लेखनी कहानी -09-august -2022 Barsaat (Love ♥️ and tragedy ) episode 30
हिमानी भी उठ चुकी थी और नहा धोकर उसने पूजा भी कर ली थी , घर में बने मंदिर में ही। भव्या कॉलेज जा चुकी थी ।
हिमानी रसोई में अपनी माँ का हाथ बटा रही थी । और बातें कर रही थी तभी हरी किशन जी भी आ गए और आकर अख़बार पढ़ने लगे जिसमे एक खबर सुन थोड़ा चिंतित हो कर रसोई में काम कर रही वैशाली जी और हिमानी से बोले " बेटा तुमने अख़बार पढ़ा देखो इसमें मौसम विभाग वालो का कहना है की आने वाले कुछ दिनों में मूसलाधार बारिश हो सकती है , उन्होंने चेतावनी भी दी है की अपना अपना समान बांध कर रखे कभी भी कैसे भी हालत हो सकते है "
"अरे छोड़ये भी इन अख़बार वालो को ये हमारे लिए कोई नया थोड़ी है , हम तो हर साल मानसून हो या बर्फ बारी हर चीज की तैयारी लेकर चलते ही है और वैसे भी होगा तो वही जो ईश्वर चाहेगा फिर उसमे ये मौसम विभाग वाले क्या कर लेंगे अच्छा आपके लिए चाय लाऊ " रसोई से वैशाली जी ने कहा
"एक चाय मिल जाए आपकी हाथ की तो हम धन्य हो जाए " हरी किशन जी ने कहा
"माँ मौसम विभाग वाले सिर्फ चेतावनी दे रहे है ताकि कोई नुकसान होने से बच जाए " हिमानी ने कहा
"अरे छोड़ भी जो हम लोगो का माली नुकसान होना होता है वो हो ही जाता है कितनी ही चेतावनी क्यू ना दे दे हम पहाड़ियों को अब आदत हो गयी है हर बार अपना माली नुकसान झेलने की और वैसे भी ये कौन सा हमें कुछ दे देंगे जो भी होगा झेलना तो हमें ही है अच्छा हो तब बुरा हो तब ये बता तू सेलनियों को लेकर क्यू नही जा रही है उस दिन वाली बात की वजह से नाराज़ है क्या " वैशाली जी ने पूछा
हिमानी अपनी माँ के मुँह से ये सुन थोड़ा घबराई और बोली " माँ अब सोच रही हूँ आपके साथ ही समय गुज़ारू ज्यादा से ज्यादा और वैसे भी कविता आंटी को मेरा काम करना पसंद भी कहा है बेवजह आप लोगो को ही बातें सुनाएंगी आकर मैं नही चाहती जाते जाते आप लोगो को दुखी करू बस इसलिए नही जा रही और वैसे भी पूरा केदारनाथ गाइड से भरा है उन्हें कोई और मिल जाएगा "
". हाँ, ये तो है , लेकिन तुझ जैसा गाइड कोई नही इस केदारनाथ में जो सेलनियों को अपना समझ लेती है और पूरे सच्चे मन से इस पावन धरती के दर्शन कराती है " वैशाली जी ने कहा
"माँ आप भी " हिमानी कुछ कहती तब ही दरवाज़े पर किसी की दस्तक होती है ।
"इस समय कौन हो सकता है " बाहर बैठे हरी किशन जी ने कहा
वैशाली जी और हिमानी ने भी अपने कान बाहर की और किए ।
हरी किशन जी उठे और बाहर गए और दरवाज़ा खोला
" अंकल नमस्ते आपने पहचाना मुझे " दरवाज़े पर खड़ी श्रुति ने कहा
"हाँ, हाँ बेटा तुम्हारा ये अंकल अभी इतना बूढा नही हुआ है आओ अंदर आओ " हरी किशन जी ने कहा
"अंकल हिमानी घर पर है हमें कुछ काम था " श्रुति ने पूछा
"हाँ, बेटा अपनी माँ के साथ रसोई में है अभी आवाज़ देता हूँ " हरी किशन जी ने कहा
"नही अंकल रहने दीजिये मैं खुद चली जाउंगी उनसे मिलने आप बस मुझे रसोई का रास्ता बता दीजिये " श्रुति ने कहा
"आओ मैं तुम्हे खुद ले चलू वहा तक " हरी किशन जी ने कहा और श्रुति के साथ चल दिए ।
"हिमानी बेटा देखो तुमने से मिलने कौन आया है तुम्हारी दोस्त " हरी किशन जी ने कहा रसोई के दरवाज़े पर खड़े होकर
हिमानी ने पलट कर देखा और थोड़ा अचम्बे के साथ बोली " श्रुति तुम यहाँ "
"क्यू हिमानी मैं यहाँ नही आ सकती " श्रुति ने एक दम से कहा
"अरे नही नही, मेरा वो मतलब नही था " हिमानी और कुछ कहती तब ही वैशाली जी बोल पड़ी
"अरे नही बेटा हिमानी का वो मतलब नही था , आओ बैठो बातें करते है " वैशाली जी ने कहा
"अरे नही आंटी मैं तो मज़ाक कर रही थी , आंटी क्या हिमानी खाली है या आपके साथ कुछ काम कर रही है क्या हम हिमानी को ले जा सकते है हम मंदिर दर्शन करना और यहाँ का बाजार घूमना तो रह ही गए " श्रुति ने हिचकिचाते हुए पूछा
हिमानी ने उसकी तरफ देखा और शायद मना करने को थी तब ही वैशाली जी बोल उठी " नही बेटा हिमानी तो बस मेरा हाथ बटा रही थी तुम जहाँ चाहो उसे ले जाओ पर शाम होने से पहले आ जाना "
"पर माँ, मैं आपके साथ " हिमानी कुछ कहती लेकिन वैशाली जी ने कहा " पर वर कुछ नही बेटा, तुमने तो कहा था ये शहरी लोग है इन्हे भोले बाबा के दर्शन करने में कोई दिलचस्पी नही है
"अरे नही आंटी ऐसा नही है , भले ही हम शहर में रहते है लेकिन हमारी आस्था और उम्मीद तो भगवान जी ही है " श्रुति ने कहा
"यही तो बेटा मैं इससे कह रही थी की भले ही आज कल के लोग मॉडर्न हो रहे है लेकिन सब को चलाने वाला तो एक ईश्वर ही है ना और भला अपने ईश्वर के दर्शन करना कौन नही चाहेगा , चलो बेटा अब कोई बहाना मत बनाओ अपना काम ईमानदारी से करती आयी हो अब तक तो अब भी ईमानदारी से करो और वैसे भी क्या पता ये साल तुम्हारा आखिरी ही हो सेलनियों को घुमाने का क्यूंकि कुछ दिन बाद तो हम से ज्यादा तुम्हारे पति और ससुराल वालो का हक़ होगा तुम पर" वैशाली जी ने कहा
नही माँ, मुझ पर पहला हक़ आपका और पिताजी का है बाद में किसी और का ठीक है आप कहती हो तो हो आती हूँ, हिमानी ने कहा
श्रुति उन माँ बेटी को देख रही थी और ना जाने कहा खो सी गयी थी उसकी आँखे नम हो गयी थी ।
श्रुति, श्रुति,,, हिमानी ने उसे आवाज़ दी
श्रुति एक दम होश में आयी और बोली " क्या हुआ "
"ये सवाल तो मुझे तुमसे पूछना चाहिए था की तुम्हे क्या हुआ, कहा खो गयी " हिमानी ने कहा
"कुछ नही बस ऐसे ही, आप दोनों में कितना प्रेम है बस वही देख रही थी " श्रुति ने कहा
"माँ, बेटी के बीच तो प्रेम होता ही है " वैशाली जी ने कहा
"नही आंटी हर बेटी हिमानी और भव्या जैसी खुशकिस्मत नही होती हर किसी के पास आप जैसी माँ नही होती है " श्रुति ने कहा
"बेटा मैं समझी नही, जो तुम कहना चाह रही हो " वैशाली जी ने पूछा
हिमानी कही बात को थोड़ा बहुत समझ गयी थी इसलिए उसने अपनी माँ से कहा " छोड़ो माँ हम लोगो को देर हो रही है आप जब तक श्रुति को चाय पिलाओ अपने हाथ की मैं जब तक तैयार हो कर आती हूँ "
". तुम्हे तैयार होने की क्या ज़रूरत तुम तो ऐसे ही खूबसूरत लग रही हो " श्रुति ने कहा
हिमानी मुस्कुरा कर कमरे में चली गयी वैशाली जी श्रुति के लिए अपने हाथ से चाय बना कर लायी उनके हाथ की चाय पी कर उसे बेहद आंनद आया ।
उसके बाद श्रुति और हिमानी बाहर आ गए ।
"बेहद खूबसूरत लग रही हो तुम, बिना किसी मेकअप के और एक हम है कितना भी मेकअप थोप ले वैसे के वैसे ही रहते है" श्रुति ने कहा
"नही नही आप भी बेहद खूबसूरत है , इस दुनियां में इश्वर की बनायीं हर चीज खूबसूरत है फिर चाहे वो इंसान हो, जानवर हो, परिंदे हो पेड़ हो पहाड़ हो या कुछ और ये तो हम इंसानों के देखने का नज़रया है की उस चीज को कैसे देखते है " हिमानी ने कहा
"हिमानी तुम अपनी तरह बातें भी बेहद खूबसूरत करती हो, तुम्हारी माँ ने तुम्हे बहुत अच्छी परवरिश दी है " श्रुति ने कहा
हाँ, वो तो है , ये सब मैंने अपनी माँ से ही सीखा है , अच्छा तुम्हारे परिवार में कौन कौन है तुमने बताया नही कभी हिमानी ने पूछा
"कुछ ऐसा बताने का है ही नही जो बताया जाए मैं तुम्हारी तरह इतनी किस्मत वाली नही जिसके पास बहुत कुछ हो अपने परिवार वालो के लिए बताने को " श्रुति ने कहा
"फिर भी , तुम्हारे पिता क्या करते है , तुम्हारी माँ कैसी दिखती है यकीनन खूबसूरत होंगी और तुम बिलकुल उन पर गयी होगी " हिमानी ने कहा
"काश की मैं अपनी माँ जैसी ना बनु बस यही प्रार्थना है मेरी भगवान से, तुम जानना चाहती हो ना मेरे बारे में तो सुनो मेरे पिता इस दुनियां में नही है वो बहुत पहले ही ये दुनियां छोड़ कर जा चुके है और मेरी माँ मुझे 12 साल की उम्र में ही अनाथ करके मेरी ज़िन्दगी में अकेला पन करके अपने अकेले पन को दूर करने के लिए अपने ही दोस्त के पास चली गयी थी और उनसे शादी कर ली थी । उन्हें वो 12 साल की मासूम बच्ची पर रेहम नही आया
और वो अपनी दुनियां बसाने चली गयी मुझे नौकरानी के आसरे पर छोड़ कर उस दिन मैंने अपनी माँ को भी अपनी ज़िन्दगी से निकाल दिया था पापा तो पहले ही जा चुके थे उस दिन मैं अनाथ हो गयी थी माँ के होते हुए भी , क्या माँ ऐसी होती है तुम्हारी माँ तो तुमसे कितना प्यार करती है " श्रुति ने कहा रोते हुए
हिमानी ने उसे सीने से लगाया और उसके आंसू साफ करते हुए बोली " श्रुति कोई भी माँ स्वार्थी नही होती बस कभी कभी वक़्त और हालत हमारे हाथ में नही होते है जिसके चलते इंसान ना जाने कौन कौन से ऐसे फैसले ले लेता है जिनका पछतावा उसे ज़िन्दगी भर रहता है , तुम्हारी माँ की भी कोई मजबूरी रही होगी तुम तो जानती हो एक अकेली औरत को ये समाज और उसमे रहने वाले लोग किस नज़र से देखते है , अगर कोई मर्द दोस्त बन कर भी एक अकेली औरत का साथ देना चाहे तब भी ये समाज उन दोनों को ना जाने किन किन नामो से बुलाकर बदनाम कर देता है , अब ऐसे में इंसान के पास कोई दूसरा रास्ता नही बचता है । श्रुति मैं तुम्हारा दर्द कम तो नही कर सकती लेकिन इतना कहूँगी कभी कभार किसी को माफ कर देना और उसे ना चाहते हुए भी अपनी ज़िन्दगी में वापस बुला लेना इस तरह दर्द में रहने से बेहतर होता है , तुम भी हो सके तो माफ करदो अपनी माँ को मुझे पूरा यकीन है उन्होंने इतना बड़ा फैसला अपनी ख़ुशी से नही लिया होगा, उनके लिए भी ज़हर का घूट लेने के समान होगा तुम्हे छोड़ना और तुम्हारे पापा की जगह किसी और मर्द को देना। क्यूंकि ये समाज अकेली और विधवा औरत का साथ देने इतनी जल्दी आगे नही आता जितना उस पर लांछन और ऊँगली उठाने आ जाता है "
हिमानी के सीने से लग कर रो कर श्रुति को ऐसा लगा मानो बरसो से जो बोझ उसके सीने पर था हल्का हो गया और वो आंसू साफ करके हिमानी से बोली " मैं वायदा तो नही कर सकती क्यूंकि जब जब वो औरत मेरे सामने आती है मुझे वही 12 साल की मासूम श्रुति याद आ जाती है जो अपनी माँ को आवाज़ दे रही होती है और उसकी माँ किसी और का हाथ थामे उससे दूर होती चली जाती है लेकिन मैं कोशिश करूंगी ताकि उन्हें दिल से माफ कर सकूँ बाद में ही सही लेकिन उन्हें भी मेरी जुदाई का पता चल ही गया क्यूंकि इतने साल बाद भी उन्हें दूसरे पति से कोई औलाद ना हुयी तो शायद उन्हें भी उनके किए की सजा ईश्वर ने दे ही दी।
हिमानी ने श्रुति के आंसू साफ किए और वो दोनों बातें करती हुयी आगे बढ़ने लगी जहाँ बाकी सब उनका इंतज़ार कर रहे थे
Nancy
10-Aug-2022 10:01 AM
Bahut sundar rachna
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Sachin dev
09-Aug-2022 06:17 PM
Very nice
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Muskan khan
09-Aug-2022 06:12 PM
Nice
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