shweta soni

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निर्णय

सुधीर तुम मुझे ऐसे छोड़ कर नहीं जा सकते , मैं... मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगी और मैं अब मां बनने वाली हूं , मेरा नहीं तो कम से कम हमारे बच्चे के बारे में तो सोचों । " सृष्टि उस लड़के के पैरों में गिर कर कहने लगी । 


सुधीर‌ - छोड़ो मुझे सृष्टि , मैं तुमसे प्यार नहीं करता । मैं बस कुछ समय तुम्हारे साथ बिताना चाहता था । लेकिन तुम हो की कुछ ज्यादा ही आस लगाए बैठी हो । क्यों क्या अब मेरे पैसों पर लालच आ गया है क्या ? और रही बात इस बच्चे की , तो क्या सबूत है कि ये मेरा हैं । मैं तुम्हारा कैसे भरोसा करूं ! कि तुम्हारे पेट में पलने वाले बच्चे का पिता मैं हूं । अरे जिसने शादी से पहले ही , मेरे साथ रह चुकी हो , उसका क्या भरोसा करना । 

सृष्टि अपने प्यार को पाने के लिए इतना झुक गई थी कि उसका आत्मविश्वास कुछ देर के लिए खो सा गया था । लेकिन  कोई उसके आत्मसम्मान को ठेस पंहुचाये ये , वो सहन नहीं कर सकी । उसने अपने बहते हुए आंसूओं को पोंछा और सुधीर से कहने लगी । 

तुमने प्यार करने का झूठा दिखावा किया , मेरा फायदा उठाया । लेकिन मेरी एक बात याद करना सुधीर , मैं इस वक्त तो चुपचाप यहां से जा रही हूं । लेकिन वो जो ऊपर बैठकर सब देख रहा है ना वो तुम्हें जवाब देगा । जिसे पूरी दुनिया देखेगी भी और सुनेगी भी ! बस उसके जवाब का इंतजार करना !  सृष्टि ने कहा और वहां से चली गई ‌। 

वो पैदल ही चली जा रही थी , रह - रह कर ही उसे सुधीर के साथ बिताए हुए हसीन यादें , याद आ रही थी । 

वो उसके कालेज का पहला दिन था , जब वो सुधीर से मिली थी । उसी ने तो रैंकिंग से बचाया था मुझे और कितनी मदद करी थी । धीरे - धीरे मुझसे मिलना , मेरी राह देखना , मेरी परवाह करना । ये सब दिखावा था ? मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा है ! सृष्टि वहीं जमीन पर गिर पड़ी और चीख़ते हुए रो पड़ी । भले ही सुधीर ने उसका साथ छोड़ दिया था । लेकिन प्रकृति अब भी सृष्टि का साथ दें रही । उसके दुःख में दुखी होकर , वो भी बरसने लगी थी । इस वक्त सृष्टि पूरे दुनिया से बेखबर थी । उसके आसपास क्या हो रहा है ।‌ उसकी भी खबर उसे नहीं थी । वो गुमसुम बारिश में भीगते हुए , एक जिंदा लाश की तरह वहां पर बैठी हुई थी । तभी जोर की बिजली वहीं आस पास ही गिरी और इस भयानक आवाज से उसके अंदर एक हलचल हुई । उसे ऐसा लगने लगा कि , एक छोटा - सा जीव उसके पेट में इधर से उधर
रेंग रहा हो । शायद उस आवाज़ से उसके अंदर के अंश को डरा दिया था । सृष्टि साफ - साफ महसूस कर पा रही थी । " नहीं , ये मैं क्या कर रहीं हूं , अपनी ही संतान को डरने पर मजबूर कर दिया । मैं इतनी भी मतलबी नहीं की सुधीर के किए की सजा मुझे और मेरे बच्चे को दूं ‌। नहीं बिल्कुल नहीं , सृष्टि कुछ सोचते हुए अपनी जगह से उठी और उसने अपने आसपास देखा , सब चल रहें थे , अपने घरों को वापस जा रहें थे । सृष्टि ने सोचा ...किसी को भी सामने वाले की दुःख से कोई मतलब नहीं है । फिर मैं क्यूं किसी की बुरी यादें लेकर जीयूं । बिल्कुल नहीं , मैं ऐसा बिल्कुल नहीं करूंगी । सृष्टि ने अपना फैसला लें लिया था और वो अपने फैसले को पूरा करने के लिए अपने कदम बढ़ा लिए थे । 

समाप्त


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4 Comments

Teena yadav

11-Aug-2022 03:47 PM

Very nice 👍

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Raziya bano

11-Aug-2022 09:43 AM

Bahut khub

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Nancy

11-Aug-2022 09:29 AM

Bahut sundar rachna

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