shweta soni

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मन

मन चंचल , मन है गतिवान ।

ये शांत कहां रहता है ‌, दिन भर कुछ ना कुछ इस मन में चलता ही रहता है ।‌‌

किसी के सपने हैं इस मन में , तो कोई बसा हुआ चित में ।
किसी को आगे लाने का स्वप्न मन में , तो किसी को नीचे गिराने की चाह उस मन में । 


कभी तू मासूम बच्चे सा निष्कपट बन जाता , तो कभी अपनी चालाकियों से शकुनि को भी पछाड़ता । 
ऐ मन तू शांत कहां रहता है , हमेशा तू बिना रूके चलता ही रहता है। 

इस मन को कितना समझायें , ये सुनता कहां है किसी की ।‌
मन तो मन है , अपने मन की सुनता और करता भी मन की है।

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14 Comments

Sushil Kumar Pandey

28-Jul-2022 08:53 AM

Ati sundar

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Aniya Rahman

27-Jul-2022 10:31 PM

Nyc

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नंदिता राय

27-Jul-2022 07:42 PM

बहुत खूब

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