Rajeev Rawat

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कविता-21-Jul-2022

बरसात - दो शब्द 
             राजीव रावत 

रिमझिम रिमझिम
 बूंदे सावन की तन को मेरे भिंगो गयी-
 पर न जाने कैसी दिल में 
 पिया मिलन की आग सी चुपके चुपके लगा गयीं-
 हरे भरे हो गये पात पेड़ के, फूल गयीं सब कलियां - 
 झूलें में बैचेन देख कर मारे ताने सहेलियाँ - 
 वह कैसे कह दे याद आ रहे पिया के बाहों के झूले-
 कैसे है ये दिल के बंधन के आगे हर नाते हम भूले-
 उनके कांधे, उनकी बाहें उनका चौड़ा सीना--
 आंखों में उनकी यादों का रिमझिम करता सावन का यह  महीना - 
 बाहर की रिमझिम सब देखें
 पर अंदर भींगे दिल-
 प्यार की छतरी लेकर आ पिया अब मिल-
 तुम आ जाओ साजन मेरे
 अब कटती नहीं यह रिमझिम बरसातें-
 तकिया, चादर और रजाई अब तो मेरे साथ करवटें बदल कर
 करते तेरी बातें-
 ओ रे बदरा
 जाकर तू पिया को मेरे अहसासों की प्यार भरी
 रिमझिम बूंदों में ऐसा आज भिगोना-
 करके मेरी तरह  दिल के हाथों हो मजबूर और मेरी तरह तरसाना-
 काश! यह यादों की वारिश वहां भी आग लगाये-
 छोड़ नौकरिया के बहाने आकर मुझको गले लगाये-
                                       राजीव रावत 
          (प्रतियोगिता के लिए) 
 
 

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11 Comments

Rahman

24-Jul-2022 11:07 PM

Mst

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Saba Rahman

24-Jul-2022 11:39 AM

Osm

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Reyaan

21-Jul-2022 11:57 PM

बहुत खूब

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