Add To collaction

लेखनी कहानी -10-august -2022 Barsaat (Love ♥️ and tragedy ) episode 36


वो दिन जैसे तैसे सब लोगो का गुज़र गया हिमानी भी अकेली रोने के सिवा कुछ ना कर सकी, हंशित बेहोश था और उसके दोस्त बाहर बैठे उसके होश में आने कि दुआ कर रहे थे, बारिश दोबारा शुरू हो गयी  थी । वही दूसरी तरफ रुपाली जी कि बात हंशित से नही हो पायी थी क्यूंकि श्रुति का फ़ोन भी बंद जा रहा था  उनकी रात भी बेचैनी में ही कटी मानो कुछ बुरा हुआ हो उन लोगो के साथ यही बात सोचते सोचते । वैशाली जी भी मजबूर थी और चाह कर भी कुछ नही कर सकती थी सिवाय अपने पति का साथ देने के अलावा भव्या नाराज़ थी सब से बिना खाना खाये सौ गयी थी।


अगले दिन रुपाली जी नाश्ते कि मेज पर बैठी थी लेकिन उनका मन कही और था  और उनकी चिंता उनके चेहरे पर साफ नज़र आ रही  थी ।


"बहु क्या हुआ, सब ठीक तो है  " हेमलता जी ने पूछा

"माँ ठीक भी है  और नही भी  " रुपाली जी ने बुरा सा मुँह बना कर कहा 

"क्या हुआ बहु सब ठीक तो है  ऐसे क्यू कह रही है  तुझे तो कुछ नही हुआ " हेमलता जी ने पूछा


"जी मम्मी जी, आपकी तबीयत तो ठीक है  " रजनी ने पूछा 


"हाँ, मेरी तबीयत को क्या होना है  बस हंशित को लेकर थोड़ा परेशान हूँ " रुपाली जी ने कहा


"अब क्या कर दिया तुम्हारे लाडले बेटे हंशित ने, फिर कही कोई कांड तो नही कर दिया पिछली बार जैसा " हंसराज जी ने कहा


"मैं इस वक़्त आपसे बहस करने के मूड में नही हूँ, ना जाने भगवान ने कौन सा पत्थर दिल आपके सीने में रखा है  जिसमे अपने बेटे के लिए कोई फीलिंग, कोई जज़्बात, कोई उसकी परवाह नही है  " रुपाली जी ने कहा गुस्से से उनकी तरफ देख कर


"हंसराज तू चुप रहे ये मेरा और बहु का मसला है , हाँ बेटा बोल क्या हुआ हंशित  को मेरा पोता सही तो है  ना " हेमलता जी ने पूछा नम आँखों से


"नही जानती माँ कल से मेरा मन घबरा रहा है उससे बात भी नही हुयी है , ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो मेरा बेटा, किसी मुश्किल या परेशानी में है पहले तो उसका ही फ़ोन नही लग रहा था  और अब श्रुति का फ़ोन भी बंद आ रहा है , और देखो ना माँ बाहर कितनी तेज बारिश हो रही है " रुपाली जी ने कहा


हेमलता जी अपनी कुर्सी से उठी और रुपाली के पास आकर उसके सर पर हाथ फेर कर बोली " बेटा मौसम ख़राब है  क्या पता नेटवर्क नही मिल रहे हो, तू ईश्वर में भरोसा रख सब ठीक हो जाएगा तू माँ है  ना इसलिए तेरा दिल बेहद नर्म है  मेरा भी ऐसा ही हाल होता है  जब हंसराज मुझसे कही दूर जाता है , तू परेशान ना हो सब ठीक होगा माता रानी ने चाहा तो तू आराम से नाश्ता कर "


"जी माँ सब ठीक होगा, लेकिन माँ एक भी निवाला मेरे हलक से नीचे नही उतर रहा , जब तक हंशित कि आवाज़ ना सुन लू मुझे चेन नही आएगा  मेरा मन बैठे जा रहा है, बुरे बुरे ख्याल आ रहे है  मेरे मन में जैसे कि कुछ अनहोनी होने वाली है माँ मेरा बेटा सही तो होगा ना " रुपाली जी ने कहा रोते हुए


"अरे माँ आप रो क्यू रही हो देखना हंशित जल्द लोट कर आएगा  और देखना वो जिस काम के लिए गया है  उसमे कामयाब जरूर होगा " रजत ने कहा


"हु,, हो ही ना जाए कामयाब, जानवरों और पेड़ो कि तस्वीरे खींचने से कोई कामयाब नही बनता सिर्फ बनता है तो बेवक़ूफ़  और तुम सब उससे बड़े वाले बेवक़ूफ़ जो उसका इस बेवकूफी में साथ देते हो पछतायेगा एक दिन जब सारी जवानी बरबाद कर देगा " हंसराज जी कुर्सी से हस्ते मुस्कुराते उठे ये कहते हुए


"मुझे सब्र दे " रुपाली जी ने इतना ही कहा हंसराज जी कि बात पर और वहा से चली गयी ।


"अरे बहु नाश्ता तो करती जा " हेमलता जी ने कहा

"हंसराज तू नही सुधरेगा  ना जाने तुम बाप बेटे कि नाराज़गी एक दिन इस घर कि बर बादी का सबब बन जाएगी तब तुझे अक्ल आएगी कि तूने जो कुछ किया गलत किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी " हेमलता जी ने अपने बेटे से कहा

देखेंगे माँ कौन पछतायेगा , मैं या वो आपका नालायक पोता चलो रजत  दफ्तर चलो  बहुत काम है , इन औरतों को तो सिवाय उस नालायक के गुण गाने के अलावा कुछ नही आता 

"जी,,, जी,, पापा  " रजत ने कहा और उठ खड़ा हुआ और वो दोनों दफ्तर के लिए निकल गए बारिश में गाड़ी में बैठ कर।


रास्ते में वो जगह पड़ी जहाँ पहले कभी झुग्गी झोपडीयाँ हुआ करती थी लेकिन अब वहा सिर्फ टूटे और बिखरे हुए आशयाने पड़े थे जिन्हे उन आशयनो से निकाल फेक दिया था किसी के लालच ने और अब वो बेचारे इस बरसते मूसलाधार मानसून में दर दर कि ठोकरे खा रहे होंगे, ना जाने कितनो ने खाना नही खाया होगा तो ना जाने कितनो ने अपने बीवी बच्चों को अपने हाथ से जलाया या दफनाया होगा क्यूंकि बारिश में दर दर भटकने पर जब वो बीमार हुए होंगे तब उनके पास ना तो छत ही होगी और ना इतने पैसे कि वो इलाज करा सके  आखिर में मौत ही ने उन्हें गले लगा लिया क्यूंकि इंसानों ने तो उन पर जुल्म करके उन्हें उनके घरों से ही लथेड दिया था  अब मौत ही थी जिसके आगोश में आकर वो चेन कि नींद सौ गए  और उन सब कि मौत कि वजह कहने को तो मानसून और उसकी बारिश  बना लेकिन असली वजह  सब जानते है  कि उनकी खुशियों को गमो में बदलने के पीछे किसका हाथ था  उन अमीर लोगो का जो अमीर होने के बाद खुद को भगवान समझ बैठते है  और ये भूल बैठते है  कि ये पैसा जो उसे ईश्वर ने दिया था इसलिए नही दिया था कि वो गरीबो पर जुल्म करे उनसे उनके आशयाने छीन ले अपने लालच में। इसलिए दिया था कि वो उनकी मदद करे  एक फ़रिश्ते कि तरह लेकिन नही सब मतलबी है  जिस जिस का मतलब निकलता गया  वो वहा से जाता रहा नेता हर साल वोट मांगने आते है उन गरीब झोपड़ पट्टी वालो से उन्हें पक्के आशयाने दिलाने का ख्वाब दिखाते है  और वोट लेकर चले जाते है  बेचारे झोपड पट्टी वाले वही के वही रह जाते है  और एक दिन हंसराज और मालिक ब्रदर्स जैसे पैसे के बल पर उनके आशयाने छीन कर उन्हें दर बदर फिरने पर मजबूर कर देते है ।


रजत देख रहा था कि उसके पिता के चेहरे पर जरा सा भी दुख नही था इस बात का की उन्होंने कितना बड़ा पाप किया है  लोगो के आशयाने छीन कर कितना अच्छा होता की उसके पिता पहले उन गरीबो के लिए कही और बंदोबस्त कर देते रहने का उसके बाद उनसे ये जगह ले लेते आखिर पैसा ही तो खर्च होता जो की फिर कमा लिया जाता और एक दिन सब माल दौलत यही तो रह जाना है  किसी की जान जाने से तो बेहतर ही होता रजत अपने दिमाग़ में ये सब सोच रहा था  और उनका दफ्तर आ गया ।


वही दूसरी तरफ केदारनाथ में भी बारिश ज़ोरो पर थी , मानसून अपने उरूज पर बरस रहा था  लग रहा था इस बार तो घाटी डूब ही जाएगी जिस तरह गंगोत्री नदी उफ़ान पर थी ।


वही दूसरी तरफ हिमानी के घर शादी की तैयारियां चल रही थी , हिमानी माता पिता की ख़ुशी के खातिर अपनी ख़ुशी अपना प्यार दांव पर लगाने जा रही थी सुरेंदर से शादी करके।


भव्या उससे बात तक नही कर रही थी , कई बार हिमानी ने उसे समझाने की कोशिश की और कहा कि मेरी बहन मेरे लिए मेरे माता पिता के आत्म सम्मान से बढ़ कर कुछ नही है  और ये बात हंशित भी जानता है हमने कसम खायी थी कि अगर हमारे माता पिता नही माने तो हम  कोई भी ऐसा कदम नही उठाएंगे जिससे कि मेरे माता पिता का सर झुक जाए।


भव्या  नही चाहती थी कि हिमानी इस तरह अपने प्यार कि क़ुरबानी दे, लेकिन वो मजबूर थी वो सिर्फ समझा सकती थी  हिमानी को।


वैशाली जी ने भी हरी किशन जी को समझाने की कोशिश की लेकिन वो नही माने, वो अपनी बेटी उस शहरी लड़के को नही देना चाहते थे वो नही जानते की हंशित का प्यार सच्चा है या नही, वो अपनी बहन वाले हादसे को अभी तक भुला नही पाए थे, वो नही चाहते थे एक और मोहब्बत में कुर्बान हो जाए वो नही चाहते थे कि उनकी बहन कि तरह उनकी बेटी भी मोहब्बत कि इतनी बड़ी सजा भुगते की आखिर में पागल हो जाए।


एक दिन गुज़र गया था लेकिन हंशित को होश नही आया, श्रुति ने रुपाली जी को फ़ोन किया ताकि उन्हें बता सके की हंशित ठीक है झूठा ही सही दिलासा तो मिल जाएगा उन्हें बाकी ये कोई छिपने वाली बात तो नही थी और ईश्वर ने चाहा तो उसे होश आ जाएगा आज नही तो कल।


बारिश रुकने का नाम नही ले रही थी ऐसा लग रहा था मानो आसमान भी रो रहा हो।

रात भर बारिश होती रही ये आखिरी रात थी कल हिमानी दुल्हन बन कर सुरेन्द्र के साथ चली जाएगी, हंशित के पास भी ये आख़री रात थी अगर उसे सुबह तक होश नही आया तो वो कोमा में चला जाएगा।


हिमानी ईश्वर से सिर्फ और सिर्फ अपने प्यार को मौत के मुँह से निकालने की दुआ कर रही थी।

वही रुपाली जी भी घर के अंदर बने मंदिर में बैठी थी उन्हें वही सुकून मिल रहा था नही तो उनका दिल घबरा रहा था उन्हें सुकून नही मिल रहा था ना जाने क्यू, दो दिन गुज़र गए थे हंशित की आवाज़ सुने हुए, वो उसकी तस्वीर से बातें कर रही थी और उसकी शर्ट को अपने सीने से लगा कर उसके पास होने का एहसास कर रही थी।


वही दूसरी तरफ वैशाली श्रुति की माँ ने अपने पति का घर छोड़ दिया था वो उनसे तलाक लेना चाहती थी, वो श्रुति के कमरे में बैठी उसकी बचपन की तस्वीरे देख रही थी जिन तस्वीरो में वैशाली जी उसके साथ थी उसने उन तस्वीरो से अपनी माँ की तस्वीर फाड़ दी थी।


श्रुति मेरी बेटी मुझे माफ करदे, ना जाने मुझे किया हो गया था, मैं डर गयी थी तेरे पापा के जाने के बाद की आखिर तुझे और अपने आप को कैसे पालूंगी, बिना आदमी के सहारे के लेकिन मैं नही जानती थी की मैं एक माँ हूँ जो चाहती तो अपनी बेटी को अकेले पाल सकती थी बिना किसी आदमी के सहारे के।


लेकिन मैं बेहक गयी उसकी बातों में आ गयी और तुझे छोड़ कर उसका हाथ थाम लिया की वो मेरा अकेला पन दूर करने के साथ तुझे एक बाप का प्यार देगा।


लेकिन मैं गलत थी उसने तो मुझे कभी बीवी का दर्जा नही दिया शादी के बावज़ूद भी वो तुझे किया बेटी समझता उसके लिए तो मैं एक मजबूर, हालातो की मारी, अपने अकेले पन को उसके साथ दूर करने वाली एक औरत ही रही।


शायद ये मेरे स्वार्थी होने की सजा दी है मुझे भगवान ने, एक बारह साल की मासूम को एक नौकरानी के हवाले छोड़ कर आने की सजा मुझे दी है उसने, बेटा मुझे माफ करदे मेरा सीना फटा जा रहा है तुझे अपनी छाती से लगाने के लिए, तेरा माथा चूमने के लिए बेटा एक बार अपनी माँ को माफ करदे मैं वादा करती हूँ आज के बाद मौत के अलावा कोई तीसरा शख्स मुझे तुझसे जुदा नही करेगा, मुझे मेरे किए की सजा मिल गयी मुझे माफ करदे मेरी बेटी नही तो ये स्वार्थी माँ अपनी बेटी के गम में मर जाएगी,


उस रात सिर्फ आसमान नही रो रहा था कही एक माँ अपने बेटे के लिए रो रही थी, कही कुछ दोस्त अपने दोस्त को बचाने के खातिर भगवान के सामने रो रहे थे। कही एक प्रेमिका अपने प्रेमी के वियोग में रो रही थी  तो कही एक माँ अपनी बेटी की ऐसी हालत देख कर रो रही थी  वो रात बहुत ही काली रात थी जब आसमान के साथ साथ इंसान भी रो रहे थे ।


हिमानी दुल्हन बन रही थी ना चाहते हुए भी , वो हाथो में चूड़ियाँ गले में हार और मांग में टीका लगा रही  थी चारो और ख़ामोशी थी  अगर किसी चीज की आवाज़ थी तो वो सिर्फ बारिश के शोर की।


बारात आ चुकी थी सुरेन्द्र उसके घर पहुंच चुका था दूल्हा बन कर, हिमानी भी तैयार हो चुकी थी हंशित की मोहब्बत ताक में रख कर, उसकी आँखे लाल थी मानो रात भर वो रोई हो, उसकी बहन भव्या उससे अभी भी नाराज़ थी ।

उसे बाहर ले जाया जा रहा था , एक एक कदम जो सुरेन्द्र की और बढ़ रहा था  उसे हंशित की मोहब्बत और उससे दूर कर रहा था , अपने माता पिता के सम्मान के खातिर वो एक ऐसे इंसान के साथ  रिश्ते में बंधने जा रही थी जिसे वो बिलकुल भी पसंद नही करती थी ।


श्रुति का फ़ोन हिमानी के पास आ रहा था उसने अपना फ़ोन बंद कर दिया।

वो सुरेन्द्र के पास मंडप में आकर बैठ गयी  वरमाला  हो चुकी थी साथ फेरे भी लिए जा चुके थे  अब बस मंगल सूत्र और सिंदूर भरना रह गया था मांग में उसके बाद हंशित और हिमानी के प्यार की दास्तान अधूरी ही रह जाएगी।

मंगल सूत्र पहना कर सुरेन्द्र मांग में सिन्दूर भर ही रहा था  की हंशित चिल्लाने लगा  " नही नही ऐसा नही हो सकता मेरे प्यार को कोई नही ले जा सकता  ये कहता हुआ वो होश में आया  "


बाहर बैठे उसके दोस्त उसकी आवाज़ सुन अंदर दौड़े उसे होश में आया देख  ख़ुशी से पागल हो गए । उसे गले लगाया  और ईश्वर का धन्यवाद किया।


हंशित के मुँह पर सिर्फ एक ही नाम था  " हिमानी कहा है, कहा है  हिमानी वो ठीक तो है  कही उसे कुछ हुआ तो नही मुझे जाना है  उसके पास "


"हंशित मेरे भाई तू अभी ठीक नही है  हिमानी भी ठीक है" लव ने कहा

"अगर वो ठीक है तो मेरे पास क्यू नही है , क्या हुआ उसे सच सच बताओ , वरना मैं खुद पता कर लूँगा  " हंशित ने कहा

"उसे बचा लो हंशित, तुम ही हो जो उसे ऐसा करने से बचा सकते हो, जाओ उसे बचा लो इतनी बड़ी क़ुरबानी देने से मैं जानती हूँ तुम दोनों का प्यार सच्चा है  तुम धोखे बाज नही हो मेरी दीदी तुमसे बेहद प्यार करती है  लेकिन पिताजी की वजह से वो उस सुरेन्द्र से शादी करने को मजबूर है , पिताजी को लगता है  तुम दीदी को धोखा देकर चले जाओगे, तुम उनसे सच्चा प्यार नही करते हो, जाओ हंशित अपने प्यार को किसी और का होने से बचा लो देखो दो दिन से ये आसमान भी रो रहा है  जाओ हंशित उसे शादी के मंडप से भगा ले जाओ वो मर जाएगी लेकिन माँ पिताजी के मर्ज़ी के खिलाफ नही जाएगी वो ना चाहते हुए भी उस सुरेन्द्र से शादी कर लेगी जिसे वो पसंद तक नही करती जाओ बचा लो अपने प्यार को नही तो हमेशा के लिए खो दोगे वो मंदिर में शादी कर रहे है  " भव्या ने कहा अंदर घुसते हुए वो बारिश में भीग चुकी थी  पूरी तरह।


हंशित ने ये सुना तो अपने हाथ में लगी सुइंया निकाल फेकी और भव्या के पास आया और बोला " तुम घबराओं नही मैं तुम्हारी बहन को ऐसा करने नही दूंगा मेरे प्यार को इस तरह कुर्बान करने नही दूंगा  मैं जाऊंगा और उसे अपना बना कर लाऊंगा फिर चाहे पूरी दुनियां ही मेरे खिलाफ  क्यू ना हो जाए हंशित ने कहा और वहा  से भाग निकला बाहर बारिश मूसला धार हो रही थी चारो और पानी ही पानी था ।


"हंशित रुको " लव ने कहा पीछे से


"जाने दे लव उसे आज अगर उसने देर करदी तो फिर बहुत देर हो जाएगी, हंशित  और हिमानी की प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जाएगी" श्रुति ने उसके कांधे पर हाथ रख कर कहा ।


उसके बाद वो लोग भी उस मूसलाधार बारिश में हंशित के पीछे पीछे दौड़े।


हंशित के मुँह पर सिर्फ एक नाम था हिमानी और वो पागलो की तरह उस बारिश में भागता हुआ मंदिर की और जा रहा था जहाँ उन दोनों की शादी हो रही थी ।


वो लड़खड़ाते  क़दमों से मंदिर की सीड़िया चढ़ कर ऊपर पंहुचा  और देखा की हिमानी और सुरेन्द्र एक साथ मंडप में बैठे है ।


हंशित वहा पंहुचा और चीख कर बोला " रुक जाओ हिमानी मैं आ गया हूँ, तुम्हारा प्यार मुझे मौत के मुँह से खींच लाया, "

हंशित को देख  सुरेन्द्र और उसके घर वालो को बेहद गुस्सा आया  सुरेन्द्र मंडप से उठा  और जाकर हंशित के साथ हाता पायी करने लगा  और बोला " आज तू मेरे हाथ से ज़िंदा नही बचेगा  या तो तू नही या फिर मैं नही "


हंशित के दोस्त भी आ चुके थे। वैशाली जी के दिल की धड़कने बहुत तेज़ हो गयी थी , हरी किशन जी भी घबरा गए जब उन्होंने दोनों को लड़ते देखा ।


हिमानी तो जैसे ज़िंदा लाश ही बन गयी थी । उन्हें इस तरह खुद के लिए लड़ता देख ।


आखिर क्या होगा क्या हंशित  और हिमानी एक हो पाएंगे, क्या हरी किशन जी हंशित के सच्चे प्यार को समझ पाएंगे जानने के लिए पढ़ते रहिये  सेकंड लास्ट एपिसोड 

   18
8 Comments

Saba Rahman

10-Aug-2022 11:51 PM

Nice

Reply

Aniya Rahman

10-Aug-2022 10:01 PM

Nice

Reply

Muskan khan

10-Aug-2022 09:47 PM

Very nice

Reply