Saurabh Patel

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लेखनी प्रतियोगिता -21-Jul-2022 मुहब्बत के मजहबी मसले


मेरी बातो को तुम नहीं समझोगी तो और कौन समझेगा
फिर मैं बोलता रह जाऊंगा और ज़माना मुझे मौन समझेगा

कभी फुर्सत में मेरे ख्यालों में आकर तो देख
तेरा दिल ख़ुद को दो चार साल और जवान समझेगा 

मेरा और उसका रिश्ता फसा है मजहबों के बिच
इश्क़ तो नादान है,भला ये कहा से हिंदू मुसलमान समझेगा

ये मुहब्बत के मसले है मुहब्बत से ही सुलझेंगे
उम्मीद है कि एक दिन ये बात मेरा और उसका खानदान समझेगा

"सौरभ" तेरा ये इश्क़ एक गुनाह है ज़माने की निगाह में
मगर ये अनपढ़ दिल कहा से ज़माने का तुगलकी फ़रमान समझेगा।

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18 Comments

Khan

25-Jul-2022 09:56 PM

Nice

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Saurabh Patel

25-Jul-2022 10:27 PM

Thanks

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Saba Rahman

24-Jul-2022 11:26 AM

Nice

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Saurabh Patel

24-Jul-2022 02:02 PM

Thanks

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Rahman

23-Jul-2022 08:26 PM

Osm

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Saurabh Patel

23-Jul-2022 09:09 PM

Thanks

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