कविता
आज उन आंखों में एक दर्द सा देखा ...
उनके माथे पर आये उस बल पड़ते चेहरे को देखा...
सारी उम्र अपने बच्चों को बड़ा करने में गुजार दी ...
आज वही बच्चे बड़े होकर मां - बाप की चेहरे पर शिकन ले आते हैं...
आज भी अपनी जरूरतों के लिए अपने बड़ों को सताते हैं...
क्या करें वो बुजुर्ग , जो अब अकेला हैं...
साथी के जाने का दुःख लिए जी रहा है...
वहां बच्चे अपने बड़ों को पैसों के लिए और रूला देते हैं...
अपनी नाकामयाबी का रोना , उनके सामने रोते हैं...
कुछ ना होते हुए भी , एक मां अपने गहने उतार देती हैं...
आज भी वो अपने बच्चे को रोता हुआ चेहरा कहां देख पाती हैं
Milind salve
21-Jul-2022 12:36 AM
बहुत खूब
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Seema Priyadarshini sahay
20-Jul-2022 06:11 PM
बेहतरीन रचना
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Gunjan Kamal
20-Jul-2022 09:57 AM
शानदार
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