरे रंग की फ़ाइल मेरे सामने रख दी। उस फ़ाइल पर मोटे अक्षरों में काले पेन से लिखा हुआ था...विजय वर्मा।
"मुझे इस फ़ाइल की जेरोक्स कॉपी चाहिए"मैंने आलोक की तरफ देखकर बोला।
" भइये ये जेरोक्स ही है...तुम इसे ले जाओ..आराम से पढ़ो...ओरिजिनल को तो मैंने सात तालों के पीछे सम्हाल कर रखा हुआ है।
मैंने फ़ाइल को उठाया। कुर्सी से खड़ा हुआ और फिर से उस आधे गंजे से मुखातिब हुआ।
"अपने हर क्लाइंट की जानकारी ऐसे ही बेचते हो"मैने खड़े होकर हिकारत से देखते हुए उसे बोला।
"क्या हुआ भइये...काम निकलते ही तुम्हारी तो जुबान ही बदल गई" उसने असमंजस से मेरी ओर देखा।
"मेरी जुबान ही नही थोड़ी देर में यहां बहुत कुछ बदलने वाला है...तेरी ये पूरी करतूत मैंने रिकॉर्ड कर ली...तेरे एकाउंट में जो पैसा मैंने ट्रांसफर किया है...वो तेरी बेईमानी का सबसे बड़ा सबूत है...सोचो जब मैं इस वीडियो को सोशल मीडिया पर चलाऊंगा तो तुम्हारे सारे क्लाइंट अभी घण्टे भर में तुम्हारे कपड़े फाड़ने आ जायेंगे" मेरी बात सुनते ही उस गंजे के चेहरे की बजाय उसकी गंजी चाँद से पसीना बहने लगा था।
"ये तो चीटिंग है...मैंने तो तुम्हारी मदद की और तुम ऐसा सलूक कर रहे हो" अलोक ने फसे हुए स्वर में कहा।
" तुमने मदद नही की बल्कि अपने एक मरे हुए क्लाइंट को मुझे एक लाख में बेच दिया हैं...तुम्हारा तो फर्ज बनता था कि तुम सामने से आकर अपने क्लाइंट के हत्यारों को पकड़वाने में मेरी मदद करते....लेकिन लगता है पैसो के लालच में इंसानियत को ही भूल चुके हो तुम" मैं अब अच्छे से उसकी लानत मलामत कर रहा था।
" गलती हो गई भइये...तुम वापस ले लो अपने पैसे" आलोक के स्वर से उसकी परेशानी टपक रही थी।
"पैसे तो मैं वापस लूँगा लेकिन अब एक लाख दस हजार नही बल्कि पूरे दो लाख बीस हजार रु लूँगा...नही तो तुम जानते हो कि तुम्हारा कुछ ही देर में यहां क्या हाल होगा...उसके बाद पुलिस भी तुम पर पुलिस को गुमराह करके जानकारी न देने का केस ठोक देगी" मैं अब इस बेईमान इंसान को अच्छे से सबक सिखाना चाहता था।
"भईया अब तो जुल्म कर रहे हो हमारे पर" अभी थोड़ी देर पहले तक जिस आदमी के चेहरे से सिर्फ लालच टपक रहा था अब बस उसकी आंखों से आँसू टपकने के लिए तैयार थे।
"जल्दी कर ...मेरे एकाउंट में पैसे डाल...नही तो मैं अभी ये वीडियो लाइव कर रहा हूँ" मैंने उस गंजे के नट बोल्ट फिर से कसे। उसने मरता क्या न करता के अंदाज में अपना मोबाइल उठाया और मेरी बोली गई रकम को अपने मरे हुए हाथो से मेरे एकाउंट में डालने लगा....कोई पांच मिनट के बाद उसने अपना सिर मोबाइल से हटाया।
"भईया डाल दिये...अब तो वो वीडियो डिलीट कर दे" आलोक श्रीवास्तव गमगीन स्वर में बोला।
"इतनी जल्दी क्या है...पहले जरा इस केस को सुलझा लू....उसके बाद ही इस वीडियो को डिलीट करूँगा...क्योकि तुम्हारे जैसे हरामी का कोई भरोसा नही है कि तुमने इस फ़ाइल में भी कोई हेराफेरी न कि हो...और हाँ इस रकम का सारा जीएसटी मैं खुद भरूँगा...तुम भी क्या याद रखोगे...की किस दिलदार आदमी से पाला पड़ा है....नमस्ते...सायोनारा" ये बोलकर मैं उसके केबिन से उठकर बाहर निकल आया...उस आदमी की बदकिस्मती देखिए कि उसका मन जरूर इस वक़्त फूट फूट कर रोने का कर रहा होगा...लेकिन वो इस वक़्त रो भी नही पा रहा था। मुझे ये हराम के एक लाख दस हजार रु चाहिए नही थे....मैं अब यही सोच रहा था की इन पैसो को मैं कहाँ दान करूँ।
**********
मेरा अगला ठिकाना अब रात को रोशनी का बंगला ही था...अभी इस वक़्त सिर्फ पांच ही बजे थे...इसलिए मैंने गाड़ी को अब अपने फ़्लैट की ओर मोड़ दिया था...मैं घर पहुंचकर आराम से एक कप काफी के साथ इस फ़ाइल का अवलोकन करना चाहता था।
वहां से कोई आधा घन्टा के बाद मैं अपने फ्लैट पर पहुंचा। जाते ही मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में घुसा...फ्रेश होने के बाद मैंने अपने लिए एक स्ट्रांग कॉफी बनाई। उसके बाद मैं उस फ़ाइल को खोलकर देखने लगा। जैसे जैसे मैं फ़ाइल को देखता जा रहा था वैसे वैसे विजय की मौत के पीछे कौन हो सकता था...वो चेहरा साफ होता जा रहा था...इस साज़िस की जड़े इतनी गहरी थी कि किसी की कल्पना में भी ये खेल नही आ सकता था। मेरी काफी से ज्यादा स्ट्रांग तो ये खेल था जो उस बंगले में खेला गया था।
लेकिन इस फ़ाइल को पढ़ने के बाद मेरा आज रात को बंगले की तलाशी लेना और भी ज्यादा जरूरी हो गया था..क्योकि रोशनी तो इस खेल में महज एक कठपुतली थी...असली खिलाड़ी तो कोई और ही था।
मैंने कॉफ़ी पीने के बाद अपने लिए रात का खाना भी आर्डर किया...मैं डिनर करने के बाद ही उस बंगले में जाना चाहता था...क्योकि अभी तक जितनी बार भी मैं उस बंगले में गया था..उतनी बार ही मुझे अगले दिन रात तक खाना नसीब नही हुआ था।
**************
कोई रात को ग्यारह बजे मैं खाना खाने और एक कप कॉफी और पीने के बाद रोशनी के बंगले की ओर रवाना हो चुका था। बंगले में इस वक़्त कितने लोगो का जमावड़ा होगा..मुझे उसके बारे में कोई जानकारी नही थी। लेकिन जिस प्रकार का व्यवहार मैंने पिछले दिनों में रोशनी का देखा था...उससे मुझे नही लगता था कि वो रिश्तेदारों को ज्यादा मुंह लगाती होगी। आजकल दिल्ली की सड़कें भी मुंबई की सड़को की तरह रात भर जागती थी...दिल्ली की सड़कों को अब चौबीस घण्टे सकूँ के कोई पल नसीब नही होते थे...इसी वजह से मैं इस वक़्त आधी रात को भी आधा घण्टे में ही अपने घर से रोशनी के बंगले तक पहुंच पाया था। बस एक बात की गनीमत थी..की रोशनी का बंगला जिस रोड पर स्थित था...वो कमला नगर के और एरिया के बनिस्बत कुछ शांत था। मैंने अपनी गाड़ी को बिल्कुल बंगले के पीछे वाले हिस्से में ले जाकर खड़ा किया। ये रोड इस वक़्त सुनसान था...ये रोड यहां से सीधा दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए गया था। मैं गाड़ी को खड़ी करके बाहर आया और अपने आसपास की स्थिति का जायजा लिया। मैं चारो तरफ नजर डालता हुआ बंगले के पीछे बनी हुई सर्विस लाइन में घुस गया। इस वक़्त अगर कोई मुझे वहां देख ले तो सीधा चोर चोर का शोर मचाकर मेरे हवालात में पहुंचाने का इंतजाम कर सकता था...लेकिन आज आपके ख़ादिम के सितारे अभी तक तो बुलंदी पर ही थे...अभी तक कोई विघ्न कोई बाधा उत्पन्न नही हुई थी। मैंने बिल्कुल पीछे पहुंचकर बंगले की दीवार का जायजा लिया। दीवार के बीचो बीच लगे दरवाजे की कुंडी पर पांव रखकर दीवार के ऊपर पहुंचा जा सकता था। मैंने दरवाजे की कुंडी पर पांव रखा और दीवार तक निर्विघ्न पहुंच गया। आपका खाकसार एक पड़ाव पार कर चुका था...दूसरा पड़ाव था उस दस फ़ीट ऊची दीवार से नीचे कूदना...मैंने अंदर की और लटक कर इस दीवार की छह फीट की ऊँचाई को अपनी छह फीट की लंबाई से कवर किया और अब बची हुई महज चार फीट की ऊँचाई को कूद कर खत्म कर दिया। मैं पहले से जानता था कि जिस जगह मैं कूदा था...वहाँ ताजा ताजा मिट्टी बिछाई गई थी। मैं अब बंगले के अंदर मौजूद था। मैंने चारो तरफ निगाह दौड़ाते हुए आगे बढ़ना शुरू किया...मैं बंगले के पिछ्ले हिस्से से ही अपना तलाशी अभियान शुरु करना चाहता था...क्योकि आगे के हिस्से में अभी मय्यत में आये मेहमान हो सकते थे। मैं बंगले की दीवार के साथ लगे हुए पेड़ो के झुरमुट की आड़ में अपना आगे बढ़ने का कार्यक्रम जारी रखे हुए था। तभी मैने सामने वाले बंगले के हिस्से से एक साये को निकल कर पिछली तरफ ही आते हुए देखा। मैं गौर से उस साये को देखने लगा....उस साये की चाल बता रही थी कि वो कोई औरत थी...लेकिन आधी रात के वक़्त इस तरह से दबे पांव पीछे की तरफ जाने का क्या उद्देश्य हो सकता था। मैं पेड़ो की आड़ में ही उस साये पर नजर रखते हुए आगे बढ़ता रहा। उन पेडों के खत्म होते ही वहां पर बने हुए सर्वेंट क्वार्टर की श्रंखला शुरू हो जाती थी.. शायद पहले इस बंगले में नौकरों की भरमार रहा करती होंगी...तभी करीब पांच सर्वेन्ट क्वार्टर का वहाँ निर्माण किया हुआ था।
तभी उस महिला का साया एक क्वार्टर के बाहर खड़ा हुआ...उसने इधर उधर अपनी नजर घुमाई...और फिर फोरन ही उस क्वार्टर में घुस गई। मैं फोरन उस क्वार्टर की तरफ लपका,मगर इस अंदाज में की मेरे कदमो की आहट मुझ तक भी न पहुंचे। मैं अब क्वार्टर के बिल्कुल सामने पहुंच चुका था। मैंने उस क्वार्टर में नजर डाली...उस कमरे में एक मध्यम रोशनी का बल्ब जला हुआ था...जिसकी रोशनी में कल ही ताजी ताजी विधवा हुई रोशनी किसी शख्स से चिपकी हुई थी। मैं हैरान नजरो से उस शख्स को पहचानने की कोशिश कर रहा था...लेकिन मैंने उसे आज से पहले कभी नही देखा था। तभी मेरे कानों में परसो जैसी ही धम्म की आवाज फिर से सुनाई पड़ी। मैं फिर से सोच में डूब गया। आज फिर इस वक़्त बंगले में कौन आ सकता था। अब मुझे दो मोर्चो पर एक साथ काम करना था....मेरी निगाह रोशनी पर थी और कान उन कदमो पर थे। लेकिन रोशनी को इस हाल में देखकर एक ही कहावत इस वक़्त आपके खादिम को याद आ रही थी।
त्रिया चरित्र भी क्या खेल दिखाए
पति मार कर सती कहाये
भाग 14
मेरे कान इस वक़्त लगातार मेरे नजदीक आते जा रहे उन कदमो की ओर ही लगे हुए थे और आँखे अंदर चल रही रोशनी और उस शख्स की प्रेमलीला को देखने में व्यस्त थी...लेकिन मुझे जल्द से जल्द वहां से अपना ठिकाना बदलना था...क्योकि यहां पर मैं उस आने वाले शख्स की निग़ाहों में आये बिना नही रह सकता था। मैं देखना चाहता था की आने वाला शख्स कौन था और इस वक़्त रोशनी और इस शख्स को देखकर उसकी क्या प्रतिक्रिया होने वाली थी। जब मुझे एहसास हुआ कि वो शख्स कभी भी मेरे नजदीक पहुंच सकता है..मैं तुरंत वहां से अगले क्वार्टर की ओर बढ़ गया....हर क्वार्टर के बीच मे एक छोटी सी दीवार दी हुई थी...जो इस वक़्त मेरे लिए छुपने के लिए कारआमद हो रही थी। तभी उस आंगतुक ने उस पहले वाले क्वार्टर के सामने कदम रखा और बिना कुछ सोचे विचारे वो क्वार्टर के अंदर घुस गया। बाहर छाई हुई रात की कालिमा की वजह से मैं अभी उस शख्स का चेहरा देखने मे कामयाब नही हो पाया था। लेकिन अब मुझे छुपना छोड़कर उस क्वार्टर के पास फिर से जाना था...ताकि मैं उन तीन लोगों में से दो लोगो की पहचान कर सकूं और इन तीनो का इस वक़्त आधी रात को इस तरीके से छुप कर मिलने के पीछे का राज जान सकूँ। मैं तुरंत उस दीवार के पीछे से बाहर आया और दबे हुए कदमो से उस क्वार्टर की ओर बढ़ गया। इस वक़्त मेरा एक हाथ मेरी जेब मे पड़ी पिस्टल पर भी जमा हुआ था...क्योकि अगर उन लोगो की मुझ पर नजर पड़ जाती और स्थिति उन के साथ मुकाबला करने की बन जाती तो मैं इस पिस्टल के बलबूते पर उन्हें काबू में कर सकता था।
"विजय की लाश को बाहर लाने की क्या जरूरत थी...बिना वजह पुलिस का झमेला बढ़ गया है न" इस आवाज को मैं पहचानता था...इस आवाज को मैंने अभी शायद कल ही सुना था।
"लाश को बाहर लाना भी जरूरी था..और एक दिन लाश को यहां रखते तो लाश से बदबू आनी शुरू हो जाती...और जैसे उस गंगूबाई को लाश की खबर लग चुकी थी...उसी प्रकार से किसी और को भी खबर लग सकती थी" ये आवाज उस अंजान शख्स की थी।
"वैसे भी लाश का मेरे ड्राइंग रूम से मिलने के कारण कम से कम मैं तो पुलिस के शक के दायरे से निकल गई हूं" रोशनी के स्वर से उसके पति की मौत का गम नही बल्कि उसके बच निकलने की खुशी छलक रही थी।
"वो कैसे" वही सुनी हुई आवाज फिर से सुनाई पड़ी। मैं इस वक़्त सामने से जाकर इन लोगो को देखना नही चाहता था...क्योकि उस वक़्त तो वो आशिक माशूक अपनी प्यार मोहब्बत में मशगूल थे..इस वजह से उन लोगो की मुझ पर नजर नही पड़ी थी...लेकिन इस वक़्त वे तीन लोग थे और उनमे से किसी की भी नजर बाहर की ओर भी घूम सकती थी।
"पता नही पुलिस में तुम क्या तीर चलाते होंगे...जो इतनी साधारण सी बात भी तुम्हारी समझ मे नही आई...ये सिद्ध हो चुका है कि लाश को बाहर से लाकर वहां पर डाला गया है..अब कोई बेवकूफ तो होगा नही जो किसी को खुद ही मार कर खुद के ही घर मे लाश को लाकर डालेगा...बस एक इसी पॉइंट ने मुझे पुलिस के सारे झमेलो से बचा दिया है" रोशनी ने भी वही सोचा...जिसे सोचकर मैंने भी रोशनी को विजय के कत्ल से कलीनचिट दे दी थी।
"बहुत चालाक हो...जितनी खूबसूरत हो...उतना ही तेज दिमाग भी है तुम्हारा" इस बार ये आवाज दूसरी थी....पता नही ये औरत एक ही समय में कितने लोगों के साथ प्यार मोहब्बत का खेल खेलती थी।
"लेकिन यार गंगूबाई...बेमौत मारी गई...कमीनी अपनी ही मालकिन को ब्लैकमेल करनी चली थी...एक ही बार मे करोड़पति बनने का ख्वाब देख डाला था कमीनी ने"ये आवाज रोशनी की थी...इस वक़्त कुछ बाते अपने आप ही मेरे सामने आ रही थी...जिसके बारे में पता चलने की मुझे कम से कम आज की रात तो कोई उम्मीद नही थी। मेरी कमीज के बटन में लगा गुप्त रिकॉर्डर इस वक़्त अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहा था।
"गंगूबाई भी तुम्हारी तरह ही बहुत तेज औरत थी...तनख्वाह तुमसे लेती थी और वफादारी दूसरे लोगो के साथ निभाती थी...इसलिये उस दिन उसे ठिकाने लगाना पड़ा..गंगूबाई और विजय दोनो के ही ऐसे ब्लाइंड मर्डर है कि पुलिस झक मारकर भी हमे नही पकड़ सकती है" ये बोलकर वो अनजान आदमी फिर से हँसा।
"लेकिन आधी रात को यहां अपनी चालाकी के किस्से सुनाने के लिए बुलाया है या कोई और काम की बात भी है करने के लिए" ये मेरी सुनी हुई आवाज थी...और अब ये साफ हो चुका था कि ये राजबीर राठी है,जो कल मेरे सामने इस मामले में दूध का धुला होने की कसमें खा रहा था।
"विजय की वसीयत के बारे में बात करने के लिए बुलाया है तुम्हे यहां पर" ये आवाज रोशनी की थी।
"अभी तेरहवीं तो होने दो विजय की..."उसके बाद ही वसीयत के बारे में बात करेंगे...अभी अगर विजय के सॉलिसिटर को वसीयत के लिए बुलाया तो लोग तुम पर ही उंगलियां उठायेंगे"राठी ने रोशनी को नेक सलाह दी।
"लेकिन मैं यहाँ से निकलकर अब कही दूर जाकर चैन की जिंदगी बसर करना चाहती हूँ...इसलिए सब कुछ बेचकर जल्द से जल्द यहाँ से निकल जाना चाहती हूँ" रोशनी ने उतावालें स्वर में बोला।
"लेकिन वसीयत तो तुम्हारे नाम हो चुकी थी न...उसके बारे में तो तुम पक्की हो न" राठी ने फिर से पूछा।
"हॉं ! साला अपनी वसीयत बदलने के चक्कर मे ही तो मारा गया है....वो तो उस गंजे वकील ने मेरी मदद न कि होती तो ये तो मेरे साथ खेल कर चुका होता...साला सब कुछ अपनी दूसरी रखैल के नाम करना चाहता था" रोशनी ने हिकारत भरे स्वर में कहा।
"लेकिन अब अपना वादा मत भूलना..इस जायदाद के तीन हिस्से करने की बात हुई थी" ये आवाज राठी की थी।
"नही भूलूंगी मेरी जान...मैं तो वैसे भी तुम दोनों की हूँ...तो फिर मेरी दौलत भी तो तुम लोगो की ही होगी न" रोशनी के स्वर से अब मादकता छलकने लगी थी।
"तो चले फिर बेडरूम में" ये अनजान आदमी की आवाज थी।
"बैडरूम खाली होता तो तुम्हे यहां थोड़ी न बुलाती...इस वक़्त हम तीनों बैडरूम में ही होते" रोशनी की आवाज की मादकता हर गुज़रते पल के साथ बढ़ती जा रही थी। तभी मैं दीवार के पीछे से निकल कर उन पलों को अपने खुफिया कैमरे में कैद करने के लिये जैसे ही आगे बढ़ा तभी मेरे पांव से कोई गमला टकरा कर अपनी भारी भरकम आवाज के साथ गिरा। उस आवाज के होते ही अब आपके ख़ादिम ने वहाँ से भागने में ही अपनी भलाई समझी।
"ये आवाज कैसी है" तभी अंदर से राठी की आवाज सुनाई दी। उसकी आवाज कानो में पडते ही मैंने उसी तरफ दौड़ लगा दी..जिस तरफ से मैं आया था...बंगले में इस वक़्त मेरे साथ और भी भागते हुए कदमो की आवाज गूंज रही थी। शायद वो तीनो भी मेरे पीछे ही भाग रहे थे...,लेकिन मेरी सबसे बड़ी गलती थी..उस तरफ भागना...जिस तरफ से मैं आया था...आप दस फ़ीट की दीवार से एक झटके में कूद तो सकते हो...लेकिन एक ही झटके में उस पर चढ़कर पार नही हो सकते थे। दीवार तक पहुंचते पहुंचते राठी और वो तीसरा अनजान बन्दा मेरे सिर पर पहुंच चुके थे। मैंने फंसी हुई निग़ाहों से उन दोनों की ओर देखा।
" तुम लोगो का खेल तो खत्म हो चुका है...बस अब अपने वे पल गिनों...जितनी देर तुम आज़ाद हो...,क्योकि बाकी जिंदगी तो अब तुम लोगों की जेल में गजरने वाली है" मैं उन परिस्थितियों में भी उनकी आंख में आंख डाल कर बात कर रहा था।
"खेल तो तुम्हारा खत्म हो चुका है जासूस महाराज..किसी के बंगले में चोरो की तरह से घुसे हुए तुम पकड़े गए हो...अब रोशनी तुम्हे गोली भी मार दे तो उस पर कोई इल्जाम आयद नही होगा"राठी अपना पुलिसिया ज्ञान मुझ पर झाड़ रहा था।
तब तक रोशनी भी मेरे नजदीक पहुंच चुकी थी।
"राठी मैं और खून खराबा नही चाहती....इससे पूछो की ये अपना मुंह बंद रखने के लिए क्या लेगा"रोशनी अब मुझे खरीदना चाहती थी।
"तुमसे ज्यादा समझदार तो तुम्हारी ये रखैल निकली" मैने तंज भरे स्वर में कहा।
"तुम पैसा बोलो..और फिर फूटो यहां से" इस बार वो अनजान आदमी मुझ से मुखातिब हुआ।
"पैसो की बात ऐसे खड़े खड़े नही होती बरखुरदार....कहीं बैठकर बात कर लेते है" मैं इन लोगो का अब ध्यान बटाना चाहता था.. क्योकि इन लोगो ने मुझे घेर तो लिया ही था...अब या तो इन लोगो को लड़ झगड़कर इन्हें काबू में करके ही यहां से निकला जा सकता था...या फिर मुझे उस मौके को ही भुना लेना चाहिए था...जो कि रोशनी ने मुझे मुहैया करवा दिया था।
"साले तू यहां कोई मेहमान नही आया है जो तुझ से बैठकर बात करेगे" तभी राठी ने मेरी ओर देखकर बोला।
"तुम कौन सा नोटों से भरा हुआ ब्रीफकेस हाथ में लेकर खड़े हो...जो मेरे बोलते ही मेरे मुंह पर फेंक कर मारोगे" मैंने राठी को उसी की टोन में जवाब दिया। राठी ने जवाब देने के लिए मुंह खोला ही था कि तभी रोशनी बोल पड़ी।
"अनुज ठीक बोल रहा है...चलो वापिस वही चलते है" रोशनी ने हम सभी की ओर देखकर बोला।
राठी ने अनिच्छा से रोशनी की ओर देखा...फिर झल्लाते हुए उसने मुझे आगे चलने को कहा। मैंने आगे बढ़ते ही महसूस किया कि मेरी पीठ पर पिस्टल की नाल लग चुकी है। लेकिन मुझे अभी पता था कि ये एक कोशिश मेरे जमीर को खरीदने की जरूर करेंगे....क्योकि जिस इंसान का जमीर ही मर जाए वो इंसान तो वैसे भी मरे हुए इंसान के बराबर ही होता है। इसलिए मैं निश्चित होकर उन लोगो के साथ आगे बढ़ रहा था।
उस क्वार्टर में पहुंचते ही वहां पड़ी एक पुरानी सी कुर्सी पर उन्होंने मुझे बैठने का इशारा किया। मैं बिना किसी हिलहुज्जत के उस कुर्सी पर विराजमान हो गया। वे तीनों लोग अब मुझे घेर कर खड़े थे....आश्चर्यजनक रूप से अभी तक उन लोगो ने मेरी तलाशी नही ली थी...नही तो वो मुझ से मेरा पिस्टल छीनकर मुझे यहां पर लाचार और मजबूर बना सकते थे।
"बोलो ! कितना पैसा चाहिए...अपनी जुबान बन्द रखने का" रोशनी ने प्यार से मेरे बालो को सहलाते हुए पूछा।
"आज तुमने अपनी ही तरह से सबसे सुंदर बात पूछी है...अगर ये बात पहले ही मुझे बोल देती तो न तो तुम्हे विजय को मारने की जरूरत पड़ती और न गंगूबाई को मारने की जररूत पड़ती...सिर्फ एक आदमी को मारने से ही तुम लोगो का काम चल जाता..जो कि विजय की सारी चल अचल संपति की एकमात्र वारिस है" मैं अब तक सोच चुका था कि मुझे क्या करना है।
"क्या मतलब...तुम मुझे ही मारने की बात कर रहे हो...विजय की आखिरी वसीयत तो मेरे नाम से ही है"रोशनी एकदम से दमक कर पड़ी।
"गलतफहमी में जी रही हो मैडम आप...विजय की आखिरी वसीयत की कॉपी मेरे पास है...जिसके मुताबिक विजय की वसीयत किसी और के नाम से है"मैंने रोशनी की ओर कुटिल मुस्कान के साथ देखते हुए बोला।
"क्या बक रहे हो" रोशनी इस बार बदहवास स्वर में बोली।
"बक नही रहा हूँ...बेशक अपने सॉलिसिटर आलोक श्रीवास्तव से पता कर लो कि आखिरी वसीयत किसके नाम से है" मैने जान बूझकर इस वक़्त आलोक श्रीवास्तव का नाम लिया।
"तुम आलोक को कैसे जानते हो"रोशनी ने डूबते हुए स्वर में पूछा।
" उससे आज ही सुबह मुलाकात हुई थी...साला एक नंबर का लालची है...वसीयत दिखाने के बदले में लाख रु की सेंधि लगा दी इस गरीब इंसान को" मैं अभी भी मुस्करा ही रहा था।
"वो वसीयत मुझे दिखाओ" इस बार राठी बीच मे बोला।
"तुम क्या करोगे वसीयत देखकर..तुम तो इस खेल के सबसे बड़े खिलाड़ी हो...तुम्हे तो पहले से ही सब कुछ मालूम होगा" मैंने अचानक से राठी को सवालो के कठघरे में खड़ा करते हुए कहा। मेरे ऐसा बोलते ही रोशनी और उस अंजान आदमी की शक्की निगाहें राठी की ओर उठ चुकी थी।
"क्या बकवास कर रहे हो..रोशनी इसकी बातो पर विश्वास मत करना...ये हम लोगो को ही आपस मे लड़वाने की इसकी कोई चाल है...मैं तो कहता हूँ इसे गोली मार दो"राठी ने एकदम से बौखला कर बोला।
"गोली तो आखिर में इसे मारनी ही है...अगर इसने हमारी बात नही मानी तो...लेकिन पहले इसकी कहानी भी तो सुन लो" रोशनी ने एकदम से ठंडे स्वर में कहा।
"मुझे तुम्हे आपस मे लड़वा कर क्या मिलेगा...मैं तो वही बोल रहा हूँ..जो उस वसीयत को पढ़कर मुझे पता लगा है" मैने रोशनी की ओर देखकर गोलमोल सी बात की।
"उस बन्दे का नाम बताओ..जिसके नाम से विजय ने तुम्हारे कहे अनुसार वसीयत की है"इस बार उस अनजान आदमी की आवाज उस कमरे में गूँजी।
" तुम अभी विजय की किसी रखैल के बारे में बात कर रही थी...तुम जानती हो विजय साहब की वो रखैल कौन है" मैंने रोशनी की ओर देखकर पूछा।
"नही उस चालाक इंसान ने कभी उस औरत की मुझे भनक नहीं लगने दी....लेकिन मुझे विजय की हरकतों से शक जरूर था कि उसका कही बाहर भी अफेयर है" रोशनी अब नारी सुलभ बुद्धि से ही सोच रही थी।
"विजय ने शादी नही की थी...बस वो अपने पैसे के बलबूते पर रखैल रखने का शौकीन था...ये तो तुम भी जानती होगी..क्योकि आखिर तक भी तुम भी उसकी रखैल बनकर ही रही हो...कभी उसने तुम्हारे मांगने के बावजूद तुम्हे बीवी का दर्जा नही दिया" मैने रोशनी से सवाल किया।
"हाँ ये बात तो सही है..उसके पास पैसे के अलावा ऐसी और कोई काबलियत नही थी...की कोई औरत उस पर खुद से मर मिटे...वो हर किसी को सिर्फ पैसे से ही प्रभावित करता था" रोशनी ने कुछ सोचते हुए बोला।
"अच्छा तुमने उस दिन बोला था की विजय ने ही इस राजबीर राठी को तुमसे मिलवाया था....और इसके साथ सम्बन्ध बनाने के लिए बोला था" मैं अब अपने सवालो से सिर्फ रोशनी को घेर रहा था। मेरी बातों को वो अंजान शख्स दिलचस्पी से सुन रहा था...मगर राजबीर राठी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
"हॉं!विजय ने ही राठी से मुझे मिलवाया था" रोशनी ने मेरी ओर देखकर बोला।
"जानती हो क्यो मिलवाया था...क्योकि विजय बाबू इन साहब के उस एहसान का बदला चुकाना चाहते थे..जो राठी ने अपनी एक दोस्त को अपनी बीवी बनाकर विजय से मिलवाया था" मैंने ये बोलकर राठी की ओर देखा। राठी का इस वक़्त बस नही चल रहा था...वरना वो मेरा वही बैठे बैठे गला घोंट देता।
रोशनी और उस अंजान आदमी ने एक साथ राठी को घूरकर देखा।
"इस चालाक पुलिसिये ने तुम दोनों के हाथों विजय और गंगूबाई को मरवा डाला...और खुद पाक साफ बना रहा...मॉडल टाउन में जो लड़की इसके फ्लैट में रह रही है...वो इसकी बीवी नही है...बल्कि उसका इसके साथ वही रिश्ता है जो तुम्हारा विजय के साथ था...अब इन महाशय का प्लान बड़ा जबरदस्त था...तुम दोनों तो जाते तिहाड़ जेल...क्योकि उन दोनों के कातिलों को कभी न कभी तो पकड़ा जाना ही था..फिर विजय की दौलत पर इस गुलफाम ने ऐश उड़ानी थी" मैंने अभी एक बनी बनाई कहानी की खिचड़ी बनाकर परोसी ही थी कि राठी ने मेरी ओर अपनी पिस्टल तान दी थी। तभी मुझे मारने के राठी के अरमानों पर पानी फिर गया...क्योकि एक पिस्टल रोशनी भी अब राठी की पसलियों से सटा चुकी थी। मैं अभी भी मन्द मन्द मुस्कराते हुए राठी की ओर देखे जा रहा था।
" भाग 15
राठी ने पिस्टल लगते ही मुडकर रोशनी की ओर खा जाने वाली नजरो से घूरा।
"तुम्हे भी मुझ पर भरोसा नही है" राठी ने अजीब से स्वर में रोशनी को बोला।
"दौलत के मामले में मैं अपने बाप का भी भरोसा नही करती...जिस दौलत के लालच में अपने जिस्म तक कि तिजारत करवा दी...उस दौलत को पाने के लिए अगर तुम्हे भी ठिकाना लगाने पड़े तो..यकीन मानो गोली चलाते वक्त मेरे हाथ जरा भी नही काँपेगे"रोशनी का ऐसा खतरनाक रूप आज मैंने भी पहली बार ही देखा था।
"उस वक़्त तुम्हारे बंगले में मेहमानों की भरमार है...तुम चाह कर भी गोली नही चला सकती हो जानेमन" ये बोलकर राठी एक खोखली सी हँसी हँसा।
"कोई नही! लेकिन ये जो बन्दा मेरे साथ खड़ा है न...ये अपने चाकू के सिर्फ एक वार से किसी की भी गर्दन रेत सकता है...गंगूबाई की हश्र तो तुमने खुद अपनी आंखों से देखा ही था" रोशनी पर उसकी हँसी का कोई असर नही हुआ था...अलबत्ता राठी की बत्ती गुल हो चुकी थी।
"लेकिन रोशनी इस जासूस की बात की सच्चाई का भी तो पता कर लो...कहीं हम बिना वजह ही राठी को पेल दे" इस बार वो अनजान शख्स अपनी बेशकीमती राय देता हुआ नजर आया।
"उस वसीयत की कॉपी मेरे घर पर है..अभी तुम सभी मेरे साथ चलो...मैं वो वसीयत ही तुम्हे सौप दूंगा" मैने एकदम से उसकी बात पर अपनी श्रद्धा के फूल चढाये।
"घर हम नही जायेगे...बल्कि उस वसियत को तुम्हे अभी इसी वक्त यहाँ मंगवाना होगा"इस बार रोशनी ने मेरी ओर देखकर बोला।
"तुम सब लोग इसके जाल में फँसकर अपने पाँव पर खुद कुल्हाड़ी मार रहे हों...ये आदमी चालाकी से हमे ही एक दूसरे के खिलाफ कर रहा है" राजबीर राठी ने झल्लाये हुए स्वर में कहा।
"अगर मैं झूठ बोल रहा हूँ तो तुम आलोक श्रीवास्तव से पूछ लो...पूछ लो उससे की उसने मुझे वसीयत के जो पेपर आज सुबह दिए है वो किसके नाम से है...सारा दूध का दूध और पानी का पानी अभी हो जाएगा" मैंने तुरंत राठी की बात की हवा निकाली।
"वो लालची आदमी इस बात को बताने के लिये भी लाखों रु मांगेगा...तुम अपने घर से ही उन पेपर को मंगवाओ" रोशनी ने शांत स्वर में बोला।
"लेकिन पेपर लाने के लिए...मुझे अपनी सेक्रेट्री को अपने घर भेजना पड़ेगा...वो पहले अपने घर से पहले मेरे घर जाएगी...फिर वहां से वो वसीयत की फ़ाइल लेगी..उसके बाद वो यहां पहुंच पाएगी...तकरीबन दो घण्टे लगेंगे..इतना इंतजार कर लोगी"मैने हर बात को रोशनी को समझाया।
"क्यो तुम्हारे घर मे कोई नही है क्या"इस बार रोशनी भी दो घण्टे इंतजार की बात सुनकर झल्ला पड़ी।
"अपने न कोई आगे है और न कोई पीछे...सोचो अगर बीवी बच्चे होते तो क्या वे मुझे इतना ख़तरनाक काम करने देते...जिसमे हर वक़्त कोई भी ऐरा गैरा नत्थू खैरा टाइप का इंसान गर्दन पर पिस्टल लगाए खड़ा रहता है" मैंने ये बात घूरती हुई नजरो से राठी की ओर देखते हुए बोली।
"फिर जल्दी करो...जिसको भी बुलाना हो...जल्दी बुलाओ..क्योकि कल का सूरज निकलने से पहले इस बात की सच्चाई का पता चलना ही चाहिए...की ये पुलिसिया क्या सच मे ही हमे डबल क्रॉस कर रहा था"रोशनी ने अभी तक पिस्टल को राठी की पसलियों से हटाया नही था...क्योकि राठी ने भी अभी तक आपके सेवक की गर्दन पर अपनी पिस्टल लगाई हुई थी।
मैंने रोशनी की बात का तुरन्त पालन किया..मैंने अपनी जेब से अपना मोबाइल निकाला और रागिनी का नंबर डायल कर दिया। कोई पांच सात बेल जाने के बाद रागिनी ने फोन उठाया।
"क्या बात है गुरु! आधी रात को तो चैन से सोने दिया करो"रागिनी ने अलसाये से स्वर में बोला।
"जब यहाँ मेरी नींद उड़ी हुई है मेरी जान के पौने चौदहवें हिस्से...फिर तुम कैसे चैन से सो सकती हो" मैंने रागिनी को तुरन्त चेतन करते हुए कहा। इससे पहले की रागिनी कोई और सवाल करती मैंने उसकी बात को शुरू होने से पहले ही अपनी बात शुरू कर दी।
"सुनो तुम्हे अभी मेरे घर जाना है...घर पर मेरी अलमारी की सबसे ऊपर वाली दराज़ में एक फ़ाइल रखी है...जिसके ऊपर काले अक्षरों में बड़ा सा विजय वर्मा लिखा हुआ है...उस फ़ाइल को लेकर जल्दी से कमला नगर पहुंच कर मुझे फोन करो" ये बोलकर मैने तुरन्त फोन को काट दिया। ये सारी बातचीत फोन के स्पीकर को ऑन करके की जा रही थी..ताकि वहाँ मौजूद हर शख्स हमारी बातचीत को सुन सके।
"तुम्हारे फ्लैट की चाबी क्या तुम्हारी सेक्रेटरी पर भी रहती है" इस बार राठी ने शक्की निग़ाहों से मेरी ओर देखते हुए कहा।
"जी हुजूर! जब कभी उस बेचारी को रात को नींद नही आती है तो वो मेरे फ्लैट पर आकर चुपके से मेरे पहलू में सो जाती है...इसी वास्ते एक चाबी उसे भी दे रखी है" मैंने एक फैंसी सी बात खड़े पाँव बनाई।
"बड़ी पहुंची हुई चीज हो"काफी देर के बाद राठी के होठो पर मुस्कान थिरकी।
"आपसे तो कम ही हूँ हुजूर.. यहां रोशनी मैडम...घर पर वे मोहतरमा..और गांव में बीवी....असली जिंदगी के मजे तो आप ही ले रहे हो जहाँपनाह" मैने उसके तंज का जवाब उससे भी बड़े तंज से दिया।
"बातें अच्छी बना लेते हो" इस बार वो अनजान शख्स बोला।
"अब खाना बनाना तो आता नही तो सोचा कि बातें बनाना ही सीख जाऊं...कम से कम बकलोली करके खाने का जुगाड़ तो हो ही जायेगा...है न गोपाल बाबू" मेरे ये बोलते ही उस शख्स के चेहरे का रंग फक से उड़ गया।
"कौंन गोपाल बाबू" मेरी बात का जवाब हकलाते हुए रोशनी ने दिया।
"ये जो आपके साथ खड़े है....गर्दन रेतने के विशेषज्ञ..यही तो है गोपाल बाबू..आपके वर्षो पुराने खोये हुए पति...मैने झूठ तो नही बोला न गोपाल बाबू" मेरा अंधेरे में छोड़ा गया तीर बिल्कुल निशाने पर लगा था।
गोपाल हक्काबक्का सा मेरी ओर ही देखे जा रहा था।
"तुम तो सच मे ही बहुत पहुँची हुई चीज हो अनुज बाबू...इतने दिनों से इस शख्स को मैं नही पहचान पाया और तुमने कुछ ही मिनट में पहचान लिया" इस बार राठी ने एक अजीब सी हँसी हँसते हुए रोशनी की तरफ देखा। इस वक़्त रोशनी बेचैनी से अपने पहलू को बदल रही थी।मैंने अब एक कुटिल दृष्टि रोशनी पर डाली।
"मैडम आपस मे भी इतनी पर्दादारी क्यो" मैंने रोशनी पर गहरी नजर जमाते हुए बोला।
"ये गोपाल नही है...उस तो लापता हुए पांच साल से ऊपर हो चुके है" रोशनी ने मेरी बात का विरोध किया।
"मैंने तो वैसे ही अंदाजा लगाया था...मुझे भी वास्तव में नही पता कि ये कौन है...फिर इनके साथ तुम्हारी ट्यूनिंग देखकर अंदाजा लगाया कि हो सकता है यही गोपाल बाबू हो" मैने एक पल में रोशनी को नाराज करके अगले ही पल उसे मनाने के लिए बोला। क्योकि मैं नही चाहता था कि रागिनी के आने से पहले ये लोग फिर से एकता के सूत्र में बंधकर"हम एक है"के नारे लगाने लग जाये।
"समझदार हो...जल्दी ही सच्चाई का एहसास हो गया तुम्हे" रोशनी शायद राठी के सामने खुद इस बात को नही बढ़ाना चाहती थी।
अच्छा ये तो बताओ कि तुम लोगो ने विजय और गंगूबाई को कैसे मारा था" मैं उन लोगो के मुंह से अब उन्ही लोगो की करतूत उगलवा लेना चाहता था।
"इसके आगे ज्यादा मुंह मत फाड़ना...ये तुम लोगो का सगा बन कर तुम्हारी ही गोभी खोद देगा" तभी राठी रोशनी की तरफ देखकर बोला।
"सब कुछ तो जान ही चुका है...और अब कौन सा ये यहां से वापिस जिंदा जाने वाला है...जहां इतने खून कर चुके वहां एक खून और सही" ये बोलकर रोशनी ने एक कुटिल मुस्कान के साथ मेरी ओर देखा। मैने भी उसकी मुस्कान का जवाब मुस्कान के साथ ही दिया।
"फिर तो जाने बहार..मेरी ये अंतिम इच्छा पूरी कर ही दो...क्योकि इस मामले में मेरा जासूसी दिमाग भी फेल हो चुका है कि वो लाश बाहर से अंदर कैसे आई"मैंने अब एडा बनकर पेड़ा खाने की सोची।
"विजय को गायब करके इसी बंगले में रखने की प्लांनिग इसी पुलिसिये की थी….वो इसी बंगले के स्टोर रूम में हमने बन्द किया हुआ था...उसके बारे में गंगूबाई जान गई थी कि विजय कहीं गायब नही हुआ है बल्कि उसे हम लोगो ने ही बंधक बनाकर स्टोर रूम में रखा हुआ है"रोशनी ने मेरी तरफ देखकर बोला।
"लेकिन विजय को मारने की नौबत कैसे आ गई...उसकी जायदाद ही तो नाम करवानी थी….वो तो जोर जबरदस्ती से भी तुम लोग करवा लेते...बाद में जब सब कुछ तुम्हारे नाम हो जाता और मामला ठंडा पड़ जाता… फिर सब कुछ बेचकर पंक्षी को पिंजरे से आज़ाद कर देते...बेकार में दो दो लोगो को मारकर अपने लिए फांसी का फंदा तैयार कर लिया...अब बताओ तुम्हारी इतनी प्यारी और इस सुराहीदार गर्दन क्या फांसी के फंदे के लिए बनी है...इसे तो हर कोई सुबह से लेकर रात तक और फिर रात से लेकर सुबह तक सिर्फ प्यार,..प्यार और सिर्फ प्यार ही करना चाहेगा" मैंने सिर्फ समय गुजारने के लिए ये बेकार की बकलोली की। मेरी बात सुनकर रोशनी ने गुस्से से राठी की ओर देखा।
"इसी राठी की वजह से विजय मारा गया..नही तो मेरा प्लान तो बिल्कुल वही था जो अभी तुमने बताया" वो कमअक्ल और लालची औरत अचानक से आपके खाकसार की मुरीद हो गई थी।
"तो विजय को क्या राठी ने मारा था...फिर तुम क्यो उसकी सजा भुगतोगी" मैंने अब उन लोगो के बीच मे अलगाववाद के बीज बोने शुरू कर दिए थे।
"इसी ने उसका तकिए से दम घोटा था...गुस्से में आकर..क्योकि विजय ने इसके मुंह पर किसी बात को लेकर थूक दिया था"रोशनी अब परत दर परत खोलती जा रही थी। खोलती भी क्यो नही मैं उनके बीच मे अकेला था...वो तीन थे मैं एक...चाहते तो अभी तक मेरा मार मार कर मोर बना देते...लेकिन मैं इस वक़्त वही रणनीति अपना रहा था जो अंग्रेज हमे दो सौ साल की गुलामी में सिखा कर गए थे...फुट डालो और राज करो।
"फिर उस दिन रात को इन दोनों ने ही ड्राइंग रूम में लाश को लाकर डाला होगा" मैंने फिर से पूछा।
"हाँ ! इसे जानकारी थी कि बंगले के सीसीटीवी कैमरा इस वक़्त काम नही कर रहे है...इसलिए दिन में इंस्पेक्टर राजेश की धमकी के बावजूद ये आधी रात के बाद आ धमका था" रोशनी अब कुछ भी छुपाना नही चाहती थी।
"फिर तो इन महाशय के लिए दरवाजा भी आपने ही खोला होगा"मैने रोशनी की ओर देखकर पूछा। रोशनी मेरी इस बात का जवाब देने के लिये एकबारगी तो जिझकी...लेकिन फिर उसने अगले ही पल अपनी झिझक से खुद ही तौबा कर ली।
"हाँ मैंने ही खोला था" रोशनी ने स्वीकारा।
"लाश को भी तुम दोनो ने ही मिलकर वहां सोफे पर डाली होगी" मुझे यकीन था कि जब इतना कुछ वो स्वीकार कर चुकी थी तो ये बात भी वो तत्काल स्वीकार कर लेगी।
"हाँ… मैं और राजबीर ही उस कमरे से लाश को वहां ले जाकर रखे थे...उसके बाद तुम्हारे सिरहाने से तकिया उठाकर एक बार फिर से उस लाश का मुंह दबाया था,ताकि जांच में उसी तकिये के निशान मिले"रोशनी को इस बात का पूरा आत्मविश्वास था की मैं तो अब यहाँ से जिंदा लौटकर जाने वाला था नही इसलिए वो बिना किसी हिलजुज्जत के अब सब बताती जा रही थी।
"गंगूबाई को मारने की भी कहानी भी लगे हाथ निबटा ही दो...नही तो मरने के बाद भी मेरी आत्मा इसी बंगले में भटकती रहेगी"मैंने नाटकीय अंदाज में बोला।
"गंगूबाई सब कुछ जान ही चुकी थी...लेकिन वो अपनी औकात से ज्यादा अपना मुंह फाड़ रही थी...इसलिए उसका गला रेतने का काम इसने किया था" रोशनी ने उस गला रेतू की तरफ इशारा किया। मैने एक कुटिल मुस्कान उस गला रेतू पर डाली...उनमे से किसी के भी चेहरे पर किसी भी प्रकार के अफसोस के निशान नही थे।
"प्रभु अब तो इस पिस्टल को मेरी गर्दन से हटा लो.. अब तो हम पूरे भाईचारे से बात कर रहे है मेरे भाई" मैने अचानक से राठी की ओर देखकर नाटकीय अंदाज में बोला।
"तुम बहुत चालाक इंसान हो...मैं जानता हूँ ये जो तुम झूठ पर झूठ बोले जा रहे हो..इसके पीछे भी तुम्हारी कोई मंशा है...इसलिए ये पिस्टल तो तुझे गोली मारने के बाद ही अब वापस जेब मे जाएगी" राठी ने मेरी ओर देखकर खूंखार लहजें में बोला।
"अगर इसकी वसीयत की बात झूठी निकली तो इसे मैं ही गोली मार दूंगी...और अगर सच निकली तो...आज की रात तेरी जिंदगी की आखिरी रात होगी राठी" रोशनी ने अच्छे से राठी को धमकाते हुए बोला।
बेचारा राठी!कहाँ तो कुछ देर पहले इस हसीना के साथ अपनी रात रंगीन करने के ख्वाब देख रहा था...और कहाँ अब उसकी जिंदगी उसी हसीना के रहमोकरम पर थी। इसीलिए कहते है कि उस आदमी को ऐसे ख़्वाब कभी नही सजाने चाहिए...जिसकी कुंडली में राहु स्थान में ये अनुज नाम का दसवां ग्रह आकर बैठ गया हो।
तभी मेरा फोन थरथराया...बंगले में घुसने से पहले ही मैने फोन को साइलेंट मोड़ पर कर दिया था अन्यथा मेरे फोन की पुलिस सायरन वाली बेल अभी इनको भागने पर मजबूर कर देती। फोन रागिनी का था।
"पहुंच गई हो कमला नगर" मैंने फोन उठाते ही सिर्फ मतलब की बात पूछी।
"हाँ गुरु!ये बताओ अब आना किधर है"रागिनी ने पूछा।
"लो मैडम से बात करो..मैडम तुम्हे रास्ता समझाएगी" मैने फोन को रोशनी की ओर करते हुए बोला। रोशनी ने अपनी पिस्टल का अच्छे से दबाव राठी की कमर में बनाया और फिर रागिनी को अपने बंगले के रास्ता समझाने लगी। रास्ता बताने के बाद रोशनी ने ही फोन को काट दिया।
"तुम बाहर गेट पर जाओ..वो लड़की पास में ही है पांच मिनट में पहुंच जाएगी...उसे इज्जत के साथ लेकर आओ" रोशनी ने उस शख्स को बोला जिसे आपके ख़ादिम ने गोपाल बोला था।वो शख्स रोशनी का हुक्म बजाने के लिये फोरन बाहर के लिए रवाना हो गया।
इस वक़्त मैं कुर्सी पर बैठा हुआ था...राठी पिस्टल के साथ मेरी गर्दन पर सवार था...और रोशनी मैडम अपनी पिस्टल के साथ राठी की पीठ पर सवार थी। कोई दस मिनट के बाद रागिनी अपने हाथों में एक फ़ाइल लिए हुए दरवाजे पर उपस्थित हो चुकी थी। उसके पीछे वही गर्दन रेतू रागिनी के पीछे पिस्टल लगाए हुए खड़ा था।
"अबे कमीने लड़की को तो पिस्टल दिखा कर मत डरा...ये सुबह होते ही मेरे आफिस से नौकरी छोड़कर भाग जायेगी" मैंने उस गर्दन रेतू को चिल्ला कर बोला...मेरे चिल्लाने से सभी की नजरे दरवाजे की ओर उठ गई।
"सर !क्या है ये सब...आपने अपनी जान बचाने के लिये मुझे इन गुंडों के हवाले कर दिया" तभी रागिनी ने मेरी ओर देखकर गुस्से से बोला।
"ये गुण्डे नही है..तुम्हे कोई गलतफहमी हो गई है...ये तो इस शहर के सबसे इज्जतदार लोग है.. ये मैडम इतने बड़े आदमी की रखैल है और ये साहब तो पुलिस में काफी बड़े ओहदे पर है" अचानक से मेरी बातचीत का अंदाज और सलीका दोनो बदल गया था।
"ये नौटंकी बन्द कर और वसीयत इधर दिखा लड़की"ये बोलकर राठी ने एक झपट्टा मारकर उस फ़ाइल को रागिनी के हाथ से छीन लिया।
"फ़ाइल पहले मुझे दिखा राठी...मैं भी तो देखूँ ! तुमने कौन सा खेल हमारे साथ खेला है"ये बोलकर रोशनी,राठी से फ़ाइल को छीनकर अपने कब्जे में कर चुकी थी। मैं आराम से कुर्सी पर बैठकर उन लोगो का तमाशा देख रहा था...जहाँ लालच की पराकाष्ठा होती है वहां अविश्वास भी अपने चरम पर होता है...इन लोगो के लिए दौलत के लिए सारे रिश्ते नाते बेमानी थे...फिर ये आपस के अवैध रिश्ते क्या मायने रखते थे। इसी अविश्वास का नतीजा था की वो गर्दन रेतू इस वक़्त राठी को अपनी पिस्टल के निशाने पर ले चुका था।
"ये मीनाक्षी कौन है" तभी रोशनी ने फ़ाइल से अपनी निगाह हटाकर राठी की ओर देखकर बोला।
"इसी की रखैल का नाम होगा" मैंने उस आग में एक चम्मच घी का और तर्पण किया।
"उसका नाम तो माया है कमीने..तू सच क्यो नही बोलता की तूने ही ये सारा खेल रचा है" राठी ने अचानक से मुझ पर झपटते हुए कहा।
"ये मीनाक्षी कोई भी हो...सबसे बड़ी बात तो ये है कि ये वसीयत रोशनी के नाम पर नही है" मैंने रोशनी की ओर देखकर बोला।
"लेकिन ये मीनाक्षी है कौन"तभी रोशनी चिल्ला कर पड़ी।
"ये इसी पुलिसिये की रखैल है..यहाँ उसका नकली नाम बताकर...तुम्हे बरगलाने की कोशिश कर रहा हैं" मैंने उससे भी ज्यादा तेज आवाज में चिल्लाकर बोला।
"रोशनी ये हरामजादा झूठ बोल रहा है...एक दम कोरा झूठ...तुम चाहो तो मैं माया को यहाँ बुलाकर दूध का दूध और पानी का पानी कर सकता हूँ"राठी लगभग रिरियातें हुए रोशनी से बोला।
"अगर सच मे तेरी ये माया..मीनाक्षी हुई तो फिर तेरा क्या हाल करूंगी तू ये जानता है न" रोशनी के हाथ मे वसीयत थी..और वो उसके नाम नही थी...बस इतना ही काफी था उसका आपा खो देने के लिए। रागिनी चुपचाप खड़ी होकर इस सारे तमाशे को समझने की कोशिश कर रही थी। राठी इस वक़्त अपने मोबाइल से अपनी रखैल को फोन करके वहां बुला रहा था...और आपका ये खाकसार,...यकीन मानिए आज तक किसी और केस में मुझे इतना मजा नही आया था...जितना इन लालच के मारे कमअक्लो की ये नौटंकी देखने मे मुझे मजा आ रहा था...आज की रात जरूर अंधियारी थी..लेकिन अमावास की काली रात के बाद भी तो सूरज निकलता ही है...लेकिन अभी तो इस अंधियारी रात में माया नाम की चांदनी चमकने के लिए आने वाली थी।दिल थाम कर बैठिए..रात अभीबाकी है..बात अभी बाकी है।
अंतिम भाग
आने वाली मोहतरमा कोई तीस साल के आसपास की औरत थी। उसे समझ नही आ रहा था कि इतनी रात को उसे यहाँ क्यो बुलाया गया है। उसने असमंजस से राजबीर राठी की ओर देखा।
"यहां क्या हो रहा है...और इतनी रात को मुझें यहां क्यो बुलाया है...और ये पिस्टल??"ये बोलकर उन मोहतरमा ने अपनी बात को अधूरी ही छोड़कर राठी की ओर देखा।
"कुछ नही...यहाँ कुछ नही हो रहा है...बस तुम अपना नाम बताओ"रोशनी ने बिल्कुल शांत स्वर में बोला।
"जी मेरा नाम माया है" उन मोहतरमा ने बिना किसी सोच विचार के तुरन्त जवाब दिया।
"अपना असली नाम बताओ...जो तुम्हारे वोटर आई डी कार्ड और राशन कार्ड में है" मैंने उसके बोलते ही उस पर सवाल खड़े कर दिए।
"जी मेरा नाम माया ही है...और यही नाम वोटर कार्ड पर भी है"माया ने मेरी बात का विरोध किया।
" आप साबित कर सकती हो कि आपका नाम माया ही है"मैं इतनी आसानी से उन मोहतरमा का पीछा नही छोड़ने वाला नही था।
"जी मैं इस वक़्त कैसे साबित कर सकती हूँ...मेरे तो सारे डाक्यूमेंट्स भी मेरे पापा के घर मेरठ में रखे हुए है"माया ने फंसे हुए स्वर में कहा।
"रोशनी मैडम इस बात का मतलब समझती है आप...इस बन्दे ने पूरी प्लानिंग के साथ इन मोहतरमा को यहां बुलाया है...मैडम आई भी तो बिना किसी प्रूफ के...अब मेरठ से मैडम के डाक्यूमेंट्स आने में कल शाम हो जाएगी" मैने रोशनी के दिमाग मे बैठ चुके शक के कीड़े को खाद पानी दिया।
"लेकिन मैं क्यो अपनी पहचान स्थापित करूँ आप लोगों के सामने...आप लोग कौन हो...ये सब हो क्या रहा है राज" उसने अपने जहाँपनाह को प्यार से राज बुलाया।
"कुछ नही इस बन्दे ने यहां पर बिना वजह का रायता फैलाया हुआ है...उसी को समेटने की कोशिश में तुम्हे बुलाया गया है" राजबीर राठी ने माया के सामने सफाई पेश की।
"ये रायता नही है राठी साहब...ये वो मीठी खीर है...जिसको विजय के सामने परोस कर उसकी सारी दौलत पर कब्जा करने का डर्टी गेम खेला है...इन्ही माया उर्फ मीनाक्षी देवी से पूछिए रोशनी मैडम ! की इनके विजय बाबू के साथ क्या सम्बन्ध थे...अभी दुध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा" मैंने उस फैले हुए रायते में और नमक घोला।
मेरी इस बात को सुनकर माया मेमसाहब ने तुरन्त राठी की ओर सवालिया निगाहों से देखा।आपका खाकसार भी इस वक़्त उन्ही झील सी आंखों का पीछा कर रहा था..मेरे साथ साथ रोशनी की निगाहें भी उन्ही मोहतरमा की नजरों पर थी।
"बहुत हो चुका जासूस साहब...अब हमें कोई और सफाई नही देनी है"ये बोलकर राठी ने मेरी ओर पिस्टल तानी..तभी वो हुआ जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नही की होगी...रागिनी ने अपनी जगह पर खड़े खड़े ही अपनी पाँव की ठोकर से राठी की पिस्टल को हवा में उछाल कर उसे खुद ही लपक भी लिया...वहां मौजूद चार लोगों में से तीन क़ातिल सिर्फ रागिनी का ये जलवा देखते ही रह गए।
"जब बातचीत इतने प्यार भरे वातावरण में हो रही है तो वहां पर इन खिलौनों का क्या काम है राठी साहब...अगर गुरू झूठ बोल रहे है तो आप अपने तर्क और सबूतों से गुरु को झूठा साबित करो न...ऐसे जुबान बन्द करवाओगे तो देश का लोकतंत्र ख़तरे में पढ़ जाएगा" रागिनी ने बड़े प्यार से उन तीनों हकबकाये लोगो की ओर मुस्करा कर देखते हुए बोला।
"देख लिया इस लड़की को चालाकी से इस आदमी ने यहां क्यो बुलाया है"राठी ने अपनी खीज मिटाते हुए रोशनी से बोला।
"लड़की ठीक ही तो कह रही है.. इस लड़की को बताने क्यो नही देते की ये कब से विजय की रखैल है और तू कब से इसकी भड़वागिरी कर रहा है" रोशनी की बात सुनकर राठी का मन तो जरूर किया होगा कि वो रोशनी के साथ साथ मेरा भी कत्ल कर दे...लेकिन बेचारे की पिस्टल इस वक़्त रागिनी के हाथों में लहरा रही थी।
"हाँ माया मेमसाहब...अब बता भी दो जो आपके इस ख़ादिम ने आपसे पूछा है" मैंने माया से इसरार भरे स्वर में कहा।
"मेरा ऐसा वैसा उनके साथ कोई सम्बन्ध नही था...बस हम आपस मे दोस्त थे" माया की आवाज उसके जवाब का साथ नही दे रही थी।
"माया माय डॉल...मॉडल टाउन की जिस सोसाइटी में आप रहती है..वहां के गेट पर रखे हुए रजिस्टर में विजय साहब की गाड़ी की आमद रोजाना आपके ही फ़्लैट नंबर के साथ दर्ज है...यहां तक कि जिस तारीख को विजय साहब गायब हुए थे,उस तारिख को भी वो गाड़ी आपकी ही सोसाइटी में खड़ी थी..उस दिन के बाद से वो गाड़ी भी विजय साहब के साथ ही वहां से गायब हो गई...ये याराना तो बहुत गहरा मालूम पड़ता है" मैंने माया की ओर देखते हुए बोला। मेरी बात का माया के पास कोई जवाब नही था...क्योकि आपका ख़ादिम इस केस को हाथ मे लेते ही...इन तथ्यों के बारे में जानकारी जुटा चुका था। लेकिन कुछ पत्तो को मैंने तुरुप के पत्तों के रूप में बचा कर रखा हुआ था...अभी और भी बहुत से पत्ते खुलने बाकी थे।
"बोलो मैडम कुछ तो बोलो" मैं जानता था कि माया के पास मेरी इस बात का कोई जवाब नही था।
"चलो माना कि माया के विजय के साथ भी सम्बन्ध थे..लेकिन इसका उस नाम से क्या लेना देना,जो नाम वसीयत में है" राठी ने पॉइंट तो सही उठाया था...लेकिन उसका तोड़ मुझे उसी वक़्त पेश करना था वरना आपके खाकसार की अभी तक कि मेहनत मिट्टी में मिल जानी थी।
"अभी तक ये सिद्ध ही कहाँ हुआ है कि ये मीनाक्षी नही माया ही है...इस बात का तो अभी तक कोई सबूत है ही नही मैडम के पास...या मैडम मेरी इस बात का जवाब दे दे कि विजय साहब के साथ सम्बन्ध बनाने का आधार क्या था...क्या मैडम उनकी पर्सनल्टी पर मर मिटी थी...या इन दोनों ने कोई बचपन मे ही प्यार मोहब्बत की कसमें खाई हुई थी...या फिर एकमात्र विजय की दौलत ही इनके सम्बन्धो का एकमात्र ही आधार था" मैंने ये बोलकर अभी राठी की ओर देखा ही था कि इस बारे राठी के सब्र का बांध टूट गया और वो मेरे ऊपर पागलों की तरह झपट पड़ा...लेकिन आपका खाकसार किसी भी इंसान को अपनी बातो के लपेटे में लेना जानता था तो उसे अपनी लातों के लपेटे में भी जानता था....अगले ही पल उसका सिर सामने वाली दीवार में जाकर टकराया था। सभी का ध्यान एक ही पल में उस पुलिसिये के ऊपर चला गया।
"गुरु कूल.... कूल गुरु ...आप बस प्यार से इन लोगो के असली चेहरे एक दूसरे के सामने लेकर आओ...इन लोगो का जुगराफ़िया बिगाड़ने के लिए मैं हूँ न यहां पर" तभी रागिनी ने मेरे गुस्से को शांत किया।
"हरामजादी तू बता तुमने इस हरामी पुलिसिये के साथ मिलकर क्या गुल खिलाये है...जो वसीयत मेरे नाम से होनी थी वो तेरे नाम से कैसे हो गई...कमीनी पिछले छह साल की सारी प्लानिंग पर तुमने पानी फेर दिया...ऐसी क्या पट्टी पढ़ाई तुमने उस विजय नाम के ठरकी को की सारी जायदाद तेरे नाम कर गया" रोशनी ने अब अपने हाथ की पिस्टल को माया के ऊपर तान दिया था। राठी का पिस्टल अभी भी रागिनी के हाथ मे ही था।
"अरे मेरे नाम से अगर वो कुछ करता तो मुझे बताता तो सही...लेकिन मेरा नाम ही मीनाक्षी नही है तो मैं कैसे बोलूं की मेरे नाम से सारी जायदाद हो गई है" इस बार माया भी झल्ला कर पड़ी थी।
"फिर विजय की ये तीसरी रखैल कौन पैदा हो गई" रोशनी ने इस बार लीक से हटकर सोचा।
"मेरी अभी तक कि जांच में तो सिर्फ तुम दो ही औरत हो जो उसके लिए दिलजोई का सामान थी....कोई तीसरी औरत तो मुझे इस केस में अभी तक नजर नही आई" मैं रोशनी को अभी कुछ और सोचने का मौका देना नही चाहता था।
"जब इस वसीयत में तीसरी औरत का जिक्र है तो कहीं न कही तो ये औरत होगी ही" इस बार रोशनी का दूसरा यार बोला।
"इसका मतलब आपने इस माया उर्फ मीनाक्षी को क्लीन चिट दे दी है....की ये मीनाक्षी नही है...अगर इस पर भरोसा है तो इन माया मेमसाहब को वापस भेज देते है" मैंने बात को और उलझाते हुए कहा।
"नही ! अब यहां से कोई कहीं नही जाएगा...अब कोई भी यहां से सिर्फ मुर्दा ही बाहर जा सकता है"रोशनी ने अपने ख़तरनाक इरादों से परिचय करवा दिया था।
"माया मेमसाहब अब तो आप वो पासपोर्ट दिखा ही दो जो तुमने ये जायदाद हाथ मे आते ही इस देश को छोड़ने के लिए बनवाया था" मैंने मासुमियत से देखते हुए माया से बोला।
"मुझे तो सबसे बड़े हरामी तुम ही यहाँ लग रहे हो...,जो बात बात पर झूठ बोलकर रोशनी को हमारे खिलाफ भड़का रहे हो"इस बार माया ने भी राठी वाली ही भाषा बोली।
"देख लो रोशनी माय लव...अब तो इन दोनों की भाषा भी एक ही हो चुकी है....ये ही इन लोगों की मिलीभगत का सबसे बड़ा सबूत है" मैंने अपनी बात को पुरजोर तरीक़े से रोशनी के सामने अपनी बात को रखा।
"मैं इस क्लेश की जड़ को ही खत्म कर दूंगी...फिर देखती हूँ ये दौलत किसके नाम होती है" रोशनी ने बौखला कर पिस्टल को माया के ऊपर तान दिया।
"ऐसी गलती मत करना...पहले वो वसीयत के कागज तो इस माया उर्फ मीनाक्षी से अपने नाम करवा लो...उसके बाद ही इसे मारने का फायदा होगा" मैंने रोशनी को एक और खून करने से रोकते हुए कहा।
"फिर मैं क्या ऐसे ही छह साल की अपनी मेहनत को मिट्टी में मिल जाने दूं" रोशनी ने मेरी ओर देखकर बोला।
"छह साल लंबी प्लानिंग...ऐसा क्या किया तुमने इन छह सालो में" मैं रोशनी के मुंह से ही इसके पाप उगलवाना चाहता था...इस वक़्त वहां पर इस हमाम में सभी नंगे थे..इसलिए कोई भी अपना भेद उजागर करने में हिचक नही रहा था।
"मैंने और मेरे पति ने इस विजय नाम के बकरे को फांसने के लिए बहुत पापड़ बेले है...साला औरतो का रसिया जरूर था लेकिन गले मे घँटी बांधना इस हरामी को पसंद नही था..इसके सामने मैं पूरी पतिव्रता होने का स्वांग भरती थी...ये मेरे घर पर जब भी आकर रहता था...अपनी ललचाई नजरें मुझ पर से हटा ही नही पाता था...फिर इसने मेरे लिए महंगे महँगे गिफ्ट लाने शुरू किए...लेकिन मैं इतने दिनों में विजय की रग रग से वाकिफ हो चुकी थी ....इसलिए मैं जरा सी ढील देती और फिर डोर को खींच लेती...मेरे साथ सोने की इसकी इच्छा तभी पूरी हुई जब मैं इसके साथ दिल्ली आकर रहने लगी" रोशनी ये बोलकर रुकी...माया और रागिनी गौर से रोशनी की बातों को सुन रही थी....माया का तो खैर खुद का चाल चलन रोशनी सरीखा ही था...लेकिन मुझे अपनी रागिनी की चिंता सताने लगी...इस बेचारी पर ये सब सुनकर क्या प्रभाव पड़ेगा...फिर मैं अपनी बेवकूफी भरी सोच पर खुद ही मुस्करा दिया...मैं भी कहाँ रागिनी की तुलना इन दोनों से कर रहा था...लेकिन तभी रोशनी की आवाज ने मुझे मेरी सोच से बाहर निकाला।
"लेकिन दिल्ली मैं इसी सूरत में आ सकती थी जब मेरा पति मेरे साथ न होता...विजय से अब मेरी दूरी बर्दास्त नही हो रही थी...वो मुझे कई बार गोपाल से पीछा छुड़ाने के लिये बोल चुका था...वो मुझे वही पुणे में ही अलग से फ्लैट दिलाकर मेरा पूरा खर्चा उठाने के लिए तैयार बैठा था....लेकिन एक फ्लैट ही मेरी मंजिल नही थी...मुझे पता था कि विजय करोड़ो की आसामी है...कम से कम सौ डेढ़ सौ करोड़ से कम तो क्या होगी" ये बोलकर वो लालची छिनाल फिर से रुकी।
"इससे भी ज्यादा है...वसीयत पढ़ोगी तो जान जाओगी की राठी की गद्दारी की वजह से तुमने क्या खो दिया है" मैं अपनी बातों से अब रोशनी को एक हारा हुआ जुआरी सिद्ध करना चाहता था। लेकिन मेरी बात सुनते ही राठी की आंखों में खून उतर आया था.. अगर सच मे इस वक़्त उसके हाथ मे पिस्टल होती तो वो मुझे गोली मार चुका होता।
"कोई बात नही अगर मेरे हाथ कुछ नही लगा तो इनमें से किसी के भी हाथ कुछ नही लगने वाला" रोशनी बार बार अपने मंसूबो का परिचय दे रही थी।
"फिर तुमने अपने पति से अपना पीछा कैसे छुड़ाया...जिससे कि तुम दिल्ली आ सकी" मैने फिर से रोशनी की गाड़ी को पुरानी पटरी पर लाना चाहा।
"सारी प्लानिंग तो गोपाल की ही थी...वो उस बीस तीस हजार की नौकरी से तंग आ चुका था..ऊपर से शराब और जुए का शौक...इसी वजह से घर बस किसी तरह से चल ही रहा था....मेरे सारे सपने मर चुके थे...मैंने सुना था औरत चाहे तो क्या नही कर सकती और क्या नही कमा सकती....बस उसे अपनी शर्मोहया को त्यागना होता है...उसके बाद हर बड़े से बड़ा आदमी और दौलत उसके कदमो की चूमती है...मै अपनी उस फाकाकसी वाली जिंदगी से तंग आ चुकी थी...और तंग तो मेरा पति गोपाल भी था...उन्ही दिनों गोपाल की कंपनी में एक कार एक्सीडेंट हुआ....जिसमे सवार दो लोग मारे गये थे...उसी एक्सीडेंट की आड़ में गोपाल गायब हो गया...उस एक्सीडेंट में एक गोपालकृष्णन नाम का आदमी मारा गया था...लेकिन हमने ये बात फैलाई की गोपाल उस एक्सीडेंट में उन पहाड़ियों में लापता हो गया...अगर हम बोलते की मर गया तो लोग उसकी लाश को लेकर सवाल जवाब करते..इसलिए गोपाल ने पूना ही छोड़ दिया और मैंने विजय को यही बताया कि गोपाल उस एक्सीडेंट में या तो मारा गया...या फिर वो किसी खाई में गिर गया है...जिसका अब पता नहीं चल रहा है" रोशनी फिर से चुप हुई.....शायद बोलते बोलते उसका गला सूख गया था।
"उस घटना के कितने दिन बाद तुम विजय के साथ दिल्ली आई" मैं बारीक से बारीक जानकारी उसके मुंह से उगलवा लेना चाहता था....मेरा गुप्त कैमरा इस वक़्त अपनी डयूटी को मुस्तैदी के साथ निभा रहा था..इसलिए मैं इस वक़्त किसी एक्शन के पक्ष में नही था...एक बार इन सभी लोगो के पापकर्म मेरे कैमरे में रिकॉर्ड हो जाते...उसके बाद मैं खुद ही इंस्पेक्टर राजेश को वहां पर बुलाने वाला था। तभी रोशनी फिर से बोलना शुरू हुई।
"उसके बाद सात आठ महीने तक मैं विजय के साथ ही गोपाल को वही पूना में ढूंढने का नाटक करती रही...लेकिन वो कोई मिलने के लिए थोड़ी ही गायब हुए था...गोपाल के न मिलने में ही विजय को भी अपनी इच्छा पूरी करने का मौका मिल सकता था...इसलिए विजय भी खुद नही चाहता था कि गोपाल मिले...इसलिए एक दिन उसने मुझें खुद ही अपने साथ दिल्ली में अपने घर मे रहने के लिए बोला...थोड़ी सी न नुकर के बाद मैं मान गई....आखिर दिल्ली में विजय के बंगले में काबिज होने के लिए ही तो ये सारा नाटक रचा गया था...विजय ने दिल्ली आने से पहले ही मुझ से दिल्ली पहुंच कर शादी करने का वादा किया था...लेकिन यहां आने के कुछ ही महीनों के बाद वो अपने वादे से मुकर गया...उसने बहाना बनाया की मेरा पहला पति हो सकता है अभी तक जिंदा हो..इसलिए हमारी शादी ग़ैरकानूनी ही मानी जायेगी...उसने बोला कि वो मुझे एक बीवी के सारे अधिकार देगा.. उसने दिखाने के लिए एक वसीयत भी मेरे नाम से की...जिसमे उसने अपना सब कुछ मेरे नाम से कर दिया था...लेकिन वो एक शानपत्ति इस पूरे मामले में कर गया...उसने उस वसीयत में लिखवाया की अगर इस वसीयत के करने के पांच साल के अंदर उसकी मौत किसी भी संदेहास्पद तरीके से होती है तो उसकी पूरी वसीयत उसके भाई की लड़की के नाम से.....ये बोलते ही रोशनी एकदम से बोलते बोलते रुक गई....
"मीनाक्षी" ये नाम तो उसके भाई की लड़की का है...ओहह गॉड...वो हरामी इतनी बड़ी गेम मेरे साथ कर गया" ये बोलकर रोशनी अपने सिर पर अपने दोनों हाथ रखकर वही बैठ गई।
"धोखा तो हरामजादी...तुमने मेरे साथ किया है...मुझे आज सुबह तक तू यही मुझे बोलती रही कि वसीयत तेरे नाम से है...तू मेरा सारा पैसा हड़प कर गई..ये बोलकर की विजय के मरते ही मुझे मेरे पैसा चार गुना लौटाएगी" ये बोलकर राठी में पता नही कहाँ से इतनी जान आई कि वो सीधा रोशनी पर झपटा और उसका गला दबाने लगा...तभी उस अनजान शख्स ने अपनी पिस्टल को राठी पर ताना और बिना कुछ आगा पीछा सोचे हुए एक साथ दो फायर राठी के जिस्म में ठोक दिए..तभी माया ने रागिनी के हाथ पर झपट्टा मारकर उसके हाथ मे थमी राठी की पिस्टल को हथियाया और उसने उस शख्स के ऊपर लगातार गोलियों की बरसात कर दी...उस शख्स के गिरते ही रोशनी की चीख उस पूरे बंगले में गूंज उठी।
"गोपाल" रोशनी के मुंह से उस शख्स के लिये गोपाल का नाम निकलते ही सारा माजरा साफ हों चुका था। तभी वो कमरा फिर से गोलियों की आवाज से गूंज उठा...इस बार रोशनी की पिस्टल का माया शिकार हो चुकी थी। गोलिया लगते ही माया भी राठी के मुर्दा जिस्म पर भरभरा कर गिरी थी। तभी बंगले में असंख्य दौड़ते कदमो की आवाज उस कमरे की तरफ आने लगी। उस भीड़ में सबसे आगे अरुण और उसकी बीवी खड़े होकर उस पूरे नजारे को कोतुहल से देख रहे थे। सभी की निगाहें इस वक़्त रोशनी की ओर टिकी हुई थी। इस वक़्त उसने वो पिस्टल अपनी कनपटी से लगाई हुई थी।
"मुझे माफ़ कर देना अरुण...विजय को मैंने ही उसकी दौलत के लालच में मारा था"ये बोलकर रोशनी ने उस पिस्टल के ट्रिगर को दबा दिया। दौलत और हवस की मारी एक और नारी इस वक़्त मिट्टी में मिल चुकी थी।
मैंने उनमें से किसी को भी बचाने की कोशिश नही की थी... कुछ इंसाफ ऊपर वाले के हाथ मे भी छोड़ देने चाहिए...मैं इस वक़्त इंस्पेक्टर राजेश को फोन मिलाने में व्यस्त हो गया।उसके बाद खबरी को भी फोन करके पूना से उसे वापस आने के लिए बोलना था।
उस अंधियारी रात का सवेरा इतना खून से सराबोर होगा इसकी कल्पना तो आपके इस ख़ादिम ने भी नही की थी...लेकिन इंसान का लालच जो न कराए वो थोड़ा है। जिस दौलत के लालच में जिन लोगों ने इतनी बड़ी खूनी साज़िस रचकर विजय और गंगूबाई के खून से अपने हाथ रंगे थे उनके आज खुद के खून से लथपथ हाथ खाली ही जमीन पर पड़े थे
समाप्त
Sarya
07-Dec-2021 07:56 PM
Thoda bada hain par achha laga padh ke
Reply
Arman
26-Nov-2021 11:00 PM
Very nice
Reply
Ramsewak gupta
10-Oct-2021 04:28 PM
बहुत खूब लिखा है आपने शुक्रिया
Reply