लेखनी कहानी - यूं ही बेवजह...
यूं ही बेवजह...
यूं ही बेवजह इल्जाम दिया करते हो तुम,हमने तो खामोशियों को ही अपना गुनाह मान लिया है अब,
जो कह देते तुमसे अपना हाले दिल, जरा पहले,
तो मिल जाता मुझे भी कुछ सुकून सा तब,
सोच रहे थे हम, कि साथ गुजार लेंगे हम अपनी ये जिंदगी,
पर तुमने तो हमें संभलने का मौका भी ना दिया,
अपनी खामोशियों से कुछ परेशान हम भी थे,
पर अब लगता है, कि जो हुआ अच्छा ही हुआ,
फितरत ऐसी हो गई है, अब कुछ कहने सुनने का मन नहीं करता,
सुबह से रात, रात से फिर वही सुबह, ये दिन यूं ही बदलता रहता,
तुम्हारे इल्जाम हमने रख लिए हैं अब अपने सर आंखों पर,
इक दिल है हमारा, जो सच जानता है, वो हर पल मुस्कुराता रहता।।
प्रियंका वर्मा
10/8/22
shweta soni
12-Aug-2022 03:16 PM
Nice 👍
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Nancy
11-Aug-2022 09:34 AM
Bahut khub
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
11-Aug-2022 09:13 AM
बेहतरीन
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