पतझड़



कविता -

पतझड़ में
गिरते पत्तों के साथ ही
झरता रहा हमारे बीच प्रेम ,

तुम !
उस शहर में अजनबी होते रहे
और हम इस शहर में ,

नही जानता मैं ,
हमारे प्रेम का पतझड़
कब परिवर्तित होगा बसंत में ।।

                  --- -- - बलजीत गढ़वाल 'भारती '

   17
7 Comments

Khan

29-Jul-2022 11:23 PM

Nice

Reply

Tariq Azeem Tanha

29-Jul-2022 08:34 PM

शानदार प्रस्तुति

Reply

Niharika

29-Jul-2022 07:56 PM

Nice

Reply