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पीछे छूटते शहर लेखनी प्रतियोगिता -24-Jul-2022

मनोज को अपना गाँव छोड़कर शहर में बसे बहुत समय बीत गया था जब उसने अपना गाँव छोड़कर शहर में मकान खरीदा था तब वह बहुत खुश था क्यौकि उस समय गाँव मे रहना कोई भी पसन्द नही करता था।


      उस समय जो भी गाँव में रह रहा था उसकी मजबूरी थी जैसे वह अपनी जमीन छोड़कर कैसे जासकता है जमीन ही उसकी जीविका का साधध होता था। परन्तु जिसकी नौकरी शहर में हो और वह गाँव में कैसे रह सकता था।

    यही मनोज के साथ हुआ था उसकी नौकरी शहर के एक स्कूल में थी  अतः वह अपना मकान बेचकर शहर चला गया था। उसका गाँव में रहकर ही  अपनी खेती सम्भालता था। मनोज के पिताजी ने उसके शहर में शिफ्ट हौने का बहुत विरोध किया था परन्तु मनोज व उसकी पत्नी कं तो शहर मेः रहने का भूत सवार था।

      उस समय उनके गाँव मे बिजली व सड़क नही थी जिससे विकास नही हो पारहा था। और गाँव मे केवल पाँचवी तक का स्कूल था । जिससे आगे पढ़ने के लिए शहर जाना पड़ता था। जिस शहर में स्कूल था वह उनके गाँव से दस किलो मीटर दूर था। 

       इसी लिए बहुत कम बच्चे आगे की पढा़ई चालू रखपाते थे। उस सम मनोज को अपना शहर में बसना एक अच्छा निर्णय लग रहा था। 

              परन्तु जब करौना जैसी भयंकर बीमारी का प्रकोप  आया तब शहर में  सामान आना बहुत कम होगया। और जो मिलता था उसका भाव मन मनमानी बसूला जारहा था।

          दूसरी। बात शहर में इस बघमारी का प्रकोप ज्यादा हो रहा था। इसके विपरीत गाँव के लोग सुखी जीवन जी रहे थे।  दवा व इलाज की कमी के कारण बहुत लोग मर रहे थे बस ट्रैन व हवाई सफर सभी बन्द थे। शहर के लोगौ को दूध व सब्जी की कमी से गुजरना पड़ रहा था

      जबकि गाँव मे न बीमारी थी और न किसी सामान की कमी थी। गाँव के लोग करौना की बीमारी के समय सुखी थे।  अब मनोज को अपने गाँव की याद आने लगी। अब उसका मन शहर से गाँव की तरफ जाने का कर रहा था।

      अब शहर के लोग गाँव की तरफ भाग रहे थे। गाँव का वातावरण शुद्ध व प्रदूषणरहित था बैसे भी शहरौ मे इतना प्रदूषण होचुका है कि वहाँ साँस लेना भी मुश्किल हो गया है।

     शहर मे चलने वाले बाहन इतना प्रदूषण बढा़रहे है कि जिसको साँस की बीमारी है वह और अधिक परेशान हो रहा है और अब शहर मे खाने पीने की बस्तुऔ मे मिलावट इतनी की जारही है  कि उनको खाने से कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी बढ़ रही है।

     अब लोग शहर से गाँव का जीवन सुरक्षित महसूस कर रहे है। शहरौ की जिन्दिगी सिमट रही है। अब करौना जैसी भयंकर बीमारी ने तो लोगौ में जागृति लाने का काम किया है। अब गाँव में वह सभी सुबिधाए उपलब्ध है जो शहर में  मिलती है। अब सभी गाँवौ में बिजली व सड़कै बन गयी है।

         अब शहर पीछे छूटते जारहे है   गाँव विकास की ओर बढ़ रहे है। 

दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी "
 24/07/202

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12 Comments

Abhinav ji

25-Jul-2022 07:43 AM

Very nice👍

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Kusam Sharma

25-Jul-2022 07:27 AM

Nice

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Mohammed urooj khan

24-Jul-2022 09:33 PM

बहुत सुन्दर 👌👌👌

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