Madhu Arora

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रघुवर

रघुवर
मैं रोती रहूं नैन भर भर के, राम पधारो दया करके, ऋषि-मुनियों से सुन आई ,भिलनी तेरी सफल कमाई।
गाती रहूं गीत रघुवर  के ,मेरे राम पधारो दया करके,
उस दिन  से मैं बांट  निहारूं एक पल ना मैं तुझे बिसारू।
नित रोज सवेरे उठकर  ,हंस-हंसकर तेरी राह बुहारूंँ।
भाग्य जागेंगे मेरे घर के मेरे राम पधारो दया करके। 
 दोआसन रोज बिछाती  हूं निसदिन में खाली पाती हूं।
कब तक प्रभु दया करोगे मैं बिलख बिलख मर जाऊं ।
बैठी हूं  दरवाजे पर रघुवर,कब  मेरे घर आओगे।
कभी मन में ऐसा आवे क्यों? झूठी आस लगावे?
क्यो रघुवर प्रतापी तुझे भिलनी के घर आवे।
व्याकुल मने यू कहे डर के ,मेरे राम पधारो दया करके।
 प्रभु तुम हो वनवासी मैं जन्म जन्म की प्यासी।
 कभी भूले भटके आ जाना तेरी धन्य होएगी ये दासी।
 फूल खिलेंगे मेरे उर के मेरे राम पधारो दया करके।
 उठ बाहर देखने आई आवत दिखे रघुराई ।
 दौड़ पड़ी पागल सी वह, जा चरण में लिपटाई।
 पांव भिगोए नैन भर के, मेरे राम पधारो दया करके।
 क्यों इतनी देर लगाई ,भीलनी यो कह के रो आई।
 बेरो की डलिया वह लाई, चख चख कर प्रभु को भोग लगाई
 करुणानिधि ने रो-रोकर शबरी  तो कंठ लगाई
 आंसू ना रुके मेरे प्रभु के,मेरे राम पधारो दया करके।
                     रचनाकार ✍️
                    मधु अरोरा
                #प्रतियोगिता हेतु
                6.8.2022

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10 Comments

Punam verma

07-Aug-2022 09:48 PM

Very nice

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Abhinav ji

07-Aug-2022 09:36 AM

Very nice👍

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बेहतरीन

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