17-Aug-2022 غیر عنوان-
منقبتِ حضرت مخدوم اشرف جہانگیر سمنانی رحمۃ اللّٰہ علیہ
""""""""
کلام و آواز۔ توصیف رضا رضوی
https://youtu.be/nmy3KdRbx2w
https://youtu.be/nmy3KdRbx2w
❣️🌹❣️
وہ خوش قسمت ہے جس کو مِل گیا ہے پیار اشرف کا
وہ جائے گا جہنم میں جو ہے غدار اشرف کا
کَرَم ہوگا مجھے جلدی کچھوچھہ کوئی پہنچا دے
کہ اب تو ہو گیا ہے دل مِرا بیمار اشرف کا
""""""""""
بَنائی جاتی ہے دنیا مرے اشرف کے روضے پر
سنوارا جاتا ہے عقبیٰ مرے اشرف کے روضے پر
"""""""
حبیبِ کبریا صلی علیٰ کے وہ نواسے ہیں
علیِ مرتضیٰ شیرِ خدا کے وہ دلارے ہیں
قرارِ قلبِ زہرا وہ ہیں ابنِ شاہِ کربل وہ
بھرے ہیں سب کے دامن، جاکے جس جس نے ہے پھیلایا
مرے اشرف کے روضے پر...............
ہزاروں اولیا کا فیض ہر دم بٹتا رہتا ہے
جو لے کر چشمِ نم جاتا ہے وہ بھی ہنستا آتا ہے
بنا دیتے ہیں ویرانے کو گلشن ذرے کو تارا
جو ادنیٰ شخص بھی جاتا ہے تو ہو جاتا ہے اعلی
مرے اشرف کے روضے پر...............
کوئی ثانی نہیں ان کے کرم کا ان کے احساں کا
برستا رہتا ہے ہر وقت بادل فضلِ رحماں کا
چلو منگتو! وہاں جا کر مقدر تم بھی چمکا لو
نہ جانے کتنے لوگوں کا مقدر جانے سے چمکا
مِرے اشرف کے روضے پر...............
شفا جس کو نہ دے پائی ہو دنیا کی دواؤں نے
ہو چاروں سمت سے گھیرا مصیبت نے بلاؤں نے
مدد جس کی نہ کرتا ہو زمانے بھر میں کوئی بھی
مرض جیسا بھی ہو انسان ہو ہی جاتا ہے اچھا
مرے اشرف کے روضے پر...............
جو بے ایمان ہو اس کو وہاں ایمان مل جائے
جو لاغر جسم لے کر جائے اس کو جان مِل جائے
نہیں جس میں عقیدت خیر اس کی بات ہی چھوڑو
عقیدت لے کے جو جائے اُسے مل جاتا ہے مولا
مرے اشرف کے روضے پر...............
وہاں عزت بھی پاؤ گے وہاں شہرت بھی پاؤ گے
جو چاہو مانگنا اُن سے وہاں دولت بھی پاؤ گے
مِرے اشرف کا یہ عالم نہیں ہے یونہی دیوانہ
ہے مِلتی نار سے آزادی اور جنت کا پروانہ
مرے اشرف کے روضے پر...............
وہ ایسا در ہے جس در پر برستی رہتی ہے رحمت
وہ ایسا در ہے جو سب کو دِکھاتا ہے رہِ جنت
نہ پوچھو شان اُس در کی جدا وہ در ہے ہر در سے
خوشی آنکھیں بچھاتی ہے بہاریں کرتی ہیں سجدہ
مرے اشرف کے روضے پر...............
بچھڑنے والے دل کو حضرتِ اشرف ملاتے ہیں
دعا کے پیڑ پر مقبولیت کے پھل اگاتے ہیں
مقدر کے ستاروں کی چمک دوبالا ہوتی ہے
برا انسان بھی جاتا ہے تو ہو جاتا ہے اچھا
مرے اشرف کے روضے پر...............
حکومت ایسی ہے ان کی کہ جو چاہیں وہی ہو جائے
اگر وہ چاہ لیں تو بندۂ عاصی ولی ہو جائے
سوال آیا کہ سب کی جھولیاں کس در پہ بھرتی ہیں
تو فوراً لے کے اپنا خامہ یہ توصیفؔ نے لکھّا
مرے اشرف کے روضے پر...............
"""""""""""""
✍️از۔ توصیف رضا رضوی باتھ اصلی سیتا مڑھی بِہار انڈیا
+91 9594346926
मेरे अशरफ़ के रौज़े पर
""""""""""""
❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️
वह ख़ुश क़िस्मत है जिसको मिल गया है प्यार अशरफ़ का
वह जाएगा जहन्नम में जो है गद्दार अशरफ़ का
करम होगा मुझे जल्दी किछौछा कोई पहोंचा दे
के अब तो हो गया है दिल मेरा बीमार अशरफ़ का,,,,,,,
बनाई जाती है दुनियां मेरे अशरफ़ के रौज़े पर
संवारी जाती है उकबा मेरे अशरफ़ के रौज़े पर,,,,,,
हबीब ए किबरिया सल्ले अला के वो नवासे हैं
अलिये मुर्तुज़ा शेरे खुदा के वह दुलारे हैं
क़रार ए कल्ब ए ज़हरा वह हैं इब्ने शाह ए कर्बल वह
भरे हैं सबके दामन, जा के जिस जिस ने है फैलाया
मेरे अशरफ़ के रौज़े पर-----------------------
हजारों औलिया का फ़ैज़ हर दम बटता रहता है
जो लेकर चश्म ए नम जाता है वह भी हँसता आता है
बना देते हैं वीराने को गुलशन ज़र्रे को तारा
जो अदना शख़्स भी जाता है तो हो जाता है आला
मेरे अशरफ़ के रौज़े पर --------------------------------
कोई सानी नही उनके करम का उनके एहसाँ का
बरसता रहता है हर वक़्त बादल फ़ज़ल ए रहमां का
चलो मंगतो। वहां जा कर मोक़द्दर तुम भी चमका लो
न जाने कितने लोगों का मोक़द्दर जाने से चमका
मेरे अशरफ़ के रौज़े पर ----------------------------------
शिफ़ा जिसको न दे पाई हो दुनियां की दवाओं ने
हो चारों सिम्त से घेरा मुसीबत ने बालाओं ने
मदद जिसकी न करता हो ज़माने भर में कोई भी
मरज़ जैसा भी हो इंसान हो ही जाता है अच्छा
मेरे अशरफ़ के रौज़े पर---------------------------
जो बे ईमान हो उस को वहां ईमान मिल जाए
जो लागर जिस्म ले कर जाए उसको जान मिल जाए
नहीं जिसमें अक़ीदत ख़ैर उसकी बात ही छोड़ो
अक़ीदत लेके जो जाए उसे मिल जाता है मौला
मेरे अशरफ़ के रौज़े पर-----------------------
वहाँ इज़्ज़त भी पाओगे वहाँ शोहरत भी पाओगे
जो चाहो माँगना उनसे वहाँ दौलत भी पाओगे
मेरे अशरफ़ का ये आलम नहीं है यूँ ही दीवाना
है मिलती नार से आज़ादी और जन्नत का परवाना
मेरे अशरफ़ के रौज़े पर-----------------------
वह ऐसा दर है जिस दर पर बरसती रहती है रहमत
वह ऐसा दर है जो दिखलाता है सबको रह ए जन्नत
न पूछो शान उस दर की जुदा वह दर है हर दर से
खुशी आँखें बिछाती है बहारें करती हैं सजदा
मेरे अशरफ़ के रौज़े पर---------------------------
बिछड़ने वाले दिल को हज़रत ए अशरफ़ मिलाते हैं
दुआ के पेड़ पर मक़बूलियत के फल उगाते हैं
मोक़द्दर के सितारों की चमक दोबाला होती है
बुरा इन्सान भी जाता है तो हो जाता है अच्छा
मेरे अशरफ़ के रौज़े पर---------------------------
हुक़ूमत ऐसी है इनकी के जो चाहें वही हो जाए
अगर वह चाह लें तो बंदा ए आसी वली हो जाए
सवाल आया के सब की झोलियाँ किस दर पे भरती हैं
तो फ़ौरन ले के अपना ख़ामा ये तौसीफ़ ने लिक्खा
मेरे अशरफ़ के रौज़े पर।।।।।।।।
"""""""""
✍️ कवि- तौसीफ़ रज़ा रज़वि बाथ असली सीतामढ़ी बिहार इंडिया
+91 9594346926
Raziya bano
26-Aug-2022 02:43 PM
نائس
Reply
Niraj Pandey
19-Aug-2022 06:34 PM
बहुत ही बेहतरीन
Reply
Khan
17-Aug-2022 10:59 PM
Nice
Reply