kanchan singla

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पतझड़

पतझड़ आता है
मौसम को बदलने को
पुराने पत्ते झड़ने को
नए पत्ते उगने को ।।

एक एक पत्ता ऐसे झड़ता है
जैसे दिन दुख के ढल गए हों
और सुख ने जीवन में प्रवेश किया हो ।।

हर झड़ते पत्ते की अपनी कहानी है
एक छोटा सा पत्ता
कपोलों से फूट कर अंकुरित हुआ
धीरे धीरे बड़ा होकर फैल गया
एक दिन आया बुढ़ापे का
फिर वो पत्ता पीला हुआ और
शाखा से टूटकर 
जमीन पर बिखर गया
मानव जीवन भी कुछ ऐसा है
पहले हम बच्चे होते हैं
फिर जवान और
अंत में बुढ़ापा आ घेरता है
बुढ़ापा बिल्कुल उस पीले पड़े पत्ते की तरह होता है
जिसे झड़ने के लिए पतझड़ का इंतजार होता है
पेड़ पर पड़ा पीला पत्ता उसके बुढ़ापे का सबूत होता है
जैसे एक बूढ़ा मनुष्य एक दिन मृत्यु को पा लेता है
वैसे ही वो पीला पत्ता
पेड़ की शाखा से टूटकर 
अपने जीवन की अंतिम प्रक्रिया को पूरा करता है 
यही उसका अंतिम दिन था
यही पतझड़ का मौसम था।।

पतझड़ पुराने का अंत करने
और नए जीवन के संचार का मौसम है।

# कॉपीराइट_लेखिका - कंचन सिंगला©®
लेखनी प्रतियोगिता -28-Jul-2022




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9 Comments

Rahman

30-Jul-2022 10:36 PM

Nyc

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Khan

29-Jul-2022 11:22 PM

😊😊😊

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Seema Priyadarshini sahay

29-Jul-2022 05:12 PM

Nice 👍

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