kanchan singla

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गुमनाम

गुमनाम से शहर में
गुमनामी सा जीवन जीते हैं
हर रोज कमाते हैं
हर रोज उड़ाते हैं।।

बिन पहचान लिए घुमा करते हैं
गुमनाम के इलाके में
गुमनामी सा जीवन जीते हैं
हर रोज मिट्टी में मिलते हैं
हर रोज मिट्टी से पनपते हैं।।

उसके जाने का 
ना कोई शोर है, ना कोई खबर
अखबार भरे पड़े हैं मनोरंजन के सितारों से
कब सोता है, कब जागता है
या फिर किसी रोज भूख से मर जाता है
सब गुमनामी के अंधेरों में गुम हो जाता है।।

वो मजदूर हैं साहब 
चमकते शहरों में
गुमनामी सा जीवन जीता है।।


लेखिका - कंचन सिंगला 
लेखनी प्रतियोगिता -03-Aug-2022

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11 Comments

Khushbu

04-Aug-2022 08:48 AM

बहुत खूब

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Punam verma

04-Aug-2022 07:54 AM

Very nice

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Abhinav ji

04-Aug-2022 07:30 AM

Very nice

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