मुसाफ़िर
परदेश में ज़रूरतें जब लेकर जाती हैं
मिट्टी घर की पांवों के साथ आती है
चमक धमक ने शहर की रिझाया दिल
खुशबू गांव की मगर रूह को सताती है
ये रेलगाड़ी जो मुझे लेकर आई थी यहाँ
जब जब गुजरती है पहरों बतियाती है
माँ ने दिल पे रखकर हाथ सर पे रखा था
घर से निकलने की वो तस्वीर रूलाती है
दुआएं भी है मेरी झोली में ख़्वाबों के संग संग
माँ की डांट जब याद आये आंखें मुस्कुराती है
अज़्म भी कामिल हो मकसद भी मुक़ाबिल हो
राह की गर्द भी बदन राही का फिर सहलाती है
कहते है कि तरक़्की अक्सर हिज़रत करवाती है
करवाती है गाँव से हिज़रत ये तरक़्की अक्सर
तु दर बदर है "राही" दुनिया मुसाफ़िर बताती है
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surya
27-Jul-2022 08:58 AM
Bahut sundar rachna
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Reena yadav
27-Jul-2022 05:47 AM
👍👍
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Saba Rahman
26-Jul-2022 11:47 PM
Osm
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