Vikas Nagoki

Add To collaction

दम तोड़ती इंसानियत

Tital - दम तोड़ती इन्सानियत 

Poem :: 

दम तोड़ रही थी जिंदगी,
किनारे पर लोग खड़े थे।
न पूछा किसी ने क्या हुआ उस बेजान को, 
बस हाथों में लिए फोन खड़े थे ।
दम तोड़ रही थी जिंदगी 
किनारे पर लोग खड़े थे ..........

खून से लथपथ वो कराह रही थी, 
लोग देख मौत का मंजर मुस्कुरा रहे थे।
मर रही थी इंसानियत,     
देखो फिर भी लोग बेबस-मौन खड़े थे।
दम तोड़ रही थी जिंदगी,
किनारे पर लोग खड़े थे.......


एक बूढ़ा उसके पास गया 
उठा कर उसे हॉस्पिटल ले गया,
दाखिल करवा उसे 
वो अपनी इंसानियत निभा रहा था ।
फिर भी देखो लोग उसे 
पागल बता रहे थे ,
अपना थोड़ी मर रहा है 
ये कहकर सब वीडियो बना रहे थे ।
दम तोड़ रही थी जिंदगी
किनारे पर लोग खड़े थे.......

ये दुनिया देखो कितनी  आगे बड़ रही है,
फिर भी देखो कैसे इंसानियत  सरे आम मर रही है ।
छोड़ फोन 'विकास' बचा ले इन्सानियत ,
देख वीडियो सब कमेंट बॉक्स में चिला थे ।
सच तो ये है की ये हादसा देख सब मजे ले रहे थे.... 

दम तोड़ रही थी जिंदगी,
किनारे पर लोग खड़े थे ।
न पूछा किसी ने क्या हुआ उस बेजान को ,
बस हाथों में लिए फोन खड़े थे............


✍️✍️ विकास नागोकी 
सिरसा (हरियाणा)।

#प्रतियोगिता 

   20
8 Comments

Rahman

19-Jul-2022 09:22 AM

Mst

Reply

Seema Priyadarshini sahay

18-Jul-2022 04:04 PM

बहुत खूबसूरत

Reply

Chetna swrnkar

18-Jul-2022 12:27 PM

Bahot badiya

Reply